1
भरि नगरी में सोर, बौआ मामी तोहर गोर
मामा चान सन...
नानी-नाना दूनू तोहर, खाली गाल बजाबय
बाबी तोहर गंगा सन छौ, बाब बनल हिमालय
मौसा तोहर चोर, मौसी मँूहक बड़जोर
मैया पान सन...
थैया-थैया चलू कन्हैया, जहिना भोर बसात
धरती मैया सब दुखहरनी, खसब ने कोनो बाट
बौआ मोती सन ई नोर, बीछत खाली आँचर मोर
अपने प्राण सन...
अपना कुल के लाल कमल तोँ, काकीक सुगा-मैना
एहि दुनिया के हँसी-खुशी आ बापक नेह-खिलौना
तो आशक चकमक भोर, हँसिदे खोलिके दूनू ठोर
फूटल धान सन...
2.
चलल कहरिया से कोने नगरिया
जाइछ ककर दुलार...
धीरे-धीरे लय चल डोलिया कहरिया
ने डोलय पड़ल ओहार...
युग-युग जरत सिनेहक बाती
तैयो तहत अन्हार...
चलल कहरिया...
चल बरू जाह ने बिसरब तोहरा
फुजले रहत केबार
घर-घर घुमि-घुमि तोहर कथा ई
बहि-बहि कहत बयार...
चलल कहरिया...
3
मिथिला केर ई माँटि उड़ल अछि, छूबय गगनक छाती
भरि दुनिया केर मंगल हो, आ जन-जन गाबय प्राती
हाँ रे कह भैया रामे-राम हो भाइ, माता जे बिराजै मिथिले देश मे
नन्दन बन सन सुन्दर मिथिला, इन्द्रक धनुष समान
कालिदास आ मंडन के घर, बुद्ध बनल भगवान
चल भैया चलू ने, माता जे बिराजै मिथिले देश मे...
हम अयाची हम नहिं माँगी, मंगनी केर वरदान
जनकक आँगन लछमी नीपलि, हम तकरे संतान
चलू भैया चलू ने, माता जे बिराजै मिथिले देश मे...
अपना प्रेमे स्वर्गो जीतल, उगना बनल महेश
एखनौ कोकिल पंचम गाबय, विद्यापति के देश
चलू भैया चलू ने, माता जे बिराजै मिथिले देश मे...
4
अर्र बकरी घास खो, छोड़ गठुल्ला बाहर जो
लरू खुरू बिन केने बहिना, पेट भरल कि ककरो
उर चिड़ैया खोंता छोड़, चोंच खोलिके दाना खो
आँखि-पाँखि जकरा छै जगमे, भूख मरल कि कहियो
अर्र बकरी, गे बकरी घास खो...
करनी-धरनी किछु नहिं जिनकर, हुनकर जीवन भारी
घामे भीजल चाम जकर छै, आयल तकरे बारी
चल कुकुरबा टहल लगो, अंगना-घरक ममता छोड़
मनुख शिकार बनल अछि अपने, आब के कहतौ हियो-हियो
अर्र बकरी, गे बकरी घास खो...
पेट भरल पर दुनिया लागय, सूरदास के हरियर
प्रेमक हाथी बने फतिंगा भूखक जादू जड़गर
भूख-भूख कहि उठता क्यो, अपने पर खौंझेता क्यो
रे मुर्गा तो चढ़ गुलौरा, आलस के लतियौने जो
अर्र बकरी, गे बकरी घास खो...
शीतक गोटा चकमक शोभय, हरियर धरतीक साड़ी
प्रेमक फूल जगत भरि गमकै, गाबय भँवरा कारी
रे परबा तोँ अंडा फोर, ज्ञानक गेल्हक भरिदे कोर
कहै रे कौवा टाहि लगाकय, आन्हर भुन्नो पड़ो-पड़ो
अर्र बकरी, गे बकरी घास खो...
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