अबारा नहितन- केदार नाथ
चौधरी (मैैथिलीक पहिल फिल्म ‘ममता गाबए गीत’ कोना बनल
तकर रोचक कथा- संस्मरणात्मक
उपन्यास)- PART_I
पोथीक शीर्षक पर नजरि
पड़िते राजकपूर गबैत स्मृति मे आबि गेला ‘आबारा हूँ, गर्दिश में हूँ, आसमान
का तारा हूँ।’पोथी खतम करिते जेना
राजकपूरक जगह पर भेल जे एकर लेखक गाब’ लागल होथि‘आसमान का तारा हूँ...
(धन्य मैथिल बन्धुगण जे) गर्दिश में हूँ (हम तेँ ने) आबारा हूँ।’सिनेमा? मैथिली
मे?नहि छै...छै...नहि छै...हमरा सँ पूछब त’ हम निश्चयपूर्वक नहि कहि सकब जे छै की नहि
छै। दूचारि टाक नाम मानलहूँ जे अहाँ गना देब, मुदा सिनेमा वस्तु जे थिकै से
पुरातात्त्विक वा ऐतिहासिक महत्त्वक नहि थिकै, अपितु निरन्तरते मे एकर उपयोगिता छै। निरन्तरता
छै तखने ऐतिहासिकतोक महत्ता छै, ओना किछु नहि। आइ ‘सत्य हरिश्चन्द्र’ आ कि
दादा साहेब फाल्के केँ कहू के पुछैत जँ हिंदी सिनेमा एते आगाँ नहि आबि गेल रहैत? सिनेमा केँ पोथीक पन्ना
मे जीवित नहि राखल जा सकैछ। ओकर प्राणवायु पर्दा सैह थिकै। आइ
पर्दा पर नहि अछि तँ मैथिली सिनेमा नहि अछि। छल कहियो,
तँ छलछल करैत आयल छल, पल-पल
गलैत मरि गेल। बलपूर्वक आयल छल, छलपूर्वक मारि देल गेलै। आब
पर्दापर सँ उतरिक’ पोथी मे समटा गेल अछि।वैह ई पोथी थिक। एहि
पोथी मे मैथिलीक पहिल सिनेमाक जन्मकथा सँ ल’क’पोस्टमार्टम रिपोर्ट
धरि अछि। आ ई लिखल गेल अछि, ओकर एक निर्माताक कलम सँ। तेँ, एहिमे
उत्साह अछि, उल्लास अछि, उत्सर्ग अछि,
संघर्ष अछि, पुनि निराशा अछि, हताशा अछि, शोक
अछि, पलायन अछि। जेना ककरो आखिरी देवे-सेवे पहिल सन्तान होइ
आ ओ ठेहुनियेँ दैत चल गेल
होई। घटना पाँच दशक पहिलुक
थिक। ओ तारिख छल 23 सितम्बर 1963, जहिया केदार नाथ चौधरी तथा महंथ मदन
मोहन दास मैथिली मे सिनेमा बनयबाक उद्देश्य ल’क’ मुंबैक टेªन पकड़लनि। ओ तिथि एहि देवताक ‘इहागच्छ इहतिष्ठ’ छल। एकटा तिथि आर अछि 16 मइ 1966, जहिया केदार नाथ बाबू ई मोटा पटकि कलकत्ता एयरपोर्ट सँ बैंकॉक-हांगकांग-टोकियो-होनोलूलू
लेल उड़ि गेला। ओ तिथि एहि देवताक ‘स्वस्थानं गच्छ’ सिद्ध भेल। ओही
अन्तरालक कथामुख्यकथाएहि मे च’-तू-क’ कहल भेल अछि;
कहल नहि गेल अछि, मानू
देखा देल गेल अछि। सिनेमा मे जेना देखै छी, बस तहिना एहू मे अपने देखब। ओ सिनेमा, मैथिलीक
पहिल फिल्म ‘ममता गाबए गीत’ क्यो-क्यो
देखने होएब, बेसी
गोटे नहिए देखने होयब, मुदा ई पोथीओहि फिल्म निर्माण पर
आधारित ई पटकथाजे-जे पढ़ब से
अवश्य सिनेमा देखबाक अनुभव प्राप्त करब। केहन सिनेमाक तँ अपन मैथिल भाइ-बन्धुक
किरदानी-सिनेमाक। ‘वचनवीर क्रिया जीर’ समाजक
एक-एक घटना केँ, एक-एक
रील केँ आँखिक सोझाँ झलका देल गेल अछि। केदार बाबूक उन्यास जे
लोकनि पढ़ने छी,
से सबहु हिनक चुम्बकीय लेखन मे चिपकल होयबे करब। एहि संस्मरण
केँ जे छूअब,
की मजाल जे मन केँ आन दिस मोड़ि लेब? लेखक कहैत छथि जे एहि मे
लिखल एक-एक बात सत्य अछि, अर्थात् ई हुनक अपन जीवनक यथार्थ थिकनि। यथार्थ
कठोर अछि। स्थिति रहौ बरु केहनो कठोर, वर्णन शैलीक मधुरता मुदा एकरा अतिशय
मनलग्गू उपन्यास बना देने अछि। अछि तँ एहि मे
फिल्मनिर्माणक गाथा-कथा, मुदा ततबे नहि अछि। ई एक अलबम थिक, जाहि
मे लेखक अपन आ अपन गाम-घर तथा बाहर मे बसल समाजक भाँति-भाँतिक श्वेत-श्याम एवं रंगीन
चित्रा खीचि,
सैंतिक’ सजा देने छथि। एहि मे लेखकक अपन अवसाद, स्वाधीनताक सद्यः बादक
सामाजिक उथल-पुथल, मिथिला राज्य आन्दोलनक पहिल सुनगुनी, राजनीतिक
प्रति लोकक रुझान, भ्रष्टाचारक हुलकी, चीनी
आक्रमणक त्रासदी, नेहरूक प्रति देश मे
उपजल आक्रोश,
पाकिस्तानी आक्रमण, भारतक स्वाभिमानक पुनर्वापसी आदि कतिपय
ऐतिहासिक घटना-दुर्घटनाक भोगल-जोगल साक्ष्यो अछि तँ गाम-घरक आपसी वैमनस्य, कुटचालि,
नौजवान मे नशापानक बढ़ैत लति आ बिगड़ैत स्वभावक प्रभावेँ टुटैत
गामक फुटैत लोकक कर्कश निनादो अछि। ततबे नहि, मुंबै-कोलकाताक प्रवासी मैथिल समाजक
मिथिला-मैथिलीक प्रति ष्टिकोण, मित्राक खीरा-चरित्रा, पीड़ादायक स्वार्थ-परार्थक यथार्थ
दर्पणो अछि तँ किछु नवयुवक मे मातृभाषा-प्रेम आ लुप्तप्राय अपन लिपिक उत्कर्ष लेल मानस
मे घुरिआइत विभिन्न योजना आ तकरा साकार करबाक हेतु कछमछियो अछि। ठाम-ठाम
अनेक ख्यात-अल्पज्ञात (जनकवि यात्राी, फणीश्वरनाथ रेणु, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, ए.सी.
दीपक, बाबू साहेब चौधरी, परमानन्द
चौधरी, उदयभानु सिंह,
कमलनाथ सिंह ठाकुर
प्रभृति कवि-साहित्यकार, सेनानी-आन्दोलनी, साहित्य-राजनीतिरसी सँ सेहो भेटघाँट कराओल
गेल अछि। जँ अनेको मैथिल पूत-कृत प्रभूत अन्धकार भेटत तँ जन्मना अमैथिल मुदा
मनसा-वाचा-कर्मणा सुच्चा मैथिल सपूत महंथ मदन मोहन दासक निःस्वार्थ प्रथम
प्रभातक प्रियगर प्रकाश-सन लागत। एकर मूल कथावस्तु
(फिल्मनिर्माण-गाथा) केँ खोलिक’ राखब अपनेक उत्सुकता केँ नष्ट करब होयत से हमर
अभीष्ट नहि। हम तँ एहि मे आयल किछु पात्राक नाम टा ल’ रहल छी, जेनाकौआली
बाबू, टने झा, फुद्दी झा, टमाटर जी, घटोत्कच, भोगल बाबू, बिच्छूजी, टंचजी
आब अपने हिनका सभक चरित्राक कल्पना करू आ पोथीमे हिनकालोकनि सँ भेट करू, परिचय
केँ प्रगाढ़ करू। कोलकाताक प्रसंग अयला पर ओहि ठामक मैथिल समाजक
रत्न-बन्धु-विभूति-सखा-बिड़लाक दर्शन कराओल गेल अछि। के थिका ई लोकनि? हमरा सन अल्पसम्पर्की
सेहो जखन अनुमान क’ सकैत छथि तँ ओहि ठाम जे रसल-बसल छथि, तनिका
सँ की नुकायल छनि? ‘ममता गाबए गीत’क गीतकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर रहथि, जे पछाति वैह,
बहुत बाद मे, जेना-तेना फिल्म रिलीज
करौलनि। रवीन्द्रजीक प्रति हमर हृदय मे अथाह आदर। हुनक अलौकिक प्रतिभाक बखान
करबा लेल हमरा लग उपयुक्त शब्द नहि छल। केदार बाबूक उद्गार पढ़ि भेलभेटि
गेल। जे हम कह’
चाहैत छलहुँ से यैह थिक। हम चाहितो जे बात नहि लिखि सकलहुँ, से ई
एक छोट-सन पारा मे राखि देलनि अछि। देखल जाए ”उपनयनक समयमे ढोल-पिपहीक
धमगज्जर ध्वनिमे लपेटल गीत, चतुर्थी रातिक कनियाँ-वरक प्रथम मिलन मे
लजायल-सकुचायल सिहरैत गीत, दुरागमनक समयमे बेटीक नोरमे भीजल गीत, गामक
छौंड़ीक काँख तर दाबल छिट्टा-खुरपीक खनखन गीत। सभ गीत मे मिथिलाक माटिक अनुपम सुगन्धि!
उजड़ल कोठली गमकि उठल।“ केदार बाबूक
साहित्यिकता कते उच्च कोटिक छनि, से एतबो सँ बुझल जा सकैछ। एहन प्रसंग आरो अछि, अनेक
अछि। भनहि तहिया हिनका सुन’ पड़ल
छलनि ‘अबारा नहितन!’ आइ मानल जे दुनू
निर्माता अप्पन हाथ सँ ई पहिल
मैथिली फिल्म पर्दा पर नहि चढ़ा सकलाह, मुदा एकर पाछाँ जे
अपन जीवन आ धन सम्पदा
केँ दाव पर लगा देने रहथि, ताहि केदार बाबू आ हुनक मदन भाइक प्रति एक्के टा
भाव प्रत्येक प्रबुद्ध जनक हृदय मे उमड़ि उठत‘दुलरुआ रे!’ मैथिलीक एहि दुलरुआक
हार्दिक अभिनन्दन! अपना केँ चिन्हबा लेल, पोथी
केँ पढ़बा लेल, अपने सँ निवेदन!
(भीमनाथ
झा)
दरभंगा
मातृनवमी
9.10.2012
1
हम आ हमर मित्रा
शिवकांत दरभंगाक नौर्थब्रुक जिला स्कूल मे संगे पढै़त रही।
एकहि होस्टल मे अठमा सँ
मैट्रिक तक रहलहुँ। आन-आन छात्रा सश शिवकांतक
संग हमर मित्राता
साधारणे पयदान पर छल। मुदा हमर मित्राता प्रगाढ़ तखन भेल छल
जखन हम दुनू संगहि
मैट्रिकक परीक्षा मे फेल भेल रही। अल्प वयसक भावुकताक
संग परीक्षा मे असफलताक
असाध्य पीड़ा सँ मर्माहत दुनू मित्रा आत्महत्या करबाक
निश्चय केलहुँ। एकमी
पुल लग बागमती नदीक वेग प्रचंड रहैत छैक। पुल सँ नदी
मे कूदि जयबा मे सुगमता
होयत। सही स्थानक चयन केलाक बाद अपन-अपन
दारुण दुख सँ मुक्ति
पयबाक निमित्ते दुनू मित्रा गंतव्य स्थान लेल प्रस्थान कयने रही।
लहेरियासराय टॉवरक
लगीचे ढनजी महाराजक भोजनालय सँ शुद्ध देशी घी मे
छानल जिलेबी-कचौडी़क
सुगन्धि चारूकात पसरल रहैक। ओहि अपूर्व गमकक
कारणे दुनू मित्राक
एकलव्य तंद्रा मे व्यवधान पड़ि गेल। आँखिक भाषाक माध्यमे दुनू
मित्रा वार्तालाप
केलहुँमरबाक त’
अछिए। की हर्ज, आत्महत्या सँ पहिने एक तोड़
जिलेबी-कचौड़ी खा ली!
भोजनालय मे पहिने सँ
बैसल रहथि हमर छोटका कका, बाबू शारदा कांत
चौधरी उर्फ कौआली बाबू।
ओ आलू-कदीमाक डालना मे कचौड़ी केँ बोरि मुँह मे
पहुँचा रहल छलाह। तखने
हुनकर अर्धमुदित आँखिक पलसँ छिटकल नजरि हमरा
दुनू मित्रा पर पड़लनि।
ओ अपन मुँहक कौर केँ यत्नपूर्वक घोंटैत बजलाकेदार भैया!
आबह, आबह।
दुनू मित्रा हमरे लग मे आबिक’ बैसह।
कका होथि आ कि भतीजा, अपना
गाम मे सभहक लेल हमर नाम छल केदार
भैया। दुनू मित्रा
अलग-अलग कुर्सी पर कके लग मे बैसलहुँ। कका एकटा इमरती
साइजक जिलेबी केँ मुँह
मे चोभैत चटपटाइत कहलनिसुनलहुँ जे तोँ दुनू मित्रा
मैट्रिकक परीक्षा मे
अलगे-चित भ’
चुकलएँ। मुदा अहि छोट बात लेल अधिक दुख
आ कि चिंता करबाक
प्रयोजन नहि। हउ, हमरा दिश ताक’ ने! हम
मैट्रिकक परीक्षा
12 केदार नाथ चौधरी
मे तीन-तीन बेर फेल
कयने छी। पहिल बेर एक विषय मे, दोसर बेर दू विषय मे
आ तेसर बेर एक विषय
छोड़ि सभ विषय मे जखन फेल केने रही तखन हमर माथ
ठनकल छल। कारण हमरा अपन
योग्यता पर कहियो मिसिओ भरि संशय नहि
रहल। लार्ड कर्नवालिस
सँ ल’क’ लेडी माउन्टबेटन तकक हिज्जे संग नाम रटनिहार
भुसकौलक अलंकार सँ कोना
अलंकृत भ’
सकैत छल? तखन फेल करबा मे
निश्चिते की त’ प्रेतबाधा
छल अथवा कापी जाँच केनिहारक खचरपाना।
कका एक घोंट जल पीबि
फेर कहब शुरू केलनिई कहब सर्वथा अनुचिते
होयत जे विद्यार्थीक
फेल करब हुनक मौलिक अधिकार थिक। मुदा जतय
परिश्रमक फल भेटब
संदिग्ध होअय ओतय सचेत भ’ जेबाक चाही। बहुतो
किस्मक काज छैक जाहि मे
पढ़ब एकटा काजे भेल। मुदा जाहि काज मे सफलता
भेटब कठिन होअय ताहि
काज केँ अविलम्ब त्यागि दोसर काज पकड़ि ली सैह
भेल विदुर नीति। जे
बुद्धि पढ़ब मे खर्च होइत छैक तकर अदहो जँ आन काज
मे खर्च करी त’ सफलताक
संग चैनक जिनगी अबस्से भेटि जाइत छैक। बुझि
लए जे ई हमर अपन निचोड़ल
अनुभव अछि।
जिलेबी-कचौड़ीक पारस
हमरो दुनू मित्राक आगाँ मे आबि चुकल छल। मुदा जे
स्वाद ककाक निचोड़ल
अनुभव सँ भेटि रहल छल से जिलेबी-कचौड़ी मे कत’ सँ
भेटितए? ककाक
वाणी संजीवनीक काज क’ रहल छल। पीड़ा सँ संतप्त माथक कष्ट
केँ हरि रहल छल।
आत्महत्या नहि कर’ पड़त तकर बादो जीवनक गाड़ी आगाँ बढ़िते
रहत, से
ककाक उपदेश सँ यथार्थ बनि रहल छल। परीक्षा मे असफल रहलाक बादो
जीवन मे मधु छैक, वैभव
छैक, आकांक्षा छैक तकर ज्ञान कके सँ भेटि रहल छल।
ताहि घड़ी मे तीव्र
इच्छा भेल छल जे हाथ धो क’ ककाक चरणधूलि माथ मे हँसोथि
ली। मुदा अपना केँ
कन्ट्रोल मे राखि ककाक सारगर्भित उपदेश केँ श्रवण करैत,
जिलेबी-कचौड़ी खाइत
रहलहुँ।
मात्रा पाँच बर्ख पूर्व
भारत स्वतंत्रा भेल रहै। संविधान तैयार भ’ गेल रहै आ 26
जनवरी 1950 ई.
केँ लागुओ भ’ गेल छलै। 1952 ई. मे देशक
पहिल चुनाव होम’
जा रहल छलै।
स्वतंत्राता संग्राम मे अपन सर्वस्व न्योछाबर कर’बला केँ बिसरि जाउ।
बुद्धि आ विवेक सँ
अपाहिज जे स्वतंत्राता संग्राम मे एकटा कटकियो ने घुसकौने छल,
मुदा धूर्त छल आ गिद्धष्टि
रखैत छल ताहि तरहक मनुक्खक एक नव फसिल प्रगट
भ’ चुनावक
दंगल मे कूद-फान क’ रहल छल। ओही तरहक मनुक्खक जमात मे
कौआली बाबू अर्थात् हमर
छोटका कका सेहो रहथि। टिकट बँटबाराक हूलि-मालि
मे कका एखन दरंभगा आयल
छलाह। ओ विधान-सभाक चुनाव लड़ता तकर भीष्म
अबारा नहितन 13
प्रतिज्ञा क’ चुकल
रहथि। चुनाव मे अन्दाजन तीन-चारि हजार रुपैया खर्च हेतै तकर
अनुमान क’ कका
अपन तीन बीघा मरौसी खेत बेचि एखन जिलेबी-कचौड़ीक भक्षण
क’ रहल
छलाह।
कका खायब समाप्त केलनि, हाथ
धोलनि आ ढेकार करैत फेर सँ हमरे सभहक
लगीच मे बैसैत कहब शुरू
केलनिपढ़ब छोड़ि हम राजनीति मे सक्रिय भ’ गेलहुँ
अछि। बियालिसक
मूभमेन्टक ‘करो या मरो’ नामक आन्दोलन मे हमहीं जिलाक
नेता रही। रेलक पटरी
उखाड़’ मे, टेलीफोनक तार तोड़ै मे आ थाना जरबै लेल हसेरी
जुटबै मे, सभ काज
मे हमहीं आगाँ रहलहुँए। क्षेत्राीय काँग्रेसी मे एखन हमर नाम
सभ सँ ऊपर अछि। मुदा
हमर रस्ताक ढेंग बनि गेलए फकिरनाक छोटका नेना
कंटिरबा। बियालिसक
मूभमेन्ट मे थानाक दरोगा आ सिपाही राइफल फायर करैत
जखन हमरा सभ केँ
खिहारलक तखन पूरा हसेरी संगे हमसभ तूफान मेलक गतिसँ
पड़ायल रही। ओही पड़ेबा
काल कंटिरबाक कमीज पनबाड़ीक टाट मे फँसि गेल रहै
आ ओ पकड़ल गेल रहए। ओ
भरि इच्छा मारि खेलक आ तीन महिना जहल मे पानि
भरलक। वैह मारि खायब आ
जहल जायब एखन ओकरा लेल वरदान बनि गेलैए।
कंटिरबा स्वतंत्राता
सेनानी बनि गेलए। टिकट प्रत्याशीक पाँत मे ओ हमरा सँ एक
डेग आगाँ भ’ गेलए।
कंटिरबा लोअर फेल आ हम मैट्रिक फेल, आब तोहीं दुनू मित्रा
पंचैती कर’ जे
हमरा दुनू मे योग्य कंडिडेट के भेल?
ओहि घड़ी मे छोटका कका
हमरा दुनू मित्राक लेल साधारण मनुक्ख नहि रहथि।
ओ संसारक सभ सँ पैघ
विद्वान एवं बुधियार मनुक्ख रहथि। मैट्रिकक परीक्षा मे
कइएक बेर गुड़कुनियाँ
कटलाक बादो एहन विशाल कल्पनाक पाँखि पर आरूढ़ भेल
गगन मे स्वछंद भ’ हमर
कका उड़ि रहल छलाह से की छोट बात भेलै? कथमपि
नहि। हुनकर दप-दप उज्जर
खाधीक धोती-कुर्ता आ माथ पर बाम कात झुकल गाँधी
टोपी हुनकर छवि केँ
अत्यन्त दिव्यमान बना देने छल। ककाक एखुनका प्रश्न मे
नुकायल जिज्ञासाक
पूर्ति करब व्यर्थ छल। कारण, हम आ हमर मित्रा शिवकांत हुनक
विचार सँ प्रेरणा ग्रहण
क’ आँखिए सँ अपन-अपन कृतज्ञता अर्पण क’ रहल छलहुँ।
कका जोश मे रहथि, कहलनिकंटिरबा
भाषण कर’ काल तोतराइत अछि।
ओकर चरित्रो कमजोर छैक।
जिला काँग्रेसक फंड मे नहि, जिला मंत्राीक जेब मे एक
हजार टाकाक घूस द’ क’
ओ अपन नाम राजनीतिक कैदी मे दर्ज करा लेलकए,
जकर खबरि आइए हमरा
भेटलए। हम ओकरा छोड़बै नहि, पटना आ दिल्ली तक
खेहारबै। तकर बादो जँ
जहल जयबाक पुआइन्ट पर हमरा कहूँ पछाड़ि देलक त’
हम विरोधी पार्टीक
कंडिडेट बनि ओकरा गरदा फाँक’ लेल विवश क’ देबै।
14 केदार नाथ चौधरी
कका काउन्टर पर जा क’ तीन
व्यक्तिक बिल चुकता केलनि। फेर भोजनालय
सँ बाहर आबि फुसफुसाइत
कहलनितोँ दुनू हमरा लेल कनिकबो चिंता नहि
करिह’।
सुस्लीस्ट बला आयल छल। ओकरा सभ केँ हमरा सँ अधिक उमदा कन्डिडेट
कत’ भेटतै?
ओ सभ नेहोरा केलकए जे जोड़ा बड़दक आश त्यागू आ झोपड़ी छापसँ
चुनाव लड़ू। हम एखन
इतह-तितह मे छी। हम राजनीति मे समर्पित भ’ चुकल छी।
हमर त्याग ककरो सँ कम
नहि अछि। तखन देखहक जे ऊँट कोन करोट बैसैत छैक!
कतबो खिचा-तानी हेतै, एम.एल.ए.
हमहीं बनब, तकर भविष्यवाणी राघोपुरक
पुरोहित क’ चुकलए।
अच्छे, तोँ दुनू मित्रा अपन-अपन गाम जाह। हमरा एखन
काँग्रेस ऑफिसक जरूरी
मीटिंग मे जेबाक अछि।
हम आ शिवकांत छोटका
ककाक आचरण एवं अनुपम व्यक्तित्व सँ बहुत
प्रभावित भ’ गेल
रही। हुनकर चरणधूलि केँ ललाट पर हँसोथैत दुनू मित्रा स्टेशन दिश
बिदा भेलहुँ।
हमर आ शिवकांतक गाम
अगले-बगल आ नजदीकक टीशन भेल सकरी।
सकरी पहुँचैत-पहुँचैत
दुनू मित्राक चिंताक महाजाल फेर सँ पसरि गेल रहए। घनघोर
चिंता मे उब-डुब करैत
दुनू मित्रा टीशनक एक खाली ब्रेंच पर मूड़ी गोंति गुमसुम
बैसि रहलहुँ। चिंता
कथीक छल से सुनिए लिअ।
मैट्रिकक परीक्षा
समाप्त भेला पर होस्टलक सहपाठी मे एक तरहक जोश भरि
गेल रहै। स्कूलक
अनुशासन सँ छुट्टी। चोरा क’ सिनेमा देखैक दंड भेल मास्टरक
कनैठी आ थापड़, से आब
नहि पड़त। अपन गार्जियन अपने बनब। कालेज मे प्रवेश
करब। अनंत आकाश मे उड़ब।
किछु नव बात हेबाक चाही। नव बात ताकल गेल।
सभहक सहमति सेहो कायम
भेल। ओहि समयक सभ सँ पैघ क्रांतिकारी विचार सँ
एकमत होइत तमाम सहपाठी
सैलून मे जा क’
टीक कटौने छल। सहपाठिएक झुंड
मे हम आ शिवकांत सेहो
छलहुँ। उचक्काक पाँत मे मिझर भेल दुनू मित्रा अपन-अपन
टीक कटा लेने रही।
सैलुन मे शिवकांत जखन
पछुआरक ऐना मे उगल अपन टिककट्टा आकृति केँ
सामनेबला ऐना मे देखलनि
तखने हुनकर होश उधिया गेल रहनि, हुनक कांति
श्रीविहिन भ’ गेल
रहनि आ पूज्य पिताक छवि नयनक सोझाँ मे नाच’ लागल रहनि।
मुदा हजामक बोल-भरोस आ
टिटकारी सँ हुनक भय झँपा गेल रहनि। ओ संतोख
केने रहथि। मुदा एखन
हुनक नुकायल भय समक्ष आबि तांडवे शुरू क’ देने छलनि।
परीक्षा मे फेल आ ऊपर
सँ काटल टीक। शिवकांतक आँखि मे नोर डबडबा गेलनि।
हिचुकैत ओ कहलनिमित्रा, अहाँ
गाम जाउ। अहाँक गामक लोक पढ़ल-लिखल आ
अबारा नहितन 15
एडभान्स छथि। अहाँक
काटल टीक पचि जायत। मुदा हमर नसीब दोसर किश्मक
अछि। हमर फेलक समाचार
हमर पिता लग अबस्से पहुँचि गेल हैत। ओ अपन
वैद्यनत्था बेंत केँ
पिजौने तैयारे हेताह। हमर कटलाहा टीकबला मुखाकृति देखि
हुनकर रंजक पारावार नहि
रहतनि। हमरा पीठ पर हुनक बेंतक प्रहार पड़बेटा करत
आ से ककरा सोझाँ मे...
अरौ बाप रौ बाप!
बजैत-बजैत शिवकांत
हबोढकार कान’
लगलाह। हुनकर बाजब ‘से ककरा
सोझाँ मे’ तकर
विशेष अर्थ छलै। सही मे शिवकांतक विपत्ति हमरा सँ जबर्दस्त
छलनि। होस्टलक
एक्का-दुक्का छात्राक विआह भेल रहै। ओहने भाग्यशाली छात्रा मे
शिवकांत सेहो रहथि।
परीक्षा सँ आठ महिना पहिने हुनकर विआह भेल रहनि आ
लगले दुरागमन सेहो भ’ गेल
छलनि। वीर अभिमन्यु वयसक शिवकांत आ तेरहम
बर्खक हुनकर उत्तरा।
पुस्तकक प्रत्येक पन्ना मे मनमोहनीक छवि। शिवकांत की
करितथि? हुनकर
सभ अभिलाषा प्रियतमाक कल्पना मे डुबल रहलनि। एकर प्रबल
सम्भावना त’ रहबे
करनि जे हुनका फेल होयब’ मे हुनकर कनियाँक सिनेह आ
सिनेह सँ चुबैत माधुर्य
सानल रहनि। गाम पहुँचला पर शिवकांतक पिता हुनकर
अर्द्धांगिनीक सोझेँ मे
हुनका डेंगेथिन। की पिताक देल दंड सँ उपजल अपमान केँ
ओ घोंटि पौताह? हे
राम! अइ सँ बेशी नीक होइतैक जे शिवकांत वागमती नदी मे
डुबि क’ मरि
गेल रहितथि।
शिवकांतक पीड़ा हुनक
आँखिक नीर बनि धाराप्रवाह बहि रहल छलनि। हमहूँ
अपन मित्राक दुखक कारणे
असहनीय कष्ट मे छलहुँ। ओहि दुखक निवारण लेल
कतौ सँ कोनो मदतिक
उम्मीद नहि। हम मनहिमन अपन गामक संकटमोचन पर
ध्यान केन्द्रित केलहुँ‘संकट
तेँ हनुमान छुड़ाबे, मन क्रम वचन ध्यान जो लाबे।
दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम
अनुग्रह तुम्हरे तेते।’ पवनसुत अपन चमत्कार
देखौलनि। ओ शिवकांतक
मामाक स्वरूप मे प्रगट भेलाह।
मामक नाम छलनि चतुरभुज
लाल दास आ हुनकर स्वभाव छलनि मस्त कलन्दर
बला। कलकत्ताक समीपहि
छल मंगलाहाट। मंगलाहाट भेल रेडिमेड वस्त्राक जनक।
हाटक लगपासक सैकड़ो गाम
मे रेडिमेड कपड़ा तैयार करैक विशाल कुटीर उद्योग
पसरल रहए। मंगलाहाटक
बुझि लिअ सर्वेसर्वा भेला चतुरभुज लाल दास। सम्पूर्ण
उत्तरी भारतक व्यापारी
मंगलाहाट पर वस्त्रा क्रय हेतु अबैत छल। दासजी रेडिमेड
वस्त्राक बारीकीक माहिर
रहथि। कतहु सँ कोनो व्यापारी आओत ओ दासजीक गद्दी
मे ठहरत, दासजीक
चरण मे शीश झुकाओत, दासजी केँ फूल-अक्षत निवेदित करत,
दासजी सँ आवश्यक
परामर्श ग्रहण करत, दासजी सँ हुकुमनामा लेत आ तकर बादे
16 केदार नाथ चौधरी
क्रय संबन्धी क्रियाक
निस्पादन करत। दासजी केँ क्रेता एवं विक्रेता, दुनू कात सँ
उठौना भेटैत छलनि।
दासजी गाम मे लगभग पच्चीस बीघा चिक्कन खेत कीनि
चुकल छलाह। डीह पर
पिताक सुख-सुविधाक लेल पक्का मकान सेहो बनबा चुकल
रहथि। आब ओ वंशक नाम
उजागर करक लेल पितामहक नामे हाइ स्कूल खोलैक
सूरसार मे छला। एखन
दासजी गामहि सँ कलकत्ता जयबा लेल सकरी टीशन पर
पहुँचल रहथि। हुनका
संगे मोटरी उठौने हुनक खबास सेहो छलनि।
मामा केँ देखिते
शिवकांत चिहुकि उठला। ओ मामक चरणकमल पर माथा टेकि
अपन असीम दुःखक दारुण
वर्णिका कर’
लगलाह। शिवकांत नोरे-झोरे कानियो रहल
छला आ कातर वाणी मे
मामा सँ दयाक भीखो मांगि रहल छला।
भागिनक हृदयबिदारक
विलाप सँ दासजी द्रवित भ’ गेलाह। ओ शिवकांतक
माथ पर हाथ रखैत
आशीर्वाद देलथिन आ कहलथिनमामाक सोझाँ मे भागिन नोँर
बहाबए से अनर्थकारक बात
भेलै। तोँ सबुर कर’। एखने हमरा संग कलकत्ता चल’।
दुखक दवाइ भेल टाका।
कलकत्ता मे तोरा हम एहन ने रोजगार मे लगा देबौ जे तोँ
प्रचुर मात्रा मे ढौआ
कमेबेँ। तखन मोटरी मे बान्हि क’ बाप केँ टाका पठा दिहनु।
मासे-मास टाकाक पोटरी
पाबि तोहर पिता एतेक ने झुकि जेथुन जे जखन तोँ गाम
जेबहिन तखन ओ तोहर पयर
गंगाजल सँ धोथुन। एहि जहानक लोक माया मे
फँसल अपनहि गरदनि मे
फँसरी लगा क’
बाप-बाप क’ रहलए।
तहिया सकरी सँ हाबड़ाक
मासुल भेल सात टाका। चतुरभुज दास दू गोट दस
टकही आ एक गोट एक टकहीक
करकरौआ नोट निकालि अपन भागिनक हाथ मे
दैत कहलनिफुर्ती सँ तीन
गोट हाबड़ाक टिकट कटौने आबह।
हमर इतिहास शिवकांतक
इतिहास सँ भिन्न तरहें शुरू भेल छल। इम्तिहान मे
फेल भेलाक कारणे हमरा
ततेक जबर्दस्त मानसिक आघात लागल छल जे हमर
मोनक संतुलन गड़बड़ा गेल
रहए। एखन तक हम शिवकांतक विपति मे ओझरायल
रही आ तेँ स्थिर रही।
मुदा शिवकांतक प्रस्थानक बाद हमर अपन समस्या मुँह बाबि
देलक। कोन मुँहे गाम
जायब? मुदा तखने छोटका ककाक विदुर नीतिबला उपदेश
मोन पड़ल। कका मैट्रिक
मे तीन-तीन बेर फेल केलाक बादो राजनीतिक चासनी
मे डुबाओल भविष्यक
इमरती केँ चूसि रहल छलाह आ प्रसन्न छलाह। हमहूँ ककाक
कहल मार्गक अनुसरण करी
त’ चिंतामुक्त रहब। पढ़ब-लिखब झंझटिया काज भेल।
एकरा बिसरि जायब तखने
चैन सँ रहब। अही तरहक विचार केँ अड़ेजैत हम एक्का
पर बैसलहुँ आ गाम
पहुँचि गेलहुँ।
हमर गाम मे भोर होइते
चहल-पहल शुरू भ’ जाइत रहए। आर्थिक ष्टिएँ
अबारा नहितन 17
सम्पन्न आ लगभग दस बर्ख
पहिने मिडिल स्कूलक स्थापनाक दुआरे थोड़-बहुत
शिक्षाक प्रसार। गामक
माहौल मे आनन्द अधिक आ’ क्लेश कम। पढ़ाइ-लिखाइक
महत्त्व एखनो बेशी नहि।
बहुत पढ़ि लेल’,
आब आओर कतेक पढ़ब’। अपन
गृहस्थीक काज मे मोन
लगाब’। दूध-दही खा आ कुश्ती लड़’। मजबूत काया सभसँ
पैघ सम्पत्ति।
गामक जनसंख्या बहुत कमे’। लोकक
बीच आपकता। भेट भेला पर दुटप्पी
गप्प-सप्प करब
अनिवार्य। बिआह, दुरागमन, उपनयन, मुंडन आ तकरा संग
पावनिक पथार। भोज-भात, मौज-मस्तीक
कमी नहि। बरियाती जयबा कालक ड्रेस
पहिरने लोक गाम मे
घुमि-फिरि क’
समय बितबैत रहए। तकर अतिरिक्त ताश
खेलक अष्टजाम, भांग
पिसै कालक लोढ़ी-सिलौटक रगड़-घसबला सुगन्धित
संगीत। एके गिलास पीने
की हैत? एक गिलास आरो पीबिऔ ने! तखन रमकी
आओत। आलस्यक नामो-निशान
नहि। सभ तरहक काज मे सभ लोक बाझल।
ओहने निर्भीक आ बेपरबाह
जिनगीक आनन्द लैत हमहूँ समय केँ खेहारब शुरू
क’ देने
रही।
मुदा सभ दिन की एकहि
तरहक भेलैए?
बेरुका उखराहा मे हम रस्ता पकड़ने
गुनगुनाइत जा रहल
छलहुँ। पाछुए सँ टने झा हमर माथ परक गमछा केँ तीरि लेलनि
आ कहलनिआब बुझलियौ जे
तोँ सदिखन माथ किएक झँपने रहैत छएँ। टीक
कटा लेलएँ तेँ ने!
हम घुमि क’ टने
झाक सोझाँ-सोझी भ’ गेलहुँ। गामक भगिनमान टने झा
चरफरिया लोक। घुसकैत
ट्रेन मे छड़पि क’ चढ़ैत होथि, तेहन हरबड़िया
स्वभावक।
ओ कहलनिटीक कटोलएँ तकर
संकोच किएक?
हरौ, हमरा निहारि क’ देख
ने।
गाम मे सभसँ पहिने
हमहीं कानी छटेलहुँ, हमही टीक कटेलहुँ, हमही पान
मे अहमद
हुसैन दिलदार हुसैन
जर्दा खेलहुँ,
हमही चन्द्रकांता आ चन्द्रकांता संतति उपन्यास
आनि क’ पढ़लहुँ
आ आउर त’ आउर हमहीं पहिले-पहिल कमीज सिया क’
पहिरलहुँ। मिरजइक जगह
पर कमीजक प्रचलन शुरुए भेल रहै। जखन हम कमीज
पहिरि गाम आयल रही तखन
हमर बाप हमर डेन पकड़ने गाम मे दरबज्जे-दरबज्जे
सभ केँ कहने रहथिनदेखियौ
हमर अबारा बेटाक डरेस। एकर जोड़क लोफर परगना
भरि मे दोसर नहि भेटत।
टने झा बड़ी काल तक अपन
बड़ाइक पाठ पढ़ैत रहलाह। अन्त मे अपन गप्पक
उपसंहार करैत कहलनिटीक
कटेनाइक अर्थ भेल विचार मे प्रगति आनब। देश
आजाद भ’ चुकलैए।
आब ड्रेस मे, विचार मे प्रगति आनि क’ ने
देशक विकास क’
18 केदार नाथ चौधरी
सकैत छएँ। मुदा आब अहि
गप्प केँ अन्त क’ दही। हम तोरा बड़ी काल सँ ताकि
रहल छलियौ। पूछै किएक?
किएक?
टने झा गमछा वापस करैत
कहलनिबौआ तोरा ताकि रहल छथुन। तोरा सँ
हुनका केहन काज छनि से
त’ वैह कहथुन ने!
बौआ अर्थात् बाबू
नारायणजी चौधरी, गामक सभ सँ आदरणीय एवं सम्मानित
व्यक्ति। ओना त’ गामक
आरो किछु लोक स्वतंत्राताक लड़ाइ मे हुलकी देने रहथि
मुदा नारायणजी चौधरीक
समस्त जीवन आजादीक युद्ध मे बीतल छलनि। हुनकर
विश्वास क्रान्ति दल मे
छल। बिन लठिऔने अँग्रेजबा नहि भागत। अहिंसाक मार्ग
कायरताक मार्ग। जाहि
युद्ध मे शोणित नहि बहतै तकर फलाफल कहियो नीक नहि
हेतै। भ’ सकैए
जे अहिंसाक रस्ते देश केँ आजादी भेटिओ जाइ मुदा तेहन आजादी
लोक मे जागरूकता नहि
अनतै, चरित्राक निर्माण नहि करतै। देशक जनताक बीच
जागरण चाही, अनुशासन
चाही, कत्तवर््यक प्रति निष्ठा चाही तखने देशक भविष्य
सुरक्षित रहतै।
नारायणजी चौधरी अनेक क्रांतिकारी संगठन मे सक्रिय रहलाह।
बिछल-बिछल क्रांतिकारीक
सम्पर्क मे रहि अँग्रेज केँ नाके सूते पानि पिऔलनि।
अन्त मे ओ कैद भेलाह।
हुनका आजीवन कारावासक सजाए भेटलनि। 15 अगस्त
1947 ई.क दिन भारत
स्वतंत्रा भेल आ ओही दिन अनेक राजनीतिक कैदीक संग
नारायणजी चौधरी जेल सँ
मुक्त भेलाह। जहल सँ छुटलाक बाद ओ अपन सभ
तरहक क्रिया-कलाप सँ
संन्यास ल’
लेलनि। देश आजाद भेल आ नारायणजी
चौधरीक काज समाप्त भ’ गेलनि।
बाँकी जीवन ओ गामहि मे रहि क’ शेष करताह।
महत्वाकांक्षा सँ कोसो
दूर नारायणजी चौधरी केँ समस्त गामक लोक आदर सँ बौआ
कहि सम्बोधित करैत छल।
बौआ निर्विरोध गामक प्रथम मुखिया चुनल गेल रहथि।
ओ निष्ठा सँ मुखियाक
काज करैत छलाह।
बौआ हमरा किएक ताकि
रहलाए? माथा ठनकल छल। कोनो उचित कारण
बुद्धि मे प्रवेश नहि
कयने छल। बिना एको मिनटक बिलम्ब कयने हम बौआ सँ
भेट कर’ लेल
बिदा भेलहुँ।
बौआमायक पोखरिक घाट।
विशाल धातरी गाछक तर सँ अबैत शीतल पवन।
घाटक दछिनबरिया
सीमेन्टक ब्रेंच पर बौआ बैसल रहथि। हुनके वयसक फुद्दी कका
हुनकर बगल मे सेहो बैसल
छलाह। दुनूक पयर छूबि हम घाटक दोसर कात बनल
ब्रेंच पर बैसि गेलहुँ।
पाछू-पाछू अबैत टने झा हमरे ब्रेंच पर बैसि गेलाह।
बौआक बाजब मे घुरछी नहि, सोझ
प्रश्न। ओ पुछलनिहम त’ गाम मे कमे
अबारा नहितन 19
रहलहुँ तथापि तोरा द’ जानकारी
अछि। गामक तमाम छात्रा मे तोहर नाम मेधावी
विद्यार्थी मे गनल जाइत
रहलौए। तखन इन्ट्रेन्सक इम्तिहान मे तोँ असफल किएक
भ’ गेलें?
हम विनम्र भाव सँ बौआ
केँ जवाब देलियनिपरीक्षाक दोसर दिन हिसाबक
पेपर रहै। हम
नौर्थबु्रक जिला स्कूलक छात्रा आ हमर परीक्षाक स्थान सरस्वती स्कूल
मे। हिसाबक परीक्षा दिन
हम एडमिट कार्ड संग मे लेब बिसरि गेल रही। एकर ज्ञान
हमरा परीक्षा भवनक गेट
पर भेल छल। बिना एडमिट कार्डक परीक्षा मे दाखिल नहि
होम’ दैत
तेँ फर्दबाल दौड़ैत हम अपन होस्टल पहुँचल रही। एडमिट कार्ड बिछौन
पर पड़ल छल। एडमिट कार्ड
ल’ क’ वापस परीक्षा भवन पहुँचलहुँ। ताबे तक
परीक्षाक दू घंटाक समय
मे पौन घंटाक समय बीति चुकल रहै। परीक्षा भवन मे अपन
नियमित सीट पर
पहुँचलहुँ। परीक्षक सज्जन लोक रहथि। प्रश्नपत्रा एवं उत्तर
पुस्तिका द’ देलनि।
हिसाबक पेपर मे तीस नम्मरक अंकगणित, तीस नम्मरक
अलजेबरा आ चालिस नम्मरक
ज्यूमेट्रीक प्रश्न रहैत छैक। हमरा सभटा प्रश्नक उत्तर
रटले छल। मुदा दुरमतिया
घेरि लेलक। शिक्षक बारम्बार चेतौने रहथि जे ‘सरल करो’
सवालक अन्त मे ‘एटेम्प्ट’
करै लेल। हड़बड़ी मे हम ‘सरल करो’ सवाल केँ
सरलीकरण शुरू क’ देलियै।
सवालक उत्तर एक अंक हेतै से बुझल रहए। मुदा हमरा
अन्ट-सन्ट उत्तर
प्राप्त होइत रहल। हम कान’ लागल रही।
एतबा बाजि हम चुप भ’ गेलहुँ।
ओतए उपस्थित गामक तीन गण्यमान्य
व्यक्ति सेहो चुपे
रहला। हम मोन केँ स्थिर केलहुँ, आँखिक नोर पोछलहुँ आ नज़रि
केँ सोझ करैत बाजब शुरू
केलहुँपरीक्षक केँ हमरा पर दया भेलनि। ओ लग आबि
हमरा सांत्वना देलनि।
हमर सभटा बात बुझि परीक्षक आस्ते सँ कहलनि‘खंड क,
ख, ग मे
जो भी सवाल का हल करो, नीचे से करो।’ परीक्षकक
टिप्स काज क’ गेल।
सवाल फटाफट हल होम’ लागल।
मुदा ताबे तक बहुत समय बीति गेल छलै।
मुश्किल सँ हमरा आध
घंटाक समय भेटल रहए। ओतबा समय मे जतबा सवालक
उत्तर बना सकैत छलहुँ
से बनोलियै। परीक्षाफल मे आन-आन सभ विषय मे बहुत
नीक नम्मर भेटल मुदा
हिसाब मे मात्रा तइस अंक। सैह कारण भेलै जे हम परीक्षा
मे उत्तीर्ण नहि भ’ सकलहुँ।
हम धाराप्रवाह
बजैत-बजैत थाकि गेल रही। एक तरहक ग्लानिक अनुभव सेहो
भ’ रहल
छल। हारल खेलाड़ीक मनोदशा सश नजरि नीचाँ झुकि गेल रहए।
कनेकाल तक बौआ हमर कथन
केँ पचबैत रहला तखन कहलनिएहन दुर्योग
जीवन मे होइते रहैत
छैक। मुदा तकर माने ई कथमपि नहि भेलै जे जूआ पटकि
20 केदार नाथ चौधरी
दी। तोँ आगाँ नहि पढ़बेँ
तकर एलान क’
देलहिनए, से किएक?
हम पोखरिक पानि दिस
तकैत बौआ केँ जवाब देलियनिपरीक्षा मे असफलता
सँ हमरा अत्यधिक वेदना
भेल छल। हम त’
आत्महत्या कर’ लेल तैयार भ’ गेल रही।
ओही समय मे छोटका कका
सँ भेट भेल रहए। कका कहने रहथि जे जाहि काज
मे सफलता भेटब संदिग्ध
होअय तकरा तखने त्यागि देबाक चाही, सैह भेल विदुर
नीति। हमरा ककाक विचार
उपयुक्त लागल। हम आगाँ नहि पढ़ब आ ने कोनो
परीक्षा मे दाखिल होयब
तकर प्रण क’
लेलहुँ।
विदुर नीति? ई केहन
तर्क भेलै हौ?
हमर प्रणक कारण सुनि
बौआक संगे आन सभ कियो चकित भ’ एक-दोसरा
दिस ताकय लगलाह। बौआ
पुछलनिसुनलहुँए जे कौआली देशक प्रथम चुनाव मे
प्रत्याशी बनलए?
जवाब टने झा देलनिसही
सुनलियै बौआ। कौआली केँ काँग्रेसक टिकट नहि
भेटलैए। ओ सुस्लीस्ट
पार्टीक झोपड़ी छाप दिस सँ चुनाव लड़त।
तखन काँग्रेसक टिकट
ककरा भेटलैए?
फूद्दी कका जिज्ञासा केलनि।
कंटीर खेतान केँ।
खेतान? ई त’
कियो मारबाड़िए हैत ने!
टने झा चटपटाइत सूचना
प्रेषित केलनिलखन साहु मखन साहुक लटगेना
दोकानक नोन-तेल
तौलनिहार कंटिरबा खतबे। वैह खतबैया हाफीडिफीट करा अपन
नामक टाइटिल बदलि कंटीर
खेतान बनि गेलए।
तखन कंटिरबा विधायक बनि
गेल सैह बुझि लिअ। एखुनका काँग्रेसक
लहरि मे जँ कुकुरोक
गरदनि मे जोड़ा बड़दक टिकट बान्हि देल जाए त’ ओ
चुनाव जीतिए जायत।
फुद्दी ककाक विचार सँ
सहमत होइत मुदा अफसोच करैत बौआ कहलनि
संविधान निर्माणकर्ता
पर आंगुर उठायब हमर नियत नहि अछि। लगभग चारि-पाँच
सय बर्खक गुलामी आ तकरा
संगे भारतक प्राचीन परम्पराक विविधता। सभ बातक
मूल्यांकन करब आ तखन
संविधान केँ स्वरूप देब अत्यन्त कठिन काज अबस्से
भेलै। तथापि सांसद एवं
विधायक जे देशक कानून बनाओत, देश पर शासन करत
आ एक तरहें देशक भाग्य
निर्माता बनत तकर योग्यता लेल कोनो विधि-विधान
नहि? हमरा ई
बात पचि नहि रहल अछि। त्याग वलिदान एवं सेवा-भावक
प्रतिमूर्तिक हाथ मे
देशक बागडोर रहबाक चाही ने! की स्वतंत्राताक सौभाग्य भेटलाक
बादो हमर देश अभागले
बनल रहत?
अबारा नहितन 21
घाट पर थोड़े समयक लेल
महासागरक महाशांति पसरि गेल रहए। उपस्थित
प्रत्येक व्यक्ति
अपन-अपन बुद्धिक अनुसारे देशक भविष्यकेँ तजबीज कर’ लगलाह।
खिन्न भेल बौआ हमरा दिश
तकैत कहलनिकेदार भैया, हमसभ विषयान्तर भ’ गेल
रही। आन-आन तरहक गप्प
केँ बिसरि क’
तोहर एखुनका समस्या पर विचार करब
जरूरी छैक। तोहर एक
बर्ख दूरि भेलह त’ भेलह मुदा तोँ पढ़ब नहि छोड़’।
विद्या
सभसँ पैघ धन थिकै। एकर
तिरस्कार नहि हेबाक चाही। आर्थिक ष्टिएँ तोँ सम्पन्न
छहे। तोरा मे प्रतिभा
सेहो छह। तेँ हम तोरा उपदेश नहि, आदेश दैत छिअ जे मोन
लगा क’ पढ़ब
शुरू कर’। अगिला बर्ख तोँ नीक रिजल्टक संग मैट्रिक परीक्षा
मे
सफल हेबे टा करब’।
बौआ एवं फुद्दी कका
उठिक’ बिदा भ’ गेलाह। पोखरिक घाट पर हम आ टने
झा रहि गेलहुँ। टने झा
बड़ी काल धरि मिरगीक रोगी जकाँ अर्र-दर्र बड़बड़ाइत
रहलाह। फेर अफसोचे
छटपटाइत बजला केदार भैया, कंटिरबा खतबे सँ खेताने
टा नहि बनलए, ओ अपन
काबिलियतक डंका सेहो पीटि देलकए। विधायक बनि
ओ दरिद्रछिम्मड़ि नहि
रहत, धन्ना सेठ बनि जायत।
टने झा उठि क’ ठाढ़ भ’
गेलाह आ मरखाह बड़द जकाँ पक्का घाट पर पयर
पटक’ लगलाह।
रंजे तमतमाइत ओ हिन्दी बाज’ लगलाह‘‘साला!
विधायक बनने
की बात मेरे मगज मे
क्यों नहीं आया? सब समय मैं अपने को तीसमार खाँ समझता
रहा, बस यही
मेरी भूल थी। ठीक मौके पर मेरी बुद्धि कंठी पहन लिया, ठरका
चानन
कर लिया और कातिक स्नान
करने सिमरिया चला गया। कंटिरबा ने बाजी मार
लिया और मैं मुँह ताकता
रह गया।’’
22 केदार नाथ चौधरी
2
बिहाड़ि आओर अन्हड़ उठितै
रहलै, अगिलग्गी आ बाढ़ि अबिते रहलै। मुदा तेँ की,
दिन-राति होइते रहलै, समय
अपन धूरी पर चलिते रहलै। हम इन्ट्रेन्सक कोन कथा,
आइ.ए., बी.ए.
आ अर्थशास्त्रा विषय ल’ क’ एम.ए. पास
केलहुँ। साधारण सँ कनेक
नीक रिजल्ट सभ वर्गमे
भेल छल। प्रांत मे तहिया नव-नव कॉलेज खुजि रहल छलै।
सहपाठी सुरेन्द्र मिश्र
जे मोतिहारी कॉलेज मे प्रध्यापक नियुक्त भेल रहथि, विचार
देलनिकत’ बौआइत
छी। छपरा कॉलेज मे अर्थशास्त्रा विषयक प्रध्यापकक पद रिक्त
छैक। सोझे जाउ आ ज्वाइन
क’ लिअ। एखन पचहत्तरि टाका भेटत, मुदा भविष्य
मे तनखाह मे वृद्धि
हेबेटा करतै तकर हम विश्वास दिअबैत छी।
हमरा सरकारी नोकरी आ कि
पठन-पाठनक पद रुचिगर नहि लागल। नसिब
जोरगर छल। थ्री
एसप्लानेड ईस्ट मे ‘केलीज डाइरेक्टरी’ मे हमर
नियुक्ति भेल। अहि
डाइरेक्टरीक हेड ऑफिस
लंदन मे तथा ब्रांच आफिस अनेक देश मे पसरल रहै।
विश्व-स्तरक डाइरेक्टरी
मे केलीज डाइरेक्टरीक स्थान प्रमुख छलै। तनखाह छल एक
सय पच्चीस टाका। दू
टाका कोनो मदमे कटि जाइत छल आ हम एक सय तैस
टाका ल’क’
अपन बासा मे पहुँचैत रही। एसप्लानेड सँ हाथीबगान तकक ट्रामक
फस्ट किलासक भाड़ा पाँच
पाइ। दिनुका भोजन मे दू-तीन गोट सोहारी, दू-तीन करछु
भात, दालि,
चरचरी, भुजिया, पापड़ आ
नेबो। राति मे केराक पात पर उसना चाउरक
भफायल भात आ झोराओल रुइ
माछ। समय महग भ’ गेल रहै तेँ महिना भरिक
भोजनक बिल छब्बीस टाका
अगुआरे दिअ पड़ैत छल। साठि नम्बर ग्रे स्ट्रीट मे एक
कोठलीक भाड़ा भेल कूरी
टाका। कूरी टाका नइ ने बुझलियै! ई भेल बीस टाका।
महगी धुधुआ रहल छलै।
मुदा हमरा जे पारिश्रमिक भेटैत छल से पर्याप्त छल।
कलकत्ता सनक शहर मे
नोकरी करैत रही। फइल हवादार कोठली मे रहैत रही।
खगता कोनो वस्तुक नहि
छल।
आब हम अपन दुखनामाक
चर्चा करब। मैट्रिक सँ एम.ए. तकक अध्ययनक
अबारा नहितन 23
बीच मे हमरा एकटा रोग
पकड़ि लेलक। शुरू मे ई रोग हलुके छल। मुदा समयक
संग एकर तेजी बढ़िते
गेलै। रोगक नाम भेल मैथिली प्रेम रोग। अपन व्यथाक
विवरण दिअ पड़त। अहाँकेँ
हमर व्यथा-राग केहन लागत तकर चिंता हमरा
कनिकबो नहि अछि। हमर
मोनक संताप अबस्से कम भ’ जायत तेँ हमरा
बड़बड़ाय दिअ। एकटा आरो
बात, हम जे कहब तकरा सत्य मानबैक। किएक
त’ मैथिली
प्रेम-रोगक संबन्ध कोनो लेन-देन अथवा नफा-नोकशान सँ नहि मात्रा
हृदयक ओहि तंतु सँ छैक
जतय केवल दर्द छैक, पीड़ा छैक। दर्द मे, पीड़ा मे
रोगी
फुइस नहि बजैत अछि।
विद्या उपार्जनक सफर मे
गर्मी, दुर्गापूजा एवं बड़ा दिनक तातिल मे सोझे गाम
आबी। गामक मोह, गाम-घरक
लोकक मोह, गामक इनार-पोखरिक मोह एतेक ने
तीव्र छल जे जखन छुट्टी
मे गाम आबी त’
बड़ नीक लागए। एक दिनुका गप्प थिक।
गर्मीए तातिल मे गाम
आयल रही। मटरगस्ती करैत रस्ता धेने जा रहल छलहुँ।
बौआमाय पोखरिक पुबरिया
भिण्डा पर छोटका कका वंशी पथने छलाह। बेरु पहरक
सूर्यक ठोकल आ सोझ ताप
हुनक माथ पर पड़ि रहल छलनि। कका हमरा देखलनि
आ सोर पाड़लनि। छोटका
कका अर्थात् कौआली बाबू। हम करितौं की? हमरा
हुनका लग जाए पड़ल। कका
अपन जीवनक पछिला घटल वृत्तान्त कह’ लगलाह।
विदुर नीतिक अनुसारे ओ
पढ़ब छोड़ि राजनीति मे कूदल रहथि। जोड़ा बड़द छापबला
काँग्रेसिया जखन नकारि
देलकनि तखन ओ झोपड़ी छाप दिश सँ चुनाव लड़ल
रहथि। जनता हुनकर
त्यागक कोनो टा पुरस्कार नहि देलकनि। हुनकर जमानतो
जप्त भ’ गेलनि।
विदुर नीतिक आचार्य कका केँ राजनीति छोड़’ पड़लनि। तखन
ओ ठीकेदारी व्यवसाय दिश
अग्रसर भेल छलाह। गाम सँ सकरी कुल पाँच मील।
आजाद भारत मे सड़क पक्की
बनतै। टेंडर निकलल रहै। ककेक टेंडर पास भेलनि।
कका पक्की सड़कक निर्माण
मे लागि गेलाह। सड़क बनि गेलै। ई की भेलै रौ बाउ?
कका बापक अर्जल
जथा-जमीन मे सँ सात बीघा खेत बेचि क’ पूजी जमा कयने
रहथि। ईंटा, बालु,
सीमेन्ट, अलकतरा, मजदूरी-सभहक
पेमेन्ट चुकता करैत-करैत
ककाक पूजी बिला गेलनि।
ओभरसियर, एस.डी.ओ. आ एक्सक्यूटिभक कमीशन
त’ बाँकिए
रहि गेल छलै। अँग्रेजक जमाना सँ अबैत कमीशनक परिपाटी केँ कका
तोड़ि नहि सकैत छलाह।
कका एक बीघा खेत आरो बेचि कमीशन चुकौलनि।
कका लोहछि क’ कहलनिबेकारे
हम ठीकेदार बनलहुँ। मुदा अहि मे दोख
ककेक छलनि।
हित-अपेक्षित हमरा उकसा-उकसा क’ हमर नोकशान करा देलनि।
जाए दहक, जे
भेलै से भेलै। कहियो काल गलत निर्णय भइए जाइत छै। ठीकेदारीक
24 केदार नाथ चौधरी
ज्ञान नहि रहए तकर बादो
ठीकेदार बनब भेल हमर बुड़िपाना। ‘कर्म प्रधान विश्व
रचि राखा’। कर्म
करैत रही। असफलता लेल कुपित होयब उचित नहि।
कका वंशीबला लग्गा केँ
उठा क’ बोर केँ ठेकनौलनि। बिढ़नीक पोआक बोर
रहै। बोर अपना जगह पर
ठीके-ठाक छलै। कका पुनः लग्गा केँ झटका दैत डोरी संग
काँटा केँ पानि मे
फेकलनि आ तरैला पर ध्यान केन्द्रित केलनि। तरैला सोझ भ’
क’ ठाढ़ भ’
गेल। कका चैनक साँस छोड़लनि। तखन बेफिक्र होइत कहलनितोरा
एकटा खास समाद कह’ लेल
एखन सोर केलिऔए। एकटा महाज्ञानी मैथिल इंगलैंड
सँ भरिगर डिग्री ल’क’
मिथिलांचल मे पदार्पण केलनिहँए। ओ लहेरियासराय मे
अपन खुट्टा गाड़लनिहँए।
ओ जीवनक सभ सुभिता त्यागि मिथिला नामक पृथक
राज्य बनेबाक प्रण
केलनिहए।
हमर माथा ठनकल। हमहुँ
सुनने रही ई गप्प। चारूकात हल्ला भेल रहैक।
एकटा बेजोड़ आ प्रबुद्ध
मैथिल शिरोमणि ईगलैंड सँ पी-एच.डी. डिग्री प्राप्त क’
मिथिलांचल मे अयलाए।
हुनकर एकमात्रा ध्येय छनि मिथिला एवं मैथिलीक सेवा
करब। ओ मिथिलाक दुखकेँ, कष्टकेँ
निवारणक हेतु पोथी लिखि क’ प्रकाशित
केलनिहँए। हुनकर पोथी
अइ बात केँ उजागर करैए जे मिथिला केँ अलग राज्य बन’
लेल इतिहास, भूगोल,
कला, संस्कृति, परम्परा
संग कृषि एवं उद्योग छैक। सरकार
चलबै लेल पर्याप्त
आमदनीक सेहो गुंजाइश छैक। एतेक उपलब्धि रहलाक बादो
मिथिला अलग राज्य किएक
ने बनत, अबस्से बनत? ककर बापक दिन छै जे
मिथिला केँ अलग राज्य
बन’ सँ रोकि सकत! जय हो, जय-जय हो! आब मिथिला
राज्य बनि गेल सैह बुझि
लिअ।
ओहि महामानवक चर्चा मे
आकर्षण रहै। आकर्षण प्रकंपित करएबला रहैक।
ककाक संवाद सँ हमर
ध्यान आकृष्ट भेल छल। ताहू पर सँ कका जखन ई सूचना
निर्गत केलनि जे ओ
प्रकांड विद्वान अगिला अर्थात् भारतक दोसर खेपक संसदक
चुनाव मे प्रत्याशी
बनताह, ई सुनिते तखन त’ हम अपना केँ रोकि नहि सकलहुँ।
ओहि महापंडित केँ देख’ लेल
अधीर भ’ उठलहुँ।
कका कहलनिचुनाव लड़’ लेल
अनुभवी एवं समर्पित लोकक आवश्यकता
होइत छैक। हम अपन देशक
पहिल चुनाव लड़ि चुकल छी। पराजित भ’ गेलहुँ ई
अलग बात भेल। मुदा हम
चुनावक दाव-पेंच, तरी-घटी सभ तरहक करिश्मा सँ
परिचित भ’ चुकलौंए।
तखन बचल समर्पण। हम राजनीति एवं ठीकेदारी सँ अपना
केँ अलग क’ चुकलहुँए।
बचल जमींदारी। एखुनका प्रजातंत्राी सरकार जमींदारी गिड़ै
लेल कटिबद्ध भ’ गेलए।
सुनलए जे आब प्रखण्डक सभटा तौजीक मालिक
अबारा नहितन 25
अंचलाधिकारी हैत।
परिवर्तन होयब संसारक नियम थिकै। जे होइ छै तकरा होम’
दिऔ। तेँ हम अपन समस्त
जीवन अहि नव नेता मे समर्पित क’ देलए। हम हुनक
चरणधूलि मस्तक मे लगा
हुनक शिष्य बन’
लेल अपना केँ तैयार क’ लेलहुँ अछि।
हम पुछलियनिकका, अहाँक
नेताजीक नाम की छनि?
राम-राम! जिह्वाक
अग्रभाग मे अग्निदेवताक बास। अपन गुरु, प्रेमी एवं
नेताक नाम जिह्वा पर
आनब अनुचित। ओ छथि मिथिलांचलक नेता, तेँ ओ हमरो
नेता। हम तोरा विचार
देबौ जे तोहूँ हुनका नेताजी कहि सम्बोधन करहुन।
बजिते-बजिते कका बंशी
छिपलनि। बंशीक काँट मे बाझल एकटा गरचुन्नी
बाहर आयल। कका मुँह
बिचकबैत बजलाबोर देलियै रहु माँछक आ ऊपर भेल
गरचुन्नी। देखहिन ने, हमर
सुतार कखनहुँ लहिते ने अछि।
हम चुपे रहलहुँ। कका
बोर केँ ठीक केलनि। फेर सँ बंशी पथलनि। तखन
कहलनिहम काल्हिए नेताजी
सँ भेट करए लहेरियासराय जायब। हम तोरा विचार
देबौ जे तोहूँ हमरा
संगे चल आ नेताजीक दर्शनक पुण्य लाभ कर।
नवका नेताजी सँ भेट
करैक हमरो तीव्र इच्छा जाग्रत भ’ गेल। ककाजीक नेताजी
प्रतिए भक्तिभाव हमरो
मोन केँ लुसफुसा देने रहए। मातृभूमि मिथिला आ मातृभाषा
मैथिली लेल हमरो उत्कट
आकर्षण पनपि गेल रहए, जकर पर्याप्त कारण रहै।
गाम मे हमर एकटा पितिऔत
भ्राता रहथि ‘दीपकजी’। दीपकजीक पूरा नाम
भेल अमर नाथ चौधरी ‘दीपक’। जहिना जलक स्वभाव होइए शीतलता तहिना दीपक
जीक स्वभाव छल मृदुलता।
छोट-पैघ सभहक लेल आदर एवं विनम्रता। कोमल वाणी
आ ठोर पर मुस्की। ने
संसारक मोह आ ने परिवारक सुधि। मात्रा मैथिली भाषा लेल
चिंता। दीपकजी कहथिहयौ
केदार भैया,
मिथिला केँ बिहार प्रांत मे सम्मिलित क’
अन्याय कएल गेलैए।
मिथिला केँ अलग राज्यक दर्जा भेटक चाहियैक।
गाम मे बहुतो चटिसार
रहैक। मुदा दीपकजीक दरबज्जा परहक बैसारक एक
अलग तरहक मर्यादा रहै।
ओ स्वयं मैथिली भाषाक नीक विद्वान रहथि। जीवनक
आरम्भ मे दीपकजी मैथिली
भाषाक मासिक पत्रिका ‘पल्लव’क सम्पादन कयने
रहथि। बादक जीवन मे
हुनक मासिक पत्रिका ‘मातृवाणी’ बहुत दिन तक
प्रकाशित
होइत रहल। आर्थिक ष्टिएँ
गाम मे सभ सँ सम्पन्न, भाइ-बहिन मे असगरुआ,
दीपकजीक दलान लगभग दू
बीघा मे पसरल सभहक आकर्षणक केन्द्र रहैक। प्रत्येक
गर्मी तातिल मे गामक
नवयुवक हुनके दलान पर हुनके डाइरेक्शन मे नाटक खेलाइत
छल। माधव स्मारक
पुस्तकालय,
कबड्डी खेलक प्रतियोगिता संगे सभहक खोज-पुछारि
करब हुनक नित्यक
कार्यक्रम छल। समय-समय पर मैथिली भाषाक कवि एवं
26 केदार नाथ चौधरी
कथाकारक जमघट दीपकजीक
दलानक त’ शोभा छले। यात्राीजी जहिया कहियो
अपन गाम तरौनी आबथि त’ एको
दिनक लेल दीपकजीक ओहिठाम अबस्से
आबथि। गाम भरिक लोक
यात्राीजीक सम्मान मे जमा भ’ जाय। यात्राीजीक अनुपम
कविता पाठ हमरा एखनो
मोन अछि‘‘पुरखा लोकनि पिबइ छलाह भांग, खाइ छला
माजूम। चिबाबथि ललमुँहा
रोहुक तरल-झोरायल मूड़ा। मोदनीक पेटी, करिया
छागरक करेजी। हमरा
लोकनि आजुक प्रबुद्ध मैथिल चढ़बइ छी नापि क’ देशी-विदेशी
दारू मात्रानुसार। करइ
छइ गुन अतत्तह जड़काला मे।’’ यात्राीजीक कविता पाठ एवं
गप्प-सप्प तेहन ने रसगर
आ रमनगर होइत छलनि जे हम मंत्रामुग्ध भ’ जाइत छलहुँ।
गाम मे रही त’ हम
नित्य दीपकजीक ओहिठाम गेल करी। कखनहुँ काल
दीपकजी अत्यन्त
संवेदनशील भ’
जाथि। कहथिहयौ केदार भैया, तपस्वी, आर्य-धर्मक
प्रवर्तक, अहिंसा
मे विश्वास केनिहार, प्रत्येक दर्शनक दिशा देनिहार, सनातन धर्मक
महत्त्वकेँ व्याख्या
केनिहार, सीताक अर्चना करैत नारी जातिक आदर केँ उच्चतम
शिखर पर पहुँचेनिहार
मिथिला एवं मैथिल एखन घोर संकट मे छथि। अँग्रेज शासक
षट्यंत्रा क’ मिथिला
केँ दू खण्ड मे बाँटि देलक। एक हिस्सा भारत मे आ दोसर
हिस्सा नेपाल मे।
मिथिलाक इतिहास तकर बादो कायमे छैक मुदा एकर भूगोल
निपत्ता भ’ गेलै।
अहू सँ बेशी दुखक, अपमानक कोनो आर बात हेतै? प्राचीन काल
सँ मिथिला एकटा
स्वतंत्रा राष्ट्र रहलए जकर प्रमाण अपन धर्मग्रंथ मे सुरक्षित अछि।
खंडित भेल मिथिला अपन
आचरण सँ, अपन परम्परा सँ एखनो एकटा राष्ट्र अछिए।
मात्रा एखुनका
प्रजातंत्राी सरकार मे एकर स्वरूप केँ उजागर कर’ पड़तैक। उजागर
करक मार्ग हेतै मैथिली
भाषा सँ, मिथिला केँ पृथक राज्य बनला सँ। मैथिली भाषाक
प्रचार-प्रसार लेल
अनेको मैथिल सचेष्ट छथि। मिथिलाक गौरव केँ पुनः कायम कर’
लेल सभटा मैथिल विद्वान
एवं मैथिल संस्था केँ एकजुट करए पड़तैक, सभहक सोच
केँ एक खास दिशा मे आनए
पड़तैक।
दीपकजी बजैत-बजैत आँखि
मुनि लेथि,
चुप भ’ जाथि। फेर थोड़ेक ऊर्जा केँ
एकत्रा क’ बाजए
लागथिसंसार मे अनेक प्रसिद्ध कवि भेलाह अछि। मुदा महाकवि
विद्यापतिक टक्करक, समकक्षक
कियो ने भेला। पछिला सात सए बर्ख सँ विद्यापति
एतुक्का लोकक कंठ मे
बसल छथि आ अपन कवित्व बलेँ असगरे मिथिलाक
संस्कृति, परम्परा
केँ जिऔने छथि, सुरक्षित रखने छथि। हयौ केदार भैया, मैथिल
सनक कुशाग्र बुद्धिबला
लोक संसार मे बिरले भेटत। एतुक्का संस्कार आ विलक्षणता
झाँपल छैक जकरा उघार कर’ पड़तैक।
तेँ कहैत छी ने जे मिथिला लेल किछु करियौ,
माटिक ऋण सँ उऋण होइयौ।
अबारा नहितन 27
सरल चित्त एवं मैथिली
भाषा लेल पूर्णतः समर्पित दीपकजीक सम्पर्क मे
रहैत-रहैत हमरा मैथिली
प्रेम-रोग नीक जकाँ ग्रस्त क’ लेलक। वयसक संग रोग मे
विस्तार होइते गेल।
स्नातकक डिग्री लेल हम
जखन कलकत्ता विश्वविद्यालयक छात्रा रही तखन हम
राजेन्द्र छात्रानिवास
मे रहैत छलहुँ। मुंगेर, भागलपुर, बेगुसराय, पूर्णियाँ, सहरसा,
दरभंगा, मधुबनी
इत्यादि अनेक जिलाक आ अलग-अलग विषयक छात्रा ओही
होस्टल मे रहैत छलाह।
बोली मे थोड़ेक भिन्नता मुदा सभ मे मित्राता। कारण,
अपन-अपन गाम-घर सँ दूर
सभटा छात्रा मिथिलेक रहथि। कलकत्ता मैथिल सभा,
मैथिल गोष्ठी, मैथिल
सम्मेलन होइते रहैक आ हमसभ झुंड मे ओहि सभा, गोष्ठी एवं
सम्मेलन मे भाग लैत
छलहुँ। ओतय मिथिला, मैथिली सँ अनुराग कर’बला,
प्रेम
कर’बला
मैथिल भेटथि, जनिकर मैथिली प्रेम-रोग हमरो सँ अधिक उग्र
अवस्था मे
रहैत छलनि। ओतबे नहि, अहि
प्रेम-रोग केँ कोना बढ़ाओल जाए, कोना पराकाष्ठा
पर पहुँचाओल जाए तकरो
लेल विचार होइत छलै, मंथन होइत छल।
जखन कॉलेज मे तातिल
होइत छलै आ हम ट्रेन पकड़’ लेल हाबड़ा टीसन
अबैत छलहुँ ताहि समयक
हृदय-स्पर्शी श्य देखि हमर मोन द्रवित भ’ जाइत छल।
जाएबला एक जन आ
अरिआतैबला बीस जन। सभहक समाद, सभहक आह्लाद।
अपने पोखरि मे नहैह’, अपने
इनारक जल पीबिह’। कका केँ कहि दिहुन जे बुढ़िया
गाय केँ कसाइक हाथे नहि
बेचथि। गाय खूटे पर मरतीह तखने धर्म बाँचत।
सझुआरबाली भाउज केँ हमर
समाद पहुँचा दिहुन जे अगिला माघ तक हम गाम
आबि सकब। ताबे तक हमर
कमौनी एतेक अबस्से भ’ जायत जे भरना लागल
ब्रम्होत्तर बला खेत
केँ महाजन सँ छोड़ा सकब। अइ पोटरी मे हमर कंटिरबी लेल
फ्रॉक छै। ओ कतेक टा भ’ गेल
होयत तकर अन्दाजे क’ के’ हम फ्रॉक
किनलहुँए।
हमर पत्नी केँ बुझाय
दिहौन जे भगवती पर आसरा राखथि। सभटा भविष्य माँ दुर्गाक
आशीर्वादक भूखल अछि।
सभहक आँखि मे, भाषा
मे, भाव मे अपन मिथिला लेल, मिथिलाक
माटिक लेल
जे बेकलता देखियैक तकरा
की बिसरल जा सकैत छल? मोन मे तरह-तरहक विचार
पनपए। गरीब, असहाय,
निर्बल भेल मैथिल केँ अपन जन्मभूमि छोड़ला सँ कतेक
पीड़ा भ’ रहलैए।
एकर निदान लेल किछु हेबाक चाही ने! जागू हे मिथिला! सभ
किछु सँ परिपूर्ण
रहितहुँ अहाँ दरिद्र किएक छी, निरुपाय किएक छी? आब त’
देश
स्वतंत्रा छैक। तइयो की
मिथिलाक समस्या मुँह बौने रहतैक? की हमर सभहक
अभग-दशा बनले रहतैक?
28 केदार नाथ चौधरी
बंशी खेलाइकाल जाहि
महान आत्माक चर्चा ककाजी केलनि तनिकासँ ककेक
संग भेट करए गेलहुँ। लहेरियासराय
मे कबिलपुर,
कबिलपुर मे बाबू साहेब कॉलनी।
जीर्ण-शीर्ण दशा मे
नड़िया खपड़ा सँ छारल घर। घरक आगाँ चंडुल भेल घासक परती।
परतिए मे नेताजी आ
हुनकर चारि गोट खाँटी चेला मूड़ी झुकौने अइ तरहें संचमंच
बैसल रहथि जेना परिवार
मे टटके किनको मृत्यु भ’ गेल होनि। हम नेताजीक छवि
केँ ध्यान सँ
निहारलहुँ। ‘रहा न कुल मे रोबनहारा’ सनक चेहरा पर हतासाक भाव।
जेना पछिला दू दिन सँ
एकोटा अन्नक दाना पेट मे नइँ गेल होनि तेना ठोरक पपड़ी,
शरीरक काया। हे ईश्वर!
इएह भेलाह नेताजी? हिनका त’ मिथिलाक समस्या सँ
पहिने अपन समस्याक
निदान करक चाही!
करीब आधा घंटाक दमघोंटू
चुप्पीक बाद नेताजी अपन मुँहक फाँक केँ
अलगौलनिके छिअह, शारदाकांत?
आज्ञाकारी छात्रा जकाँ
कका नेताजीक समक्ष पहुँचि ठाढ़ भ’ गेलाह। अत्यधिक
अनुशासनक वशीभूत ककाजीक
नजरि नेताजीक आँखि मे नहि, हुनक चरण-नख
मे घोंपा गेल छलनि।
नेताजी कहलथिनपत्रिका छपि क’ आबि चुकल छह। अपन
कोटाक पत्रिका ल’क’
जाह आ घूमि-घूमि क’ बेचह। एतय बैसल-बैसल समयक
क्षति नहि करह’। एकटा
बात आरो। चुनावक दिन लगीच आबि चुकलए। ताहू
बात पर ध्यान राखक छह।
ककाजी झुकल चौखटि सँ
माथ बचबैत एकटा कोठली मे प्रवेश केलनि आ
एकटा बंडल उठौने बाहर
अयलाह। आँखिए सँ हमरा इशारा केलनि। हम दुनू
कका-भतीजा लहेरियासराय
टीशनक प्लेटफार्म पर पहुँचि एकगोट खाली ब्रेंच पर
पोन रोपलहुँ।
कका बंडल खोललनि।
पत्रिका बाहर निकाललनि। पत्रिकाक नाम रहए
‘मिथिला’। मिथिले जकाँ काहि कटैत पत्रिकाक कागत आ ओकर आखर। पत्रिकाक
मूल्य एक आना। चुनाव सँ
पहिने पत्रिकाक विशेषांक छपल छल तेँ मूल्य दू आना।
हम पत्रिका केँ
उनटा-पुनटा क’
देखल। आठ पृष्ठक पत्रिका मे मात्रा नेताजीक
उपदेश एवं आदेश।
मिथिलाक जनता की-की करथु एवं हुनके अगामी चुनाव मे भोट
देथु, तकर
आज्ञा।
कका कहलनिकैंचा खर्च क’ पत्रिका
किननिहार धरतीक अहि भाग मे कियौ
नहि भेटतौ तेँ हम
पत्रिका बेचै नहि छी, बिलहै छी। एक दू दिनक बाद पत्रिकाक
मूल्य नेताजी केँ
पहुँचा दैत छियनि। इहो कहि अबैत छियनि जे पत्रिका हाथे-हाथ
बिका गेल। एतूका लोक
चिकरि-चिकरि क’
प्रशंसा केलकए। नेताजी केँ संतुष्ट
अबारा नहितन 29
करब चेलाक पुनीत
कर्त्तव्य भेल ने!
ई सभटा बताहक
क्रिया-कलाप। हम पेशोपेश मे पड़ि गेलहुँ। मिथिलाक
समस्याक सामाधान लेल आ
कि मिथिला राज्यक निर्माण लेल एकटा योग्य नेताक
होयब जरूरी छलै। ओ नेता
एहन गुणसम्पन्न होथि जनिक निर्देश मे लोक अपन
कर्त्तव्य लेल जागए आ
संगहि सम्पूर्ण मिथिलांचल जनाक्रोश सँ भरि जाए। मुदा से
सभ की अहि नेता सँ संभव
हैत?
हमर चेहरा पर उदय भेल
विरक्ति भाव केँ अवलोकन करैत कका संतोख देलनि
आ कहलनिविद्वान एकभगाह
होइते छैक। नेताजीक व्यवहार पर नहि जाह, हिनक
उद्देश्य पर ष्टि राखह।
हमरा पूर्ण विश्वास अछि जे एक दिन अपन नेताजी मिथिला
मे एहन बिहाड़ि अनताह जे
सभ किछु बदलि जेतै। प्रांतीय एवं केन्द्रीय सरकार पात
जकाँ काँपय लागत।
पहिले-पहिल कोनो नेता
केँ देखने रही,
बहुत अनुभव नहि छल। हम अपन
मोन केँ थीर कयल। जखन
कका केँ नेताजी मे एतेक विश्वास छलनि त’ भ’ सकैए
जे झँपले सही, नेताजीक
क्षमता भविष्य मे अपन करतब देखाबए। हम अही तरहक
बात केँ मोन मे अनैत
अपना केँ संयत केलहुँ।
हम जखन पटना
विश्वविद्यालय मे एम.ए.क छात्रा रही त’ हमर सभसँ घनिष्ट
मित्रा रहथि सुरेन्द्र
मिश्र, प्रतिभाशाली एवं स्फूर्ति सँ भरल। हुनके प्रयासे पोस्ट-ग्रेजुएट
विभाग मे एकटा संस्था
कायम भेल रहएचाणक्य सोसाइटी। अनेक छात्राक संग
हमहुँ ओहि संस्थाक
सदस्य बनल रही। आरम्भ मे संस्था समस्त बिहार प्रांतक मूल
समस्या केँ आधार बना क’ विचार-विमर्श
करैत रहए। चुनल-चुनल विद्वान केँ
आमंत्रित कएल जाइत छल।
ताहि काल चिंतन-मननक मुख्य विषय रहैक ‘भारत
केँ स्वतंत्रा भेला
लगभग एगारह बर्ख बीति चुकल अछि मुदा प्रांतक विकास अवरुद्ध
अछि। की बिहार प्रांत
दुखित अछि?
एकर कारण एवं निदान।’
विचार मंथन सँ जे
निष्कर्ष बाहर आयल रहै से एकहि तरहक छल। बिहार
केँ उटपटांग तरहेँ
प्रांत बना देल गेलैए। फराक-फराक प्रांत बन’ लेल जे
मुख्य-मुख्य तत्व चाही
तकर एतय अभाव छैक। सम्पूर्ण बिहार प्रांत मे भाषा,
आचार-व्यवहार, भेष-भूषा,
खान-पान एवं सोच मे भिन्नता छैक। प्रांतक निर्माण
एवं ओकर विकास लेल जे
मूल मंत्रा हेबाक चाही से भेल भावनात्मक एकता।
भावनात्मक एकरूपता एतय
छैहे ने आओर हेबो नहि करतैक। बिहार प्रांत ताबे
तक दुखिते रहत जाबे तक
मिथिला, भोजपुर एवं संथाल नामक तीन गोट
अलग-अलग प्रांत बना नहि
देल जेतैक।
30 केदार नाथ चौधरी
चाणक्य सोसाइटीक अधिक
सक्रिय सदस्य मिथिलेक रहथि। संस्थाक अधिक
बैसार मिथिलेक समस्या ल’क’
होएक। मिथिलाक व्यथा सँ व्यथित बहुतो मैथिल
अपन-अपन विचार उपस्थित
करथि। मिथिला एकटा अलग प्रांत होउक ताहि लेल
सभ एकमत छल। मुदा
मिथिला नामक अलग प्रांत बनत कोना, ताहि प्रसंग पर
जखन विवेचना शुरू होइक
त’ सभ बौक-बधिर बनि जाथि। सम्पूर्ण मिथिलाक
जनसंख्याक एक छोट भाग
अहि विचार सँ संकल्पित रहथि। मुदा ताहिसँ होअय
की? मानल
जे विचारक संघर्ष सँ क्रांतिक जन्म होइत छैक, मुदा केहन
क्रांति? जवाब
भेल अहिंसक क्रांति।
क्रांति करतै के? राजनीति मे रहनिहार। ताहि समय मे केन्द्रीय
सरकार मायावी समाजवादी
भ्रमजाल मे फँसल छल। सोस्लीस्टिक पैटर्न ऑफ
सोसाइटी, किछु
शब्दक अर्थहीन समूह। प्रधान नेता देशक छोट-छोट समस्या सँ
विरक्त संसारक गुरुपद
प्राप्त कर’
लेल व्यग्र। ओहि प्रधान नेताक कद पहाड़ एतेक
उच्च। मिथिलाक राजनीतिक
नेताकेँ की एतेकटा साहस हेतनि जे ओ मिथिलाक
समस्या लेल लोकसभा मे
अपन मुँह खोलि पौताह? भ’ गेल विचार मे ओझराहटि।
हमहूँ ओही हतासाक
मनोदशा मे रही। मुदा हमर हृदय मे संचित मैथिली प्रेम-रोग
हमर चेतना केँ सदिकाल
खोंचारैत रहल।
अबारा नहितन 31
3
जीविकोपार्जन करैत काल
कलकत्ताक जाहि बासा मे रहैत छलहुँ ताहि मे मात्रा एकटा
कोठली। कोठली पैघ, स्वच्छ,
हवादार त’ रहबे करै आ ताहू पर सँ हम धूप-दीप
जरा
ओकरा आरो पवित्रा बनौने
रही। फर्श पर सतरंजी-जाजिम आ एक कात देबाल सँ
सटल मोटरी-चोटरी। ताही
समय मे अपना दिसका लोकक एकमात्रा गंतव्य कलकत्ता।
कलकत्ते मे चाकरी भेटैक
आश। हमर कोठली मे सदिकाल अतिथि रहबे करथि।
जोगार फिट भेला पर एक
अतिथि जाथि ताबे दोसर अतिथि पहुँचि जाथि।
एक दिन बैद्यनाथ बाबू
कोठलीक मुँहथरि लग सँ निहोरा केलनिपिताक
आदेश सँ मजबूरन एतय आब’ पड़लए।
हुनक कहब अनुसारे जँ हम मिथिला मे
रहब त’ भूखे
मरि जायब। कलकत्तेटा मे हमर पेट भरैक सम्भावना। तेँ एलहुँए।
तखन अहाँक जेहन कृपा
होअय।
बैद्यनाथ बाबू हमर
पुरान परिचित,
हमरा सँ एक किलास ऊपर, सज्जन लोक,
एक हाथ मे छाता आ दोसर
हाथ मे टिनही पेटी पकड़ने आज्ञा मांगि रहल छलाह।
हुनकर आँखि मे सिनेहक
लत्ती पसरल छलनि। हम हड़बड़ाइत आग्रह केलियनि
चरणपादुका खोलि कोठली
मे प्रवेश कएल जाए। अहाँक स्वागत अछि। अहि
क्षणभंगुर संसारक ई
कोठली अहींक थिक।
बैद्यनाथ बाबू पटने
विश्वविद्यालयक छात्रा रहथि। ओ सामाजिक विज्ञान नामक
विषय मे फर्स्ट क्लास
फर्स्ट भेल रहथि। प्रखर बुद्धि एवं सरल चित्तक वैद्यनाथ बाबू
विभिन्न तरहक
प्रतियोगिता परीक्षाक तैयारी शुरू क’ देलनि। तत्काल मे काज
चलाउ खर्च लेल हुनका
कोनो काज चाही। कलकत्ताक बड़ा बाजार भेल मारवाड़ीक
गढ़। ओ जाति मुनीम आ
मास्टर रखिते छल। जेहन धनिक मारवाड़ी तेहन पगार।
बाप बेटा केँ पढ़बै लेल
पैंतीस टकाक पगार पर हुनकर नियुक्त केलक। मुदा
मारबाड़ी-पुत्रा केँ
किताब-कॉपी सँ ओहने परहेज जेना माँछ खाइबला केँ तुलसीक कंठी
सँ। ओ नहि पढ़त ताहि एबज
मे सय टाका मासिक देबा लेल तैयार भ’ गेल छल।
32 केदार नाथ चौधरी
बैद्यनाथ बाबू केँ एक
सय पैंतीस टाकाक आमदनी होब’ लगलनि। पढ़ेबाक टेम मे
ओ रेडियो सिलोन खोलि
देथिन। छात्रा गीत सुनै मे मगन भ’ जाए आ बैद्यनाथ बाबू
अपन कम्पिटीशनक पुस्तक
मे लीन भ’
जाथि।
बैद्यनाथ बाबू एलाइड
परीक्षा उतीर्ण केलनि आ एक्साइज विभागक हाकिम बनि
मध्य प्रदेशक कोनो शहर
लेल प्रस्थान केलनि। बैद्यनाथ बाबू करीब सात-आठ
महिना हमरा संगे हमर
कोठली मे रहला। हमरा मैथिली प्रेम नामक रोग छल। अपन
रोग द’ बैद्यनाथ
बाबू सँ गप्प-सप्प नहि करितहुँ से संभव कोना होइत? बैद्यनाथ
बाबू
संग मिथिला-मैथिलीक मूल
समस्या ल’क’ वृहद् चर्चा भेल छल।
गप्पे-सप्पे मे बैद्यनाथ
बाबू कहलनिअहाँ असगरे नहि छी, हमहूँ मिथिलेक छी
आ हमरो अहि बातक वेदना
अछि। हमरा-अहाँ सनक हजारो मैथिल छथि जनिका
मिथिलाक वर्तमान
दुर्गति देखि क्षोभ होइत छनि, कष्ट होइत छनि। खास क’ मैथिली
भाषाक रचनाकार त’ आरो
दुःखी छथि। कारण, क्षेत्रा-विशेषक पहिचान भाषेक माध्यमे
होइत छैक। मैथिली भाषाक
मिथिला सँ बाहर कोनो पहिचान नहि छैक। हिन्दी
भाषाक आलोचक मैथिली केँ
भाषा नहि ‘बोली’ मानैत छथि। मैथिली सश प्राचीन
एवं समृद्ध भाषा केँ
अष्टम अनुसूची मे स्थान नहि देल गेलैए ताहि सँ अधिक
अपमानबला बात आरो की
हेतैक?
सरकारक उच्च ओहदा पर
अनेको मैथिल छथि। मिथिलांचल सँ सांसद एवं
विधायक सेहो चुनल जाइत
छथि। मुदा केन्द्र सरकार लग किनको चहु अलगिते
ने छनि। तकर बाद
मिथिलाक जन-साधारण मे चेतनाक अभाव छैक। अकर्मण्यता,
आलस्य आ बहुतो तरहक
दुर्गुण हमरा सभ मे अछि। समस्या गंभीर एवं प्रत्यक्ष
छैक। बाढ़ि आ सुखाड़, सड़क आ
बिजली, स्वास्थ्य आ शिक्षा, सभठाम
अन्हारे-अन्हार।
मिथिला मे सभ तरहक
विकास अवरुद्ध छैक। भविष्यो मे कोनोटा इजोतक
संभावना नहिएक बरोबरि
छैक। मिथिला अलग राज्य बनौ ताहि बात केँ विराम
द’ एखन
अपन सभहक सोच केँ विस्तार करिऔ ने! एहन दयनीय स्थिति
मिथिलाक भेलैए किएक, ताहि
बात पर विचार करिऔ ने! थोड़े काल मानि लिअ
जे हम-अहाँ जागल छी, तखन
सभटा मैथिल कोना जागथि तकर मार्ग ने तकिऔ!
बैद्यनाथ बाबू कहिते
रहलाविचार मे जखन जड़ता आबि जाए, कल्पना यथार्थ
सँ हटि चेतनाक तलहटी मे
पहुँचि जाए तखन द्रष्टा बनि जेबाक चाही। द्रष्टाक अर्थ
भेल बुद्धि केँ स्थिर क’, अहंकार
केँ त्यागि, मोन केँ समस्या सँ विलग क’ विरक्ति
भावे वर्तमान केँ
अवलोकन करब। एहने स्थिति मे सही विचार उत्पन्न होइत छैक,
जटिल समस्याक समाधान
लेल युक्ति भेटैत छैक।
अबारा नहितन 33
बैद्यनाथ बाबू अपन बात
केँ फरिछाक’
कहलनिहम द्रष्टा बनि अपन
मिथिला लेल कइएक बेर
विचार केलहुँ। मोन पर जमकल सभ सँ पैघ अवरोध
ठाढ़ केलक पलायनवादी
विचार। दिशा एवं ष्टि दुनूक अभाव। भविष्यक बदला
अतीत मे घुसिआयल
मनोवृत्ति। विचारक छुद्रता एक तरहक व्यभिचार भेल, पाप
भेल। हम अहि तरहक
प्रवृत्ति केँ ठेलि-ठेलि क’ मोन सँ हटेलहुँ। तखन हमरा मार्ग
भेटल। मार्ग अछि
मिथिलाक्षरक पुनः स्थापना। मिथिलाक्षरेक माध्यम सँ एकता,
संगठन, संकल्प
एवं मैथिली भाषाक पहिचान कायम हेतै। सय-सवासय बर्ख
पहिने मैथिली भाषा मे
एक तरहक जागरण आयल रहै। जयपुर एवं काशी सँ अहि
जागरणक उत्थान भेल छलै।
ओतहि सँ जँ मैथिली भाषाक रचना केँ मैथिली लिपि
मे कयल गेल रहितए त’ आजुक
मैथिलीक ई दुर्दशा नहि होइतैक। अबस्से
मैथिली भाषा अष्टम
अनुसूची मे आबि गेलि रहितए। देवनागरी लिपि मे मैथिली
साहित्यक रचना
मिथिला-मैथिली लेल अभिशाप बनि गेलैए। हमर सभहक लिपि
केँ बंगभाषी ल’ गेलाह।
मानलहुँ जे हुनका सभ केँ सभ तरहक प्रगति कर’ लेल
कलकत्ता सनक शहर
भेटलनि। मुदा बंग भाषाक मधुरता एवं पहिचान लिपिए सँ
भेल छैक।
वार्तालापक जटिलता
दुआरे हम चिंता मे पड़ि गेल रही। बैद्यनाथ बाबू जाहि
विचार केँ प्रतिपादित क’ रहल
छलाह से हमरा लेल नव छल। हम कहलियनि
तत्काल मे हम
मिथिलाक्षरक महत्त्व केँ स्वीकार करैत छी। समस्याक समाधान लेल
कतहु सँ आरम्भ त’ करैए
पड़तैक। मुदा मैथिली लिपि मे आब रचना करब कोना
संभव हेतैक? एकरा
लेल त’ बिलम्ब भ’ चुकलैए।
बैद्यनाथ बाबू जवाब
देलनिकिछुओ बिलम्ब नहि भेलैए। जखने जगलहुँ
तखने भोर। मैथिली भाषाक
अपन लिपि छैक,
अपन व्याकरण छैक तेँ ने मैथिली
‘भाषा’ भेलै! अपन सभहक मिथिलाक्षरक पुनः स्थापना कोना हेतै तकरा लेल विचार
करियौ ने, रस्ता
भेटबे करत आ प्रत्येक डेग अन्तिम लक्ष्यक लगीच ल’ जायत।
बैद्यनाथ बाबूक ठोर सँ
बहरायल वाक्य हमर मोन केँ बैखरी सँ मध्यमा मे
पहुँचा देलक। भगवतीक
चिनवार लग,
शोणितक रंगक आरतपातक शुभ भावक
डरीर मे, दुआरि
पर बनल अरिपन मे, एतय तक जे जन-बोनिहारक चिकनी माटि
सँ लेबल देबाल पर बनल
जानवर एवं चिड़ै-चुनमुनीक चित्रा मे हमरा मैथिली
लिपिक दर्शन होम’ लागल।
नेना रही ताहि काल माय-काकी केँ महाभारत पढ़ैत
देखने रहियनि। सुनने
छलहुँ जे महाभारत बंग भाषाक लिपि मे छैक। आब मोन
पड़ल जे बंग भाषा मे
लिखल लिपि त’
अपन मिथिलाक लिपि छलै जकरा
34 केदार नाथ चौधरी
माय-काकी धाराप्रवाह
पढ़ैत छलीह। सही मे, बैद्यनाथ बाबूक चिंतन मे हमरा
धूमिले सही, आशाक
किरण देख’ मे आब’ लागल। हम हुनक वाणी
केँ ध्यान सँ
श्रवण कर’ लागल
छलहुँ।
बैद्यनाथ बाबू आगाँ
कहलनिबहुतो विश्वविद्यालय मे आ सैकड़ो स्कूल-कॉलेज
मे मैथिली स्वीकृत विषय
अछि। सामान्यतः शिक्षक दरमाहा मे आ छात्रा अधिक सँ
अधिक अंक प्राप्त करबा
मे संतुष्ट छथि। हिनका सभ केँ मिथिलाक्षरक महत्त्व द’
किछु कहब व्यर्थ।
पत्रा-पत्रिका मे मिथिलाक लिपिक नमूना छापि सभ केँ मिथिलाक्षर
सिखैक आग्रह करब सेहो
भेल समय दूरि करब। उद्देश्यहीन कार्य आ उद्देश्यहीन
वार्ता कोनो समस्या केँ
मात्रा दुर्बलेटा बनबैए। सैह सभ एखन तक भ’ रहलैए।
मिथिलाक्षरक प्रसार लेल
हम उपयुक्त तरहक योजना केँ सोचि चुकल छी आ एखन
ओही योजना द’ कहब।
कहियौ।
त सुनू। स्कूल खोलू।
स्कूल?
जँ मिथिलाक्षर केँ
मिथिला एवं मैथिलीक पहिचान लेल आवश्यक मानैत
छियैक त’ स्कूल
खोलू। मिथिला धनबल, शक्तिबल सँ दरिद्र अछि, मुदा बुद्धिबल
सँ परिपूर्ण। एतय
विद्याक खजाना छैक। विद्याबले मिथिला शिक्षाक केन्द्र
बनाओल जा सकैए। मैथिली
साहित्य मे सृजनात्मक पोथी लिखि मिथिलाक
मान-सम्मान केँ
विश्व-स्तर पर पहुँचाओल जा सकैए। एतय योग्य शिक्षक एवं
संस्कारी छात्राक कमी
नहि छैक। प्रथम वर्ग सँ अपन लिपि मे तैयार मैथिली भाषाक
पठन-पाठन आरम्भ करू।
अपन सभहक धर्मग्रंथ मे हजारो रोचक एवं शिक्षाप्रद
खिस्सा-पिहानी भेटत।
ओही खिस्सा-पिहानी केँ लघु बना चित्रा संगे छापि क’
पोथी तैयार करू आ
बालक-बालिका केँ प्रथम वर्ग सँ पढ़ेनाइ शुरू करू। देवनागरी
लिपि मे हिन्दी एवं
ग्रीक लिपि मे अँग्रेजी सेहो पाठ्य-पुस्तक मे रहतैक। मुदा
मैथिली लिपि मे लिखल
पोथी केँ उच्च स्थान मे राखल जेतै। दस-पन्द्रह बर्खक
बाद मिथिलाक्षर
जननिहारक एकटा फौज तैयार भ’ जेतैक। स्कूल-कॉलेज मे
स्वतः मिथिलाक्षर मे
छापल किताब केँ मान्यता भेटि जेतैक। इतिहास, भूगोल,
समाजशास्त्रा सभटा
मिथिलाक्षरे मे छपतै आ छात्रा ओकरा पढ़तै। एकरा संगे
मिथिला सम्पूर्ण भारत
मे शिक्षाक केन्द्र बनि जेतै। विभिन्न विषय मे आ खासक’
प्रतियोगिताक ष्टि सँ
शिक्षा ग्रहण कर’ लेल लाख मे छात्रा एतय आब’ लगतै।
मिथिला आर्थिक रूपे सबल
बनत आ शिक्षेक माध्यम बना मिथिला अपन गरीबी,
अबारा नहितन 35
भुखमरी सँ मुक्ति पाओत।
शिक्षाक केन्द्र बनक लेल मिथिलांचल मे माटि छै,
पानि छै, लोक छै
आ सभ सँ पैघ संस्कार छैक। बाद मे आनो तरहक उद्योग
मिथिला मे स्थापित
हेतै। मुदा शिक्षा नामक उद्योग सभ समय मे सर्वोपरि रहतैक।
एकटा बात आरो कहब। जँ
मिथिलाक्षरक बले मैथिली पढ़निहार, मैथिली
बजनिहारक फौज तैयार नहि
कएल जेतै त’
कालक्रमे मैथिली भाषा विलुप्त भ’ जेतै।
जेना ब्रजभाषा, अवधीभाषाक
नामी-नामी कविक रचना केँ हिन्दी भाषा अपना मे
आत्मसात क’ लेलकै
तहिना विद्यापतिक कविता हिन्दी भाषाक अंग बनि जेतै। जेना
ब्रजभाषा, अवधीभाषा
मृत अवस्था मे पहुँचि गेलए तहिना मैथिली भाषाक दुर्गति
हेबेटा करतैक। जाहि
मैथिल परिवार मे आधुनिक शिक्षाक विस्तार भ’ रहलैए तेहन
परिवार मे पारिवारक
भाषा मैथिली नहि हिन्दी अथवा अँग्रेजी भ’ गेलैए। एकरा
रोकलो ने जा सकैए। तेँ
कहैत छी सावधान भ’ जाउ। मिथिलाक्षरक महत्त्व केँ
बुझियौ। मैथिली भाषा
केँ मृत्युसज्जा पर जेबा सँ रोकियौ।
बैद्यनाथ बाबू किछु समय
तक चुपे भेल रहला। हुनकर मुखमंडल गंभीर भ’
गेल रहनि। हुनकर आँखि
मे अनन्त आकाशक छाया प्रतिबिंबित होब’ लागल
छलनि। बजैत काल जेना
हुनकर धैर्य आँचर मे अपन मुँह झाँपि लेने होअय तेना
आक्रोशित भेल कहलनिभारतक
इतिहास मे अशोक एवं अकबरक राज्य भारतक
अधिकांश भूभाग मे पसरल
छल। मुदा तखनो ओहि दुनू सम्राटक सम्पूर्ण भारत
पर सम्राज्य नहि छलनि।
सम्पूर्ण भारतक अभिप्राय भेल कश्मीर सँ कन्याकुमारी
आ कामरूप कामाख्या सँ
द्वारिका तक। ओ त’ धन्यवाद दिऔ अँग्रेज केँ जे हमरा
सम्पूर्ण भारत देबाक
प्रयास केलक मुदा नेताक स्वार्थक कारणे हमरा ख्ंाडित भारत
प्राप्त भेल। आब हमरा
सभ केँ विचार करक चाही जे ओ कोन तत्व छैक जे
प्राचीनकाल सँ भारतकेँ
एकटा राष्ट्र बनौने छैक। राजनीतिक ष्टिएँ खंडित
रहितहुँ ओकरा एक सूत्रा
मे बन्हने छैक। एकर जवाब भेटत भारतक धर्म मे,
साहित्य मे, दर्शन
मे। आर्य धर्म एवं आर्य दर्शन भारतक हृदयक धड़कन रहलैए
आ आगूओ रहतैक। अंधकार
युग सँ बाहर भेल यूरोपक अनेक देश मे दांते,
मिल्टन, होमर
आदि साहित्यकार भेलाह जे ओतुक्का भगवानक कथा केँ विस्तार
करैत ओहि देशक चरित्राक
निर्माण केलनि। अपना देश मे त’ सभ काल सँ
धर्मकथाक चमत्कार रहबे
कैलैए। विदेशी आक्रमण, विदेशी षट्यंत्रा आ विदेशी
साम्राज्य रहितो
राम-कृष्णक कथा सभ दिन कायमे रहलैए। इएह हिन्दू विशिष्टता
भारत केँ एक राष्ट्र
बनौने छैक।
तहिना हमरा सभ केँ ई
बुझय पड़त जे ओ कोन मुख्य तत्व छैक जे मिथिला
36 केदार नाथ चौधरी
केँ भारतक अन्य प्रांत
सँ अलग करैत छैक। जवाब भेल स्वाभाविक रूपे जनमल
एतुक्का पांडित्य।
वैशेषिक न्याय,
सांख्य, व्याकरण, यौगिक
अर्थात् जतेक तरहक
दर्शन संसार मे प्रचलित
छैक तकर उद्गम एवं विस्तारक स्थान भेल जनकक भूमि
मिथिला। एतुक्का पंडित
सनातन धर्मक अनुयायी बनि प्रत्येक दर्शन आ दर्शनक
गुटका मिथिलाक्षर मे
लिखलनि। ताम्रपत्रा आ भोजपत्रा मे मिथिलाक लिपि मे एखनो
ओ सभ उलपब्ध अछि। तेँ
मिथिलाक्षर मे धर्मकथाक पुस्तक अनबै त’ सभकेँ रुचि
जगतै, अपन
माटि सँ उपजल दर्शनक ज्ञान भेटतै आ मिथिला मे मैथिलक जमात
ठाढ़ भ’ जेतै।
इएह सुच्चा मैथिल एतुक्का समस्याक निदान तकतै, एतुक्का सभ
तरहक कष्टक लोप क’ देतैक।
तेँ कहलहुँ जे मिथिला मे क्रांति अथवा जागरण
आनैक एकेटा मार्ग छैक आ
ओ छैक मिथिलाक्षरक पुनः स्थापना। ई काज स्कूल
खोलले सँ संभव हेतै।
बैद्यनाथ बाबूक नजरि
झुकि गेलनि। ओ कहलनिअफसोच जे स्कूल खोलैक
योजनाक महत्त्व
बुझितहुँ हम अहि काज मे आगाँ नहि बढ़ि सकलहुँ। हमर पिता
पोस्टमास्टर। सरकारी
अमला मे पोस्टमास्टरक तनखाह सभ सँ कम। हम तीन भाइ
आ दू बहिन। सभहक
शिक्षा-दीक्षा मे हमर पिता आर्थिक बोझ मे तेना ने दबि गेलाह
जे हमरा अपन विचारल काज
केँ तिलांजलि दिअ पड़ल। स्कूल खोलैक योजना मे
मिथिलाक सेवा करैत अपन
सेवाक नीक गुंजाइश छलै। केदार भाइ, अधिकार भीख
मे नहि भेटैत छैक। अधिकार
प्राप्त कर’
लेल सक्षम होब’ पड़ैत छैक आ एकरा
बलपूर्वक छीनल जाइत
छैक। हमरा सभहक बल भेल मिथिलाक्षरक माध्यमे शिक्षित
मैथिलक फौज। हम अगिला
सय बर्खक कल्पना करैत छी जे जँ मिथिलाक्षर केँ पुनः
स्थापना नहि कएल जेतै त’ अहिना
मैथिल सभा करिते रहि जेताह, पत्रा-पत्रिका मे
विशिष्ट लेख लिखतहि रहि
जेताह, मंच पर सँ पांडित्यपूर्ण भाषण करिते रहि जेताह
मुदा मिथिला-मैथिलीक
कोनो टा उपकार नहि क’ पौताह।
बैद्यनाथ बाबू हाकिम
बनि कलकत्ता सँ प्रस्थान केलनि। हुनकर कहल विचार
मोन मे धमगज्जर मचबैत
रहल। मैथिली रोगी बहुत दिन सँ रही। कतहु सँ एकर
निदानक मार्ग नहि भेटल
छल, जनिका सँ अहि बात ल’क’ वार्तालाप
होअय।
सभहक आँखि मे अतीतक
चित्रा। हमर पिता-पितामह एहन छलाह, ओहन छलाह।
सारा परहक तुलसी मे जल
ढारैत रहू,
गप्प केँ मथैत रहू। मुदा बैद्यनाथ बाबूक
ठेकनगर विचार किछु
सार्थक करैक परामर्श छल। मिथिलाक सेवा करैत धन
कमेबाक सेहो गंुजाइश।
मोन स्थिर भैए ने रहल छल।
मुल्ला नसरुद्दीन घोड़ा
पर सवार छलाह। घोड़ा एकहि स्थान पर चक्कर काटि
अबारा नहितन 37
रहल छल। कियो पुछलकमुल्लाजी, कत’
जा रहल छी? ओ जवाब देलथिनई बात
घोड़ा केँ पुछियौक। हमर
मोन एके स्थान पर चक्कर काटि रहल छल जे स्कूल खोलैक
विचार सही छल। मुदा ई
होयत कोना?
ई असगरक काज नहि। आरो लोकक
सहयोग चाही। एकाएक
छोटका कका नेताजी पर ध्यान गेल। नेताजी मिथिलाक
सेवा निमित्ते जीवि रहल
छलाह। जीवनदानी लग स्कूल खोलैक स्कीम ल’क’ जेबाक
चाही। मुल्ला
नसरुद्दीनक घोड़ा एक स्थान पर चक्कर कटनाइ छोड़ि मंजिल दिश
बिदा भ’ गेल।
लगभग एक महिनाक बाद गाम
अयलहुँ। प्रातःकाल दीपकजीक ओहिठाम
पहुँचलहुँ। संयोग, कका ओतहि
छलाह। सूर्योदय नहि भेल रहै मुदा भोरुका
झलफली साफ भ’ गेल छलै।
दीपकजी अखड़ा चौकी पर बैसल रहथि। कने हटल
ब्रेंच पर कका बैसले-बैसल
तमाकू केँ तरहथ्थी पर रगड़ि रहल छलाह। सामने
परती मे फूलक गाछ सँ हटल
एकटा मड़बी छलै। मड़बीक ओसार पर बालकृष्ण
चौधरी उर्फ बाले बाबू
लोढ़ी-सिलौट पर भांग पिसि रहल छला। बाले बाबू
त्रिकालदर्शी रहथि। साँझू
पहरक भोग विलासी, भोरुका कागाबासी आ दुपहरियाक
सत्यानाशी, तीनू
उखराहाक भांगक ओ प्रेमी छलाह। हुनकर नयनक ज्योति कम
भ’ गेल
रहनि। आँखिक जाँचकाल डाक्टर श्रीमोहन मिश्र पुछने रहथिननशो
करैत छी? बाले
बाबू जवाब देने रहथिननारायण, नारायण! श्रीमान्, हम कोनो
तरहक नशा नहि करैत छी।
मात्रा भांग खाइत छी।
नशा नहि करैत छी, मात्रा
भांग खाइत छी। भांग कतेक खाइत छी?
श्रीमान्, भांग
खएबा मे उर्दी कयने छियैक।
उर्दीक तात्पर्य?
बाले बाबूक जवाब छलनिश्रीमान्, जखन जतेक
भांग भेटल ओकरा उदरस्थ
क’ लेलहुँ।
सैह भेल उर्दीक तात्पर्य।
वाह, वाह। तखन
सुनिए लिअ’। अहाँक आँखिक ज्योति कम भ’ रहलए।
जँ भांग खाइते रहब तखन
आन्हर भ’ जायब।
बाले बाबू आन्हर होथि
अथवा त्रिनेत्राक सोआमी। ओ भांग खायब नहि
छोड़ताह। एखन थोड़ेक गामक
छौंड़ा हुनका घेरि क’ बैसल छल। पिसैकालक भांगक
सुगन्धिक मजा लूटि रहल
छल।
हम दीपकजीक चौकीक एक कात
मे बैसि रहलहुँ। मोन मे खलबली मचल
रहए तेँ बैद्यनाथ बाबू सँ
ग्रहण कएल विचारक पाठ करए लगलहुँ। दीपकजी एकाग्र
अबारा नहितन 39
भेल हमर सभटा बात सुनलनि
आ तखन कहलनिअइ सँ बेशी नीक विचार भैए
ने सकैए। अपन सभहक लिपिक
पुनः स्थापना मैथिली साहित्यक लेल वरदान
हेतैक। मैथिल धिया-पूता
केँ जँ नेनहि सँ मिथिलाक्षर सिखाओल जेतै त’ एकर प्रचुर
लाभ हेबेटा करतैक।
मिथिलाक सभ जाति मे सजगता औतैक। मैथिली भाषा केँ
पाठक चाही ने! तकर अभाव
नहि रहतैक। अहि तरहक प्रारम्भिक शिक्षाक पाठशाला
मिथिलाक कोन-कोन मे
खुजबाक चाही। शिक्षाक प्रसार संगे आर्थिक सम्पन्नता।
हम बैद्यनाथ बाबूक देल
विचार सँ शत-प्रतिशित सहमत छी।
ब्रेंच पर बैसल ककाजी हमर
एवं दीपकजीक वार्तालाप सुनलनि आ कि नहि
सुनलनि तकर निस्तुगी किछु
कहब कठिन छल। ओ चौकी लग आबि तमाकूक एक
जूम दीपकजी केँ देलथिन।
फेर चुटकी मे तमाकू, हमरा दिश हाथ बढ़बैत कहलनि
हैए लैह तमाकुए, खा।
हम तमाकू नहि खाइत छी।
अएँ हौउ, तोँ
पढ़ब-लिखब समाप्त क’ नोकरी करैत छह। आब तोँ बालिग
कहिया हेब’?
हम चुप्पे रहलहुँ। कका
दीपकजीक चौकीक दोसर कातमे बैसि गेलाह आ
कहलनितमाकू नहि खाइत छह
से नीके करैत छह। आदति कोनो प्रकारक होअय
अधलाहे कहाओत। चाह पिबाक
आदति, तकर बाद तमाकू खाइक आदति। मुदा
सभहक परपितामह अखबार पढ़ैक
आदति। अखबारक पहिल पृष्ठ पर जाहि
मनुक्खक फोटो देखबहक तकरा
भोरे-भोर देखला सँ पछिला दू जन्मक पुण्यक नाश
भ’ जाइत
छैक। मुदा तेँ की? अखबार पढ़ैक आदति की छुटैत छैक?
हम ककाक बात केँ अलगनी पर
टाँगि दीपकजी केँ अपन कहल विचार केँ
आगाँ बढ़बैत कहलियनिमुदा
स्कूल खोलैक काज हमरा बुते असगरे संभव नहि
हेतै। अहिमे अधिक सँ अधिक
लोकक सहयेाग चाही। खास क’ एहन लोक जे
बुद्धिमान होथि आ मिथिलाक
सेवा कर’ लेल आतुर होथि, तनिकर जँ मार्गदर्शन भेटि
जाए त’ सोना मे
सुगंध। तत्काल मे हमरा छोटका कका नेताजी पर ध्यान आकृष्ट
भेलए। ओ ज्ञानी संगे
जीवनदानी छथि। ओ स्कूल खोलैक महत्त्वपूर्ण सुझाव द’ हमर
विचार केँ आरो पुष्ट क’ सकैत
छथि।
पित्ती आ भातिजक तफरका।
मुदा दीपकजी एवं कका समतुरिया। दुनू मे भरि
छाबाक यारी। यद्यपि
दीपकजी केँ कका नेताजीक प्रतिए एलर्जी छलनि। तथापि ओ
हमर बात केँ अनुमोदन करैत
बजलाहमर यार नेताजी। तोँ अबिलम्ब कौआली संग
लहेरियासरायक लेल
प्रस्थान कर’।
40 केदार नाथ चौधरी
हमर छोटका कका विदुर
नीतिक अनुगमन करैत अपन पैतृक सम्पत्ति केँ
निपुणता सँ स्वाहा क’ रहल
छलाह। मुदा कका सरल प्रवृत्तिक सज्जन लोक रहथि।
कका ककरो अहित करथिन अथवा
ककरो कुवाच्य कहथिन से सोचलो ने जा सकैत
छल। मुदा दीपकजीक छोड़ल
व्यंग्य-वाण ‘हमर यार नेताजी, कका केँ आपा सँ बाहर
क’ देलक।
रंजे ककाक टीक फरफहराए लागल। कका चौकी सँ उठि क’ तमाकू
थुकरलनि, तखन
फुफकारैत बजलाओहि हरशंख लग हम फेर जाउ, कथमपि नहि,
कथमपि नहि। ओ नेता नहि
राकस थिक। अनेरे भुकभुका क’ जान द’ रहलए।
अपन नेताजी केँ मनुक्खक
योनि मे सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वगुणी माननिहार ककाक
एखुनका बेसुमार क्रोधक
कारण की छल तकर स्पष्टीकरण दीपकजी केलनि।
चुनाव मे कका तन-मन-धन सँ
नेताजीक प्रचारक काज केलनि। कका
नेताजीक संग गामे-गाम, टोले-टोल
महिनो तक घुमैत रहलाह। नेताजीक व्यवहार
अजीबे तरहक छल। हुनकर
विचित्रा आचरण सँ आजिज भ’ कका कइएक बेर हुनका
सुझाव देलथिन जे
फलाँ-फलाँ गामक फलाँ-फलाँ प्रतिष्ठित व्यक्तिक दलान पर जा
क’ हुनकर
आशीर्वाद प्राप्त करब जरूरी अछि। तखने भोट भेटत। मुदा नेताजी
ककाक सुझाव पर कान-बात
नहि देलनि। नेताजी जखन मुसलमानक गाम जाथि
तखन अप्रत्याशित तरहें
चंचल भ’ जाथि। मुसलमान लग जा क’ नेताजी अपन कुर्त्ता
उठा लेथि आ कहथिदेखहक हम
जनेउ तोड़ि क’
फेकि देने छियैक। हम सुच्चा
सोस्लीस्ट छी ने!
नेताजीक अहि तरहक उटपटांग
व्यवहारक प्रभाव क्षेत्राक हिन्दू भोटर पर
पड़लैक। एक त’ ओहिना
काँग्रेसक बिहाड़ि बहैत छलै आ ताहि पर सँ नेताजीक
उद्दंड आचरण। चुनाव मे
नेताजीक भयंकर पराजय भेलनि। हुनकर जमानतो जप्त
भ’ गेलनि।
दुर्वाशाक पुत्रा नेताजी अपन पराजयक क्रोध एवं क्षोभ कके पर
उतारलनिजाहि चुनाव मे
तोरा सनक डपोरशंख प्रचार करैत रहत ओतय प्रत्याशीक
सर्वनाश हेबेटा करतैक।
तोँ एखने हमर आँखिक सोझाँ सँ बाहर निकलि जाह।
ककाक माथ मे विभिन्न तरहक
भाव एकहि संग उत्पन्न भेल रहनि।
सर्वप्रथम कका छगुन्ता मे
रहथिकहू त’,
एकरा पाछाँ-पाछाँ बौएलहुँ, अपन
सम्पत्तिक नाश केलहुँ, अदना-अदनाक
पयर पखारलहुँ। तकर बादो ई केहन क’
हमर तिरस्कार केलकए। एकर
ई छिच्छा? फेर कका केँ अपना पर क्रोध जगलनि
हम सभ दिनुका मूर्ख छी आ
मूर्खे रहब। अधिक काल बिन विचारल करैत छी।
तकर फल त’ भेटबे ने
करत!
अन्त मे कका केँ नेताजीक
प्रतिए घृणाभाव जाग्रत भेलनि। अहंकारी मनुक्ख
अबारा नहितन 41
कहूँ नेता बनलए! एहन
खटाउँस प्रवृत्तिक लोक लग हम जँ कहिओ फेर सँ आबी
त’ हमरा सँ
पैघ पतित दोसर के हैत?
मलेरियाक रोगी केँ
तीत-अकत कुनैन पिअ पड़ैत छैक। मैथिली-प्रेम रोगी
ककाकेँ जँ तीत-अकत गप्प
सुन’ पड़लनि त’ एकरा लेल अफसोच करब हितकारक
नहि। विचारक आदान-प्रदान
मे उनटा-पुनटा होइते छैक। असल बात भेल संकल्प।
संकल्प अहि बातक जे
मिथिला लेल किछु करी। हमर मोन कराहि रहल छल। स्कूल
खोलैक बात, मिथिलाक्षरक
पुनः स्थापनाक बात हमर संकल्प केँ ढ़ कयने रहए।
ककाक नेताजी जीवनदानी
संगहि प्रकांड पंडित छथि। हुनका जखन बैद्यनाथ बाबू
बला बात कहबनि त’ अबस्से
प्रसन्न हेताह आ नीक-नीक विचार देताह। तकर
निश्चय क’ हम असगरे
लहेरियासराय लेल बिदा भेलहुँ।
कबिलपुर गामक मुहथरि लग
गुमती। गुमतीए लग मिस्टर टमाटरजी भेटलाह।
ओ नेताजीक चेला छलाह, आब नहि
छथि। टमाटरजी कहलनिनेताजीक लग जा
रहल छी, सावधाने
रहब। मधुबनीक बाबू साहेब केँ कियो उकसा देलकनि जे जँ
नेताजी अधिक दिन तक हुनकर
घर मे रहथिन त’
घर केँ हथिया लेथिन। तुरंत घर
खाली कर’ लेल बाबू
साहेब दिस सँ ओकीलक नोटिस नेताजीक लग पहुँचि गेलैए।
नेताजी उग्र भेल बमकि रहल
छथि, तेँ चेता देलहुँ अछि।
टमाटरजीक असलीका नाम छल
ठाकुर विमलनाथ सिंह। ओ नेताजीक होनहार
चेलाक अग्रिम पाँत मे
रहथि। प्रत्येक दिन विभिन्न विषय पर नेताजीक प्रवचन होइत
रहए। विमलनाथ तकरा श्रवण
करथि आ गुरुवचन अनुसारे अपन आचरण पर
लगाम लगाबथि। एक दिन नेताजीक
प्रवचन टमाटर पर भेल रहनि। टमाटर फलो
थिक आ तरकारियो थिक।
टमाटर मे विटामिन एवं खनिज, दुनू भरल अछि। टमाटर
मे एतेक ने गुण अछि जे जँ
एकर वर्णन कर’
लागी त’ जिस्ताक जिस्ता कागत
आखर सँ भरि जायत। अँग्रेज
एतेक हृष्ट-पुष्ट किएक होइए, ओ नित्य टमाटर
खाइए। मेमिन एतेक
भुभुक्का गोर किएक होइए, ओ टमाटरक व्यंजन, तरकारी
खाइए। तेँ अपन देशक लोक
केँ टमाटर अबस्से खेबाक चाही।
बस भ’ गेल।
विमलनाथ केँ नुस्खा भेटि गेलनि। हुनकर पत्नी ओना त’ देखै
मे सुन्नरि छलथिन मुदा
हुनकर वर्ण अन्हरिया राति जकाँ कारी छलनि। विमलनाथ
पसेरीक पसेरी टमाटर कीनि
क’ आन’ लगलाह। तरकारीक कोन कथा अधिक काल
टमाटरे खा क’ विमलनाथ
अपन प्रेयसीक संग आलिंगनबद्ध भेल दिन-राति बिताब’
लगलाह। एकर वाजिब प्रतिफल
भेलै। महिना बितैत-बितैत विमलनाथक शरीर चेरा
बनि गेलनि, पेट कोहा
बनि बाहर निकलि गेलनि आ हुनकर समग्र काया इतिहासक
42 केदार नाथ चौधरी
किताब मे छापल
वासगो-डि-गामा बनि गेलनि। विमलनाथक प्रियदर्शनीक देहक
चमड़ी बीया लेल राखल भाटा
जकाँ घकुचि गेलनि। शीलवती, लज्जावती, संकोची
विमलनाथक प्राणेश्वरी एक
दिन सभ तरहक मर्यादाक कोठी केँ फोड़ि धिपल करौछ
महक फोड़न जकाँ फरफराइत
अपन सोआमी सँ कहलथिनहरौ कोढ़िया, हरौ
जनपिट्टा, खबरदार!
जँ आब एकोटा टमाटर घर मे अनबें, जँ फेर कहियो ओहि
सरधुआ नेताक प्रवचन सुनै
लेल जेबें त’
तोहर कपार पर माँड़ ढारि देबौ आ हम
फँसरी लगा प्राण त्यागि
देब।
विमलनाथक पत्नीक
चिकरब-भोकरब सुनि मोहल्लाक जनानी-पुरुष जमा भ’
गेल छल। की भेलै हौ, की भेलै?
बुझि लिअ जुलूम भ’ गेलै। बेरा-बेरी सभटा
मोहल्लाक लोक सही बातक
जानकारी हासिल केलनि। सभटा आफदक जड़ि छल
टमाटर। मार बाढ़नि एहन
टमाटर केँ। ओहि दिनक बाद सभ कियो विमलनाथ केँ
टमाटर कहि सोर पाड़’ लगलनि।
कालेक्रमे विमलनाथ मिस्टर टमाटर नामे प्रसिद्ध
भ’ गेलाह।
मिस्टर टमाटरजीक चेतेलाक
बाद डेराइते-डेराइते हम नेताजीक निवासस्थान
पर पहुँचल रही। पहिलुके श्य, पहिलुके
समाखा। कपार पर हाथ रखने नेताजी
परतीक एक कात मे बैसल
रहथि। थोड़ेक हटल परतीक दोसर कात हुनक चेलाक
झुंड बैसल रहए। सभटा चेला
उदास रहए आ भनभना रहल छल। चेलेक झुंड मे
हमहूँ सन्हिया गेलहुँ।
बगल बला चेला हमर कान मे मुँह सटबैत फुसफुसेला
समग्र मिथिलांचल मे जनिक
चर्चा होइत होअय, जनिक अभियानक डंका पटना
संग दिल्ली सरकार मे
हरकम्प मचौने होअय, जनिक आगाँ कलक्टर, एस.पीनतमस्तक
भेल ठाढ़ होअय तेहन
ख्यातिप्राप्त नेता केँ डेरा खाली करैक नोटिस
मधुबनीक बाबू साहेब
पठाबथि से की नीक बात भेलै? ई त’ नेताजीक संगे
सम्पूर्ण मिथिलाक अपमान
भेलै ने!
हम चुप्पे रहलहुँ। गंभीर
भेल वातावरणक नाप-तौल करैत रहलहुँ। कहबी छै जे
विपत्ति कखनो असगरे नहि
अबै छै। नेताजीक डेरा खाली करैक विपत्ति त’ छलनि,
ताहि काल दोसर विपत्ति
हुलकी देलकनि। नेताजीक प्रधान शिष्य जे उड़िया बाभन
छलाह आ जे मिथिलाक सेवा
कर’ लेल कटिबद्ध रहथि, हाथ मे अखबार नचबैत
ओतय पहुँचलाह आ हँफैत
बजलाहसुनि लिअ अजुका समाचार। मिथिला अलग
राज्य बनय तकर पिहले-पहिल
शुरुआत केलनि अपन नेताजी। मुदा अखबार मे
बाबू जानकी नंदन सिंहक
नाम मोटका आखर मे छपलए। समाचारक आशय अछि
जे बाबू जानकी नंदन सिंह
पहिल व्यक्ति छथि जे मिथिला अलग राज्य बनौक तकर
अबारा नहितन 43
सूत्रापात केलनि। समाचार
मे अपन नेताजीक ने नाम छनि आ ने कोनो तरहक
चर्चा। एहन अनहेर ने कहिओ
भेल छल आ ने हैत।
उड़िया बाभन जे सम्प्रति
मिथिलेक बासी छला तनिक आनल समाचार
विस्फोटक छल। आगि मे घी
पड़ि गेलै। नेताजीक गरदनि कनेक सोझ भेलनि आ
मुखमंडल बक्र बनि गेलनि।
किछुए महिना पूर्वक कथा
छल जे बाबू जानकी नंदन सिंह कलकत्ता मे पत्राकार
सम्मेलन मे घोषणा कयने
रहथि जे मिथिला एक पृथक प्रांत बनय। तकरा लेल ओ
मिथिला जेताह आ आन्दोलनक
शुरुआत करताह। ई समाचार सुनि बिहारक
मुख्यमंत्राी सही मे
काँपि गेल रहथि। ओ अविलम्ब पश्चिम बंगालक मुख्यमंत्राी सँ
सम्पर्क कयने छलाह।
अन्ततोगत्वा बाबू जानकी नंदन सिंह आसनसोल मे गिरफदार
भ’ गेल
रहथि। बिहार एवं पश्चिम बंगालक सभटा दैनिक समाचार पत्रा मे ई
समाचार प्रथम पृष्ठ पर
छपल रहए। एखन जे उड़िया बाभन समाचार पत्रा अनने
रहथि से पटना सँ प्रकाशित
अँग्रेजी भाषाक दैनिक समाचार पत्रा ‘इन्डियन नेशन’
छल। ओही मे मिथिला अलग
राज्य बनौक ताहि संबंधी लेख छपल छल जाहि मे
बाबू जानकी नंदन सिंहक
वृहत् चर्चा छल।
नेताजीक उड़िया चेला अपन
आनल अखबार केँ भूमि पर पटकि देलनि आ
खोखिआइत बजलाकेलक किओ आ
पौलक किओ। मिथिला अलग प्रांत बनौक
तकर समाचार अपन नेताजीक
चर्चा बिनु अपूर्ण अछि। ई अखबारक अज्ञानताक
परिचायक अछि।
सभटा समाचार श्रवण क’ नेताजी
रंजे काँपय लगलाह। हुनकर दुनू नेत्रा
लाल-टरेस भ’ गेलनि।
हुनकर मुँह सँ असंसदिए शब्द बाहर निकल’ लगलनि। सत्य
मे, कतेक
झंझावात केँ पार क’ मिथिला अलग हेबाक मांगक ओ असगरे अलख
जगौने छलाह, से हुनकर
सभटा चेला केँ बुझल रहै। मुदा प्रांतक अखबार मे तकर
कोनो टा चर्चा नहि। एहि
संताप केँ सहब असंभव छल।
बात एतबहि पर समाप्त भ’ जइतए त’
नीक रहितैक। मुदा से नहि भेलै। हम
नेताजीक तुरुप बनल
मुखमंडल केँ निहारिए रहल छलहुँ तखने यादवजीक आगमन
भेल छल। यादवजी उठौना दूध
देब’ आयल रहनि। बिन छड़बला खिड़की पर सँ
आलमुनियमक डेकची केँ जल
सँ पखारि सबा एक सेर दूध नापि यादवजी डेकची
केँ झाँपि देलनि। तखन ओ
सोझे नेताजीक लग मे आबि क’ कहलनिसुनलहुँ जे
अहाँ मिथिला राज्य बनेबाक
एलान केलहुँ अछि, अहीँ एकर अगुआ छी। नीक बात।
संसार मे जन्म ल’ क’
परमार्थक काज करी त’ पुण्य भेटैत छैक। मुदा
हमर बात
44 केदार नाथ चौधरी
केँ ध्यान सँ सुनि लियौ।
हम भुइयाँक लोक छी तेँ ठोकल बात कहब। अहि तरहक
काज केँ आन्दोलन कहल जाइत
छैक। आन्दोलन एक प्रकारक युद्धे भेल। युद्ध लेल
सेना चाही। पहिने सेनाक
निर्माण क’ लिअ तखन अपना केँ सेनापति बनाउ। बिना
सेनाक सेनापति बनब त’ टिटियाइते
रहि जायब।
एतबा बाजि क’ यादवजी
अपन दूध बला कनस्तर उठौलनि आ प्रस्थान क’
गेलाह। आगि मे घी त’ पहिने
पड़ि चुकल रहै। आब आगि मे की पड़ितैक? आगि
मे तेजाब पड़ि गेलै से कहब
उचित हैत। एकटा मूर्ख यादव इंगलैंड सँ पी-एच.डीडिग्रीधारी
केँ उपदेश देबाक दुस्साहस
करए? अनर्थ, घोर अनर्थ! एकरा नेताजी कोना
सहितथि? आवेश मे
आबि नेताजी ठाढ़ भेलाह आ पयर पटक’ लगलाह। फेर
थरथराइत दुनू हाथे माथ
पकड़ि जमीन पर बैसि रहलाह। जेना मिर्गीक रोगी
छटपटाइए तहिना इर्खा नामक
मनोरोग सँ ग्रस्त नेताजी अहुछिया काट’ लगलाह।
अनुशासन मे आकंठ डूबल
शिष्य समुदाय मे थोड़ेक चंचलता अवश्ये अयलै। मुदा
उत्पन्न भेल विषम
परिस्थिति मे ओ सभ की करथि तकर निर्णय नहि क’ सकलाह।
चेलाक समूह दुख मे थकुचल
अपन प्रिय नेता केँ मात्रा निहारैत रहि गेलाह।
नेताजीक प्रतिए हमर
विश्वास डगमगा गेल। हम नेताजीक निवासस्थान सँ
निराश भेल वापस बिदा भेलहुँ।
उदास आ खिन्न सनक मनोदशा छल हमर। बैद्यनाथ
बाबूक देल टिप्स मे एकटा
लुत्ती नुकायल रहै। स्कूल खोलब, मिथिलाक्षरक माध्यमे
धिया-पूता केँ ओना मासी
धँग सिखायब एकटा एहन काज छलै जकरा हम अति
महत्त्वपूर्ण काज बुझैत
रहियैक। अही काज मे सहयोग लेल हम पैघ आश ल’क’
नेताजी लग आयल छलहुँ।
मुदा वाह रे नेताजी! नेताजी त’ अपन अहमक संग कुस्ती
लड़ि रहल छलाह।
मोन ब्याकुल छल।
मैथिली-प्रेम रेाग अपन राग अलापिए रहल छल। अनिर्णयक
स्थिति मे जे मानसिक
क्लेश होइत छैक ताही हालत मे हम अपन मित्रा महंथ मदन
मोहन दासजीक डेरा लेल
बिदा भ’ गेलहुँ।
अबारा नहितन 45
5
महंथ मदन मोहन दासजी सँ
पहिल भेट पटना सँ बनारस जेबा काल ट्रेनमे भेल छल।
मदन भाइ इलाहाबादक
क्वीन्स कॉलेज मे आ हम काशीक उदय प्रताप राजपूत
कॉलेज मे, दुनू
आइ.ए. क प्रथम बर्खक छात्रा रही। दुनू केँ मोंछक पम्ही उगले छल।
बुद्धि मे, व्यवसाय
मे आ वयस मे समतुरिया। दुनू मे अटूट मित्राता कायम भ’ गेल
छल। हमरा लेल मंहथजी मदन
भाइ आ हुनका लेल हम केदार भाइ।
हमरा देखिते मदन भाइ
हुलसि क’ हमर स्वागत केलनि आ कहलनिअहाँक
पत्रा भेटि चुकलए। हम
प्रतीक्षे मे रही। आउ, भीतरे आबि जाउ।
हम मदन भाइक ड्राइंग रूमक
सोफा पर बैसि रहलहुँ। मदन भाइ हमर चेहराक
उजड़ल कांति केँ ठेकनबैत
प्रश्न केलनिकेदार भाइ, अहाँ उदास छी, की भेलए?
मदन भाइ चिंतित भेल
प्रश्न कयने छलाह। हमर बकार फुटिए ने रहल छल
जे हुनका हम जवाब
दितियनि। हम टुकुर-टुकुर हुनका दिस तकैत रहलहुँ। मदन
भाइक खबास लखन जल सँ भरल
गिलास हमरा समक्ष मे राखि देलक। हम एकहि
सांस मे गिलासक सभटा जल
पीबि गेलहुँ। मोन स्थिर भेल, चित्त मे थोड़ेक स्फूर्ति
आयल। हम बाजब शुरू कयल।
कलकत्ता मे बैद्यनाथ बाबू सँ प्राप्त स्कूल खोलैक
परामर्श, गाम मे
दीपकजी द्वारा देल प्रोत्साहन, स्कूलक उपयोगिता, अन्तिम लक्ष्य
मिथिला नामक पृथक प्रांतक
स्थापना लेल एक फौजक निर्माण, ताही क्रममे
कबिलपुर मे नेताजीक ओहि
ठामक यात्रा,
नेताजीक ओतय मचल घमासानक
विवरण इत्यादि सभ किछु हम
एकहि स्वर मे मदन भाइ केँ सुना देलियनि। मदन
भाइ शांत भेल हमर अनुराग
एवं उपराग केँ सुनलनि। ताही बीच लखन नास्ता-चाह
अनलक। खायब समाप्त
केलहुँ। मोनक पीड़ा शब्दक माध्यमे निकलि चुकल रहए।
मुदा हारल खेलाड़ी जकाँ
मोन हीन भाव सँ तखनहुँ ग्रस्ते रहि गेल छल।
मदन भाइ सभ दिनुका
अल्प-भाषी। मुदा हमार मोनक कष्ट सँ मर्माहत ओ
बाचाल बनि गेलाह, कहलनिलगभग
छह-सात सय बर्खक गुलामीक बाद अपन
46 केदार नाथ चौधरी
देश स्वतंत्रा भेलए। एखन
तक देशक मात्रा दू गोट चुनाव सम्पन्न भेलैए। अगिला
बर्ख तेसर चुनाव हेतै।
राजतंत्रा अथवा अँग्रेजक क्रूरतंत्राक बाद लोकतंत्राक स्थापना
भेलैए। तखन मिथिला नामक
अलग राज्य नहि बनलैए त’ अन्हेर नहि भ’ गेलैए।
जँ मिथिला नामक प्रांत
बनिओ गेल रहितैक त’ की आकाश सँ अमृत बरिस’
लगितैक? केहन-केहन
सांसद आ विधायक चुनाव जीति रहलैए तकरा सभकेँ ठेकना
क’ देखियौ
ने! अही जमात मे सँ ने मिथिला प्रांतक मंत्राी, मुख्यमंत्राी
बनितैक।
कल्पनाहीन एवं ष्टिहीन
विधायक मिथिला मे कोन तरहक रामराज्य अनितैक जे
एखन नहि एलैए आ जकरा लेल
अहाँ घनघोर चिंता मे पड़ि गेलौं। हमर ष्टि मे
एतुक्का समस्याक निदान
मिथिला नामक पृथक प्रांत मे नहि छैक। एकर निदान
छैक सम्पूर्ण जागरण मे।
एखन अहिठामक जनसंख्याक मात्रा पाँच प्रतिशत जे पूर्वहि
सँ धन एवं विद्या सँ परिपूर्ण
रहलैए अपना केँ मैथिल बुझैत छथि? जनसंख्याक
पंचानबे प्रतिशित जे
पछिला कइएक सय बर्ख सँ दलित, प्रताड़ित आ थकुचल अछि
तकरा इहो ने बुझल छैक जे
मैथिल कोन तरहक जीव होइए। मिथिला मे रहनिहार
सभ मैथिले छथि तकर
जानकारी एतुक्का जनसंख्याक विशाल भाग केँ नहि छैक।
तखन केदार भाइ, अहाँक
भीतर एतेक हाहाकार किएक मचल अछि? अपन मातृभूमि
लेल किछु करी, स्कूल
खोली अथवा आरो आन तरहक नीक-नीक काज करी से भेल
उत्तम विचार। मुदा अहि
काज लेल धैर्य राखब जरूरी अछि। अगुतेला सँ कखनहुँ
की कोनो काज भेलैए जे एखन
हेतै?
मदन भाइ धारा प्रवाह
बजिते रहलाहमिथिला मे पंडित छथि, बुधियार छथि,
बुद्धिजीवी छथि। मुदा
सभटा विद्वान एकटा खास संभ्रंात जातिक छथि। सभहक
दुआरि पर अहंकारक माला
टांगल छनि। ओ भाषण देबा मे कुशल छथि, कविता कर’
मे निपुण छथि, कथा लिख’
मे पटु छथि आ आन-आन तरहक गुण सँ सेहो विभूषित
छथि। मुदा तमाम पंडितक
बीच एक दोसरा लेल प्रतिस्पर्धा छनि। कियो किनको
सँ छोट नहि। सभटा पंडित
केँ एक मंच पर आनब असंभव। एक दोसराक
आलोचना करैत-करैत अपन-अपन
अलग-अलग मंडली बना क’ अपन भितरका
इर्खाक पूजे टा क’ रहल छथि।
आब विचारियौ जे अहि ठामक पंडितक एहन स्वभाव
किएक छनि। एकर जवाब अछि
जे अत्यधिक संस्कारी, अत्यधिक पांडित्य एहन
विरल स्वभाव केँ जन्म दैत
अछि। वशिष्ठ एवं विश्वामित्रा दुनूक तर्क-वितर्क आ एक
दोसरा केँ पछाड़ैक जन्मजात
प्रवृत्ति। तकरे प्रतिफल अछि जे सभटा पंडित अपन-अपन
अहंकारक ओढ़ना मे नुकायल
छथि। केदार भाइ, अहाँ एखन जाहि नेताजीक ओतए
गेल रही से एहने अहंकारी
बुद्धिजीवीक उदाहरण भेलाह। तेँ हमरा-अहाँ केँ बुझैक
अबारा नहितन 47
जरूरी बात भेल जे मिथिलाक
पांडित्य फूल नहि, काँट बनि गेलैए। ई काँट जाबे
तक अगिला पाँत मे बनल
रहतैक, विद्यापति समारोह होइत रहतै, मुदा मिथिलाक
सामाजिक, आर्थिक
एवं राजनीतिक प्रगति मे मुख्यतः की बाधक छैक तकर
सही-सही जानकारी कहियो
नहि भेटतै।
मदन भाइक शब्दक थाप सोझे
कनपट्टी पर बजरैत रहल। सदिकाल चुप रह’
बला मदन भाइ आगि उगलि रहल
छलाह। हम हुनकर तर्क केँ ध्यान सँ सुनि रहल
छलहुँ। मदन भाइ आगाँ
कहलनिमिथिला राज्य बनौक। आब मिथिला राज्य हेतै
कतेकटा? एकर
सीमाक आकलन कोना हेतै? बहुत तरहक गप्प सुनबै। बहुत
तरहक नक्शा देखबै। बहुत
तरहक खिस्सा-पिहानी सेहो सुनबै। राजा जनक, राजा
मिथि सँ ल’क’
अँग्रेजक राज्य तकक मूल्यांकन करबै। मुदा सत्यक धरातल पर सत्य
एतबेटा जे जतए तक लोक
मैथिली भाषा बजैए मिथिला ततबेटा। आब मैथिली
बाज’ बलाक
सीमा कतेक दूर तक? एखन नेपालक मैथिली बाज’ बला जनसंख्या
केँ बिसरि जाउ। मात्रा
बिहार नामक प्रांत मे मिथिलाक खोज करी। मधुबनी, दरभंगा
आ तकर आगाँ समस्तीपुर
जाइत-जाइत मैथिली भाषा केँ त’ रोग पकड़ि लेलकैए।
मैथिली प्रध्यापकक उक्तिजनिका
बुते मैथिली भाषाक शुद्ध-शुद्ध उच्चारणो ने
कएल होइत छनि ओ मैथिल
कोना भेलाह?
आब बुद्धि केँ ठेस लागब आरम्भ भ’
गेल ने? आब बाजू
जे मिथिलाक सीमा कत’ तक?
मदन भाइ हमर आँखि मे
देखैत कहलनिमधुबनी जिला मे राजनगर। राजनगर
स्टेशनक दक्षिण-पश्चिम
कोन मे लगभग आध कोसक दूरी पर हमर स्थान मिर्जापुर।
हम मुज्जफरपुरक भूमिहार
मिर्जापुर स्थानक महंथ। पाँच बर्खक रही तखने महंथ
बनलहुँ। मात्रा अध्ययन कर’काल बाहर
रहलहुँ। बाँकी सभ समय अपन स्थान मे
रहि महंथक दायित्वक
निर्वहन कयलहुँ। स्थानक सभटा कर्मचारी सँ मैथिलीए भाषा
मे वार्तालाप कयलहुँ। आब
अहाँ सँ हमर प्रश्न अछि, की हम मैथिल छी? हम
हड़बड़ाइत जवाब देलियनिअहाँ
सय फीसदी मैथिल छी।
फूसि। केदार भाइ, अहाँ
एकदमे सँ फूसि बजैत छी। हम ने बाभन आ ने
कर्ण कायस्थ। हम
मुज्जफरपुरक भूमिहार। मैथिल पंडितक परिभाषा मे हम कथमपि
मैथिल नहि भ’ सकैत छी।
मदन भाइ केँ की जवाब
दियनि किछु फुराइए ने रहल छल। हमरा सान्त्वना
दैत ओ कहलनिदुख नहि करू।
मात्रा सत्यक दर्शन करू। हम एखुनका वार्तालापक
आरम्भे मे कहि चुकल छी जे
मिथिलाक पांडित्य फूल नहि काँट बनि चुकलैए।
एकटा संकुचित सोच, एकटा
निरर्थक गौरव। हमर पूर्वज एहन प्रकांड पंडित छलाह
48 केदार नाथ चौधरी
जकर मुकाबिला समग्र भारतक
पंडित नहि क’
सकैत छला। अही मंत्राक जाप करैत
ओ सभ विचरण क’ रहला
अछि। समय बदलि चुकलैए। प्रजातंत्रा कायम भ’ गेलैए।
सभ केँ एक भोट, बरोबरिक
अधिकार। एकर प्रभाव पड़ि रहलैए। एहन बदलल
समय मे अपन सोच केँ बदल’ पड़तैक।
समयानुकूल अगिला कार्यक्रम बनब’
पड़तैक। एक खास जातिक
एकाधिकार केँ तोड़’ पड़तैक। जाबे तक सम्पूर्ण
मिथिलाक लोक अपना केँ
मैथिल नहि बुझत ताबे तक कोनो तरहक अभियान
सफल नहि हेतैक। तेँ हम
विचार देब जे कोनो एहन योजना बनाउ जाहि मे कल्पने
सही, कल्पना केँ
साकार करैक मार्ग होइ। कल्पना केँ यथार्थ बनबैक एकहि टा मंत्रा
सफल होयत जे मंत्रा
मिथिला मे रहनिहार प्रत्येक जाति, प्रत्येक समुदाय केँ मैथिल
बनैक प्रेरणा देतै, अनिवार्यता
बुझौतै।
कनेकाल पहिने तक हम मदन
भाइक विचार सुनि अप्रतिभ भ’ गेल रही।
सुराही मे लोटा नहि
डुबाओल जा सकैत छल। मुदा एखुनका हुनकर विचार मे
सकारात्मक भाव उदय भ’ गेल
छलनि। मिथिला मे रहनिहार प्रत्येक व्यक्ति मैथिल
छथि, ई एकटा
नव बात भेल। अही नवीन विचार केँ मूलमंत्रा बना अपन सोच केँ
बदलल जा सकैत छल। काज एहन
होयबाक चाही जाहि सँ एक जातिक नहि
अथवा एक सम्प्रदायक नहि, समग्र
मिथिलाक उत्थान होइक। हमर मोन मे संतुष्टि
आयल रहए।
मदन भाइ कहलनिहम साहित्यक
प्रेमी छी। अँग्रेजी, हिन्दी एवं बंग भाषा मे
रचल रचना केँ पढ़ैत
रहलहुँए। मैथिली साहित्यक बहुत अनुभव नहि अछि, कारण
कोनो नियमित स्थान पर
मैथिली पुस्तक उपलब्ध नहि छैक। तकर बादो जतय कतौ
सँ मैथिली भाषाक पुस्तक
एवं पत्रिका भेटलए ओकर मूल्य द’ प्राप्त केलहुँ आ
पढ़लहुँए। खास क’ विद्यापतिक
हृदयस्पर्शी कविता पढ़ि क’ हम मुग्ध भ’ जाइत
रहलहुँए। विद्यापतिक
प्रत्येक कविता मे एक तरहक संस्कृति, एक तरहक परम्पराक
निधोख परिचय भेटैत छैक।
तखन ज्ञात होइत छैक मिथिलाक गौरवमयी अतीतक,
एकर विशिष्टताक आ एकर
कोमलताक। केदार भाइ, स्कूल खोलैक अनिवार्यता हम
स्वीकार करैत छी। मुदा
हमर विचार मे मिथिला एवं मैथिलीक सेवा आरो तरहेँ हेबाक
चाही। मुदा कोनो लक्ष्यक
निर्धारण सँ पहिने हमरा-अहाँकेँ अपना-अपना केँ तौल’
पड़त। की हमरा-अहाँ मे
मिथिला-मैथिलीक सेवा करैक योग्यता अछि? मानि लिअ
योग्यता नहि अछि त’ सभसँ
पहिने योग्यता प्राप्त करी आ तकर बादे लक्ष्य दिश
डेग उठा अपन देशक, समाजक,
भाषाक एवं संस्कृतिक रक्षा करब, विकास करब त’
अबस्से पुनीत काज भेलै
ने! मुदा से काज सोचि-विचारि क’ करबाक चाही, मात्रा
अबारा नहितन 49
मैथिली प्रेम मे बहकि क’ नहि।
हम सावधान भ’ गेल
छलहुँ। मदन भाइक कथन गंभीर भ’ रहल छलनि। हुनकर
स्थिर भेल ष्टि मे
एकाग्रता आबि गेल छलनि। एहन स्थिति मे मनुक्खक विचार
आत्माक स्पर्श करैत बाहर
अबैत छैक। ओ कहलनिहमरा-अहाँ केँ ताक’ पड़त जे
हमरा-अहाँ केँ अछि की? हमरा सभ
केँ मैथिली भाषा। प्राचीन काल सँ अर्वाचीन
काल तक मैथिली भाषाक
गरिमा प्रत्यक्ष अछि। अहि भाषा केँ अपन लिपि छै,
व्याकरण छै आ सभ सँ पैघ
विद्यापति सनक महान कविक आशीर्वाद छैक। मैथिली
भाषा केँ ई सामर्थ छैक जे
ओ मिथिलाक संस्कृति, सभ्यता एवं परम्परा केँ अक्षुण्ण
राखि सकैत अछि। तेँ
मैथिली भाषा भारत मे अपन वर्चस्व स्थापित करए तकरा लेल
प्रयास करी आ अभियान
चलाबी। देशक आंचलिक भाषाक कतार मे मैथिली भाषा
केँ आदर भेटौक, सम्मान
भेटौक एवं अष्टम अनुसूची मे स्थान भेटौक तकरा लेल
आन्दोलन चलाबी। मुदा ई
सभटा होयत कोना?
हम अधीर भेल मदन भाइ केँ
पुछलियनिसे सभटा सत्य। मुदा से हैत कोना?
मदन भाइ सोझ आ स्पष्ट
उत्तर देलनिमनोरंजनक ष्टिएँ त’ छैहे, मुदा भाषाक
विकास मे एखन फिल्मक
भूमिका अहम् बनलए। हिन्दी भाषा फिल्मक कारणे
सम्पूर्ण भारत मे सरताज
बनलए। देशक आन-आन आंचलिक भाषा सेहो फिल्मे सँ
ऊर्जा ग्रहण क’ सुरक्षित
अछि। तेँ हमर विचार अछि जे मैथिली भाषा मे एकटा
फिल्मक निर्माण होउक, फिल्म
बनला सँ मैथिली भाषाक पहिचान उजागर हेतै। हमर
मिथिला आलस्य मे ओंघरायल
अछि। जाति, उपजाित एवं परम्परा एकरा दरिद्र
बनौने छैक। सभटा दुखक
निदान फिल्मक माध्यमे कएल जा सकैए। गंडकक पूब
ता भागलपुर तक आ नेपालक
सीमा सँ लगाइत गंगा कात तक मिथिला मे
भावनात्मक एकताक निर्माण
मे फिल्म अपन भूमिकाक निर्वाह करत से हमर सोचब
अछि। एतुक्का सरल, सुलभ,
जीवन-धारा मे एक तरहक विशिष्टता छैक, एक अलग
तरहक प्रवाह छैक तकर
जानकारी सम्पूर्ण भारतवासी केँ फिल्मे सँ भेटतैक।
मिथिलांचलक भाषा एवं अन्य
तरहक जागरण लेल फिल्मक गीत-संगीत एवं कथा
अबस्से कारगर हेतै। तेँ
आन-आन विचार केँ स्थगित क’ हम आ अहाँ मैथिली भाषा
मे एकटा फिल्मक निर्माण
लेल अग्रसर होइ से हमर कथन अछि।
एकाग्रताक संगे मोन केँ
अधिकार मे राखि हम मदन भाइक विचार केँ सुनि
रहल छलहुँ। अगिला पाँच
दिन तक हम हुनके संग रहलहुँ। प्रात भेने मदन भाइक
संगे राजनगर स्टेशनक समीप
मिर्जापुर मंहथाना पहुँचलहुँ। लगभग तीन सय बर्ख
पूर्व अहि स्थानक स्थापना
कएल गेल छल। पूजाक विग्रह छलाह लक्ष्मी एवं नारायण।
50 केदार नाथ चौधरी
वैष्णव रीति-रेवाज मे
समर्पित मिर्जापुर मंहथक जेठ भ्राता, हुनकर छोट सीतामढ़ी
महंथ आ तनिकर छोट चोरौतक
महंथ। अही क्रमे महंथक साम्राज्यक विस्तार छल।
स्थानक अधिक जमीनक दाता
विभिन्न मुसलमान शासक। महंथाना सभ तरहक
राजनीतिक उथल-पुथल सँ
वंचित मात्रा धार्मिक काज मे संलग्न रहए। अँग्रेज शासक
सेहो महंथानाक
क्रिया-कलाप मे कहियो हस्तक्षेप नहि केलक। मदन भाइक गुरु आ
तनिकर गुरुक समय
मिर्जापुर महंथानाक लगभग बत्तीस सय बीघाक जिरात एवं
जमींदारी। भारतक
स्वतंत्राताक बाद अनेक तरहक विघटन एवं दखल-अन्दाजी।
जमींदारी उन्मूलनक संगहि
रिलिजियस बोर्डक स्थापना। तरह-तरहक मनमानी आ
बेगारी। तकर बादो एखन
लगभग एक हजार बीघा जमीन अहि महंथक स्वामित्व
मे रहि गेल छल। मधुबनी
जिलाक अतिरिक्त आन-आन जिला मे अहि महंथानाक
अनेक मौजे। सभठाम मंदिर, पूजाक नियम-निष्ठा
आ खर्च-बर्च। मुदा प्रत्येक मौजेक
आमदनीक एक निश्चित भाग
मिर्जापुर स्थान मे पठाओल जाइत छल।
अयोध्या सँ जनकपुर एवं
जनकपुर सँ अयोध्याक बीच संन्यासीक धाराप्रवाह
आवागमन। मिर्जापुर स्थान
मे संन्यासीक मुख्य पड़ाव। एक मन चाउर दिन मे आ
एक मन चाउर राति मे, तकर दालि,
तीमन-तरकारी नित्य रान्हल जाइत रहए।
संन्यासी संग गरीब, दरिद्र,
अपंग सभ भोजन प्राप्त करए। सन्यासी केँ जरूरति
मोताबिक कंबल एवं कैंचा
सेहो देल जाइत छलनि। एकर अलावा स्थानक सोलह
गोट सिपाही, अनगिनत
कमतिआ, देबानजी, माली, चरबाह, नोकर-चाकर। एकरा
सभहक लेल अलग सँ भानस कएल
जाइत छल। मुख्य पुजेगरी एवं महंथजीक भोजन
सभ सँ अलग नियम-निष्ठा सँ
बनैत छल।
महंथानाक मुख्य मंदिरक
स्थान पाँच-छह बीघा मे पसरल आ चारूकात सँ उच्च
देबाल सँ घेरल। मंदिर, महंथजीक
आवास, इनारक काते-कात पतियानी मे घर-बखारी,
भंडार-घर आ चहुँदिश
विभिन्न तरहक फूलक गाछ सँ भरल। स्थानक पछबरिया
फाटक सँ बाहर लगभग पाँच
बीघा देबाल सँ घेरल खेत। ई छल तरकारी उपजाबक
मुख्य जगह। तकर सटले
छोटेसन आम, कटहर, लीची, जामुनक गाछ। तकर
ठीक
सामने पक्का घाटबला
सार्वजनिक उपयोग लेल पोखरि। पोखरिक पश्चिम जन-मजदूरक
टोल दूर-दूर तक छिड़िआयल।
स्थानक पश्चिम-दक्षिण कोन मे कने हटि क’ साठि
बीघा खेतक प्लॉट से तार
सँ घेरल। बीच मे कनेटा पोखरि। पोखरिक दछिन बरिया
मोहार पर खपड़ा सँ छाड़ल
सुन्दर, हवादार बंगला। महंथजीक अतिथि लेल ई
विश्रामगृह बनल छल। हम
अही बंगला मे ठहरल रही। सेवा लेल कइएक गोट
नोकर-चाकर त’ छले।
अबारा नहितन 51
पूजा-पाठ एवं आरो तरहक
स्थानक काज समाप्त केलाक बाद मदन भाइ
अधिक काल हमरे लग बंगला
मे रहैत छलाह। हमर प्रस्थानक एक दिन पहिने मदन
भाइ पुछलनिकेदार भाइ, फिल्म
निर्माणक सम्बंध मे अहाँक मंतव्य जनबा लेल हम
उत्सुक छी। अहाँ की
सेाचलहुँ से कहू?
फिल्म बनबै मे त’ बहुत
पूजी लगतै ने?
पूजी त’ लगबे
करतै। मुदा कतेक पूजी लगतैक तकर सही-सही अन्दाज
केनाइ कठिन अछि। पूजी
सम्बन्धी विषयक सोच-विचार हम कयलहुँ अछि। हम
आरम्भे मे कहने रही जे
मैथिली सेवा करक लेल योग्यता चाही। योग्यता नहि होअय
त’ योग्यता
प्राप्त करी। एखन हमर सभहक योग्यता भेल फिल्म निर्माणक लेल
पूजीक इन्तजाम। देशक
स्वतंत्राताक बाद आ खास क’ नव संविधान लागू भेलाक
उपरान्त व्यक्तिक सोच, समाजक
स्वरूप, धर्म-कर्म मे आस्था तथा आर्थिक विकासक
गति मे फर्क आबि चुकलैए।
जीमींदारी प्रथा समाप्त भेलै। आब मंहथानोक आयु
अधिक दिनक नहि रहि गेलैए।
जनसंख्याक विस्फोट, समान अधिकारक कानून,
जमीनक बँटबारा, लाल
झंडाक अतिक्रमण, प्रशासन व्यवस्था मे शिथलीकरण इत्यादि
सभ-किछु केँ आकलन केलाक
बाद हम अहि निष्कर्ष पर पहुँचलहुँ अछि जे मंहथाना
समयक संग समाप्त हेबेटा
करतैक। तखन समयानुकूल किछु एहन कार्य हमरा
करक चाही जाहि सँ पुण्य
भेटए आ आत्माकेँ संतुष्टि भेटए। अहाँक सत्संग मे आबि
मिथिला-मैथिली लेल किछु
करी तकर प्रेरणा प्राप्त भेलए। हमर त’ किछु मजबूरी
अछि। रेलिजस बोर्ड
विभिन्न तरहक प्रतिबंध लगा चुकलैए। जमीन बिना आज्ञाक
नहि बेचि सकैत छी। आमद-खर्चक
हिसाब प्रांत सरकार केँ दिअ पड़त।
विधि-विधानक अलाबे
महंथानाक खर्च सेहो प्रांतीय सरकारक चिंताक विषय बनि
गेलैए। सत्य त’ एतय तक
छैक जे मिर्जापुर स्थानक खर्च आमद सँ अधिक भ’
चुकलए। परम्पराक सभ तरहक
परिपाटीकेँ पूरा करक लेल धनक अभाव आगाँ मे
ठाढ़ भ’ गेलए। हम
मंहथ, तेँ हमरा सभ बातक जानकारी अछि। मुदा सभ तरहक
व्यवधान रहितहुँ हम फिल्म
बनब’ लेल पूजीक ईन्तजाम क’ लेब तकर विश्वास
करैत छी। मैथिलीक सेवा
लेल मानसिक रूपे हम तैयार छी। फिल्म निर्माण मे
सम्प्रति पूजी अड़चन नहि
छैक। अड़चन दोसरे तरहक छैक।
हम थोड़ेक हड़बड़ाइत पुछलियनिमदन
भाइ, पूजीक अलावा फिल्म निर्माण मे
दोसर की अड़चन हेतैक?
मदन भाइक नजरि शून्य मे
अटकि गेलनि। ओ कहलनिअड़चन छैक ने!
फिल्म निर्माणक
कर्त्ता-धर्त्ता अहीं केँ बन’ पड़त। सम्प्रति अहाँ अध्ययन समाप्त क’
52 केदार नाथ चौधरी
नोकरी करैत छी। अहाँक
जीवन एक दिशा पकड़ि लेलकए। जँ फिल्म बनतै त’ अहाँ
केँ नोकरी सँ इस्तीफा देब’ पड़त। की
अहाँ अपन एखुनका व्यवस्थित जीवन केँ
त्यागि फिल्म बनबै लेल
तैयार हेबै?
इएह भेल मुख्य अड़चन।
तमाम तरहक गलत काज करक
हमर एवं मदन भाइक उमेर छल। मुदा से सत्य
नहि। मदन भाइक सोच मे
परिपक्वता आबि चुकल छलनि, भविष्य मे किछु दूर तक
देखैक काबिलियत सेहो
हुनका मे छलनि। अड़चन सम्बन्धी हुनकर प्रश्न सटीक एवं
समयानुकूल छलनि। फिल्म
बनबैक बात जँ पक्का भेल त’ हमरा नोकरी सँ त्यागपत्रा
देबहि पड़त।
हमर ठोर सिया गेल। नोकरी
छोड़’ पड़त ताहि दिस हमर ध्यान गेले ने छलनि।
मैथिली प्रेम मे भ्रमित
हमर मोन एखन तक गप्प-सप्प मे सीमित छल। फिल्म
निर्माणक लेल एक दिन, एक
सप्ताह, एक महिना नहि, कम सँ कम एक
बर्खक
समय त’ चाहबे
करी। फिल्म व्यवसायक पूर्ण अनभिज्ञता। तकर माने भेल आरो
समयक खपत। आब भेल
मुश्किल। एक कात नोकरी करैत एक तरहक सपाट
जीवन-यापन करक वास्तविकता
आ दोसर दिस मैथिली-प्रेम रोग मे मातल काल्पनिक
संसारक आकर्षण।
हम गुमसुम तर्क-वितर्क
कइए रहल छलहुँ,
बीचहि मे मदन भाइ कहलनि
विचार विषम स्थिति मे
पहुँचि गेलए। हम एतबा कहब जे अगुता क’ किछु निर्णय
नहि लिअ। कलकत्ता जाउ आ
अपना केँ तौलू। मैथिली सेवा लेल वाक्यपटुता नहि
कर्त्तव्यपटुता चाही। एक
तरहक बलिदान लेल अहाँ अपना केँ तैयार करू। हम
अहाँक तैयारीक सूचनाक
प्रतीक्षा मे रहब।
अबारा नहितन 53
6
1961 ईसवी। हमर उमेर पच्चीस
बर्खक। गदह-पचीसी मे फँसल आयु-रेखा। मैथिलक
सेवा करक उत्कट आकांक्षा।
मुदा तकरा लेल त्याग करब जरूरी। त्याग एकटा
महत्त्वपूर्ण शब्द। मदन
भाइक कहब जे सम्प्रति हमर त्याग भेल नोकरी छोड़ि मैथिली
भाषाक फिल्म बनेबाक
संकल्प। हम त्याग कर’ लेल मोन केँ निहोरा कर’ लगलहुँ।
ई कहबा मे हमरा लाज नहि
होइए जे नोकरी केँ त्याग’ मे हमरा लगभग एक बर्खक
समय लागि गेल रहए। नोकरी
नीक छल। ओकर भविष्यो नीक रहै। एमहर जाउ आ
कि ओमहर जाउ। विचार केँ
स्थिर करै मे,
संतुलित करै मे मोन मे खिचाब, तनाव।
वेगवती धार मे दहाइत कमलक
फूल आ ओकरा हाथ सँ पकड़ैक प्रबल लोभ। फूल
हाथ मे आओत आ कि हम स्वयं
धार मे दहा जायब तकर अंदेशा। अन्त मे एकटा
‘सौलिड’ विचार। ‘‘पल दो पल का राही हूँ। पल दो पल मेरी कहानी
है।’’ जे हेतै से
देखल जेतै। आब मैथिलीक
सेवा लेल प्रवचन नहि चाही। आब चाही अपन शांत,
सपाट जीवनक सुख-मनोरथक
बलिदान। नोकरी सँ इस्तीफा दाखिल कएल।
1962 ई.। देशक तेसर चुनाव
सम्पन्न भ’ चुकल रहै। काँग्रेस प्रचंड बहुमत
सँ जीति अपन सरकार बना
चुकल छल। देश भरि मे शांत भेल समय अपन
नियमित चालि सँ चल रहल
छल। हम ढ़ निश्चय क’क’ गाम आयल रही जे
फिल्म निर्माणक बात ककरो
नहि कहबैक। ताहि समय मे सिनेमाक आकर्षण अपन
चरम पर छल। खास क’ कॉलेजक
विद्यार्थीक जीवनक मनोरंजनक लेल मुख्य स्रोत
छल फिल्म। सिनेमा देखक
लालसा गाम-घरक लोक मे सेहो पर्याप्त रहै। हम सिनेमा
बनबै बला बात केँ मोन मे
दबने गाम मे घुमि-फिरि रहल छलहुँ। टने झा भेटलाह।
अधिक काल सटले रहलाह।
हुनकर जिज्ञासाक अन्त नहि। ओ खोदि-खोदि क’
सवाल पूछैत रहलाहअयँ रौ
केदार भैया,
तोँ सिनेमा बनबै लेल बम्बइ जा रहल छैं!
हे एकरा कहै छै भाग्य।
नसीब मे तोरा सँ के जीतत, आह! मोन पड़ैए, सिनेमा मे
कक्कूक डान्स। अयँ रौ, तोँ त’
आब कक्कू केँ अपन आँखि सँ देखबीहिन?
54 केदार नाथ चौधरी
एतबा बाजि क’ टने झा
स्वप्न लोक मे पहुँचि गेलाह। शायद हुनकर स्वप्न-दोष
मे मुख्य भूमिका कक्कूएक
रहैत छलनि। हम हुनका बुझबैत कहलियनिकक्कू
बुढ़िया भ’क’
रिटायर क’ चुकलए। आब जमाना छैक हेलेनक।
मुदा टने झा हमर बात सुन’ मे
असमर्थ भ’ गेल रहथि। बड़ी काल तक ओ
विभिन्न तरहक मुद्रा
प्रदर्शित करैत अपना मे मगन भेल रहला। फेर ओ जजवन्ती
राग मे गीत गाबए लगला‘‘तुम चले
गये परदेश, लगाकर ठेस, ओ प्रियतम
पियारा,
दुनियाँ मे कौन हमारा।’’
टने झा हँसमुख आ सरल जीवन
जीनिहार। हुनकर फूहर किश्मक हाव-भाव
हमर तप्पत भेल मनोदशा मे
बामक काज केलक। हमर मानसिक तनाव कम भ’
गेल। जखन टने झा भव-सागर
केँ पार केलनि आ फेर सँ धरती पर पयर रोपलनि
तखन हम हुनका चेतबैत
कहलियनिअहाँ सिनेमा बला बात बुझलियै त’ बुझलियै।
मुदा ई बात अनका ककरो नहि
कहबै।
टने झा हमरा आश्वस्त करैत
जवाब देलनिहम अपन सझुआर बाली कनियाँक
शपथ खा क’ कहैत
छियौ। हमरा पर विश्वास कर। एहनो गोपनीय बात कियो
बजैए! जँ तोहर सिनेमा
बनबइ बला बात ककरो कहियै त’ हम नर्क मे खसी।
टने झा अपन घरबालीक शपथ
खेलनि। मुदा हुनकर पेट मे बात पचनि तखन
ने! रातिए मे ओ गाम भरिक
लोक केँ जगा-जगा क’ कहि एलथिन। भोर होइत-होइत
समूचा गाम मे खबरि पसरि
गेल रहै जे हम हीरो बन’ लेल बम्बइ जा रहल छी।
संयोग कहियौ अथवा हमर
भाग्य-रेखाक खेल। हमर परिवारक सदस्य केँ हमर
अगिला कार्यक्रम केँ जनबा
लेल कनिकबो रुचि नहि। हुनकर सभहक बीच दोसरे
तरहक हड़कम्प मचल रहए। हमर
चारि भाइक भैयारी। पिताक मृत्यु भ’ चुकल
छलनि। माता जिविते छलीह।
हमर तीनू ज्येष्ठ भ्राता जमीन-जथा बँटबारा मे बेहाल
छलाह। मोजे छल पुतइ नामक
गाम मे। लगभग एक सय पचास बीघाक चास। गाम
मे सेहो थोड़ेक जोता जमीन, कलम-गाछी
आ एक बीघा आठ कट्ठाक घराड़ी। चारू
केँ अलग कोठाक घर। भैयारी
मे हम सभसँ छोट। पहिने कानाफूसी, फेर आंगन मे
तीनू भाउजक घमाउज।
ज्येष्ठ भ्राता जानि-बुझि क’ मुँह बन्न कयने रहथि। हुनक
आंगनबाली जखन मुँह खोलथि
त’ गाम थर्रा जाए। केमहर सँ हिस्सा लेब तकर
निर्णय सँ पहिने हम कतेक
हथिया लेब तकर बियौंत। एक भाइक गुनधुनजँ पूरा
आंगन हमरे हिस्सा मे आबि
जाइत त’ हमर तीन बालक केँ घरहट नहि लगितनि।
दोसर भाइक सोच मे कनिकबो
ओझराहटि नहि। हमरा एककात सँ एकहि ठाम खेत
चाही। हम बाधे-बाध हिस्सा
नहि लेब। ज्येष्ठ भ्राता केँ सेहो मुँह खोल’ पड़लनि
अबारा नहितन 55
दरंभगाक चारि कट्ठा जमीन, ओ पिता
किनलनि तेँ की? ओ त’ हमरे थिक आ हमरे
रहत। बाँकी गाम मे आ मौजे
पर हमरा एक-चौथाइ हिस्सा चाही। अनेक तरहक
आरोप आ प्रत्यारोप।
बँटबाराक जहर आंगन, दुआरि, दरबज्जा सभठाम पसरल
रहए।
पुस्तैनी सम्पत्ति हथिआब’ लेल
वाक्युद्ध, घमर्थन आ सभ तरहक पेंच। अपना मे
फरिछौट होयब असंभव। की
हर्ज, कुटुम्ब मे सँ किनको बजा क’ पंच बना देल
जाए। मुदा कुटुम्ब मे
किनका? एकमत नहि। जखन बँटबारा हेतै त’ गामक जमीन
सेहो बँटि जाउक। मायक
आश्रम पछिला छह-सात बर्ख सँ अलगे रहलनि। एखन
ओ गामक जोता जमीनक उपजा
पबैत छलीह। गामक जोता जमीन, कलम एवं घराड़ी
केँ सेहो कूड़ी लगा दिऔ।
माय केँ कोनही बला खेत खोरिस मे द’ देल जेतनि।
तीनू अग्रज एक बातक लेल
एकमत रहथि। छोटका भाइ, केदार भैया लेल
चिंता करब व्यर्थ। ओकर
एखन बिआहे भेलैए, दुरागमनो बाँकिए छैक। से बात त’
सत्य, मुदा
सचेत रहब जरूरी। देखहिन ने, अपन सभहक कोनो दुश्मन ओकरा
चिट्ठी लिखि कलकत्ता तक
खबरि पठा देलकैए। बँटबाराक समाचार पाबि ओ
नोकरी छोड़ि गाम पहुँचि
गेलए। ओहो त’
एक हिस्साक पट्टीदार। मुदा तकर चिंता
नहि करू। ओकरा जे देबै ओ
ल’ लेत।
हम मायक आश्रम मे भोजन
पबैत रही। मायक खास टहलनी पाहीबाली
गार्जियनक हैसियत सँ एक
दिन लोहछि क’
कहलकबौआ, बँटबारा भ’ रहलैए।
अहाँ चुप किएक छी? बाजू,
नहि बाजब त’ घाटा मे रहब। फरिक सँ पैघ दुश्मन
कहियौ कतौ भेलैए?
छोटका कका उर्फ कौआली
बाबू खानगी मे ल’ गेलाह आ बुझबैत कहलनिहमर
बात छोड़, हम अपन
बापक एकहिटा बेटा। तेँ हमरा बँटबाराक नाटक देख’ नहि
पड़ल। मुदा तोहर बात अलग
छौ। तोँ तीन भाइक तर मे सन्ना भेल छएँ। दुख भ’
रहलौए ने? दुख नहि
कर। भैयारी बँटवारा मे लत आ उलार होइते छै। जे जेहन बइमान
तकर कौर ततेकटा। अपन-अपन
कनिआँक आँचर तर मूड़ी गोतने ई बेइमनमा सभ
कतेकटा बइमानी करतौ तकर
थाहो ने पेबहिन। बाभन जातिक कलह, बाभन जातिक
सुलह, दुनू भेल
बाभन जातिक स्वभाव। आंगन मे एक तरहक आ दलान पर दोसर
किस्मक मुखौटा। ई तमासा
हम बहुत देखने छी। तेँ हम विचार देबौ जे बाप-पुरखाक
अरजल सम्पत्तिक बँटबाराक
समय आँखि मुनने नहि रही। भाइक बीच दुश्मन बनि
अपन हक-हिस्सा लेबेटा करी, छोड़ी
नहि। सैह भेलौ विदुर नीति।
हम कका केँ पुछलियनिअहि
बँटबारा मे कतेक दिन लगतैक?
हाइकोट मे दायर मोकदमाक
फैसला आब’ मे कतेक दिन लगैत छैक से
56 केदार नाथ चौधरी
बुझल छौ? जँ
मुद्दै-मुद्दालह आ दुनू कातक ओकील दाव-पेंच खेलाइ मे पटु होअय
त’ फैसला
होइते ने छैक। तहिना भैयारी बँटबारा मे जँ घरबालीक उजूरक सुनबाइ
होइत रहल त’ बँटबारा
कहिया समाप्त हैत तकर समयक मुकरर्र भविष्यज्ञाता
बशिष्ठो ने क’ सकैत छथि,
हम त’ एकटा अदना मनुक्ख छी।
अपन जेठ भ्राता लेल सिनेह
छल आओर छल आदर एवं विश्वास। बँटबारा काल
सभहक सही आकृति देखल।
चिन्हब कठिन भ’
गेल रहए। खास क’ ज्येष्ठ भ्राताक
लज्जाविहीन आचरण एवं
कुटिल व्यवहार देखि हमरा अत्यधिक दुख भेल छल।
बँटबाराक मोहजाल सँ निकलि
हम मिर्जापुर महंथाना पहुँचलहुँ। मदन भाइ
हमरा देखि प्रसन्न भेलाह।
हमर आगत-स्वागत केलनि। गप्प-सप्प मे बम्बइ
जयबाक तारीख ल’क’
चर्चा भेल। महंथानाक अनगिनत काज, बहुत तरहक
व्यस्तता। तथापि एक
महिनाक बाद बम्बइ लेल यात्रा करब तकर निश्चय क’ हम
वापस गाम एलहुँ।
कि तखने देश मे भूचाल आबि
गेल रहै। हिमालयक शिखर पर तुषारपात नहि
वज्रपात भेलै। चीन भारत
पर आक्रमण क’
देलकै। सभहक बोलती बन्द। सम्पूर्ण
देश सिहरि उठल। भय एवं
अशंका सँ ग्रस्त समूचा भारत एक परिवार मे परिवर्तित
भ’ गेल।
परिवार मे अफसोच, ग्लानि आ नेताक प्रतिँए अविश्वास प्रदर्शित
होब’
लागल। चीन युद्धक तैयारी
बहुत दिन सँ क’
रहल छल। अपन भारत मे शासक
बनल नेता केँ एकर कोनो
खबरि नहि। चीन भारतीय सेना केँ घास-फूस जकाँ धंगैत
आगाँ बढ़ि रहल छल।
हजारक-हजार भारतीय सेना मारल गेल तकर बादो चीनक
सेना आगाँ बढ़िए रहल छल।
हे भगवान्, आब की हेतै?
ताहि समय मे भारतक
राजनीतिक आकाश मे सूर्य एवं चन्द्रमा सश नेहरू
आ मेनन चमकि रहल छलाह।
देशक नेताक प्रतिए सभहक हृदय मे सम्मान रहैक।
खास क’ नेहरूक
लेल त’ आरो आदर रहै। मुदा एखन अखबार एवं रेडियो मे युद्धक
समाचार पढ़िक’ आ सुनिक’
सभहक हृदय दग्ध भ’ गेल छलै। सभहक मोन कलपि
रहल छलै। युद्धक समाचारक
बीच जखन नेहरू आ मेननक नामक चर्चा होइक त’
लोक घृणा सँ मुँह फेरि
लिअए, मुँह सँ एकोटा शब्द बाहर नहि करए। सुन्न भेल
चेतना, सुन्न
भेल दर्प। समूचा राष्ट्र मूर्छित भ’ गेल छल।
गाम मे सभ सँ अधिक
मर्माहत भेल रहथि वयोवृद्ध स्वतंत्राता सेनानी नारायणजी
चौधरी उर्फ बौआ। ओ दुख मे
अधीर भेल कहने रहथिजवाहर लाल नेहरू ‘डिस्कवरी
ऑफ इन्डिया’ नामक
पोथी लिखलनि। ओ सभ बातक डिस्कभरी केलनि मुदा
भारतीय आत्माक डिस्कभरी
नहि क’ सकलाह। लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाइ पटेल
अबारा नहितन 57
जे लगभग पाँच सय देशी
रियासत केँ देश मे मिला क’ एक मजगूत राष्ट्रक निर्माण
केलनि से स्वर्गीय भ’ गेल छथि।
आब असगरे बचि गेल छथि नेहरू। ओ बुद्धिक
बद्धी पहिरि बुधियार बनि
गेल छथि। ओ जे सोचै छथि सैह भेल गृह-नीति,
विदेश-नीति एवं
अर्थ-नीति। नेहरूक एकाधिकार, रोक-टोक कर’ बाला कियो
नहि।
ओ कृष्ण मेनन सनक सनकल
मनुक्ख केँ ईगलैंड मे भारतक हाइ कमीश्नर बना
देलनि। मेनन प्रसिद्ध जीप
घोटला केलक। घोटलाक जनक मेनन केँ सजाय भेटक
चाही। सजा भेटलै ने!
नेहरू ओकरा देशक रक्षामंत्राी बना देलनि। आब लिअ, मेनन
सनक सेक्स मेनिया जखन
रक्षामंत्राी होअय तखन देश केँ जे दुर्दशा हेबाक चाही से
भ’ रहलैए।
बौआ बजिते रहलाहजे नेता
भूगोलक वास्तविकता संग छेड़खानी करैए तकरा
इतिहास कहियो माफ नहि
करैत छैक। तिब्बत संप्रभु देश मुदा कमजोर। अँग्रेजक
शासनकाल तक तिब्बतक रक्षा
लेल तिब्बतक राजधानी लासा मे भारतीय फौज
तैनात छल। नेहरूजी
विश्वगुरुपद प्राप्त करबाक निआर केलनि। हिन्दी-चीनी
भाइ-भाइ नामक फकड़ा हिमालय
पर फहराए लागल। बांडुंग कन्फ्रेन्सक तैयारी शुरू
भ’ गेल।
पंचशील नामक पाँच गोट कील ठोकै लेल नेहरूजी चीन पहुँचि गेलाह।
चीन मे हुनक एहन भव्य
स्वागत भेल रहए जे कहियो ककरो लेल भेले ने रहए।
नेहरूजी अपन भेल
अभूतपूर्व सत्कार मे डूबि गेलाह। भाव मे डुबल मनुक्खक बुद्धि
पंगु बनि जाइत छैक आब
चीनक किछु मांग रहै तकर पूर्ति आदरणीय नेहरूजी कोना
नहि करितथि? ओ लासा
सँ भारतीय सेना केँ वापस बजा लेलनि। एतबे नहि, ओ
सम्पूर्ण तिब्बत केँ चीनक
थारी मे परोसि देलनि। चीन पहिनहि सँ पूर्वी तुर्किस्तान
आ मंगोलियाक एक भाग गीड़ि
चुकल छल। आब ओ तिब्बत केँ सेहो गीड़ि लेलक,
पचा लेलक। तकर बाद चीन
ढेकार करैत भारतक सीमा पर पहुँचि गेलए। ओ
मैकमोहन लाइन केँ औंठा
देखबैत भारत पर आक्रमण क’ देलकए। वाह रे हमर
विदेश नीति, वाह रे
हमर रक्षाक तैयारी? यौ बाउ, चीन त’
सभ दिन सँ लूटेराक देश
रहलए। धोखा देब, औचक हमला
करब त’ चीनक इतिहास मे मोटका आखर सँ
लिखल छैक। ओहि राक्षसक
देश केँ अँग्रेज हफीम खुआ-खुआ क’ सैतने छल। ओहि
दानव केँ नेहरूजी पंचशील
नामक शर्वत पिआब’ गेल रहथि। आब लिअ तकर फल!
सभ दिनका दुश्मन बनि चीन
हिमालय पर गरजि रहलए।
बौआक वेदना सभहक पीड़ा बनि
गेल रहए। कहबी छैक जे जँ परिवारक
मुखिया गलती करए त’ परिवारक
सभटा सदस्य केँ कष्ट भोग’ पड़ैत छैक। जँ
देशक मुखिया गलती करए त’ समूचा
देशक क्षति होइत छैक, देशक अपमान
58 केदार नाथ चौधरी
होइत छैक। एखन त’ देशक
स्वतंत्राते पर खतरा मरड़ा रहल छलैक। नेहरूक
प्रतिँए जे आकाश एतेक ऊँच
सम्मान छल, प्रेम छल आ विश्वास छल से चीनक
आक्रमण सँ चकनाचूर भ’ गेल छल।
नेताक गलती काज केँ थोड़ेकाल लेल
बिसरलो जा सकैत छल। मुदा, नेताक
अहंकार केँ क्षमा करब त’ असंभवे छल।
शासन कोना चलतै तकर फिकिर
बाद मे करब। एखन चीनक आक्रमण सँ देश
केँ कोना बचायब तकर जोगार
करू ने!
विश्व-स्तर पर भारत केँ
सभ सँ बेसी निकटता रहैक रूस नामक देश सँ।
नेहरूजी रूस सँ मदतिक
गोहारि केलनि। रूसक जवाब स्पष्ट छल जे भारत ओकर
मित्रादेश अछि। मुदा चीन
त’ ओकर भ्राता अछि। भ्राताक विरुद्ध रूस भारतक मदति
कोना करत?
तखन अपन प्रिय नेता
अमेरिकाक आगाँ मूड़ी पटकलनि। ताहि समय अमेरिका
मे भारतक पंचशील एवं
गुटनिरपेक्ष सिद्धान्तक मजाक उड़ाओल जा रहल छलै। विश्व
दू खेमा मे बँटल रहए।
दुनू खेमाक अग्रणी देश शक्ति सम्पन्न छल। ताहि बीच
गुटनिरपेक्षक सिद्धान्तक
महत्त्व ओतबे छल जतबा एकटा खिलखिल पातर आ रुग्न
शरीरक मनुक्ख दारा सिंह
सनक पहलवान केँ चैलेन्ज ठोकैत होअय। नेहरुक
कार्यक्रम केँ हास्यास्पद
मानितहुँ अमेरिका भारतक मदति मे आयल। अमेरिकाक
राष्ट्रपति चीन केँ
चेतावनी देलक। अमेरिकन सातम बेड़ा बंगालक खाड़ी मे प्रवेश
केलक। तखन जाक’ चीन
नांगरि सुटकौलक। चीन युद्धविरामक बिगुल बजौलक
आ वापस गेल। मुदा
जाइतो-जाइतो चीन भारतक विशाल भू-भाग पर अपन कब्जा
नहि छोड़लक।
चीनक आक्रमण सँ देशक
प्रत्येक नागरिक आहत भेल रहए। सभहक
मनोबल निम्न-स्तर पर
पहुँचि गेल रहै। ओही काल सीमाक रक्षा लेल, शासन केँ
चलबै लेल गोपाल सिंह ‘नेपाली’
एकटा मंत्रा केन्द्र सरकार लग पठौने रहथि
‘‘चरखा चलता है हाथों से,
शासन चलता तलवार से। दिल्ली जाने वाले राही,
कहना अपनी सरकार से।’’
देशक जनता सभकिछु देखैत
रहल, सहैत रहल, कनैत रहल। जवाहरलाल नेहरू
बाघ आ बाँकी मंत्राी
बकरी। महात्मा गाँधीक प्रभावे देशक कोन-कोन मे सैकड़ो,
हजारो नेता बनल छला। ओ
सभटा नेता मरि-खपि गेल छला अथवा राजनीति सँ
संन्यास ल’ लेने
रहथि। विपक्ष मे थोड़ेक नेता अबस्से काँउ-काँउ क’ रहल छलाह।
मुदा भारतक राजनीति मे
ताहि घड़ी विपक्षी ठेहुनियाँ द’ रहल छल। विपक्षीक कोनो
अहमियत कायम नहि भेल रहै।
शासन मे छल काँग्रेस आ काँग्रेस मे छल एकटा
अबारा नहितन 59
राजा, जकर
एकछत्रा राज चलैत रहै। एक तरहक राजतंत्रा, प्रजातंत्राक नामो
निशान
नहि छल।
प्रत्येक काज मे
हानि-संगे लाभ सेहो होइत छैक। चीनक आक्रमण मे बेहिसाब
हानि भेल रहै। मुदा एकटा
लाभ सेहो भेलै। सम्पूर्ण देशक नागरिक जागि गेल रहए
आ चीनक आक्रमण सँ भेल
क्षति एवं अपमानक जिम्मेवार नेता दिस वक्र नजरिए
ताकि रहल छल।
डुबैत मनुक्ख सभ सँ पहिने
अपन प्राण बचबैत अछि। नेहरूजी अपना केँ
बचबैक बियोंत केलनि।
यद्यपि सम्पूर्ण मंत्रिमंडल आ खास क’ प्रधानमंत्राी केँ
इस्तीफा देब उचित छल।
मुदा जवाहरलाल नेहरू लग बाजक कोनो दोसर नेता केँ
हिम्मति नहि भेलै। सभटा
दोख कृष्ण मेननक कपार पर बजारि नेहरूजी ओकरा
कान अइंठि क’ मंत्रिमंडल
सँ बाहर केलनि। सरकार मे सेहो थोड़ेक चेतना एलै।
चीन धोखा देलक, पीठ मे
खंजर भांेकलक। आब भारत आ तिब्बतक बीच सीमाक
रक्षा करब जरूरी भ’ गेलए।
मुदा से होयत कोना? रक्षासम्बन्धी सभटा खर्च त’
पाकिस्तान केँ थोपड़ाब’ मे खर्च
भ’ गेलए। खजाना खाली पड़ल अछि। सरकार
तलवार पिजाओत तकरा लेल धन
त’ छैहे नहि। हे राम, आब की हेतै?
धनक अभाव बला खबरि समूचा
देश मे पसरि गेलै। देशक महिला समुदाय
सेहो अहि खबरि केँ
सुनलनि। महिला लेल गहना सँ प्रिय आओर किछु नहि। मुदा
भारतक महिला केँ देशक
इज्जति सभसँ प्यारा। देश भरिक महिला अपन देह परक
सभटा गहना उतारि
प्रतिरक्षा फंडक सतरंजी पर राखि देलनि। ठाम-ठाम देशक
राजा-महराजाक सेहो बुद्धि
फरफरेलनि। ओ लोकनि अपन-अपन खजानाक मुँह
खोललनि। दरभंगा महाराज
चौदह मन सोना प्रतिरक्षा फंड मे दान केलनि। सरकार
केँ प्रचुर धन भेटलै, ओकर
सक्रियता बढ़लै आ देशवासी मे विश्वास जगलै। आब
आबथु चाउ-माउ। हुनका
छटिहारक दूध पिया देल जेतनि।
समयक चक्र मलहमक काज
करैए। नोकरी छोड़ब, परिवार मे बँटबाराक कलह
आ देश पर चीनक आक्रमण सँ
उपजल मानसिक प्रताड़ना हमरा एहन स्थिति मे
पहुँचा देने छल जे
सोचल-विचारल सभ तरहक काज सँ विरक्ति भ’ गेल छल।
उत्साह मे ब्रेक लागि गेल
छल। मुदा जखन थोड़ेक समय बितलै तखन जा क’ मोन
मे विचारल बात फेर सँ अपन
जगह पकड़लक। हम मदन भाइ लग पहुँचलहुँ।
अन्ततोगत्वा 23 सितम्बर
1963 ई.क दिन हम आ मदन भाइ मैथिली भाषा मे फिल्म
निर्माणक उद्देश्य सँ
बम्बइ लेल प्रस्थान केलहुँ।
बम्बइ पहुँचलहुँ।
विक्टोरिया टरमिनस नामक दैत्याकार रेलवे स्टेशन। स्टेशन सँ
बाहर आबि बम्बइ शहरक पहिल
दर्शन कएल। की ई शहर अपने देशक छियैक?
हँ यौ, बम्बइ
भेल महाराष्ट्र प्रांतक राजधानी। औरंजेबक सेना केँ परास्त क’ हिंदू
धर्मक ध्वजा फहराबै बला
छत्रापति शिवाजी अही प्रांत मे जन्म लेने छलाह। तखन
ई आन देशक शहर कोना हेतैक? कलकत्ता
आ बम्बइ, दुनू अही देशक शहर। मुदा
दुनू एक दोसरा सँ भिन्न।
कलकत्ता किशमिश त’ बम्बइ अखरोट। कलकत्ता पारो
त’ बम्बइ
चन्द्रमुखी। सौन्दर्यक परिभाषा भिन्न-भिन्न रहितो दुनू देवदासक प्रेम मे
आकंठ डुबल। हमर आ मदन
भाइक उमेर गुड्डी उड़बैबला। तेँ सौन्दर्य मे कतबो ने
आकर्षण होइ, सुपाच्ये
छल।
सितम्बर महिनाक अन्तिम
सप्ताह। मुसलाधार बरखा बम्बइ केँ धो-पोछि क’
रमणीय बना देने छल। हम आ
मदन भाइ बम्बइ सँ अपरिचित छलहुँ। क्षमा करब,
बम्बइ एखन हमरा दुनू सँ
अपरिचित छल,
मुदा बाँहि पसारि स्वागत करैक ओकर
अन्दाज मे गजब केर चुम्बक
छलै। स्टेशने लग एकटा होटल केँ आवास बनैलहुँ।
नाक मे अनजान समुद्री
हवाक गंध आ खयबा काल नारियल तेल मे पकाओल
भोजनक स्वाद। हमरा दुनू
केँ मुँह बिचकौने देखि क’ होटलक बेरा कहलक
‘‘नये-नये आये हो इसलिए
तकलीफ है। अपुन बम्बइ का खाना नारियल तेल और
मुंमफली तेल मे पकता है।
सरसो तेल केवल बैल के सिंघ का मालिश मे खर्च होता
है। आदत की बात है। हप्ते, दो हप्ते
मे सुधर जाएगी।’’
हम आ मदन भाइ आदति सुधार’ नहि,
फिल्म बनब’ लेल बम्बइ आयल रही। फिल्म
व्यवसायक इल्म शून्य छल।
तेँ सूत्राधारक खोज मे छलहुँ। सूत्राधार छला एक व्यक्ति आ
तनिकर तलाश। ओहि व्यक्तिक
नाम छलनि उदयभानु सिंह उर्फ भानु बाबू। आब हमर
सभहक फिल्म निर्माणक बात
सुनि भानु बाबूक केहन प्रतिक्रिया हेतनि? सभकिछु
भविष्यक गर्त मे आ मैथिली
भाषाक नसीब मे नुकायल-भुतिआयल रहए।
अबारा नहितन 61
होटल सँ निकलि सड़क पर
एलहुँ, अता-पता पूछैत डेग उठबैत रहलहँु।
फॉउन्टेन फ्लोरा आ तकरे
सटल वीर नारिमन रोड। चौबिस नंबर मकान मे लिफ्ट
सँ दोसर मंजिल, बामा कात
पहिले दरबज्जा भेल भानु बाबूक ऑफिस।
भानु बाबू प्रशंसनीय
व्यक्तित्वक मालिक छला, स्वागत केलनि। ऑफिस मे
एकमात्रा कमरा, कमरा
सैंतल आ स्वच्छ। बीच मे बड़ी टा टेबुल, टेबुलक पाछाँ
स्प्रींगदार कुर्सी पर
भानु बाबू बैसल रहथि। ऑफिसक एक कोन मे बैसलि छलीह
एकटा मराठी महिला। महिलाक
सामने टेबुल पर टाइपराइटर राखल छल। महिलाक
खोपा मे फूलक गजरा लटकल
रहनि।
टेबुलक दोसर कात राखल
कुर्सी पर हम आ मदन भाइ जगह पकड़लहुँ।
तत्काल भानु बाबूक चपरासी
दू गिलास जल हमरा दुनूक आगाँ राखि देलक।
चपरासीक अधपक्कू, खूजल एक
बीताक फहराइत टीक आ ओकर मुँहक फर्मा मे
पानक दग्गी बला दाँतक
पथार। दूर देश मे अपन मिथिलाक लोक केँ देखि मोन
सहजहि पुलकित भ’ गेल छल।
भानु बाबू मधुबनी जिलाक
रहुआ-संग्राम गामक बासी आ मदन भाइक पुरान
परिचित लोक रहथि। आरम्भ
मे ओ दरभंगा महाराजक कनिष्ठ भ्राता राजा बहादुरक
तीनू पुत्राक शिक्षक
बनलाह। फेर अपन पटुता, चतुरता एवं कार्यक्षमता बले एखन
ओ महाराजक अँग्रेजी अखबार
‘इन्डियन नेशन’ एवं हिन्दी दैनिक समाचार पत्रा
‘आर्यावर्त’क बम्बइ मे संवाददाता एवं विज्ञापन संग्रहकर्ता बनि कार्यरत छलाह।
औपचारिकता समाप्त भेल आ
वार्तालाप शुरू भेल। भानु बाबू अपन जिज्ञासाक
पूर्ति लेल लम्बा प्रश्न
केलनिप्रायः अपन दिशुका लोक बम्बइ भ्रमण लेल अबैत
छथि। ओना त’ सम्पूर्ण
बम्बइए देखबाक योग्य अछि मुदा एतुक्का एलीफेन्टा केभ,
चौपाटी, इन्डिया
गेट, ताजमहल होटल, मेरिन ड्राइभ,
जूहू बीच आदि मनोरम स्थल
विशेष क’ प्रसिद्ध
अछि। बम्बइ केँ लोक फिल्म नगरी सेहो कहैत अछि। बहुतो
व्यक्ति फिल्मक सूटिंग
एवं नामी-नामी फिल्मी कलाकार सँ साक्षात्कारक इच्छा करैत
छथि। अहाँ दुनू कोन तरहक
अभीष्ट सँ बम्बइ पदार्पण केलहुँ अछि से त’ कहू?
भानु बाबूक उमेर पचासक
सीढ़ी पार क’
चुकल छलनि। हुनका समक्ष हम दुनू
नवतुरिया छलहुँ। हम
चुप्पे रहलहुँ। संकोच केँ एक कात ठेलैत बम्बइ ऐबाक
उद्देश्यक जानकारी मदन
भाइ देलनि। संक्षेप मे मिथिलाक मुख्य-मुख्य समस्याक
विवरण दैत अन्त मे मदन
भाइ भानु बाबू केँ कहलनिस्वतंत्रा भारत मे मिथिलाक
आर्थिक प्रगति सम्प्रति
अवरुद्ध छैक,
सामाजिक परिवर्तन छिन्न-भिन्न भ’ रहलैए।
हमरा दुनू व्यक्तिक ष्टिएँ
ई चिंताक बात अछि। मैथिल पंडितक चिंतन मे
62 केदार नाथ चौधरी
कूपमंडूकता एवं
रूढ़िवादिता सेहो सर्वविदित अछिए। तेँ नव जागरण अनबाक
नितांत आवश्यकता छैक। अहि
लेल मार्ग बहुतो भ’ सकैए, मुदा हम दुनू मैथिली
भाषा मे एकटा फिल्म बना क’ अहि दिशा
मे काज कर’ चाहैत छी। आजुक युग
मे फिल्म मनोरंजन करैक
अलाबा बहुत तरहक सुधार करक संदेश सेहो दैत अछि।
फिल्महि सँ मिथिला मे
जागरण औतैक आ मैथिली भाषाक प्रचार-प्रसार हेतै से भेल
हमर दुनूक मान्यता। अहाँ
बम्बइ मे बहुत बर्ख सँ रहि रहलहुँए। फिल्म निर्माण मे
अहाँक मदति चाही, मार्गदर्शन
चाही। मिथिला आ मैथिलीक सेवा क’ हमरा लोकनि
भगवानक दुआरि पर अपयश सँ
बाँचि जाइ तेहन मनोवृत्ति ल’क’ हम आ केदार भाइ
अहाँक समक्ष उपस्थित
भेलहुँ अछि। आब अपनेक जेहन आदेश होअय।
मदन भाइ केँ जे बजबाक
छलनि ओ बाजि चुकलाह। हुनकर सभटा गप्प सुनि
भानु बाबू मूड़ी गोंति
लेलनि। हम भानु बाबूक चेहरा पर आँखि गड़ौने रही। भानु
बाबू नजरि नीचाँ झुकौने
चुपचाप आ भाव-शून्य बनल रहला। समयक घड़ीक सूइ
अँटकि-अँटकि क’ आगाँ
बढ़ैत रहल। हमर हृदयक धड़कन तेज भ’ गेल छल।
साधारणतः प्रत्येक मनुक्ख
अपन विचार मे,
अपन व्यवहार मे आ अपन
कार्यशैली मे एक दोसरा सँ
भिन्न होइए। हम दुनू शंकालु छलहुँ जे फिल्म निर्माण
संबन्धी बात भानु बाबू
केँ अनसोहाँत ने लगनि। ओ हमर सभहक विचार केँ नकारि
ने देथि। तखन त’ फिल्म
निर्माण मे अखने विराम लागि जेबाक संभावना।
करीब दस मिनटक चुप्पीक
बाद भानु बाबू दम सैंत अपन चपरासी केँ सोर
पाड़लनिघटोतकच, एमहर आब’।
भानु बाबूक आवाज
अप्रत्याशित रूपे कर्कश छल। ध्वनि सँ ऑफिस डगमगा
गेल। एक कात बैसलि भानु
बाबूक स्टेनो सेहो अकचका गेलीह। घटोतकच अर्थात्
भानु बाबूक चपरासी। अजीबे
नामकरण? सेहो ककरा लेल? एकटा सुच्चा मैथिल
लेल। अहि तरहक नाम राखब
एक तरहक चमत्कारे भेल ने! एहन चमत्कारी
निश्चय कलाकार हेताह। जँ
भानु बाबू कलाकार छथि त’ ओ फिल्म निर्माणक विचार
केँ अबस्से अनुमोदन
करताह। अथाह कल्पना तर्क सँ लादल। मोन मे आशाक
किरण छिटकल रहए।
भानु बाबू हुकूम देलनिघटोतकच, ऑफिस
बन्द कर’। ऑफिस बन्द भेल।
कनेक कालक बाद हम तीनू
सड़क पर चलल जा रहल छलहुँ। भानु बाबूक लम्बाइ
लगभग छह फीट, तहिना
हुनक काया भारी-भरकम। हुनकर डेग मे ‘रिदम’ मिलबैत
बुझि लिअ, हम आ मदन
भाइ उधियाइत चलि रहल छलहुँ।
चर्चगेट स्टेशनक
सोझाँ-सोझी समुद्रक कात पहुँचलहुँ। जीवन मे पहिल बेर
अबारा नहितन 63
समुद्र देखने रही। विशाल
जलपिंडक दर्शन मोन मे उमंग भरि देलक। दहिना कात
पसरल मानव तुलिका सँ
चित्रित मेरिन ड्राइभ। एक त’ ओहिना प्राकृतिक छटा सँ
परिपूर्ण बम्बइ शहर अति
सुन्दर छल, ताहि पर शहरक मखमल उज्जर गरदनि मे
मोतीक माला सश शोभित
मेरिन ड्राइभ त’ अनुपमे लागल। मनहर उदासक गीत
मोन पड़ि गेल‘‘चाँदी
जैसा रूप है तेरा, सोना जैसे बाल। एक तुँही धनवान है
बम्बई, बाकी सब
कंगाल।’’
मेरिन ड्राइभ सड़कक दोसर
कात खूब चौड़गर फूटपाथ। फूटपाथ आ समुद्रक
बीच देबाल। देबालक उपरका
भाग लगभग एक चौकी बरोबरि चौड़ा। एक खास
स्थान पर पहुँचि भानु
बाबू देबाल पर बैसि गेलाह। आज्ञाकारी बनल हम आ मदन
भाइ सेहो देबाले पर स्थान
ग्रहण केलहुँ।
हम सम्मोहित भेल समुद्र
दिस तकैत रही। समुद्र मे ज्वार उठल रहैक। गर्जना
करैत समुद्रक लहरि प्रचंड
बेग सँ पाथर पर अपन मूड़ी पटकि रहल छल। आकाश
सँ अथवा समुद्रक पेट सँ
अनायास एकटा मनुक्ख प्रगट भेलाह। हुनका हाथ मे
छीलल आ टोंटी देल तीन गोट
डाभ रहए। बिना ककरो किछु पुछने ओ तीनू गोटेक
हाथ मे डाभ पकड़ा देलनि।
डाभ देनिहारक कद लगभग पाँच
फीट, माथक जुल्फी दू भाग मे विभक्त आओर
मोंछ हिटलर कट। हुनक वयसक
ठेकान करब मुश्किल, किएक त’ आगन्तुकक
मुखराक चमड़ी पर पपड़ी उगल
रहनि। ओहि अनचिनहार व्यक्तिक परिचय भानु
बाबू देलनिई महापुरुष
अपने मिथिलाक छथि। हिनकर गाम भेल मधुबनी जिलाक
फुलपरास आ नाम छनि भोगेन्द्र
झा उर्फ भोगल बाबू। ई जखन कखनो एना मे उगल
अपन प्रतिबिंब देखथि त’ हिनका
अपन छवि मे दिलीप कुमारक चेहराक छाँह नजरि
अबनि। हिनका विश्वास भ’ गेलनि जे
भगवान हिनका हीरो बन’ लेल धरती पर
पठौलनिहें। भोगी बाबू
हीरो बन’ लेल बम्बइ पहुँचि गेलाह। पछिला दस बर्ख सँ एक
स्टूडियो सँ दोसर
स्टूडियोक चक्कर लगबैत रहलाह। एक बेर हिनकर नसीब त’
सफलताक शिखर तक पहुँचि
गेल रहनि। मिस्टर सम्पत नामक फिल्म मे मोतीलाल
नामक नायकक हाथ मे चाहक
गिलास पहुँचेबाक पाट हिनके देल गेल रहनि। मुदा
तकर बाद कोनो फिल्म मे ने
हिनका चान्स भेटलनि आ ने कोनो डाइरेक्टर हिनकर
प्रतिभाक कद्र केलकनि। ई
बौआइत रहलाह। जखन हिनकर जमा पूजी शेष भ’
गेलनि तखन भीख मांगक
स्थिति मे भोगी बाबू पहुँचि गेलाह। संयोग सँ ई हमर
सम्पर्क मे अयलाह। मैथिल
केँ मदति करब हमर कर्त्तव्य भेल। हमरा कइएक गोट
फलक व्यापारी सँ
जान-पहिचान। भोगी केँ हम डाभ बेचैक धंधा मे लगबा देलियनि।
64 केदार नाथ चौधरी
आर्थिक ष्टिएँ भोगी बाबू
आब संतुलित छथि आ बांद्रा नामक मोहल्लाक झोपड़पट्टी
मे आराम सँ रहैत छथि।
भोगीक आँखि मे कृतज्ञताक
भाव। तीन डाभक मूल्य छह आना, मुदा खरीद
मूल्य तीन आना। भानु बाबू
सँ तीन आना प्राप्त क’ भोगी एक कात टरकि गेलाह।
भोगीक खिस्सा सुनि हम
दुविधा मे फँसि गेलहुँ। भोगी हीरो बन’ लेल बम्बइ आयल
रहथि आ एखन डाभ बेचि रहल
छलाह। की हम आ मदन भाइ चिनियाँ बादाम
बेचब? नहि यौ,
हमसभ हीरो बन’ लेल नहि, हीरो
बनब’ लेल बम्बइ गेल रही।
तखन चिंता कथीक? मुदा एक
बातक चिंता अबस्से छल। एखन तक फिल्म निर्माण
सम्बन्धी विचार मे अपन
सहमति अथवा असहमति देबा मे भानु बाबू कंजूसी किएक
क’ रहल छलाह?
भानु बाबूक चुप्पी एक तरहें हिंसात्मक भ’ चुकल
रहए। हम आ
मदन भाइ टेंशन मे पहुँचि
गेल रही।
हमर शंका निर्मूल छल।
भानु बाबू हमरो सँ पैघ मैथिली-प्रेम रोगी छला।
विनम्रताक मूर्ति बनल
अत्यन्त कोमल वाणी मे भानु बाबू बाजब शुरू केलनिजीवन
एकटा सफर थिक, एक कात
सँ दोसर कात पहुँचैक खिस्सा। धरतीक समस्त जीवित
प्राणी मे मनुक्ख
सर्वोपरि, किएक त’ ओकरा सोचैक अतिरिक्त यंत्रा विधाता देने
छथिन। तेँ मनुक्ख अपन
हितक अलावा परहित द’ सेहो विचार करैए। हमहुँ
मिथिलेक छी आ मिथिलाक हित
करब हमरो कर्त्तव्य बनैए। मैथिली भाषा केँ अष्टम
अनुसूची मे स्थान नहि
भेटलै एकर दुख हमरो अछि। मुदा एकरा लेल भर्त्सना ककरा
कएल जाए? ककरो
अनका दोख देब अनुचित, हमसभ स्वयं दोखी छी। हमसभ
जागरूक नहि रहलहुँ, आत्म-सुख
मे डुबल रहलहुँ। अवसर भेटबो कएल तथापि
मैथिली भाषा लेल मुँह नहि
खोललहुँ। आत्म-ग्लानि मे हमहूँ जिबैत रहलहुँ। अहाँ
दुनू जखन मैथिली भाषा मे
फिल्म बनबैक योजना हमरा लग प्रस्तुत केलहुँ तखन
हमरो एकर उपयोगिता दिस
ध्यान गेलए। फिल्म बना क’ अबस्से मैथिली भाषा केँ
लाभ पहुँचाओल जा सकैए।
अहाँ दुनूक संगे मैथिली भाषा मे फिल्म बनाब’ लेल
पूजी, समय एवं
लगन हमहूँ अर्पित कर’ लेल तैयार छी। अहाँ दुनूक हम स्वागत
करैत छी।
भानु बाबू खुलासा केलनि, अपन मोन
मे जमकल भाव केँ धारा बना प्रभावित
केलनि। हमर आ मदन भाइक
मोन हर्षित भेल छल। भानु बाबूक आवास बांद्रा
स्टेशनक पश्चिम चिंचपोकली
रोड पर रहनि। प्रातःकाल हम दुनू मैथिलीप्रेमी ओतय
पहुँचलहुँ। भानु बाबूक
ममतामयी पत्नी आ छह-सात बर्खक पुत्राी रानी सँ भेट भेल।
चाह-नास्ताक बाद हम तीनू
नजदीके मे सोलीसीटरक आफिस मे पहुँचलहुँ। करीब
अबारा नहितन 65
दू घंटाक समय लगलै।
स्टाम्प पेपर पर विभिन्न तरहक धारायुक्त कन्ट्रैक्ट पेपर
तैयार भेलै। रुपैयाक आठ
आना महंथ मदन मोहन दास, छह आना उदय भानु सिंह
आओर दू आना केदार नाथ
चौधरीक हिस्सा तय भेल। तखन भानु बाबू पूर्णतः
व्यावसायिक मूड मे रहथि।
हम दुनू कोनो तरहक उजूर नहि केलियनि। सहमति
बनल जे जखन फिल्मक बजट
बनतै तखन तय हिस्साक मोताबिक तीनू पार्टनर
पूजीक उगाही करताह। खर्च
सम्बन्धी एकाउन्ट बुकक प्रारूप सेहो बनल। सोलीसीटरक
फीसक अदायगीक संग फिल्मक
खर्च आरम्भ भेल। एकाउन्ट्स लिखक काज हमरा
जिम्मा कएल गेल छल जकरा
हम स्वीकार कयने रही। अहि तरहें प्रथम मैथिली
भाषाक फिल्म ‘ममता गाबए
गीत’क श्रीगणेश भेल छल।
तेसर बैसक भानु बाबूक
ऑफिस मे भेल रहए। अनिश्चयक स्थिति सँ मुक्त
भेला पर हमसभ सहज मुद्रा
मे आबि गेल रही। एखन तक फिल्म बनाएब से मात्रा
कल्पना छल। आब अहि कल्पना
केँ साकार करक समय आबि चुकल रहैक। हमरा
सभहक ध्यान ठोस धरातल पर
केन्द्रित भ’
गेल रहए। फिल्म बनेबाक कार्यक्रम आ
तकर आरम्भ कोना हेतैक
ताहि विषय पर हमरा आ मदन भाइक बीच वृहत् चर्चा
भेल छल। ओही चर्चा केँ
स्वरूप दैत मदन भाइ कहब शुरू केलनिभानु बाबू, वयसे
मे नहि, ज्ञान
एवं अनुभव मे अहाँ हमरा दुनू सँ बहुत आगाँ थिकहुँ। पत्राकारिता मे
अहाँक नीक दखल अछि।
बम्बइक विभिन्न जाति-समुदाय मे अहाँक उठब-बैसब
अछि। अइ शहर मे रह’बला तमाम
मैथिल अहाँक जानकारी मे छथि। तेँ अहाँ
एखुनका अभियान मे हमर
दुनूक गार्जियन भेलहुँ। जँ अहाँ आज्ञा दी त’ हमर आ
केदार भाइक किछु विचारल
बात अहाँक समक्ष राखी।
अहाँ निधोख अपन बात बाजू।
आब हम तीनू एकहि पौदान पर पयर रखने
छी छोट-पैघक व्यवधान नहि
हेबाक चाही।
त’ सुनल
जाओ। मिथिलांचल मे बड़ थोड़ लोक बुद्धिजीवी वर्ग मे अबैत
छथि। फिल्म बनतै समस्त
मैथिल जनसंख्या लेल। तेँ फिल्मक शुरुआत ताहि
तरहक विषय-वस्तु सँ
होयबाक चाही जाहि मे सभहक दिलचस्पी होइक। हिन्दी
सिनेमाक इतिहास दादा
साहेब फाल्केक नाम सँ शुद्ध होइए। 1912 ई. मे दादा
साहेब फालके ‘राजा
हरिश्चंद्र’ नामक फिल्म बनौलनि जे देश भरि मे सफलताक
संग प्रदर्शित भेल छल।
दादा साहेब फाल्के धार्मिक खिस्सा राजा हरिश्चंदक चुनाव
किएक केलनि? हुनकर
कहब छलनि जे सिनेमा एवं सपना जँ अपन मातृभाषा मे
देखल जाए त’ ओकर सही
प्रभाव देखनिहार पर पड़ैत छैक। सपना आ कि सिनेमा
जँ धार्मिक होइक त’ एकर
प्रभाव आरो अधिक होइत छैक। सिनेमा युग आब’ सँ
66 केदार नाथ चौधरी
पहिने सम्पूर्ण देश मे
नाटकक मंचन होइत छल। नाटक मे नब्बे प्रतिशत नाटक
धार्मिक कथा पर आधारित
होइत रहए। सभ तरहक विचार केलाक बाद हम आ
केदार भाइ अहि निर्णय पर
पहुँचलहुँ अछि जे पहिल मैथिली भाषाक फिल्म कोनो
धार्मिक कथा पर आधारित
हेबाक चाही। नीक त’ ई होइतैक जे हिन्दी भाषा मे बनल
कोनो धार्मिक फिल्मक राइट
ग्रहण क’ ओकरा मैथिली भाषा मे ‘डब’ क’
हमरा
लोकनि ओकरा प्रदर्शित
करितहुँ। फिल्मक गीत-संगीत पक्ष पर ध्यान देब जरूरी
रहैत। मैथिली संगीत केँ
नव दिशा देब एवं अत्यधिक कर्णप्रिय बनाएब सेहो हमर
सभहक मुख्य काज अछि ने!
भानु बाबू चुपचाप मदन
भाइक कथन सुनि रहल छलाह। मदन भाइ बजिते
रहलासिनेमा एकटा व्यवसाय
थिक। निर्माण एवं वितरण, एकर दू गोट पक्ष भेल।
निर्माण एवं वितरण, दुनूक
ज्ञान हमरा तीनू पार्टनर केँ किछुओ ने अछि। निर्माणक
ष्टि सँ डब कएल मैथिली
भाषाक फिल्म मे श्रम एवं पूजी कम लगतै। वितरणक
ष्टि मे धार्मिक मैथिली
फिल्म केँ प्रदर्शन मे समस्या नहि औतैक। मिथिलांचल मे
जतेक सिनेमा गृह अछि तकर
मालिक मैथिली भाषा मे बनल धार्मिक फिल्म केँ
तत्काल स्वीकार करत। भानु
बाबू, हम फेर दोहरबै छी जे फिल्म निर्माण करब एकटा
व्यवसाय भेल आ एकर
कार्यक्रम व्यवसायक तरहें हेबाक चाही। मैथिली प्रेम मे
आबि अत्यधिक संवेदनशील
बनि जँ फिल्म बनबैक योजना बनेबइ त’ ई मैथिली
फिल्मक भविष्य लेल घातक
हेतैक। संगहि ई हमरा तीनू लेल सेहो अहितकर होयत।
एखन फिल्म निर्माण एवं
फिल्म वितरणक पर्याप्त जानकारी हासिल करब हमरा
सभहक मुख्य उद्देश्य
हेबाक चाही। मानि लिअ जे हम सभ जेनकेन प्रकारेँ मैथिली
भाषाक फिल्म बनाइयो लैत
छी तकर बादो एकर वितरक ताकै मे नौ डिबियाक तेल
जरि जाएत आ वितरक नहिएँ
भेटत। तेँ हमरा दुनूक विचार अटल अछि जे पहिल
मैथिली भाषाक फिल्म
धार्मिके हौउक।
भानु बाबू अन्यमनस्क भेल
सभकिछु सुनि रहल छलाह। प्रायः हुनकर ध्यान
कतहु आन ठाम टाँगल रहनि।
मदन भाइ थोड़ेकाल चुप भेल रहला तखन फेर
बाजब शुरू केलनिजँ डब कएल
फिल्म अहाँ केँ स्वीकार नहि होयत त’ ठीक,
हम सभ नव फिल्म बनाएब।
मुदा ओहो फिल्मक कथा-वस्तु धार्मिके रहतैक।
भानु बाबू, जँ अहाँ
नव फिल्म निर्माणक विचार केँ पक्का करैत छी त’ हमर एकटा
सुझाव अछि। अपन मिथिला मे
एक सँ एक उच्च कोटिक कवि एवं कथाकार
शहर-शहर, गाम-गाम
मे पसरल छथि। परिस्थितिवश आ पाठकक अभाव मे
हुनकर सभहक रचना प्रकाशित
नहि भ’ पबैए। ओहने एक गोट कथाकार हमर
अबारा नहितन 67
सम्पर्क मे छथि। ओ अपन
रचना हमरा सुनबैत रहलाए। हुनकर एकटा लिखल
नाटक छनि ‘मित्राता’। ई नाटक कृष्ण-सुदामाक मित्रा-भाव पर आधारित अछि।
अहि नाटकक भाषा सरल एवं
संवाद अत्यन्त हृदयग्राही छैक। हमरा ‘मित्राता’
नामक नाटक बड़ नीक लागलए।
अहि अप्रकाशित नाटक केँ हम संगे नेने एलहुँ
अछि। सुदामा-कृष्णक कथा
धार्मिक, मार्मिक एवं मित्राताक उच्च आदर्श पर
स्थापित छैक। अहि धार्मिक
कथाक फिल्म केँ देखनिहारक कमी नहि रहतै। भानु
बाबू, अहि नाटक
केँ अहाँ देखियौ, पढ़ियौ आ फिल्म बनबै लेल बिचारियौ। हमर
आग्रह जँ अति नहि होअय त’ की हर्ज
जे हमरा लोकनि अही नाटकक माध्यमे
मैथिली फिल्म जगत मे
प्रवेश करी।
मदन भाइ बड़ी काल सँ बाजि
रहल छलाह। थाकि क’ ओ चुप भ’ गेलाह।
मदन भाइ बाजि रहल छलाह आ
भानु बाबू सुनि रहल छला। दुनूक बाजब आ
सुनबक बीच हम अनुमान लगा
रहल छलहुँ जे मदन भाइक कथनक एकोटा शब्द
भानु बाबूक कर्णयंत्रा मे
प्रवेश नहि क’
रहल छलनि।
बहुत बिलम्बक बाद भानु
बाबू संक्षिप्त जवाब देलनिअपन मिथिलाक एकटा
मैथिल बहुत दिन सँ फिल्म
लाइन मे कार्यरत छथि। एखन ओ कोनो नामी
डाइरेक्टरक असिस्टेन्ट
बनि फिल्मक सूटिंग क’ रहलाए। फिल्म निर्माणक सभटा
हूनर मे ओ व्यक्ति परंगत
भ’ चुकला अछि। हम हुनका संवाद पठौलियनि अछि।
ओ काल्हि एगारह बजे एतहि
हमर ऑफिस मे औताह। हमर आग्रह होयत जे अहूँ
दुनू निर्धारित समय पर
एतय आबि जाउ। हुनक समक्ष सभ बात राखल जेतैक।
हुनका सँ वार्तालाप केलाक
बादे हमसभ अपन फिल्म कथाक फाइनल करब।
68 केदार नाथ चौधरी
8
दोसर दिन लगभग एगारह बजे
हम आ मदन भाइ भानु बाबूक ऑफिस पहुँचल रही।
ओतय पहिने सँ एक व्यक्ति
उपस्थित रहथि। नाटे कद, हँसमुख चेहरा। हुनकर
परिचय भेटल। दरभंगा जिलाक
मोरो नामक गामक बासी, जनिक नाम छल
परमानन्द चौधरी। चौधरीजीक
बाजब, हँसब, आन-आन तरहक भाव-भंगिमा एवं देह
परहक वस्त्रा सभ किछु
फिल्मी स्टाइल मे। कहल गेल जे परमानन्दजी फिल्म निर्माण
एवं फिल्म उद्योगक तमाम
बारिकीक जानकार छथि। ओहि समय मे फिल्म जगत
मे डाइरेक्टरक पद पर एकटा
मैथिल काज क’
रहलाए ई बड़ पैघ गौरवक बात भेलै।
हमरा दुनू केँ आन्तरिक
प्रसन्नता भेल छल। आब मैथिली भाषा मे फिल्म बनत तकर
विश्वास कायम भ’ रहल छल।
बहुत तरहक हॉट-कोल्ड
ड्रींक एवं हॉट-कोल्ड गप्प-सप्पक बाद भानु बाबू
कहलनिई हमरा सभहक
अहोभाग्य जे फिल्म निर्माण मे निपुण एकटा मैथिल हमर
सभहक फिल्म बनबै मे अपन
मूल्यवान समय,
सहयोग एवं अनुभव देबा लेल तैयार
भ’ गेलाह
अछि। इएह हमर सभहक फिल्मक डाइरेक्टर हेताह। हिनका पारिश्रमिक
किछुओ ने चाही। ई त’ प्रचुर
धन कमाइए रहला अछि। मैथिल छथि तेँ मैथिलीक
सेवा लेल तैयार भेलाह। आब
मुख्य बात पर अबैत जाउ। फिल्म बनबै लेल सभसँ
पहिने फिल्मक कथाक चुनाव
कएल जाए। अहाँ दुनूकेँ आब’सँ पूर्व हम आ डाइरेक्टर
साहेब अपन सभहक मैथिली
फिल्मक कथा की हेतै तकर निर्णय क’ चुकलहुँ अछि।
ई कथा एखुनका समग्र मैथिल
समाज लेल फिट अछि। डाइरेक्टर साहेब केँ समयक
अभाव छनि। ई आइए
संध्याकाल आउटडोर सूटिंग लेल बम्बइ सँ बाहर चल जेताह।
तेँ हमरा दुनूक बीच जाहि
कथाक फाइनल चुनाव भ’ चुकलए तकरा अहाँ दुनू सेहो
सुनिए लिअ।
भानु बाबू वक्ता रहथि, कथा
सुनौलनि।
एकटा ठाकुर, मानि लिअ
पुरना जमींदार। ठाकुर, ठाकुरक पत्नी आ ठाकुरक जेठ
अबारा नहितन 69
विधवा बहिन, परिवार
एतबेटा। परिवारक भीतर ठाकुरक विधवा बहिनक कठोर
अनुशासन एवं एकक्षत्रा
हुकूमत। बाकी खेती-गृहस्थीक काज लेल मुंशी, देवान,
कमतीआ, चरबाह आ
जन-मजदूर। दलान आ आंगनक बीच ठाकुरक आवागमन।
मुदा सभ तरहक काजक संचालन
लेल केवल ठाकुरक विधवा बहिनक आदेश।
ठाकुरक पत्नीक सेवा मे
नियुक्त खबासीन। खबासीन प्रत्याशित रूपे परम सुंदरि।
कथा मे फिल्मक हिरोइनक स्थान
पर खबासीन केँ जगह देल गेल रहए। खबासीनक
पति ठाकुरक मजदूर, जे
ठाकुरेक देल जमीन पर फूसक घर मे रहैत छल आ ठाकुरक
काज क’ बोनि
पबैत रहए। खबासीन केँ दू बर्खक एकटा बेटा।
ठाकुरक पत्नीक प्रसवकाल
मृत्यु। मुदा ईश्वरी चमत्कार, नवजात शिशु बाँचि
जाइए। आब खबासीने ओकर माय, खबासीनेक
दूध पीबि नेना जिबैए। खबासीन
केँ ठाकुरक बेटा लेल
आस्ते-आस्ते स्नेह एतेक प्रबल भ’ जाइए जे ओकरा अपन
जनमाओल बेटाक सोह रहिए ने
जाइए। खबासीनक बेटा टुग्गर बनल गाम मे
बौआइए आ एक दिन पोखरि मे
डुबि क’ मरि जाइए। समूचा गाम मे हाहाकार मचैए
मुदा खबासीन केँ तकर
परबाहि नहि। खबासीन ठाकुरक बेटाक प्रेम मे डुबलि आब
रातिओ मे हबेलिए मे रहैए।
ठाकुर आ खबासीनक बीच
प्रेमालाप। एकर भनक ठाकुरक विधवा बहिन केँ
लागि जाइए। बहिनक कठोर
वचन सुनलाक बादो ठाकुरक रुचि खबासीन मे कम
नहि होइए। नौकर-चाकर आ
खास क’ मुंशी ठाकुरक खबासीनक प्रेमालाप सुनैए
आ गाम मे जहँ-तहँ बजैए।
विधवा बहिन खबासीन केँ अधिक काल दुर्वचन कहैत
छथि। मुदा तकर कोनो असरि
ने ठाकुर पर आ ने खबासीन पर पड़ैए।
समय बितैत छैक। ठाकुरक
बेटाक मंुडन,
उपनयन। खबासीनक एकटा भतीजी
जे बकरीक चरबाही करैए, अधिक काल
ठाकुरेक हबेली मे रहैए। ठाकुरक पुत्रा आ
खबासीनक भतीजीक बीच
खेल-धूप और बहुत किछु... ठाकुरक पुत्रा केँ पढ़ाइ लेल
शहर पठाओल जाइए। ठाकुरक
मृत्यु।
आब ठाकुरक बहिनक एकमात्रा
शासन। विधवा बहिन अपन दुष्ट आ इर्खालु
स्वभावक कारणे खबासीन केँ
यातना देब शुरू केलनि। अत्यन्त गरीबी मे खबासीनक
जीवन-यापन, दुखित
पड़ब, दवाइ-दारुक अभाव आ एक मुट्ठी पुरान अरबा चाउरक
पथक अभाव मे मृत्यु।
ठाकुरक बेटाक पढ़ाइ समाप्त
क’ गाम मे वापस आयब। ओ जे खबासीन केँ अपन
माय मानैत छल तकरा
खबासीनक कष्ट एवं गरीबी मे मृत्युक समाचार ओकर भयंकर
क्रोधक कारण बनल। ओ बखारी
मे आगि लगबै लेल तत्पर भ’ गेल। काले-क्रमे ओकर
70 केदार नाथ चौधरी
क्रोध कम भेलै आ खबासीनक
भतीजी सँ प्रेमालाप बढ़ैत गेलै। अन्त मे ठाकुरक बेटा
सँ खबासीनक भतीजीक बिआह
सम्पन्न होइए। कथा समाप्त।
हम आ मदन भाइ कथा
सुनलहुँ। कथाक रचयिता भानु बाबू छथि वा परमानन्द
जी, किछुओ
भाँज नहि लागल। कथा सुनलाक बाद एकरो जानकारी भेटल जे
ठाकुरक पाट स्वयं भानु
बाबूए करताह। बाँकी कलाकार एवं फिल्म मे काज
केनिहारक, फनकारक
चयन बाद मे कएल जेतै। भानु बाबू कथाक पाठ समाप्त
केलनि आ कहलनिई कथा एहन
अछि जाहि मे ऊँच-नीच, जाति-धर्म इत्यादि सभ
किछुक भेद-भाव मेटा जाइए।
ई कथा मिथिला मे जागरण आनत आ एकरा समस्त
मैथिल स्वीकार करत।
हम आ मदन भाइ बौक भेल
बैसल रहलहुँ। सभकिछु अटपटे लगैत रहए। भानु
बाबूक नियति पर शंका करब
अनुचित छल। मुदा शंका उचित अनुचितक परबाहि
नहि करैए। अनुचित रहितहुँ
सभ तरहक शंका मोन मे पदार्पण क’ गेल छल। भानु
बाबूक चंचलता एवं
व्यग्रता देखि आश्चर्य भ’ रहल छल। कोनो बातक विचार करक
जरूरति भानु बाबू केँ नहि
छलनि। ओ पहिनहि सँ अपन विचारल बात कहैत
रहलाहफिल्म मे पटकथा
तैयार करब सभ सँ कठिन काज। पटकथे मे ड्रामा, थ्रील,
गीत, संगीत
एवं डायलॉगक स्वरूपक स्थान बनैए। परमानंदजी जखन छथिए त’
चिंता कथी लेल? पटकथा
लिखैक अथवा लिखबैक सभटा दायित्व ओ उठा लेलनि।
एतबे नहि, पटकथाक
संग फिल्मक कलाकार, फनकार, मेकअप मैन,
ड्रेस मैन,
कैमरा मैन, साउन्ड
मैन सभहक जोगार परमेनंदजी करताह। आब बचल फिल्मक
संगीत। एखन म्युजिक
डाइरेक्टर मे चित्रागुप्तक स्थान जगजियार अछि, चित्रागुप्त
बिहारेक छथि। जुगुत लगा क’ हम हुनका
अबस्से तैयार क’ लेब। तखन बचल
फिल्म सूटिंगक स्थान। एकर
चयन अहाँ दुनू गोटे पर अछि। आउटडोर सूटिंगक
स्थान अही ँ दुनू केँ
ताकय पड़त।
हम आ मदन भाइ फिल्म
निर्माणक सभटा भार उठबै लेल बम्बइ पहुँचल रही।
मुदा भानु बाबूक तुफानी
निर्णय मे हमसभ भसिया रहल छलहुँ। तेँ चुप भेल बैसल
रहलहुँ आ टकटक तकैत
रहलहुँ। भानु बाबू चुप नहि रहलाह, कहलनिफिल्मक
बजट सेहो अनुमानित भ’ चुकलए।
लगभग तीस-पैंतीस हजार मे फिल्म तैयार भ’
जाएत। फाइनल बजट बनै मे
थोड़ेक समय लगतै। मुदा बेसी सँ बेसी चालिस हजार
सँ बेसी नहि हेतै तकर
करार परमानंदजी क’ चुकला अछि।
भानु बाबूक उत्साह मे
जाहि तरहक बिरड़ो उघिया रहल छल तकर कारण की
भ’ सकैत छलै?
की ओ परमानंदजी सँ अत्यधिक प्रभावित भ’ गेल
रहथि? की हुनकर
अबारा नहितन 71
अंतरात्मा मे किछु विचार, स्वयं
हीरो बनी, पहिने सँ संचित रहए जे एखन अनुकूल
समय भेला पर मुखरित भ’ गेल छल?
सही की छलै तकर अन्वेषण नहि क’
सकलहुँ। भेल की रहै
मात्रा से एखन कहि रहल छी।
हम आ मदन भाइ वापस अपन
होटल एलहुँ। मोन प्रसन्न नहि छल। मोन मे
खतराक बिगुल बाजि रहल छल।
यद्यपि परमानंदजी सँ भेट एवं फिल्म डाइरेक्शन
मे हुनकर दीर्घ अनुभव मोन
केँ थोड़ेक निश्चिंत करैत रहए। तथापि माथ मे चिंता
प्रवेश कैए चुकल छल।
चिंताक कारण रहैक। भारतीय
फिल्मक इतिहास में भाषा नहि भाव प्रधान रहै।
भावक मुख्य स्रोत छल देशक
धार्मिक आस्था। दादा साहेब फाल्केक मूक धार्मिक
फिल्म ‘राजा
हरिश्चंद्र’क स्वागत सम्पूर्ण देश मे भेलै। तकर बाद बनल ‘लंका दहन’
आ ‘कालिया
मर्दन’। दुनू सफल फिल्म धर्मकथे पर आधारित रहए। ताही समय मे
आंचलिक फिल्म बनब सेहो
आरम्भ भेल छलै। तमिल मे ‘कालिदास’ आ तेलगू मे
‘भक्त प्रह्लाद’ बनल।
1931 ई. मे बोल्ती फिल्म ‘आलम आरा’ बनल। 1933 ई. मे पहिल
सामाजिक
फिल्म ‘देवदास’
बनल। शरच्चंद्रक अहि उपन्यासक नायक के.एल. सहगल छलाह।
भारतीय मानस पटल पर
देवदास फिल्मक प्रभाव एतेक ने पड़लै जे तकर बाद
सामाजिक फिल्मक लाइन लागि
गेलै। एक सँ एक हिट फिल्म पर्दा पर देखाओल
जा रहल छलैचन्द्रलेखा, आबारा,
दो बीघा जमीन, प्यासा, मधुमती,
पथेर पंचाली
आदि अनेक प्रसिद्ध फिल्मक
निर्माण भेल। फिल्मक गीत, संगीत, कथा, पटकथा,
एक्टिंग, डायरेक्शन,
छायांकन इत्यादि सभ किछु उच्च शिखर पर पहुँचि गेल रहै।
एहन स्थिति मे मैथिली
भाषाक सामाजिक फिल्म केँ स्थापित करब साधारण
काज नहि छलै। हमरा सभहक
पूजी छल मैथिली भाषाक आकर्षण। मुदा मैथिल
हिन्दी भाषा मे बनल उच्च
कोटिक फिल्म केँ देखैक अभ्यस्त भ’ चुकल रहथि।
भाषाक नाम पर मैथिल केँ
कतेक दूर तक फुसिआओल जा सकैत छल। जँ मैथिली
भाषा मे धार्मिक फिल्म
बनितैक त’ दर्शक संबन्धी अड़चन नहि होइतैक। मुदा एकरा
लेल चाही ओहन ष्टि जे
भविष्यक आकलन क’ सकए। एखन भानु बाबूक आदेश
मे, व्यवहार
मे आ चिंतन मे तकर पूर्णतः अभाव छल।
चिंताक बहुतो कारण छल।
पहिल कारण छल भानु बाबूक पार्टनर बनब।
फिल्म निर्माणक सभटा खर्च
जखन मदन भाइ बहन कर’ लेल तैयारे छलाह तखन
पार्टनरशिपक प्रयोजन किएक? दोसर जे
फिल्म मे भानु बाबू स्वयं एक्ंिटग करथि
सेहो बात सही नहि रहए।
नचबैक स्थान पर स्वयं नाच’ लागी ई एक तरहक
72 केदार नाथ चौधरी
हराकीरी (आत्मदाह) भेल।
तेसर बात जे मदन भाइ फिल्मक खिस्सा लेल धार्मिक
कथाक तर्कयुक्त चर्चा
कयने छलाह। भानु बाबू तकरा एकदमे सँ खारिज क’ देने
रहथिन। पौराणिक कथा आ ओहि
मे वर्णित जीवन-दर्शन मैथिल दर्शक लेल
टॉनिकक काज करितए। फिल्म
निर्माण भेला पर वितरकक अभाव नहि होइत।
एखन जे कथा भानु बाबू
सुनौने रहथि ताहि मे किछु नवीनता नहि रहै। तकर बादो
अहि तरहक मैथिली भाषा मे
बनल सामाजिक फिल्म लेल वितरकक दरकार हैत
जकरा ताकब बड़ कठिन काज
भेल ने!
इएह सभ बात केँ विचारैत
हम आ मदन भाइ राति भरि बिछौन पर करोट
बदलैत-बदलैत भोर केलहुँ।
प्रातःकाल मदन भाइ अपन बिछौन पर बैसले-बैसले
कहलनिकेदार भाइ, जे भ’
रहलैए तकरा होब’ दिऔ। मैथिली भाषाक प्रति
स्नेह
हमराअहाँ केँ एतय अनने
अछि। भाषाक प्रतिष्ठा कोना कायम हेतै ताहि लेल भानु
बाबू सहित सभटा मैथिल केँ
जिम्मेदारी छनि ने! एकटा बात कठोर सत्य छैक जे
हमरा-अहाँ केँ फिल्म
बनबैक लूरि नहि अछि। तखन त’ दोसरेक भरोसे ने काज
हेतैक! एकरो संभावना छैक
जे पहिने सँ हृदय मे संचित मैथिली प्रेमक कारणे भानु
बाबू बावला बनि गेलाए आ
उत्तेजित भ’क’ फैसला क’ रहलाहए। एखुनका
स्थिति
मे हुनका रोकब अथवा टोकब
अनर्थकारी होयत। फिल्म बनब रुकि जायत। तेँ हम
कहब जे नफा-नोकशान केँ
परमेसरक जिम्मा क’ हमसभ भानु बाबूक आदेश केँ
शिरोधार्य करैत रही।
चूड़ा-दही-चीनी भोजन करए
लेल गेल रही। आगू मे पोलाव-विरयानी-मूर्गमोस्सलम
परसि देल गेल। एकटा ध्यान
जेबी पर। मूल्य देल पार लागत आ कि नहि। दोसर
ध्यान पेट पर। भोजन पचत आ
कि नहि। तखन अल्प वयसक व्यग्रता, मैथिली-प्रेम
रेागक विवशता आ ‘जे हेतै
से बुझल जेतै’ बला विचारक अनिवार्यता हमरा
परिस्थितिक अनुचर बना
देलक। हम अपन सनकल बुद्धिक लगाम केँ कसि देलियै
आ भानु बाबूक आदेशक पालन
करैक निश्चय क’
लेलहुँ।
भानु बाबू फिल्मक नाम
रखलनि ‘नैहर भेल मोर सासुर’। फिल्मक नाम
फिल्मक कथा सँ मेल नहि
रखैत छल। मुदा तेँ करी त’ की, हम आ मदन भाइ भानु
बाबूक डेग सँ डेग मिला क’ चलबाक
प्रण क’ लेने रही। फिल्मक प्रसिद्ध नाम
‘ममता गाबए गीत’ त’ बहुत बाद मे फुरायल रहै। ‘इम्पा’
मे फिल्मक पहिल नाम
‘नैहर भेल मोर सासुर’क नामे सँ रजिस्ट्रेशन कएल गेल रहैक।
काज केँ रोकल नहि जा सकैत
छल। फिल्मक नाम रजिस्ट्रेशनक बाद लैबक
चुनाव कएल गेल। फिल्मक
गीत-संगीत रेकार्डिú, एडिटिंग, प्रोसेसिंग
इत्यादि सभ
अबारा नहितन 73
तरहक काज लेल दादर स्थिति
‘बम्बइ लैब’ केँ चुनल गेल रहए। हम आ मदन भाइ
दस हजार टाका ल’क’
बम्बइ लैब पहुँचलहुँ। लैबक मालिक आ एम.डी. कोनो संभ्रान्त
पारसी महोदय रहथि। ओ हमर आ
मदन भाइक चढ़ती जवानी आ ‘चढ़ि जो बेटा शूली
पर’ बला वयसक
बेकलता पर ब्रेक लगबैत कहलनि‘‘थोड़ी सी बात तुम लोग जान
लो तो अच्छा रहेगा। फिल्म
बनाना जोखिम का काम है। सौ फिल्म मेरे लैब में रजिस्टर्ड
होता है जिसमें मुश्किल
से दस-पन्द्रह ही फिल्म फ्लोर पर पहुँचता है। उसमें से एक
या दो फिल्म ही बनकर
तैयार होता है। उसके बाद वितरक का कारगुजारी और उसका
पेचीदा कन्ट्रैक्ट। सभ के
अन्त मे पब्लिक का पसंद और नापसंद। फिल्म फ्लाप होने
का डर से निर्माता
रात-रात भर सो नहीं पाता है। मेरी राय मे जल्दबाजी मत करो।
फिल्म उद्योग में भी कुछ
अच्छे लोग हैं। उनसे विचार लो। फिल्म बनाने की बात अगर
पक्की हो तो समझबूझ कर
कहानी का चुनाव करो। जानकार लोगों से पटकथा तैयार
कराओ। कहने का मतलब है कि
अच्छी तरह होम वर्क कर लो। उसके बाद ही लैब
में रजिस्ट्रेशन का दस
हजार रुपया जमा करो। दस हजार रुपैया एक भाड़ी रकम है
और वह डूब जाने का खतरा
है। तुम दोनों उमर के कच्चे हो। मेरा अगर कहा मानो
तो फिल्म के धंधे से तौबा
कर लो। यह बहुत ही गंदा काम है। नये-नये लोगों के लिए
यह धंधा आत्मघाती है।
इसमें इतना फिसलन है कि बड़ा-बड़ा बाजीगर भी गुमसुदा
हो जाता है। मैंने अपनी
बात कह दी, आगे तुम्हारी मर्जी।’’
चेतावनी भेटल छल आ सेहो
सोझ भाषा मे। मुदा हमर सभहक आतुरता मे तेहन
ने गति रहए जे हमसभ
चेतावनी केँ ग्रहण कर’ लेल बुद्धि नहि रखैत छलहुँ। दस
हजार टाका जमा कएल।
रजिस्ट्रेशनक कागत प्राप्त केलहुँ।
प्रोड्यूसर बनब फिल्मी
संसार में बड़ पैघ ओहदा। बम्बइ लैब मे जखने किओ
रजिस्ट्रेशन करैए एकर
खबरि सिनेमा जगत मे आगि जकाँ पसरि जाइए। जेना कोनो
तीर्थ मे अनेरो पंडा अहाँ
मे सटि जाएत,
तहिना लैबक मुख्य दुआरि पर अबैत-अबैत
अनेक अनजान लोक हमरा दुनू
मे सटि गेल रहए। विभिन्न तरहक प्रलोभन भेटल,
अता-पता दिअ पड़ल। ‘‘अच्छा तो
बिहार प्रांत की भाषा है मैथिली। अरे, अभी-अभी
बिहार की दूसरी भाषा
भोजपुरी फिल्म का भी रजिस्ट्रेशन हुआ है। फिल्म का नाम
क्या है? नाम है ‘गंगा मैया तोहे ँ पिअरी चढ़ैबो’।’’
भोजपुरीक प्रथम फिल्मक
निर्माण संबन्धी सूचना भेटल रहए। फिल्मक नामे
कहि रहल छलै जे फिल्म
धार्मिक छैक। धार्मिक फिल्मक माने रहै, एकटा संदेश रहै।
हमरा आ मदन भाइ केँ अपन
मैथिली भाषाक फिल्म ‘नैहर भेल मोर सासुर’ मे
ढोल-पिपहीक ध्वनि
कर्णगोचर होब’
लागल रहए।
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भानु बाबूक पत्रा भेटल।
सूचना छल जे स्क्रिप्ट अर्थात् पटकथा तैयार भ’ गेलए। हम
दुनू गोटे दोसर खेप बम्बइ
जएबा लेल तैयार भ’ रहल छलहुँ। बम्बइ मे भानु बाबूक
कइएक गोट सभ्रान्त मैथिल
बंधु सँ जान-पहिचान। ओहि मे सँ कइएक बंधुक डेरा
गाहे-बगाहे खालिए रहैत
छल। भानु बाबू ओहने खाली पड़ल डेराक इन्तिजाम क’
क’ रखने
रहथि जे हमरा सभहक अगिला बम्बइ प्रवास मे आवास बनैत। आब होटल
मे रहबाक जरूरति नहि। अइ
बेर मदन भाइक नीजक सेवक लखन सेहो संगे
जायत। बर्तन-बासन, ओछैन-बिछौन
संगे घी-अँचारक मोटरी बान्हल जा रहल छल।
हम आ मदन भाइ फिल्मक
गप्प-सप्प क’
रहल छलहुँ। एकाएक मदन भाइ केँ
किछु मोन पड़लनि। ओ चिहुकैत
कहलनिकेदार भाइ, एकटा मैथिल कवि जनिक
नाम छन्हि रवीन्द्रनाथ
ठाकुर, आ जे धमदाहा, पुर्णियाँ जिलाक निवासी छथि तनिक
रचना सुनक अवसर भेटल छल।
हुनकर रचल गीत बड़ नीक लागलए। ओ एखन
अही शहर मे छथि। हमर सभहक
फिल्म मे गीत सेहो रहतै ने! गीत त’ कियो लिखबे
करताह ने? ओना त’
मिथिला मे कविक कमी नहि अछि। मुदा हमरा नजरि मे
रवीन्द्र अलग किस्मक
गीतकार छथि। हम आ अहाँ बम्बइ प्रस्थान सँ पहिने जँ
हुनका सँ भेट करिअनि ताहि
मे कोनो हर्ज?
एकदमे सँ कोनो हर्ज नहि।
अपन सभहक फिल्म मे कथाक निबटारा भ’
गेलए। कथाक साज-शृंगार
लेल पटकथा सेहो बनि चुकलैए मुदा गीत-संगीत सँ जे
फिल्मक धमनीक रक्त-प्रवाह
हेतै, से त’ बाँकिए छैक। रवीन्द्र सँ भेट करक लेल
चलल जाए।
लहेरियासरायक बलभद्रपुर
मोहल्ला। माटि सँ लेबल एकटा घर मे मात्रा एकटा
कोठली। देबाल मे नोनी
लागल आ नीचाँ कच्चा फर्श मे कइएक ठाम चालीक
भुरभुरी। अखरा चौकी पर
चित्त भेल रवीन्द्रजी सुतल छलाह। हमरा सभ केँ देखतहि
ओ हड़बड़ाइत उठि क’ ठाढ़
भेलाह। कोठली मे फर्नीचरक नाम पर एसगरे चौकी
अबारा नहितन 75
मुँह बौने पड़ल रहए। चौकिए
पर हम तीनू विराजमान भेलहुँ।
परिचय-पात भेल। हम सभ
किएक रवीन्द्रजी सँ भेट करए गेल रही तकर
जानकारी हुनका देलियनि।
आग्रह केलियनि जे ओ अपन रचल एक-दू गोट गीत
सुनाबथि। रवीन्द्र मुँहक
पान थुकरलनि,
गमछा सँ ठोर पोछलनि आ चौकी पर पलथी
मारि बैसि गेलाह। मात्रा
किछु मिनटक विश्रामक बाद ओ गीत सुनबए लगलाह।
उजड़ल कोठली गमकि उठल।
उपनयनक समय मे ढोल-पिपहीक
धमगज्जर ध्वनि मे लपेटल गीत, चतुर्थी
रातिक कनिआँ-वरक प्रथम
मिलन मे लजायल-सकुचायल-सिहरैत गीत, दुरागमनक
समय मे बेटीक नोर मे भीजल
गीत, गामक छौंड़ीक काँख तर दाबल छिट्टा-खुरपीक
खनखन गीत। सभ गीत मे
मिथिलाक माटिक अनुपम सुगन्धि। कोमल, हृदय-स्पर्शी
आ नैसर्गिक गीत
रवीन्द्रजी सुनौलनि। हाय रे मिथिला! तोहर नुकायल खजाना मे
कतेक रत्न-जवाहरात भरल छौ? तखने हम
आ मदन भाइ निश्चय क’ लेलहुँ जे प्रथम
मैथिली फिल्मक गीत
रवीन्द्रे रचताह।
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