Wednesday, December 26, 2012
Tuesday, December 25, 2012
Sunday, December 23, 2012
Friday, December 21, 2012
FARMHOUSE CHICKEN EFFECT-ALL WHITE, BRAHMIN AND IMPOTENT -SAHITYA AKADEMI ANNOUNCES YUVA AWARD IN MAITHILI (REPORT GAJENDRA THAKUR)
१
साहित्य अकादेमी द्वारा युवा पुरस्कारक भेल घोषणा। हिन्दीमे लिखैबला द्वारा मैथिलीमे मात्र पुरस्कार लेल लिखल जेबाक प्रवृत्ति, जे सुखाएल मुख्यधारामे पहिनेसँ रहल अछि, आ तकरा (नव) ब्राह्मणवादक अन्तर्गत पुरस्कृत कएल जेबाक प्रवृत्ति ओइमे सेहो रहल अछि, आब तकर प्रसार ओ अपन जातिवादी युवा मध्य केलक अछि । चेतना समिति आदि संस्था (नव) ब्राह्मणवादी कट्टरताकेँ ब्राह्मण युवा वर्ग मध्य पसारैत रहबाक चेष्टा करैत रहैत अछि। पोथीक क्वालिटीक स्थानपर चमचागिरी, लेखकीय दायित्वक स्थानपर जातिवादी कट्टरता चलिते रहत? स्टेटस कोइस्ट युवाकेँ, वैज्ञानिक (नव) ब्राह्मणवादी युवा जे अहाँक जातिवादी विचारधाराकेँ चैलेन्ज केनाइ तँ दूर, ओइमे सहयोग करए, की ऐ तरहक तत्वकेँ बढ़ावा दऽ अहाँ मैथिली साहित्यक पुनर्जागरण बाधक तत्व नै बनि रहल छी।
"निश्तुकी" कविता संग्रहकेँ पुरस्कार नै भेटए ओइ लेल महेन्द्र झाकेँ सहरसा" सँ, देवेन्द्र झाकेँ मधुबनी (संप्रति मुजफ्फरपुर)सँ आ योगानन्द झाकेँ बदनाम कबिलपुर गैंगसँ बजाओल गेल आ ई भार देल गेल। आ ओ सभ चुनलन्हि अरुणाभ "झा" सौरभ केँ। सायास "निश्तुकी" कविता संग्रह साहित्य अकादेमी द्वारा नै मंगाओल गेल, जे एकटा इलीगल काज अछि। हरबर-दरबरमे निर्णय कएल गेल, आब जएह पोथी आबि सकल ओही मध्यसँ ने निर्णय हएत, से तर्क देल गेल। पूर्ण रूपसँ फार्म हाउस चिकेन (उज्जर, ब्राह्मण आ नपुंसक) मैथिल ब्राह्मण जूरी चुनल गेल जे कोनो रिस्क नै रहए।
ऐ इलीगल काजकेँ हर स्तरपर चुनौती देल जाएत।
मूल पुरस्कार लेल शेफालिका वर्माकेँ चुनल गेल छन्हि आ अनुवाद पुरस्कार लेल महेन्द्र नारायण रामकेँ- दुनू गोटेकेँ बधाइ। संगमे नचिकेताक "नो एण्ट्री: मा प्रविश", सुभाष चन्द्र यादवक "बनैत बिगड़ैत" आ जगदीश प्रसाद मण्डलक "गामक जिनगी"क विरुद्ध "निश्तुकी" विरोधी तत्व जे तीन सालसँ जान प्राण लगेने अछि जे ऐ पोथी सभकेँ मूल पुरस्कार नै भेटैक, से घोर निन्दनीय अछि। "नो एण्ट्री: मा प्रविश" २००८ मे प्रकाशित रहै आ ई किताब अगिला सालसँ पुरस्कारक रेसमे नै रहत, ऐ पोथीकेँ मूल साहित्य अकादेमी नै भेटि सकत। मुदा की एकर स्थान मैथिलीक पहिल आ एखन धरिक एकमात्र पोस्टमॉडर्न ड्रामाक रूपमे बरकार नै रहत, की ब्राह्मणवादी विचारधारा ई स्थान ऐ पोथीसँ छीनि सकत? सुभाष चन्द्र यादवक "बनैत बिगड़ैत" आ जगदीश प्रसाद मण्डलक "गामक जिनगी" अगिला साल सेहो रेसमे रहत। मुदा तारानन्द वियोगी आ महेन्द्र नारायण राम किए (नव वैज्ञानिक) ब्राह्मणवाद द्वारा स्वीकृत छथि आ सुभाष चन्द्र यादव आ मेघन प्रसाद अस्वीकृत ओइ आलोकमे सुभाष चन्द्र यादवक "बनैत बिगड़ैत" क विरुद्ध रामदेव झा- योगानन्द झा- महेन्द्र मलंगिया-मोहन भारद्वाज-मायानन्द मिश्र आदिक षडयंत्र सफल भैयो जँ जाए तँ की सुभाष चन्द्र यादवक मैथिली पाठकक हृदए मे जे स्थान छै, से की कम कऽ सकत ई षडयंत्रकारी सभ? जगदीश प्रसाद मण्डलक "गामक जिनगी"क स्थान मैथिलीक आइ धरिक सर्वश्रेष्ठ लघुकथा संग्रहक रूपमे बनि गेल अछि, की ओ स्थान कियो दोसर छीनि सकत?
पढ़ू निश्तुकी आ चमेटा मारू महेन्द्र झा, देवेन्द्र झा आ योगानन्द झाकेँ -
निश्तुकी
नीचाँमे युवा पुरस्कारक साहित्य अकादेमीक निर्णय तीन पन्ना दऽ रहल छी, एकर प्रिंट आउट करू आ मिथिलाक गाम-गाममे जराबू।
२
विदेहक सम्बन्धमे धीरेन्द्र प्रेमर्षिकेँ एकटा फकड़ा मोन पड़ल छलन्हि- "खस्सी-बकरी एक्कहि धोकरी"। राजा सलहेसक गाथामे जतऽ सलहेस राजा रहै छथि चूहड़मल चोर भऽ जाइ छथि आ जतऽ चूहड़मल राजा रहै छथि सलहेस चोर भऽ जाइ छथि। साहित्यक ब्राह्मणवाद जातिक आधारपर समीक्षा करैए, समानान्तर परम्पराक उदारवाद कट्टरता विरोधी अछि। समानान्तर परम्परा मिथिला आ मैथिलीक उदार परम्पराकेँ रेखांकित करैए तँ ब्राह्मणवादी समीक्षाकेँ मिथिलाक कट्टर तत्व प्रभावित करै छै। समानान्तर परम्पराक घोड़ा ब्राह्मणवादी समीक्षामे गधा बनि जाइए, आ ब्राह्मणवादी साहित्यमे तँ गधा छैहे नै, सभ घोड़ाक खोल ओढ़ने छै। आ सएह कारण रहल जे मैथिलीक सुखाएल मुख्य धाराक साहित्य दब अछि। आ सएह कारण रहल जे अतुकान्त कविता हुअए बा तुकान्त, बहरयुक्त गजल हुअए बा आजाद गजल; रोला, दोहा,कुण्डलिया, रुबाइ, कसीदा, नात, हजल, हाइकू, हैबून बा टनका-वाका सभ ठाम समानान्तर परम्परा कतऽ सँ कतऽ बढ़ि गेल; नाटक-उपन्यास-समीक्षा, विहनि-लघु-दीर्घ कथा सभ क्षेत्रमे अद्भुत साहित्य मैथिलीक समानान्तर परम्परामे लिखल गेल मुदा ब्राह्मणवादी सुखाएल मुख्यधारा आ जातिवादी रंगमंच छल-प्रपंच आ सरकारी संस्थापर नियंत्रणक अछैत मरनासन्न अछि।
नीचाँमे युवा पुरस्कारक साहित्य अकादेमीक निर्णय तीन पन्ना दऽ रहल छी, एकर प्रिंट आउट करू आ मिथिलाक गाम-गाममे जराबू।
Wednesday, December 19, 2012
अबारा नहितन- केदार नाथ चौधरी(मैथिलीक पहिल फिल्म ‘ममता गाबए गीत’ कोना बनल तकर रोचक कथा- संस्मरणात्मक उपन्यास)PART II
अबारा नहितन- केदार नाथ चौधरी (मैैथिलीक पहिल फिल्म ‘ममता गाबए गीत’ कोना बनल
तकर रोचक कथा- संस्मरणात्मक उपन्यास)- PART_II
हम, मदन भाइ,
रवीन्द्र आ लखन आधा दर्जन मोटरीक संग बम्बइ लेल ट्रेन
पकड़लहुँ। दादर स्टेशन पर
भानु बाबू पहिने सँ उपस्थित रहथि। रवीन्द्र केँ देखितहि
हुनक आँखिक ऊपर भहुँ बक्र
भ’ गेलनि। हमरा एक कात एकांत मे ल’ गेलाह आ
कहलनिजकरा-तकरा संग ल’ लैत
छियैक। फिल्मक ‘कौस्ट’ बढ़ि रहल छैक
ताहि
दिस ध्यान नहि जाइए?
ताहि समय मे दरभंगा सँ
बम्बइ तकक यात्रा मे हारल पहलवानक थकान। भानु
बाबूक उपराग सुनि क्रोध
भेल रहए, मुदा तकरा हम पीबि गेलहुँ। हमर सभहक डेरा
तारदेव मोहल्ला मे लगे मे
समुद्रक पेट मे बनल महालक्ष्मी मंदिर। समुद्रक काते-कात
पथार लागल सिमेन्टक
ब्रेंच। साँझक समय, समुद्री हवा आ समुद्रक तरंग मे
छिड़िआयल खाम्ह सँ बिजलीक
ज्योति बम्बइ शहर केँ मादक बना देने छलै। भानु
बाबूक संग हम तीनू ब्रेंच
पर आराम सँ बैसि गेलहुँ। हम रवीन्द्र केँ आग्रह
केलियनि। ओ अपन सीता नामक
खण्ड-काव्यक पाठ शुरू केलनि। रवीन्द्रक
कविता पाठ मे प्रत्येक
ऋतुक संगीत,
प्रत्येक फूलक पराग आ प्रत्येक भाव-भंगिमाक
सचित्रा छवि निवेदित छल।
भानु बाबूक आँखि मे चमक आबि गेलनि।
तकर बाद रवीन्द्र गीत
सुनबए लगलाह। ‘चलू चलू बहिना, जहिना छी तहिना।
लाल भैया ल’क’
अयलायुह, लाले-लाले कनिआँ।’’ एक गीत, दोसर गीत, तेसर
गीत। भानु बाबू
मंत्रामुग्ध भ’
गेलाह। हमर हाथ पकड़ि फेर ओ हमरा एकांत मे ल’
गेलाह आ नोरायल आँखिए कह’ लगलाहई
व्यक्ति जनिकर नाम रवीन्द्रनाथ ठाकुर
76 केदार नाथ चौधरी
अछि, विलक्षण
प्रतिभाक स्वामी छथि। हिनकर गीत मे मिथिलाक संवेदनशीलता
मुखरित होइए। हिनकर
प्रत्येक गीत सँ एक नव खिस्साक निर्माण भ’ सकैए।
रवीन्द्रक गीत मिथिला मे
गीत-संगीतक एकटा नवयुग आनत तकर हम कल्पना
करैत छी। हमहूँ कविता
रचैत छी आ सोचने रही जे अपन फिल्मक गीत हमहीं
लिखब, मुदा से
नहि। रवीन्द्रक परिचय पाबि हम अपन विचार केँ तिलांजलि द’
देलए। अपन फिल्मक गीतकार
रवीन्द्रे हेताह। हम अहाँ केँ आ महंथजी केँ धन्यवाद
दैत छी जे रवीन्द्र सनक
होनहार एवं प्रतिभासम्पन्न कवि केँ तकलहुँ आ बम्बइ
अनलहुँ अछि।
गीतकार भेला रवीन्द्र। आब
‘म्युजिक डाइरेक्टर’क खोज। आंचलिक भाषाक
फिल्म आ कमजोर बजट। मुदा
इच्छा आकाश मे ठेकल। बंग भाषाक प्रसिद्ध गायक
आ संगीतकार हेमंत कुमार
हिन्दी फिल्म मे सेहो तहलका मचौने रहथि। मोन पाड़ियौ
नागिन फिल्मक गीत ‘मन डोले
तन डोले’। मदन भाइक कहब जे थोड़ेक खर्च बढ़तै
त’ बढ़तै।
हेमंत कुमार बंगालक थिकाह आ हुनका विद्यापतिक कविता सँ परिचय
हेबेटा करतनि। विद्यापतिक
कविताक यद्यपि अपन राग एवं लय छैक, तथापि हेमंत
कुमार सनक म्युजिक
डाइरेक्टर ओहि मे अधिक माधुर्य भरि देथिन। भानु बाबू केँ
से पसिन्न नहि। ओ
चित्रागुप्त नामक म्युजिक डाइरेक्टरक पक्ष मे रहथि। चित्रागुप्त
बिहारेक छला आ हुनकर
कनेक्शन ‘इन्डियन नेशन’ अँग्रेजी समाचारपत्राक एडिटर
सँ छलनि। उत्साह एवं
विश्वास उमंग-तरंग मे भानु बाबूक संग हम सभ चित्रागुप्तक
निवास पर पहुँचलहुँ।
हुनकर ठोका सनक जवाब‘‘मैंने भोजपुरी भाषा की फिल्म
‘गंगा मैया तोहे पिअरी चढ़ैबो’
का म्युजिक देने का करार कर लिया है। अब अगर
मैं दूसरा आंचलिक फिल्म
में म्युजिक देने की बात को स्वीकार करूँगा तो मेरा
कॅरिअर खतरे मे आ जाएगा।
मुझे हिन्दी फिल्म मे काम मिलना बंद हो जाएगा।
मैं अपने कॅरियर के साथ
और रिस्क नहीं ले सकता हूँ।’’
‘आश निराश भयो’ बला मानसिक स्थिति मे आबि गेलहुँ। एकाएक श्याम
शर्मा नामक एकटा नव
म्युजिक डाइरेक्टर प्रगट भेला। हारमोनियम ओ संगे अनने
रहथि। श्याम शर्मा फर्श
पर बैसि गेलाह आ विद्यापतिक गीत ‘तोहे जनु जाह विदेश’
गाबए लगलाह। श्याम शर्माक
आवाज अत्यन्त मधुर छलनि। हुनकर कंठ सँ
बहरायल विद्यापतिक गीत
हमर सभहक हेरायल, मुतिआयल आ चिंता मे उब-डुब
करैत मनोदशा केँ तरोताजा
क’ देलक। श्याम शर्माक वर्ण श्यामे रहनि। ओ पटनाक
नजदीक खगौलक बासी रहथि।
फिलिप्सक ऑल इन्डिया म्युजिक कम्पीटीशन मे
ओ महेन्द्र कपूरक संग
शीर्ष गायक घोषित भेल छलाह। फाइनल गीत रेकार्डिंगक
अबारा नहितन 77
समय जखन हुनकर आवाजक
पैमाइश ध्वनिनियत्रांक यंत्रा पर भेल छलनि तखन ओ
पार्श्वगायक पद लेल असफल
भ’ गेल रहथि। महेन्द्र कपूर पार्श्वगायक बनलाह आ
श्याम शर्मा म्युजिक
डाइरेक्शनक क्षेत्रा मे अपन भाग्यक अजमाइस करैत बम्बइए मे
रहि गेल छला। म्युजिक
डाइरेक्टरक अइ फिल्मक बादे श्याम शर्मा अपन नामक
टाइटिल बदलि श्याम सागर
बनि प्रसिद्ध भेल रहथि।
एकटा साँच बात कहब जरूरी
भ’ गेलए। यद्यपि श्याम शर्मा हमर सभहक
फिल्मक म्युजिक डाइरेक्टर
रहथि, मुदा एकटा विद्यापतिक गीत केँ छोड़ि बाँकी
रवीन्द्रक सभटा गीतक स्वर, तर्ज एवं
लचकक निर्माण जन्मजात कलाप्रवीण रवीन्द्र
स्वयं कयने रहथि। गीतक पद
मे भरल स्वरक आरोह-अवरोह रवीन्द्रेक छलनि। श्याम
शर्मा विभिन्न वाद्ययंत्राक
ध्वनि गीत मे पिरौने छलाह।
आब गीत के गौताह तकर
विचार होब’ लागल रहए। लता एवं रफीक फीस
लगभग तीन हजार टाका प्रति
गाना। तकर अलावा हुनक दुनू सँ डेट प्राप्त करब बड़
मुश्किल काज छल। तखन सभटा
विचार केलाक बाद जे फाइनल भेल से कहैत छी।
‘तोहे जनुजाह विदेस’ आ ‘भरि नगरी मे सोर, बौआ मामी
तोहर गोर’ दुनू गीत सुमन
कल्याणपुरी, ‘मैया
हौउ विराजे मिथिला देश मे’ महेन्द्र कपूर, ‘अर्र बकरी घास खो’
गीतादत्त, ‘कनी
बाजू अमोल बोल भउजी’ कृष्णा कल्ले आ समदाउन स्वयं श्याम
शर्मा
गौलनि। अहि तरहें फिल्मक
सभटा गीतक रेकर्डिंग बम्बइ लैब मे तैयार भेल छल।
गीत-रेकर्डिंगक काल बहुत
तरहक कटु अनुभव भेल रहए जाहि मे सँ किछुएक
हम चर्चा करब। सुमन
कल्याणपुरी केँ दू गीतक फीस चौदह सय टाका देने
रहियनि। मुदा हुनकर
पतिदेव तीन सय टकाक रसीद देलनि आ कहलनि‘‘फिल्म
जगत मे ऐसा ही होता है।’’
विद्यापतिक ‘तोहें जनु
जाह विदेस’ नामक गीतक रेकर्डिंग समाप्त भेला पर
गायिका सुमन कल्याणपुरी
पुछने छलीह‘‘ये विद्यापति कौन थे?’’ हुनकर अज्ञानता
पर क्षोम भेल रहए।
विद्यापति के छलाह, एहनो अनर्गल प्रश्न पूछल जेबाक चाहैत
छल? मुदा
तखने ध्यान मे आयल जे मराठी महिला मिथिला सँ दूर क्षितिजक ओहि
पारक छलीह। हुनका जखन
विद्यापतिक परिचय एवं गीतक भावार्थ बुझा देलियनि
तखन ओ कहने छलीह‘‘आह!
विद्यापति एक अच्छे शायर थे।’’
तहिना ‘अर्र बकरी
घास खो’ नामक गीतक रेकर्डिंग काल गीतादत्तक भावनात्मक
समस्या सँ पाला पड़ल रहए।
गीतादत्त केँ अपन पति प्रसिद्ध फिल्म निर्माता गुरुदत्त
संग अनबन चलि रहल छलनि।
गीतादत्त दिन-राति नशा मे बूत्त रहैत छलीह। चारि
दिनक सिटिंग बर्बाद भेल
रहए। बम्बइ लैबक रोजक फीस आ वाद्ययंत्राक खर्चक
78 केदार नाथ चौधरी
कारणे आर्थिक संकट मे पड़ि
गेल रही। आरजू-मिनती केलाक बाद पाँचम दिन गाना
टेक भेल छल। गीतादत्त आ
गुरुदत्तक समस्या सही मे एतेक गंभीर छलनि जे किछुए
दिनक बाद गुरुदत्त
आत्महत्या क’
लेने रहथि। काफी मेहनत आ दौड़-धूपक बाद
‘ममता गाबए गीत’ फिल्मक सभटा गीतक रेकर्डिंग समाप्त भेल छल आ म्युजिक
खर्च कुल चौदह हजार टाका
एकाउन्ट बुक मे दर्ज कएल गेल रहए।
आब फिल्मक कलाकार एवं
फनकारक तलाश शुरू भेल। कैमराक आगाँ जनिक
किरदारी अहाँ सिनेमा मे
देखैत छियैक से भेलाह कलाकार। कैमराक पाछाँ कैमरामैन,
डाइरेक्टर, साउन्डमैन,
लाइटमैन, मेकअपमैन आदि भेलाह फनकार। जेना कहि
चुकल
छी जे फिल्म निर्माताक पद
बड़ पैघ होइए। हेंजक-हेंज कलाकार एवं फनकार हमर
सभहक डेराक तिरपेछन कर’ लागल
रहथि। बहुतो सँ भेट केलियनि, बहुतो केँ
आश्वासन देलियनि आ ओही मे
थोड़ेक संग कन्टैªक्ट फाइनल सेहो कयलहुँ।
प्रसिद्ध चरित्रा अभिनेता
अभि भट्टाचार्य सेहो सम्पर्क कयने रहथि। फिल्म मे
ठाकुरक पाट लेल ओ फिट
रहितथि। मुदा ठाकुरक पाट भानु बाबू स्वयं करताह।
तखन अभि भट्टाचार्यक कोन
काज? ठाकुरक बेटा अर्थात् फिल्म मे हीरोक किरदार
लेल त्रिदीप कुमारक चयन
कएल गेल। त्रिदीप कुमार बानू छपड़ाक मैथिल रहथि।
पछिला पाँच बर्ख सँ हीरो
बन’ लेल ओ फिल्म जगत मे तपस्यारत छलाह। त्रिदीप
कुमार सज्जन, फिल्मक
जानकार एवं पर्सनेल्टीक धनी छलाह। साइड हिरोइन लेल
लता बोस केँ सभ पसिन्न
केलनि।
आब फिल्मक मुख्य हिरोइन
अर्थात् ठाकुरक खबासिनक खोज शुरू भेल। बहुतो
साइड हिरोइनक कोठी पर माथ
पटकलहुँ। अन्त मे अजराक मकान पर पहुँचलहुँ।
बम्बइ शहरक अट्टालिकाक
बीच सँ कोनो मृगनयनी सोझा मे आबि गेलि होथि आ
हुनका देखितहि मोन मे
नुकायल रतिक सोआमी कामवाण छोड़ै लेल उद्यत भ’ गेल
होथि तेहने बोध भेल छल।
सौन्दर्यक प्रतिमा अजरा केँ देखि क’ निरामिष मदन भाइ
केँ हिचकी उठि गेलनि।
हमरा संशय होम’
लागल छल जे कहुँ मदन भाइक संन्यास
धर्मक पतन ने भ’ जानि।
अहाँ वाजिब प्रश्न करब जे केदार भाइ, अहूँक वयस त’
मदन भाइक वसयक समकक्षे
रहल होयत? की अहाँ मदनोन्मुख नहि भेल रही? हमर
जवाब अछि जे हम फिल्मक
खर्चा-बही लिखैत रही। कॉमर्सक विद्यार्थी कवि नहि
बनि सकैए। सदिकाल हमर
आँखि फिल्मक बजट मे केन्द्रित रहैत छल। फूलक
गमक, गीतक
मधुरता आ कि सौन्दर्यक पराग हमरा लेल किछु माने नहि रखैत छल।
खर्चाबही लिखनिहारक मनोरथ
ओहुना दग्ध भेल रहैत छै। हम समयक कतरन बनल
फिल्मक काज क’ रहल
छलहुँ।
अबारा नहितन 79
अजरा केँ देखि मदन भाइक
कंठ सँ हिन्दी कविता धाराप्रवाह बाहर निकल’
लागल‘कछु आप
हँसे, कछु नयन हँसे। कछु नयनन बीच हँसे कजरा।’ एकाएक
मदन भाइ कोंकिएलाअपन सभहक
फिल्मक नाम हेबाक चाहीनयनन बीच
हँसए कजरा।
मदन भाइ अजराक सुन्दरता
मे रिझि गेल रहथि। मानलहुँ जे अजरा परम सुन्दरी
छलीह। अजराक सुन्दरताक
कारणे ठाकुर जे बुढ़ारीक सीढ़ी पर पयर राखि चुकल
रहथि से फिल्मक कथाक
मोताबिक मदान्ध भ’ जाइत छथि। मुदा तेँ की? हम
लोहछि क’ मदन भाइ
केँ कहलियनिफिल्मक हिरोइन अर्थात् ठाकुरक खबासिन।
खबासिनक जखन फिल्म मे
इन्टरी होइत अछि ताबे तक ओ दू बर्खक बेटाक माय
बनि गेलि रहैत छथि। फिल्म
मे अजराक सुन्दरताक पसाही थोड़बे दूर तक रहैए।
ठाकुरक देहावसान भेला पर
ठाकुरक विधवा बहिनक खबासिनक प्रतिए अत्याचार
शुरू भ’ जाइए।
तकर बाद अजराक पार्ट गरीबी मे हकन कनैत सुखायल, टटायल,
लाचार बुढ़ियाक पार्ट मे
बदलि जाइए। तकर बाद समस्या बनत अजराक मुँह सँ
निकलल डायलॉग डेलिभरीक।
अजराक ठोर सँ मैथिली भाषाक संवादक उच्चारण
होयब कठिन नहि असंभव रहत।
अजराक पूरा संवादक डब करैए पड़त। सभटा
काज मे खर्च लागत, समय लागत
आ अकारण परेशानी होयत। जँ अजराक सौन्दर्य
केँ फिल्म मे अधिक दूर तक
कायम रखबैक त’
फिल्मक पटकथा मे परिवर्तन करए
पड़तैक। से की आब संभव छैक? मदन भाइ,
अजराक सौन्दर्य अहाँ केँ निर्गुण सँ
सगुण बना देलकए। अहाँ
वास्तविकता सँ हटि कल्पना मे बौआ रहलहुँए। सभसँ
गंभीर समस्या उठत फिल्मक
बजट मे कोमलांगी, मृगनयनी, मधुरनयनी, गजगामिनी
गुजराती सुकन्या अजरा केँ
जँ फिल्मक हिरोइन बनेबइ ने त’ फिल्मक खर्च
अप्रत्याशिते रूपे बढ़ि
जेतैक।
मदन भाइ अपन ठोर सीने
रहलाह। डेरा पहुँचलहुँ। हम अपन निर्णय हुनका
सुना देलियनिमदन भाइ, ठाकुरक
खबासिन लेल हमरा लोकनि मिथिलांचले मे
हिरोइन ताकि लेब। संवाद
एवं खर्च-संबंधी सभटा दुविधा समाप्त भ’ जायत।
प्रत्येक व्यक्तिक
हृदय-कूप मे रचनात्मक ऊर्जा भरल रहैत छैक। एकर
प्रगटीकरण अथवा
स्पष्टीकरण समयानुकूल होइत छै। मदन भाइक सोच सदिकाल
सकारात्मक रहलनि। ओ हमरा
सि तकलनि आ कहलनिकी सौंदर्यक आकलन
मात्रा निष्प्राण दर्पणे
टा क’ सकैए, जीवित प्राणी नहि? की
अनुपम सौन्दर्यक प्रति
आकर्षित होयब पापे टा
भेलै, कलात्मक अभिव्यक्ति नहि? केदार भाइ, हम अजराक
सुन्दरताक लोभी मात्रा
फिल्मक भविष्य लेल बनलहुँए। फिल्म मे हीरो एवं हिरोइनक
80 केदार नाथ चौधरी
अदाकारीक संग ओकर मोहक
छविक आवश्यकता होइत छैक। हम आग्रह करब जे
अहाँ अपन मोनक भ्रम केँ
त्यागि सत्यक धरातल पर विचार करियौक। अपन
मिथिला मे फिल्मक हिरोइन
नहि भेटतीह। एखन मिथिला मे नारी जागरण केवल
आंगन मे एक-दोसरा केँ
गारि-फझति करै टा मे भेलैए। मिथिला मे नाटक-नौटंकी
मंडली छैक जे घूमि-घूमि क’ नाटक
खेलाइए। मुदा ताहि तरहक नाटक-नौटंकी मे
सीताक पाट मे छौंड़ा भेटत, छाैंड़ी
नहि। तेँ अपन फिल्मक हिरोइन चयन एतहि कर’
पड़त, दोसर
कोनो टा उपाय नहि अछि। संवादक डब कएल जा सकैए मुदा
सुन्दरताक डब करब संभव
नहि छैक। अजराक फीस भेल पन्द्रह हजार टाका। फीस
सही मे आंचलिक चलचित्राक
हिसाबे बहुत अधिक भेलै। मुदा करबै की? हम
अजराक चुनाव फिल्मक सफलता
लेल क’ रहलहुँए, कोनो आन कारणे नहि।
ई गप्प भेल 1964
ईश्वीक। तखन सोना एक सय तिरसठि रुपैया भरी छल।
तखन मिथिला मे फिल्मक
हिरोइन ताकब गंगा मे सूइ तकबाक सश रहए। हम
मदन भाइक कथन केँ स्वीकार
कएल। अग्रिम पाँच हजार टाका द’ हमरा लोकनि
अजरा केँ हिरोइन लेल
अनुबंधित केलहुँ।
भानु बाबू जोतखी सँ
फिल्मक मुहूर्त लेल दिन तकबौलनि। कथा, पटकथा,
संगीत, कलाकार आ
फनकार, सभहक चयन भ’ गेल रहै। तथापि हम
आत्ममुग्ध
नहि भ’ गेल रही।
फिल्म निर्माणक बारीकी सँ परिचित भ’ रहल छलहुँ। एकर बादो
फिल्म-व्यवसायक पूर्ण
ज्ञान हमरा लेल अपर्याप्ते रहए। हम सावधान भेल फिल्मक
खर्च पर आँखि गड़ौने रही।
फिल्मक मुहूर्तक हम विरोधी छलहुँ। एकर मुहूर्तक काज
मे खर्च, परेशानी
आ समयक बरबादी। उपलब्धि किछुओ ने। मात्रा भानु बाबूक
अहमक पूर्ति। मुहूर्त
मनबै लेल भानु बाबू एतेक ने अधीर भ’ गेल रहथि जे हम
आ मदन भाइ विवश भ’ गेलहुँ।
भानु बाबू आदरणीय एवं गार्जियन। एक सीमाक
बाद हुनकर इच्छा केँ, हुनकर
बेकलता केँ विरोध करब संभव नहि रहए। मुहूर्त पटने
मे होयत तकर फरमान भानु
बाबू देलनि।
कलाकार एवं फनकारक
फौज-संगे पटना पहुँचलहुँ। पहिल निर्माता मदन भाइ
मुहूर्त लेल पटना मे रुकि
नहि सकलाह। आउटडोर सूटिंग राजनगर मे होयत तकर
व्यवस्था लेल हुनका ओतय
पहुँचब आवश्यक। दोसर निर्माता भानु बाबू स्वयं
कलाकार। हुनकर
परिचय-परिधि मे इन्डियन नेशन एवं आर्यावर्त्तक सभटा स्टाफ।
तकरा अलावा पटना मे
उपस्थित देश-विदेशक समाचारपत्राक पत्राकार केँ मुहूर्तक
निमंत्राण देब जरूरी।
भानु बाबू केँ एको क्षणक फुर्सति नहि रहनि। आब बचि गेलहुँ
हम। हमरा जिम्मा काज रहए
बम्बइ सँ आयल तमाम कलाकार एवं फनकारक
अबारा नहितन 81
आवास एवं भोजनक इन्तिजाम।
हम फटोफट मे पड़ि गेल रही। मुदा हमरा पर
पटनाक महावीरजीक कृपा
भेलनि। हमर मदति लेल श्याम शर्मा, हमर म्युजिक
डाइरेक्टर पहुँचि गेल
रहथि। श्याम शर्मा केँ पटना शहरक पूर्ण जानकारी। ओ
सहयोग केलनि। फिल्म
मंडलीक प्रत्येक सदस्य केँ अपन-अपन ग्रेडक मोताबिक
होटल मे पहुँचा देल
गेलनि।
सभटा व्यवस्था पूर्ण
भेलाक बाद श्याम शर्मा निवेदन केलनिमुहूर्त त’ काल्हि
होयत। आजुक काज शेष भ’ गेलए। की
हर्ज हमसभ फणीश्वरनाथ रेणु सँ भेट करए
चली? हुनका
कल्हुका मुहूर्तक निमंत्राण देबनि आ थोड़ेक गप्प-सप्प सेहो करब। रेणु
जी हमर मित्रा छथि।
मिथिलांचलक हृदयाकाश सँ
अवतरित रचनात्मक शैली मे अभिव्यक्त आंचलिक
भाषाक उपन्यास ‘मैला आंचल’
रेणुजी केँ हिन्दी जगत मे प्रसिद्ध क’ देने
छलनि।
पटना शहरक राजेन्द्र नगर
मोहल्लाक पुबारी कात बनल गोलम्बर। गोलम्बरक बनल
एकटा फ्लैट मे रेणुजी
श्याम शर्मा के ँ मित्रावत्, हमरा दुनू केँ स्वागत केलनि।
गप्प-सप्प मे श्याम शर्मा
मैथिली भाषाक चलचित्रा निर्माण सम्बन्धी सभटा सूचना
हुनका देलथिन। मैथिली
भाषा मे फिल्म बनैए तकर जानकारी पाबि रेणुजी
भाव-विह्वल भ’ गेलाह। ओ
श्याम शर्मा केँ आग्रह केलनिजखन अहि फिल्मक
तोहीं संगीत देलहकए त’ एकटा गीत
सुनाब’।
लतिका श्याम शर्माक आगाँ
हारमोनियम राखि देलनि। श्याम शर्मा विद्यापतिक
‘तोहे जनु जाह विदेस’
गीत गाबए लगलाह। रेणुजीक श्याम शर्माक प्रति लगाव
संगीत मे ओत-प्रोत रहए।
तखनुक श्याम शर्माक गायन अत्यन्त हृदयस्पर्शी छल।
साहित्यानुरागी रेणुजी
विभोर भ’ गेलाह। ओ हमरा तकैत कहलनिहमहूँ मिथिलेक
छी आ हमरो मातृभाषा
मैथिलीए अछि। नेना मे हम जखन नेपालक विराटनगर मे
रहैत रही तखन मैथिली भाषा
मे कइएक टा कथा लिखने छलहुँ। मुदा मैथिली भाषाक
क्षेत्रा सकुचल, समटल आ
एक विशेष जातिक एकाधिकार मे। अपने लिखू अपने
पढ़ू। श्रोताक अभाव, खैर,
छोड़ू ओहि प्रसंग केँ। समय बदललैए आ आब मैथिली
भाषा मे फिल्म बनि रहलैए
ई हमरा प्रसन्न क’ रहलए। अइ फिल्म केँ बन’ दिऔ।
जँ अहाँ मैथिली भाषाक
दोसर फिल्म बनेबाक योजना बनायब त’ हमरा लग अबस्से
आयब। राजकपूरक फिल्मक
गीतकार शैलेन्द्र हमर मित्रा छथि। शैलेन्द्र यद्यपि
बनारसक लगीच कोनो गामक
वासी छथि मुदा हुनका मैथिली भाषाक शब्द एवं
उच्चारण बड़ बेसी सम्मोहित
करैत छनि। ‘मैला आंचल’ हिन्दी भाषा मे रहितहुँ
मैथिली भाषाक अत्यन्त
समीप अछि आ से शैलेन्द्र केँ नीक लगैत छनि। हम आ
82 केदार नाथ चौधरी
शैलेन्द्र अहाँ सभकेँ
बहुत तरहक मदति करब तकर विश्वास दिअबैत छी। हम एखन
स्वस्थ नहि छी तेँ
मुहूर्त मे नहि जा सकब। हमरा अफसोच अछि।
रेणुजीक संक्षिप्त
साक्षात्कार हमरा शरीर मे एक तरहक ऊर्जा भरि देने छल जकर
तखन हमरा जरूरति रहए।
थोड़बे दिनक बाद खबरि भेटल रहए जे रेणुक ‘मारे गये
गुलफाम’ कहानीक
नाम बदलि ‘तीसरी कसम’ नाम सँ शैलेन्द्र
फिल्म बना रहल
छथि। ‘तीसरी कसम’
फिल्म मे हमर सभहक फिल्मक डाइरेक्टर सी. परमानंद सेहो
पाट कयने रहथि।
प्रात भेने पटनाक कदमकुआँ
मोहल्लाक हिन्दी साहित्य सम्मेलन भवन मे हमर
सभहक फिल्मक मुहूर्त
मनाओल गेल। जाहि ताम-झाम सँ हमर सभहक फिल्मक
मुहूर्त मनाओल गेल रहए
प्रायः हिन्दीओ फिल्म मे नहि होइत हेतैक। हजारो दर्शक
आ तत्कालीन बिहारक राज्यपाल
आयल रहथि। राज्यपाल फिल्मक क्लिप दबलनि,
जोरदार थपड़ी बाजल आ तखन
फिल्मक सफलताक लेल मंगल कामना करैत भाषण
भेल छल।
मुहूर्तक दिन संघ्याकाल
फिल्म मंडली महेन्द्रूघाट पहुँचल आ पनिया जहाज पर
चढ़ि गंगाक ओइपार लेल बिदा
भेल रहए। पहलेजाघाट पर एकटा बस आ अजरा
एवं लता बोस लेल एकटा
फियट गाड़ी अगिला यात्राक लेल तैयार राखल गेल छल।
जहाजक उपरका डेक पर
कुर्सी पर हम चुपचाप बैसल रही। कनिकबे हटल
अजरा अपन मौसीक संग एवं
लता बोस अपन नानीक संग बैसले-बैसल गंगाक धारा
मे झिलमिलाइत आकाशक
तरेगनक छाँह केँ निहारि रहल छलीह। बाँकी फिल्म
मंडलीक सदस्य जहाजक
ऊपर-नीचाँ जहिं-तहिं छिड़िआयल बैसल छलाह।
बम्बइ सँ पटना तकक यात्रा
आ पटना मे मुहूर्तक दौड़-धूप सँ हमर शरीरक
रग-रग मे दर्द पैसि गेल
छल। मुदा तेँ की? हमरा पीड़ा सँ मुक्त होयबाक ने समय
छल आ ने होश रहए। फिल्म
मंडली मे कतेक सदस्य एखन जा रहल छथि ताहि
बात दिश हमर ध्यान टांगल
रहए। राति आधा सँ अधिक बीति चुकल रहै। जहाज
चलैक डकडक आवाज आ गंगाक
लहरिक सरसराहटि छोड़ि सभ किछु शान्त रहैक।
तखने हमर नजरि हमरा सामने
ठाढ़ एकगोट नवयुवक दिश गेल।
पटनाक मुहूर्तक कार्यक्रम
मे अहि युवक केँ हम कइएक बेर देखने छलियनि।
अन्हरिया राति आ डेक परहक
मध्यम इजोत रहितहु ओहि युवक केँ चिन्है मे हमरा
भाँगठ नहि भेल छल। युवक
हमरे दिस ताकि रहल छलाह। हमर जिज्ञासा प्रबल भ’
उठल। इशारा सँ हम हुनका
लग मे बजौलहुँ। युवकक परिचय भेटल। हमरा सँ वयस
मे दू-तीन बर्खक छोट, लम्बा-छरहर
शरीर, दामिल पेन्ट-शर्ट पहिरने ओहि युवकक
अबारा नहितन 83
चेहरा पर एहन भाव पसरल
रहनि जेना ओ जन्मजात कलाकार होथि। हुनकर नाम
छलनि कमलनाथ सिंह ठाकुर।
कमलनाथ मिथिलाक कोनो संभ्रान्त परिवारक वारिस
रहथि। कमलनाथ सँ तत्काले
निकटता भ’ गेल रहए। हमर प्रश्नक जवाब मे ओ
कहलनिबम्बइ सँ आयल फिल्म
मंडलीक सभटा सदस्य जहाज पर चढ़ि चुकलए।
एकर अलावे पटनाक कलाकार
मे पुरुष-महिला मिला क’ लगभग एक दर्जन सदस्य
सेहो जहाज पर छथि आ संगे
जा रहल छथि। पटनाक कलाकार मे अगुआ छथि प्यारे
मोहन। प्यारे मोहन माँजल
कलाकार छथि। नाटकक अलाबा ओ बहुतो फिल्म मे
काज क’ चुकलाह
अछि। बम्बइ एवं पटनाक सभटा सदस्य कुल चालीस गोट
कलाकार एखन अहि जहाज पर
यात्रा क’ रहल छथि।
पटनाक कलाकार केँ हकार के
देलकनि? भानु बाबू आ कि परमानंद चौधरी
जी? क्षणिक
दुविधा भेल मुदा कमलनाथ सँ किछु पूछब उचित नहि बुझना गेल।
हमरा जे जानकारी चाही से
कमलनाथ द’ देने रहथि। मुदा हम आश्चर्य मे पड़ि गेल
छलहुँ। हमरा जाहि तरहक
जानकारीक तखन दरकार छल से पहिने सँ कमलनाथ
लग उपलब्ध किएक आ कोना
छलनि?
कमलनाथक प्रशंसा मे हम
किछु पाँती आरो खर्च करब। कमलनाथ सज्जन,
हँसमुख, नापि-तौलिक’
बजनिहार उत्साही, आ कुशाग्रबुद्धिक युवक छला।
कमलनाथ
फिल्म मे पाट केलनि आ
हुनकर अभिनय सर्वश्रेष्ठ भेल रहनि। कमलनाथक
आचरण मिथिलाक उज्जवल
भविष्यक परिचायक रहए। ओ अहि बात केँ इंगित
करैत छल जे जँ उचित मार्ग
भेटौक त’ मिथिलाक उन्नति लेल मिथिलाक तमाम
युवकक सहयोग अपने-आप
प्राप्त भ’ जेतैक। हमर सभहक फिल्मक पहिल नाम
छल ‘नैहर भेल
मोर सासुर।’ नाम कोनो तरहें रुचिगर नहि रहै। कमलनाथेक मुँह
सँ अनायास निकलल रहै ‘ममता गाबए
गीत’। सभ केँ नीक लागल रहै आ फिल्मक
नाम बदलि गेल छलै। जहाज
परहक परिचयक बाद फिल्म निर्माणक अन्त धरि
कमलनाथ संगे रहलाह आ सभ
तरहक सहयोग केलनि। पनियाँ जहाज पर
कमलनाथक सान्निध्य मे
हमरा मिथिलाक सौभाग्यक दर्शन भेल छल आ ताही काल
हमर शरीरक थकनी एवं
मानसिक चिंता तिरोहित भ’ गेल रहए।
पहलेजाघाट मे बस आ
मोटरगाड़ी तैयारे छल। दोसर दिन प्रातःकाल लगभग
आठ बजे सम्पूर्ण फिल्म
मंडली राजनगर पहुँचि गेल।
84 केदार नाथ चौधरी
10
राजनगर, दरभंगा महाराजक
पुरना राजधानी, अपन अतीत मे डुबल मुदा वर्तमानो मे
मयूरपंखी सश भव्य, सजल एवं
दर्शनीय स्थान रहए। हमर सभहक ठेकाना, मझिला
राजकुमारक गेस्ट हाउस, लगभग दस
बीघा मे पसरल विशालकाय प्रांगण। पश्चिम
दिस पुरना डिजाइन मे बनल
मकान जाहि मे अनगिनत कोठली, दुआरि आ दलान।
तकर पाछाँ आंगन। आंगनक
बीच मे बनल घोघ तनने नवकी कनिआँ जकाँ मड़बी।
आंगनक पछबारी कात भनसाघर
आ नहेबा-धोबा लेल फैल जगह। मकानक आगाँ
बीच मे घेरल, सुन्दर
कनेटा फुलबारी। बाँकी स्थान हरियर कंचन घास सँ झाँपल।
गेटक लगे मे दहिनाकात सभ
तरहक सुविधा सँ सम्पन्न खपड़ा सँ छाड़ल एकटा
आरो घर।
राजनगर मे एखनहुँ जेठका
राजकुमार आ महाराजक अनेको अमला-कर्मचारीक
निवास। तेँ धोबी, हजाम-मधुर
पकवान बनबैबला हलुआइक कमी नहि भेल छल।
फिल्म मंडलीक आगमन होइतहि
विभिन्न क्षेत्राक सेवक बिन बजाओल अपन-अपन
हाजरी पहुँचाब’ लागल
रहए।
गेस्ट हाउस सँ लगभग एक
पाव जमीन हटल महंथ मदन मोहन दासजीक
महंथाना। ओतुक्का सिपाही, भनसिया,
नोकर-चाकरक फौज पहिने सँ गेस्ट हॉउस
मे मोस्तैज छल।
मात्रा एक घंटाक भीतरे
फिल्म मंडलीक लगभग चालीस कलाकार एवं फनकार
अपन-अपन निवासक स्थान
पसिन्न क’ लेलनि। महिला कलाकार मकानक दक्षिण
भाग दू-तीन कोठली मे
रमन-चमन कर’
लगलीह। मकानक उतरबारी कात विशिष्ट
अतिथि लेल कक्ष मे अजरा
एवं हुनकर मौसी केँ राखल गेल। हुनकर रसोइ अलग
सँ बनतनि तेँ पाकशास्त्रा
मे निपुण जलील नामक खानसामा केँ नियुक्त कएल गेल
रहए। साउन्ड ट्रैक एवं
कैमरा कलकत्ता सँ आयल। साउन्ड इन्जीनियर चटर्जी मोशाय
आ हुनका संग बारह गोट
बंगाली लाइट मैन। गेस्ट हाउसक गेट लग बनल घर मे
अबारा नहितन 85
ओ लोकनि अपन-अपन मोटरी
पटकलनि। कहबाक अर्थ जे सभ बात केँ ध्यान मे
रखैत मदन भाइ सभटा
इन्तिजाम पहिने सँ क’क’ रखने छलाह। फिल्म मंडलीक
सभटा सदस्य नोकर-चाकर, बिन बजाओल
किछु पाहुन, कुल साठि-पैंसठि मनुक्खक
जलखै, दिनुका-रतुका
भोजन बन’ लागल। किछु कलाकार गेस्ट हॉउसक बाहर
राजनगरक प्रसिद्ध मिठाइ
खेबा लेल सेहो जाइत रहथि।
ओही इन्तिजामक हंगामाक
मध्य एकटा जुल्फीबला खास किस्मक मनुक्ख
अपन दर्शन द’क’
हमरा तृप्त केलनि। मैल-चिकाठि पैजामा-कुर्त्ता पहिरने व्यक्तिक
माथक जुल्फी कपारे नहि
हुनक करजनी तरक लाल-लाल आँखि केँ झपने छल।
हुनकर नाम छलनि बिच्छू।
बिच्छूजी चाननक गमक मे बनल ठर्राक थौक व्यापारी
छलाह आ सदिकाल तरंगे मे
विचरण करैत रहथि। फिल्म संसार मे शराब एवं
शबावक नाम सुनने रहियैक। फिल्म
निर्माण मे मादक द्रव्यक ओहने महानता रहए
जेना पूजाक समय गंगाजलक।
सैम्पुल मे आनल चाननक गमक बला ठर्राक स्वाद
चखिक’ फिल्म
मंडलीक सभटा सदस्य बिच्छूजीक चकोर बनि गेलाह। बिच्छूजीक
असाधरण रूपे महत्त्वक
आवश्यकता केँ स्वीकार करैत ठर्राक मूल्य निर्धारित करए
पड़ल रहए। बिच्छूजी नित्य
एक कनस्तर ठर्रा पहुँचाबैक कठिन दायित्व अपना कन्हा
पर लदलनि।
भानु बाबू, फिल्मक
तेसर निर्माता आ हमर दुनूक गार्जियन, अपन आन-आन
काजक निपटारा क’ चारि
दिनक बाद गेस्ट हॉउस मे पदार्पण केलनि। राजनगर
स्टेशन पर हुनक आगमनक
स्वागत मे कियो नहि गेलनि तकर भयंकर प्रतिक्रिया
हुनका भेल रहनि। जइतै के? जवाब भेल
हम अथवा मदन भाइ। मदन भाइ अपन
महंथाने रहि रोजक खर्च, रसद आ
नगदी पठबै मे बाझल रहथि। एमहर हम ओहि
महादेवक गणक भोजन-भात, सुखसुविधा
आ अनेक तरहक फरमाइश मे एतेक ने
व्यस्त भ’ गेल
छलहुँ जे आन बातक हमरा सोह रहिए ने गेल रहए। भगवानक
असीम कृपा सँ भानु बाबू
संयत भेलाह आ पहिने सँ हुनका लेल सुरक्षित कोठली
मे ओ अपन बेड-होल्डरक
फीता खोललनि।
फिल्मक सूटिंग मे कोनो
तरहक व्यवधान अथवा त्राुटि नहि होउक ताहि लेल
हम सतर्क रही। भोर सँ
साँझ आ साँझ सँ भोर कखन भ’ जाइ से किछु ने बुझियै।
सदिकाल किछु ने किछु काज
शेष रहिए जाइत छल।
फिल्मक सूटिंग आरम्भ भेल।
तकरा संगहि अनेक तरहक अड़चन सेहो सामने
आबि गेल। फिल्मक सूटिंगक
चर्चा चारू कात पसरि गेल रहैक। राजनगर मे
मनुक्खक मेला लगि गेलै।
समीप आओर दूर तकक ग्रामीण जनता सँ राजनगर
86 केदार नाथ चौधरी
ठसमठस भरि गेल छलै। जिलाक
सभ तरहक हाकिम-हुक्कामक परिवार सेहो सूटिंग
देख’ लेल आबए
लागल। सभ सँ पैघ विपत्ति ठाढ़ केलनि जेठका राजकुमार। ओ
राजनगरे मे रहैत छलाह आ
नित्य सूटिंग स्थान पर पहुँचि जाइत रहथि। पता चलल
जे ओ तंत्राविद्याक माहिर
भ’ चकुलाए आ तंत्रा-मंत्राक बले फिल्मक हिरोइन अजरा
केँ अपन वश मे करबाक
उद्योग क’ रहलाए।
लोकक भीड़ सूटिंग काज मे
बाधा उत्पन्न क’ देलकै। प्रत्येक शॉटक बाद
कैमराक एंगिल मे
परिवर्त्तन करब जरूरी आ तखन भीड़ केँ एक कात सँ दोसर कात
टारब भेल समस्या। अहि
समस्याक निदान कोना होयत? अकस्मात मदति भेटल।
कलकत्ता सँ आयल साउन्ड
ट्रकक संग बारह बंगाली लाइटमैन मे एकटा युवकक
नाम रहनि शंकर। शंकर
कहलनि‘‘आपनी चिंता कोरबेन ना। अमार बाबा
सत्यजीत रे यरे आउटडोर
सूटिंग काज कोरतेन। बाबार साथे आमिओ जतैन।
कखनो-कखनो आमिओ तार काजे
सहाज्य कोरताम। अमार अनेक अभिग्यता
आछे।’’ धन्यवाद
शंकर केँ। ओ अपन टीम-संगे लाइट रिफ्लेकशनक अलावा भीड़
केँ एमहर सँ ओमहर टारैबला
काज दक्षता सँ कर’ लागल छलाह।
फिल्मक सूटिंग देखक लेल
हमरो जान-पहिचानक अनेक बंधु बिन बजाओल
आबए लगलाह। जे आबथि से
एक-दू दिन मे वापस भ’ जाथि। मुदा शिवकुमार
चौधरी नामक एकटा अड़ियल
मनुक्ख जे हमरे गामक रहथि अपन खुट्टा गाड़ि
देलनि। शिवकुमार ने कवि
रहथि आ ने साहित्यकार। मुदा हुनक नाम मे ‘टंच’
टाइटिल जोड़ल छलनि। टंचजी
सदिकाल हमरे आगाँ-पाछाँ घुमतै रहथि आ कखनहुँ
काल हमर काज मे सहयोग करक
प्रयास करथि। टंचजीक सहयोग केहन होइत छल
तकर विवरण देब आवश्यक
आछि।
साउन्ड मैन रहथि चटर्जी
मोशाय। हुनक साउन्ड ट्रैक मे भीषण समस्या
उपस्थित भ’ गेल
छलनि। सूटिंग स्थान सँ थोड़बे हटल एकटा आँटा पिसैक चक्की
रहैक। चक्की बला ग्राहकक
ध्यान आकृष्ट कर’ लेल मसीनक एकझौस पाइप मे
टीनक डिब्बा पैसा देने
रहैक। जखन चक्की चालू होइ त’ टीनक डिब्बा सँ पीं-पींक
कर्णभेदी आवाज दूर-दूर तक
पहुँचैत रहै। सूटिंगक स्थान मे साउन्ड ट्रैकक
ध्वनि-प्रबंधक यंत्रा जे
सूक्ष्म सँ सूक्ष्म ध्वनि ग्रहण करक क्षमता रखैत छल से ओहि
पीं-पीं बला आवाज केँ
सेहो अपन ध्वनि मे समेटि लैत रहए। पीं-पीं बला आवाज
केँ बन्द करबा देबाक लेल
चटर्जी मोशायक अरजेन्ट फरमान हमरा लग पहुँचल।
चटर्जी मोशायक संवाद सँ
चिंता मे रही। तखने संयोग सँ बिच्छूजी अपन चानन
गमक बला ठर्राक पेमेन्ट
लेब’ लेल हमरा लग आयल रहथि। साउन्ड ट्रैकक समस्या
अबारा नहितन 87
सँ अवगत होइते बिच्छूजी
कहलनिश्रीमान,
अहाँ मड़ुआ भरिक चिंता नहि करू।
चक्कीबला हमरे जातिक
खट्टी अछि आ हमर मित्रा अछि। हम पेमेन्ट बाद मे लेब।
पहिने हम चक्की लग
पहुँचिक’ पीं-पीं बला आवाज बन्द करबैत छी।
टंचजी हमरा लगे मे ठाढ़
रहथि। ओहो बिच्छूजीक संग पीं-पीं बला आवाज बन्द
करबै लेल बिदा भेलाह। एक
घंटाक बाद राजनगर थानाक दरोगा पहुँचल। दरोगाक
संग दू गोट सिपाही, बिच्छूजी,
आटा मे लेरहायल टंचजी आ चक्कीक चालक रहै
जकर कपार फूटल आ शोणितक
धार बहि रहल छलै।
दरोगाजी सविस्तर सभ बात
कहलनि। बिच्छूजी जखन चक्की बला केँ पीं-पीं
बला आवाज बन्द करै लेल
कहलनि तखन ओ अपन असमर्थता बतबैत कहलक
जे पीं-पीं बला अवाजे
सुनि ओकर ग्राहक आँटा पिसबै लेल अबैत अछि। बिच्छूजी
आ चक्कीक चालकक बीच
वार्त्तालाप भैए रहल छल ताही बीच टंचजी छड़पि क’
एक झौस पाइप सँ टीनक
डिब्बा केँ नोचए लगलाह। डिब्बाक स्थान पर पूरा एकझौस
पाइपे टूटिक’ खसि पड़ल।
बस शुरू भ’ गेल संग्राम। चक्कीक चालक एवं टंचजीक
बीच मल्लयुद्ध भीषण रूप
धारण क’ लेलक। मल्लयुद्धक खबरि लगे मे थाना
पहुँचलै। दरोगाजी आँखि
तरेरैत कहलनि‘‘मारपीट करने वाले बेहूदों का जगह है
हाजत। लेकिन आपका यह आदमी
ने मुझे बताया कि यह बम्बइ का रहने वाला
है और फिल्म कलाकार है।
फिल्म के काम मंे किसी तरह का रुकावट नहीं हो इस
तरह का आदेश मुझे जिला के
एस.पी. से मिल चुका है। इसलिए मैं आपके
कलाकार को पिटाइ कर हाजत
मे बंद करने की जगह यहाँ लेकर आया हूँ।’’
हम टंचजी अर्थात् फिल्म
कलाकार दिश ताकल। टंचजीक बामाकात कानक
कनौसी सँ शोणित टपकि रहल
छलनि, ठोर फूलि क’ नमरि गेल रहनि। आपसी
समझौता भेल रहए। दरोगाजी
केँ दू सय, दुनू सिपाही केँ पचास-पचास आ
हील-हुजैत केलाक बाद
चक्कीक चालक केँ दवाइ-दारुक लेल तीन सय टाका द’
मामिला केँ रफा-दफा कयने
रही। एकटा नीक बात भेल रहै जे पीं-पीं बला आवाज
बंद क’ देल गेल
रहै।
राजनगर मे फिल्म सूटिंगक
प्रत्येक दिन किछु ने किछु अजूबा घटना घटित
होइते रहलै। एहने अलौकिक
परिवेश मे एक दिन एक नव व्यक्तिक आगमन भेल
रहए। व्यक्तिक नाम छलनि
खगेन्द्र।
खगेन्द्रजी सहरसा जिलाक
निवासी रहथि। साँची धोती, भरि बाँहिक बंडीबला
कुर्ता, कुर्ताक ऊपर
बंडी, आसाचक्र पर स्थापित सेनुरक ठोप, गरदनि
मे तीन भत्ता
तुलसीक माला, घनगर
भहूँ, जुल्फी सँ झाँपल कपार, एक गौखूर
बरोबरि टीक, उमेर
88 केदार नाथ चौधरी
तीस-पैंतीसक लगीच, तीन
संतानक पिता, हँसमुख, भोर-साँझ
गायत्राी मंत्राक जाप
कर’ बला
खगेन्द्रजी हाथ जोड़ि नमस्कार केलनि आ कहलनिसुगोना गाम मे हमर
कुटुम्ब छथि। ओतहि सँ आबि
रहल छी। राजनगर पहुँचिते कर्णगोचर भेल जे
मैथिली भाषा मे फिल्म बनि
रहलए। उत्सुकता चरम छू लेलक। हम नहि मुदा हमर
स्वर्गीय पिता मैथिली
भाषाक कवि रहथि। हुनकर रचित कइएक टा कविताक पोथी
एखनो परिवार मे सुरक्षित
अछि। तेँ मैथिली भाषाक सिनेह हमर शोणित मे प्रवाहित
भ’ रहलए।
मैथिली भाषाक प्रेम हमरा एतय आबक लेल प्रेरित केलकए। हम एतय
एक-दू दिन निवास क’ फिल्म
निर्माणक प्रत्यक्षदर्शी बनि सुखक भोग कर’ चाहैत
छी। हमर विनम्र निवेदन
अछि जे श्रीमान् हमरा अनुमति प्रदान क’ हमर अभिलाषाक
पूर्ति कयल जाय।
संयोग सँ मदन भाइ ओतहि
छलाह। खगेन्द्रजीक मैथिली भाषा मे कएल
निवेदन सुनि ओ प्रसन्न
होइत कहलनिकेदार भाइ, खगेन्द्रजीक मैथिली भाषाक
उच्चारण मे जे मधुरता छैक
तकरा पर ध्यान दिऔक। फिल्मक माध्यमे मैथिली
भाषाक उच्चारण मे एकरूपता
अननाइ एवं तकरा सर्वग्राही बनौनाइ हमरा सभहक
प्रयोजन हेबाक चाही ने? अहाँक
अहि मादे की विचार अछि?
हमर विचार मदन भाइक विचार
सँ भिन्न तरहक छल। हम तखन किछु आने
बात सोचि रहल छलहुँ जकर
फिल्म निर्माण मे नितांत जरूरी रहैक। हमरा खगेन्द्रजी
लेल एकटा काज फुरायल रहए।
अजरा, फिल्मक हिरोइन गुजरात प्रांतक, आ ताहू
पर सँ मुसलमानी। मैथिली
संवादक उच्चारण मे अजरा केँ सभ तरहक कष्ट। हम
खगेन्द्रजी केँ कहलियनिमात्रा
एक दू दिन नहि,
जाबे तक फिल्म निर्माणक काज
राजनगर मे होइत रहतैक
ताबे तक हमर अहाँ सँ आग्रह जे अहाँ एतहि रहि फिल्म
मे सहयोग दियै। अहाँ
मैथिली भाषाक प्रेमी छी, की अहाँ अपन अमूल्य समय
मैथिलीक सेवा लेल देब?
खगेन्द्रजी मौन स्वीकृति
प्रदान केलनि। हम हुनका फिल्म संबंधी काज बुझबैत
कहलियनिफिल्मक हिरोइन छथि
अजरा। ओ गुजरात प्रांतक युवती छथि। हुनका
मैथिली भाषा मे संवाद बाज’ मे तकलीफ
भ’ रहलनिहेँ। खगेन्द्रजी, अहाँ हुनका
मैथिली भाषा मे संवाद
बजैक अभ्यास कराउ। काज कठिन होइतहु मनलग्गू अछि।
अहि काज मे अहाँक
कर्मइन्द्री तृप्ति प्राप्त नहि करत मुदा पाँचो ज्ञान इन्द्री असीम
सुखक भोग अबस्से प्राप्त
करत तकर हम विश्वास दिअबैत छी।
खगेन्द्रजी तैयार भ’ गेला। हम
हुनका अजरा लग ल’ गेलियनि आ संवाद
अभ्यास संबंधी सभटा
विधि-विधान वृहत् तरहें बुझा देलियनि। हमरा लग बहुतो
अबारा नहितन 89
तरहक काज रहए। हम नित्यक
काज मे बाझि गेलहुँ आ एक तरहेँ खगेन्द्रजी केँ
बिसरि गेलहुँ।
हम आ मदन भाइ एकांत मे
बैसल गप्प-सप्प क’ रहल छलहुँ। करीब दू मासक
समय बीति चुकल रहै आ
अनवरत सूटिंगक काज भ’ रहल छलै। एक दिन अजराक
सेवा मे नियुक्त जलील
नामक खानसामा दौड़ल आयल आ हकमैत बाजल‘‘खगा
बाबू अजरा बीबी के ऊपर
छड़पै का कोशिश मे छथ। खगा बाबू का ठमकल आँख
मे हम शैतान का नाज
देखलीअ, खगा बाबू आज कोनो जुलूम बला काज करतै।
मालिक, आज खगा
बाबू के रोक दहू।’’
खगा बाबू अर्थात्
खगेन्द्रजी। जलीलक चीत्कार सुनि चारूकात सँ लोक दौड़ल।
प्यारे मोहन जे शरीर सँ
पहलवान रहथि आ फिल्म मे अजराक सोआमीक पाट करैत
रहथि से जखन बातक जड़ि-छीप
बुझलनि त’ डकारैत बजला‘‘अहाँ सभ फिकिर
नहि करू। हम जभी कखनो
फिल्मक आउटडोर सूटिंग मे जाइत हती, लट्ठ के साथ
रखैत हती। हम एखने
खगेन्द्रा सार के माथ केँ दू खण्डी करै लेल जाइत हती ने!’’
प्यारे मोहन झटकल आगाँ
बढ़ला। बाँकी लोक हुनकर पछोड़ धेलनि।
अजराक कोठलीक दरबज्जा लग
मदन भाइ प्यारे मोहनक रस्ता रोकैत कहलनि
बिआहल पुरुष जखन छिनरपनी
बला काज करैए त’ ओ लाज-बिज केँ त्यागने
रहैए। जेना की जलील कहलकए, खगेन्द्र
जाहि मनःस्थिति मे छथि ओ कोनो
तरहक अभद्र काज कर’ मे बाज
नहि औताह। तेँ अहाँ केँ हम खबरदार करैत छी।
हंगामा कएला सँ मामला
बिगड़ि जायत,
सूटिंग रूकि जायत। परिस्थिति नाजुक
अछि। तेँ अहाँ सावधानी सँ
कहुना खगेन्द्रा केँ घीचि क’ बाहर आनू। तखन हम
सभ अगिला काज करब।
खगेन्द्रक नट्टी पकड़ने
प्यारे मोहन हुनका बाहर अनलनि आ तिरने-तिरने गेस्ट
हाउसक गेटसँ आगू आमक गाछी
मे पहुँचा देलनि। हम आश्चर्यचकित भेल
खगेन्द्रजी दिस ताकि रहल छलहुँ।
पाउडर सँ पोतल हुनक दुनू गाल आ सेनूरक ठोप
निपत्ता, दू फाँक
मे सीटल माथक जुल्फी आ टीक नदारत। कत’ सँ अनलनि से त’
वैह जनताह मुदा एखन ओ
कारी रंगक पेन्ट आ हरियर रंगक टी शर्ट पहिरने रहथि।
फूलदार दुपट्टा अबस्से
अजराक हेतै,
हुनक गरदनि मे लटकल छलनि। खगेन्द्रजीक
आँखिक डिम्हाक सुर्ख लाल
टरेस रहनि आ मुँह महक सिगरेट मे गाजाक गंध भरल
छलनि। यद्यपि प्यारे मोहन
हुनका घीचैत ल’
जा रहल छला मुदा खगेन्द्र जीक चालि
मे थ्री स्टेप्स डान्स ब’ला लचक आ
थिरकन साफ-साफ देख’ मे आबि रहल छल।
ओरिजिनल खगेन्द्रजीक कतहु
अता-पता नहि रहए।
90 केदार नाथ चौधरी
सत्य मे कहल जाए त’ खगेन्द्रजीक
परिवर्तित छवि लेल हुनका दोख देब उचित
नहि। खगेन्द्रजी भांगक
आदी रहथि। हलुआइक दोकान मे बनल भांगक पेड़ा भक्षण
क’ ओ अपन
नैसर्गिक निशाक पूर्ति क’ लैत छलाह। जलीलक टिटकारी मे आबि
ओ एक दिन गाजा भरल सिगरेट
पीलनि। हुनका लेल गाजाक निशा अपरिचित छल
मुदा से निशा हुनका
तरंगित क’ देलक। ओ आरो तरहक निशाक खोज-पुछारि
केलनि। फिल्म मंडली लेल
चाननक गमक बला ठर्रा कनस्तर मे अबैत रहए।
खगेन्द्रजी भांग, गाजा एवं
ठर्राक त्रिवेणी मे डुबकी लगाबए लगलाह। एमहर संवाद
कर’ काल बाढ़ि
मे दहाइत कुम्हीक ऊपर फुलायल फूल जकाँ चतरल अजराक
जवानी, लिपेस्टिक
पोतल ठोर सँ पिछडै़त मैथिली शब्दक उटपटांग उच्चारण सरल
चित खगेन्द्रजीक हृदय मे
खलबली मचबक लेल पर्याप्त छल। जखन अजरा अपन
कानक झुमका केँ डोलबथि, कजरारी
नजरिक किल्ली खगेन्द्रक आँखि मे भोंकैत
हुनका पुछलनि‘‘बोल खगा
बोल। मेरा डायलग डिलेभरी ठीक हुआ न! तखन क’
त’ बुझि लिअ
खगेन्द्रजी केँ अपन चतुर्थी रातिक कनिआँ मोन पड़ि जानि। बेचारा
खगेन्द्र! एक दिन नहि, दू दिन
नहि, लगातार दू महिना तक अजराक सौन्दर्यक
पसाही मे झरकैत रहला। एक
त’ अजरा ओहिना रूपक रानी छलीह आ तइ पर सँ
मेकअप हुनका इन्द्रक परी
बना देने छलनि। लगातार कामक प्रहार आ से अत्यन्त
समीप सँ खगेन्द्र केँ
एकटंगा बना देलकनि। ओ अपना केँ संतुलित कोना राखि
पबितथि? अन्त मे
कामेच्छा सँ प्रेरित भ’ ओ धधकतै अग्नि-कुंड मे छलाँग लगबै
लेल तैयार भ’ गेल छला।
जलीलक चेतावनी समय पर काज केलक नहि त’
खगेन्द्रजी जुलूम कैएक’ रहितथि।
लगातार कइएक बाल्टी पानि
खगेन्द्रजीक शरीर पर ढारल गेल। हुनका हुनकर
नाम ल’क’
सोर पाड़ल गेल। मुदा सभटा प्रयास अकारथे रहल। खगेन्द्रजीक मूर्छा
भंग नहि भेलनि। संयोग सँ
निशाशास्त्राक विशारद बिच्छूजी ओतेय पहुँचि गेलाह।
ओ खगेन्द्रजीक मुँह लग
नाक सटौलनि। चाननक गमक ठर्रा। बिच्छूजीक नाकक
नली केँ भोथरा क’ देलक।
अपन अनुभवक आधार पर बिच्छूजी सभ केँ शान्त करैत
मंतव्य प्रगट केलनिहिनका
अही हालत मे छोड़ि दिऔन। तीन-चारि घंटा तक ई
पतालपुरी तकक यात्रा करैत
रहताह। तकर बादे ई धरती पर वापस औताह। तखन
हिनका अपन नाम, अपन गामक
नाम, अपन बहुक नाम, अपन धिया-पूताक नाम
अपने आप मोन पड़ि जेतनि।
अबारा नहितन 91
11
फिल्म युनिटक प्रायः सभ
सदस्य भरि दिन सूटिंगक काज मे व्यस्त रहैत छल। मुदा
संध्याकाल स्नान क’ स्वच्छ
परिधान पहिरि तौलिया अथवा पटिया गेस्ट हॉउसक
चारूकात साफ-सुथरा कएल
हरियर-हरियर दूभि पर ओछा बैसि रहैत छल। एक
मंडली दोसर मंडली सँ हटिक’ आसन
जमबैत छल। साँझ मे इजोतक अभाव मुदा
आकाशक तरेगनक प्रकाश मे
झलफले सही सभकिछु ष्टिगोचर होइत छलै। ताहि
समय मे टंचजीक सेवाक काज
प्रशंसनीय रहए। ओ चानन गमक बला ठर्रा केँ
कनस्तर सँ गिलास मे ढारथि
आ आवश्यकता मोताबिक गिलास प्रत्येक मंडलीक
लग मे पहुँचा दैत छलथिन।
तखन बाहरक हलुआइक दोकान सँ विभिन्न तरहक
नमकीन सेहो पहुँचि जाए।
महिला कलाकार नशा नहि करथि। मुदा नमकीन चखना
प्लेट मे भरि-भरिक’ अपन-अपन
पसिन्नक पुरुष कलाकार लग पहुँचा स्वयं
गप्प-सप्प मे संलग्न भ’ जाइत
छलीह। अजरा सभ दिन रिजर्व रहलीह। ओ अपन
कक्ष मे अपन मौसीक संग
समय बितबैत छलीह। साइड हिरोइन लता बोसक बात
फराक छल। ‘ललित लवंग
लता परिशीलन कोमल मलय समीरे। मधुकर निकर
करम्बित कोकिल कूंजित
कुंज कुटीरे’
बला स्वभाव लता बोसक छलनि। हिरणीक
समान चंचल सभ पुरुष
कलाकारक चहेती,
लता बोस सभहक थकान उतारै मे पटु
छलीह। कोनो तरहक मांग सँ
परहेज नहि। ओहि समयक वातावरणक लता बोस
शोभा छलीह।
हम सभ किछु देख रहल
छलहुँ। ताहि जमाना मे फिल्म एकमात्रा युवकक
मनोरंजनक साधन रहै।
यद्यपि हिन्दी सिनेमाक स्तर उच्च भ’ गेल छलै। नामी-नामी
कलाकार, तेहने
संगीत आ सभसँ मूल्यवान छायांकन। मैथिली सिनेमा ओकर
मुकाबिल मे बहुत नीचाँ
छल। तथापि हमरा संतोष रहए। हम कलाकार एवं फनकार
केँ सभ तरहक सुविधा
देबामे सक्षम रही। फिल्म मंडली आनन्दमग्न भेल समय
व्यतीत क’ रहल छल।
92 केदार नाथ चौधरी
फिल्म मंडली मे दू गोट
व्यक्ति एहनो रहथि जे संध्याकालक ठर्राक भोज मे रुचि
नहि रखैत रहथि। पहिल
व्यक्ति छलाह फिल्मक हीरो त्रिदीप कुमार। एकांत मे
चुपचाप बैसल त्रिदीप शायद
भविष्य मे किछु प्राप्त करक उद्देश्य सँ मंत्रा जाप करैत
छलाह। दोसर छला केमरामैन प्रसादजी।
प्रसादजीक जन्म बिहारे प्रांत मे भेल रहनि।
नेनपने मे हुनका सिनेमाक
चस्का लागि गेलनि। ओ बम्बइ कोना पहुँचला, कोन
तरहक पापड़ बेल’ पड़लनि से
सभ बुझल नहि अछि। फिल्म जगत मे ओंघराइत-पोंघराइत
ओ केमरामैन बनि गेलाह से
बात वएह कहलनि। सम्प्रति ओ अपन मराठी पत्नी
एवं तीन संतानक संग
बम्बइक खार मोहल्ला मे झोपड़पट्टी मे सुखक जीवन जीवि
रहल छलाह। ओ नशाक सेवन
नहि करैत छलाह तकर वास्तविक कारण किछु रहैक।
बम्बइ मे ठर्रा केँ
नौटांग कहल जाइए। प्रसादजी कन्टरक कन्टर नौटांग पीबि चुकल
रहथि। तकर परिणामस्वरूप
हुनका लीभर सोराइसिस भ’ गेल रहनि। आब मादक
पदार्थक स्थान पर
प्रसादजी सतुआक घोर केँ सीप क’ अपन पुरना हबस केँ अपना
कन्ट्रोल मे रखने रहथि।
संध्याकालक समय मे हम
अधिक काल प्रसादेजी लग बैसिक’ फिल्मक
गप्प-सप्प करैत छलहुँ।
प्रसादजी फिल्म जगतक दीर्घ अनुभव आ हुनक नामी-नामी
केमरामैनक असिस्टेन्ट बनि
काज करब हुनकर वार्तालाप केँ सारगर्भित, रुचिगर एवं
समयानुकूल बना देने छल।
सूटिंग समाप्त होयबाक किछु दिन पूर्वक गप्प कहैत
छी। ओइ दिन प्रसादजी बहुत
उदास रहथि। हम हुनका सँ उदासीक कारण पुछलहुँ
ताहि पर ओ जेना टूटि
गेलाह। उदासे भेल कहब शुरू केलनिकलाक जन्म
भावनाक हिलकोर सँ होइए।
फिल्म सेहो कला थिक। मुदा फिल्म बनबै मे उच्च
कोटिक दक्षताक जरूरति
होइत छैक। फिल्म निर्माण एक व्यक्ति नहि, बहुत
व्यक्तिक परिश्रम सँ
होइए। सभ व्यक्ति अपन-अपन जिम्माक काज पूर्ण मनोयोग
सँ करैत छथि आ फिल्म
निर्माणमे कलाक प्रदर्शन करैत आनन्दित होइत छथि। मुदा
जखन फिल्मक पटकथा तैयार
होब’ लगैत छैक तखन कला संबन्धी भावना केँ रोकि
व्यावसायिक तत्व केँ
मुख्य भाग बनब’
पड़ैत छैक। व्यवसाय अर्थात् व्यापार वस्तुक
गुणवत्ता एवं लाभ-हानि पर
आधारित अछि। फिल्म बनायब एवं एकर प्रदर्शन करब
सेहो व्यवसाये भेल ने!
फिल्म बनतै त’
लाखो मनुक्ख एक निश्चित मूल्य द ‘क’
ओकरा देखतै। आब लाखो
मनुक्खक मुख्य मांग की हेतै जकर पूर्ति भेला पर ओ
सभ सिनेमा देखतै? फिल्म मे
भरपूर मनोरंजनक सामग्री हौउक। तेँ कथाक चुनाव
लोकक पसिंदक मोताबिक कएल
जाइए। पटकथा मे सस्पेन्स, ड्रामा, थ्रिल, एक्साइटमेंट
संगे प्रचुर मात्रा मे
सेक्स केँ भरल जाइए। किछु आर्ट फिल्म केँ छोड़ि बाँकी सभटा
अबारा नहितन 93
व्यावसायिक फिल्मक इएह
मूलमंत्रा अछि। पटकथाक निर्देशन पर ड्रेसक चुनाव,
मेकअपक स्टाइल, गीतक
ध्वनि आ बोल, संवादक स्वरूप आ सभ सँ पैघ बात
कैमराक प्रत्येक एंगिल
एवं मूभमेन्टक निश्चित दिशा कायम कएल जाइए। पटकथा
फिल्मक रीढ़ होइए। एकबेर
पटकथाक फाइनल स्क्रिप्ट तैयार केलाक बाद ओहि मे
कोनो तरहक परिवर्त्तन नहि
कएल जाइए। अहाँ सभहक फिल्म आंचलिक भाषा मे
अछि। राष्ट्रभाषा हिन्दीक
अलावा भारतक आन-आन सभटा भाषा आंचलिके कहाउत
ने! आब भाषा तामिल होउक
अथवा तेलगू,
पटकथा तैयार कर’ मे सभठाम एकहि
तरहक फरमूलाक अनुसरण
होइए। फिल्म व्यवसायक ष्टिएँ सफल होअय तेँ
पटकथा तैयार कर’ काल
मनोरंजनक प्रचुर मात्रा मे सामग्री ओहि मे राखल जाइए।
जहिना कोनो मूर्ख
संस्कृतक श्लोक सुनि पल झपकबैए तहिना हम प्रसादजीक
लम्बा प्रलापक अभिप्राय
ताकि रहल छलहुँ। प्रसादजी बजिते रहलाहहमरा जे
बुझल अछि ताहि मोताबिक
अहाँ आ महंथजी अहि फिल्मक प्रोड्यूसर एवं
फाइनेन्सर थिकहुँ। मुदा
अहाँ दुनू केँ फिल्म निर्माणक ज्ञान शून्ये अछि। ई
अत्यन्त दुखक बात भेलै
ने! फिल्म निर्माणक थोड़बो ज्ञान अहाँ दुनू केँ होयब
जरूरी रहए। अहाँ दुनू
मैथिली भाषा लेल समर्पित छी। भाषाक आकर्षण कतेक
दर्शक जुटा पाओत तकर
निर्णय त’ भविष्य मे होयत। मुदा, फिल्म बनेबाक
निश्चित फरमूला केँ
त्यागि फिल्म बनाएब भेल मूर्खता एवं विनाश केँ निमंत्राण
देब। हम पछिला तीस बर्ख
सँ फिल्म जगत मे कार्यरत छी। हम अनेको आउटडोर
सूटिंग मे भाग लेने छी।
यद्यपि अहाँ सभहक फिल्म आंचलिक अछि तथापि अहाँ
सभहक जे आउटडोर सूटिंगक
व्यवस्था आ खर्च अछि से पैघ सँ पैघ फिल्म
सूटिंगक बरोबरि अछि। एतय
सूटिंग लेल लोकेशन सहजहि प्राप्त छैक।
खेत-खरिहान, इनार-पोखरि,
परती-गाछी, मनुक्ख, जानवर,
घर-आंगन, अर्थात् ग्राम
परिवेशक सभ किछु चारूकात
पसरल छै। मुदा कैमरा मे कोन तरहक श्य कैद
भ’ रहलैए,
कथाक स्वरूप केहन हेतै, एकर एडिटिंगक काज मे
कोन तरहक बाधा
हेतै तकर अहाँ केँ आ
महंथजी केँ किछुओ अता-पता नहि अछि। इएह भेल
तकलीफक गप्प। अहाँ दुनू
एखुनका फिल्म निर्माण सँ अनजान छी। आब थोड़ेक
समाचार हमरा सँ प्राप्त
करू। फिल्मक पटकथा मे परिवर्तन कएल गेलैए, फिल्मक
गला रेति देल गेलैए। अजरा
सभ सँ महग हिरोइन। ओकर ग्लेमरस सीन केँ
ओमिट कएल गेलैए। अजराक
सौन्दर्यक छायांकनक स्थान पर ओकरा फाटल-चीटल
नुआ-आंगी पहिरा क’ गोबरक
गोइँठा ठोकबाक सीनक सूटिंग भेलैए। डाइरेक्टरक
काज मे हस्तक्षेप करब
अनुचित। मुदा फिल्म केहन बनि रहलैए तकरा द’ जखन
94 केदार नाथ चौधरी
सोचैत छी त’ अहाँ
दुनू लेल अफसोच होइए। आउटडोर सूटिंग काल पटकथा मे
फेर-बदल करब भेल फिल्मक
सत्यानाश करब। सैह भ’ रहलैए।
आब जा क’ प्रसादजीक
उदासी एवं पीड़ामे पनपल लम्बा भाषणक अभिप्राय
हमरा बुझ’ मे आबि
रहल छल। पटकथाक फोटो-कापी प्रत्येक कलाकार एवं फनकार
केँ देल जाइत छै। आइ कोन
तरहक सीनक छायांकन हेतै तकर सूचना डाइरेक्टर
सँ पाबि प्रत्येक व्यक्ति
पटकथेक अनुसार इन्तिजाम मे लागि जाइए। प्रसादजी केँ
सेहो फिल्मक पटकथाक कॉपी
भेटल रहनि। एक आदर्श केमरा मैनक चरित्रा मे
प्रसादजी पटकथा मे
परिवर्तन देखि कष्ट मे आबि गेल रहथि।
किछु बात पहिने सँ बुझल
रहए आ थोड़ेक बाद मे बुझलियै। भेल की रहै से
कहैत छी। फिल्मक कथा
मोताबिक ठाकुरक पत्नीक प्रसवकाल अकाल मृत्य भ’
जाइत छनि। मुदा जन्मल
नवजात शिशु जीवित बाँचि जाइए। ठाकुरक पत्नीक सेवा
मे नियुक्त खबासिन ओहि
बच्चाक पालन-पोषणक भार उठबैए। खबासिन ठाकुरक
बेटाक सिनेह मे एतेक ने
डुबि जाइए जे ओकरा अपन बेटाक सोह रहिए ने जाइत
छैक। खबासिनक बेटा टुग्गर
भेल गाम मे बौआइए आ एक दिन पोखरि मे डुबिक’
मरि जाइए। एतेक पैघ
विपत्तिक बादो खबासिनक आचरण मे फर्क नहि होइत छैक।
ओ राति-दिन हबेली मे रहि
ठाकुरक बेटा केँ दूध पिअबैए, ओकर सेवा-सुसुरखा
करैए। खबासिन सौन्दर्यक
महारानी त’ अछिए। ओकर जवानी मे उत्पन्न भेल तीख
सौन्दर्य मे उत्तेजना भरल
छैक। ठाकुर खबासिनक अद्भुत सुन्दरताक प्रति आकर्षित
होइत छथि आ ओकरा प्राप्त
कर’ लेल विभिन्न तरहक रस्ता अपनबैत छथि। एकर
भनक ठाकुरक विधवा बहिन
केँ लागि जाइत छनि। विधवा बहिन एकर घनघोर
विरोध करैत छथि मुदा
ठाकुरक खबासिनक प्रति प्रेमभाव मे कमी नहि अबैत छनि।
दिन-प्रतिदिन ठाकुरक
प्रेम बढ़ले जाइए आ एक दिन ई प्रेम-लीला चरम पर पहुँचि
जाइए। ठाकुर आ खबासिनक
शारीरिक मिलन होइत अछि। अहि कथाक उचित आ
कि अनुचित चित्राणक बात
केँ एखन बिसरि जाउ। तैयार पटकथाक अनुसारे ठाकुर
एवं खबासिनक
प्रेम-प्रसंगक छायांकन ओहि सीमा तक कएल जेबाक आयोजन छलै
जाहि सीमा तक सेंसरक
कैंची अनुमति दितैक। फिल्म मे अहि प्रेम प्रसंगक खास
महत्व देल गेल रहै। कारण
उद्दीप्त वासनाक श्य मात्रा दर्शके लेल नहि वितरक लेल
सेहो जरूरी रहै।
खबासिनक पाट मे छलीह
अजरा। फिल्म जगतक अप्सरा अजरा कइएक फिल्म
मे हिरोइनक पाट क’ चुकल
रहथि। ओ माँजल कलाकार छलीह आ हुनका कैमरा
मूभमेन्टक पूर्ण ज्ञान
छलनि। ठाकुरक पाट मे बेसुरा भानु बाबू रहथि। भानु बाबूक
अबारा नहितन 95
वयस पचास-पचवन बर्खक। ओ
बुढ़ारीक कइएक गोट सीढी पार क’ चुकल छलाह।
हुनका फिल्म मे एक्ंिटग
करक ने लूरि रहनि आ ने वयस।
प्रत्येक सीनक फाइनल
फिल्मांकनक पहिने रिहर्सल कराओल जाइत छलै।
ओहि प्रेम प्रसंगक
रिहर्सल कर’
काल अजरा लोहछि गेलि छलीह। ओ कैमराक आगाँ
सँ पड़ा क’ अपन
कोठली मे बन्द भ’ गेलि छलीह। डाइरेक्टर अजराक कोठली मे
अनुरोध करक लेल पहुँचल
रहथि। अजरा चुपे रहलीह मुदा हुनकर मौसी डाइरेक्टर
सँ कहलथिन‘‘तुम कैसा
डाइरेक्टर हो? तुम लोग फिल्म बना रहे हो या फिल्म का
मजाक बना रहे हो? अजरा
फिल्म के स्क्रिप्ट के मोताबिक काम करने को तैयार
है। स्टोरी की मांग के
हिसाब से अजरा को सेक्सुअल एक्ट करने मे थोड़ा भी हिचक
नहीं है। कम से कम
वस्त्रा में ओ ठाकुर के आलिंगन में जाने में हिचक नहीं रही
है। फिल्म लाइन ही ऐसा है
कि हिरोइन सभी तरह का एतराज से ऊपर पहुँचि चुकी
रहती है। लेकिन तुम्हारा
ठाकुर एक बूढ़ा आदमी है। बूढ़ा आदमी आ एक कमसीन
छोंकड़ी का प्रेम प्रसंग
का श्य कैसा बनेगा जैसे बूढ़ा आदमी प्रेम नहीं अजरा का
बलात्कार कर रहा हो। यह श्य
जब सिनेमा हॉल मे दिखाया जाएगा तो दर्शक तुम
लोगों पर थूकने लगेंगे।
तुम्हारे फिल्म मे इस तरह का पटकथा तैयार करने बाला
तुम्हारा दुश्मन है। बात
को सही-सही समझो। फिल्म तो बर्बाद होगा ही, इसके
साथ-साथ अजरा का भी फिल्म
केरियर चौपट हो जाएगा।’’
जेना इन्जीनियर मकान बन’ सँ पहिने
बनल मकान केँ अपन मानस पटल पर
देखि लैए तहिना डाइरेक्टर
फिल्म बन’ सँ पहिने बनल फिल्मक सही-सही कल्पना
क’ लैए।
अजराक मौसी जे बात कहने छलथिन तकरा परमानंदजी जायज मानैत
छलाह। भानु बाबू एवं
अजराक प्रेम-श्य अजरे लेल नहि, फिल्मक लेल सेहो घातक
होइतैक। ठाकुरक पाट लेल
कम उमेरक युवकक दरकरार रहै जकर पर्सनेल्टी मे
चुंबकीए पौरुषक आकर्षण
होइतै। भानु बाबू मे एकर सर्वथा अभाव छलनि। अहि
श्यक छायांकन सँ बहुत
पहिने परमानंदजी भानु बाबू केँ बुझबैक प्रयास कयने
छलथिन। मुदा भानु बाबू
जिद्द पसारि देने छलथिन जे ठाकुरक पाट वएह करताह।
भानु बाबू अपना केँ
प्रोड्यूसरे नहि फिल्मक कर्त्ता-धर्त्ता मानैत छलाह। तेँ हुनकर
वाक्य अकाट्य छल।
आब की होअय? परमानंदजी
दुविधा मे पड़ि गेलाह। परमानंदजीक मैथिली
प्रेमक निशा तेहने छलनि
जेहन हमरा छल। मैथिली फिल्मक चलते हुनका बम्बइक
फिल्म जगत सँ सम्पर्क
टूटि गेल रहनि। फिल्म लाइन मे काज तखने भेटैत छैक
जखन फिल्मी संसार सँ
सम्पर्क-सूत्रा जूटल रहैत छैक। परमानंदजी अपन फिल्मी
96 केदार नाथ चौधरी
कैरियर केँ दाव पर लगा
बिना एक रुपैया पारिश्रमिक लेने ईमानदारी सँ मैथिली
फिल्मक डाइरेक्टरक काज क’ रहल छला।
ओ कोनो तरहें फिल्मक सूटिंग मे
अवरोधक नहि होउक ताहि
प्रयास मे रहथि। तकर अवसर हुनका भेटि गेलनि।
भानु बाबू कोनो अपने काजे
राजनगर सँ दू दिनक लेल बाहर गेला। परमानंदजी
केँ मौका भेटि गेलनि। ओ
ठाकुरक दलान पर एकटा सीनक सूटिंग करबौलनि।
दलान पर ठाकुरक दरबारीक
जमघट रहए जाहिमे टंचजी प्रधान छला। सभटा दरबारी
ठाकुरक असामयिक निधन सँ
अन्यन्त दुखी छल। टंचजी त’ ठाकुरक मृत्यु सँ एतेक
ने मर्माहत रहथि जे ओ
रोदन क’ रहल छला। दोसर सीन सेहो टेक भेल। ओ सीन
छल ठाकुरक सराधक भोज।
सभहक आगाँ पात पर भात आ आँखि मे नोर।
प्रसादजी कैमरा संचालन
करैत छलाह। ओ पटकथा सँ पूर्ण रूपेण परिचित
रहथि। डाइरेक्टर अजराक
सेक्सुअल सीन केँ ओमिट क’ देने छला तेँ ओ क्षुब्ध
रहथि। परिस्थिति सँ
पूर्णतः अनभिज्ञ प्रसादजी फिल्म सफलता लेल संशय मे फँसि
गेल छलाह। अजराक मादक जवानीक
छायांकन नहि भेल रहै तकर कचोट प्रसादजी
केँ रहनि आ एखन तकरे
वर्णिका ओ हमरा सँ क’ रहल छला।
प्रसादजीक उदासी अपना जगह
पर वाजिब छलनि। आउटडोर सूटिंग मध्य
पटकथा मे परिवर्त्तन नहि
हेबाक चाहैत छलै। मुदा डाइरेक्टरक मजबूरी केँ नजरिअन्दाज
नहि कएल जा सकैत छल। परमानंद
लाचार रहथि। सभ हुनका दूसि रहल छलनि।
वापस अयला पर भानु बाबू
केँ फिल्म मे ठाकुरक मृत्युक समाचार भेटलनि। ओ
बमकि उठलाह। सभहक सोझाँ
मे परमानंदजी केँ प्रताड़ित कर’ लगलाह। मुदा
परमानंदजी सभ तरहक
उपेक्षा केँ सहैत अपन काज करिते रहलाह। ठाकुरक पाट
केँ अल्प केलाक बाद ओ
ठाकुरक बेटाक पाट केँ विस्तार केलनि। पढ़ाइ समाप्त क’
जखन ठाकुरक बेटा गाम अबैए
त’ ओ जवान भ’ गेल रहैए। खबासनीक भतीजीक
संग ओकर प्रेम प्रगाढ़
होइए। प्रेमक श्य पटल पर अंकित कर’ मे मिलन, बिछुड़न,
छीना-झपटी, नोक-झोंक,
रूसब-मनायब इत्यादि सभ किछु होइए। फिल्मक लगभग
चारि गोट गीत त्रिदीप
कुमार एवं लता बोस पर फिल्माओल जाइए।
परमानंदजी केँ पटकथा मे
परिवर्तन कर’
पड़लनि। ओ दिन मे डाइरेक्शनक
काज करथि आ राति मे
जागि-जागि क’
पटकथा केँ दुरुस्त करथि। हुनकर
मदतिगार मे सिकन्दर नामक
एकटा असिस्टेन्ट डाइरेक्टर छलनि। मुदा सिकन्दर
डाइरेक्शनक काज सँ अधिक
फिल्म मंडली मे फालतू आयलि महिला कलाकारक
संग समय व्यतीत करैत छल।
ठाकुरक बेटाक पाट मे त्रिदीप कुमार आ खबासिनक
भतीजीक पाट मे लता बोस, दुनूक
किरदारी केँ परमानंदजी अहि तरहें सेटिंग केलनि
अबारा नहितन 97
जे फिल्म मे जान आबि गेल
रहै।
फिल्मक सूटिंग काल बहुत
तरहक अड़चन अबैत रहलै। जहिना मधुमाँछीक
जमा कएल मधुक खजाना मे
चिल्होरि लोल मारैए तहिना लता बोसक रूपक खजाना
मे दरभंगाक धनिक मारबाड़ीक
बहकल छाैंड़ा जाहि मे श्यामा नामक एकटा चंठ आ
लफन्दर प्रधान छाैंड़ा छल, लोल मारक
लेल बहुत तरहक खेल खेलायब शुरू क’ देने
रहए। अजरा रिजर्भ छलीह आ
सदिकाल पर्दा मे रहैत छलीह। मुदा लता बोस
परोपकारी छलीह आ सभ तरहक
युवक मंडलीक संग हँसी-ठठ्ठा लेल तत्पर रहैत
छलीह। ताही कारणे सँ
फिल्म सूटिंग मे बहुत हर्ज भेल रहैक। लता बोसक आचरण
सँ परमानंदजी बेकल भेल
रहैत छलाह। मुदा एक सीमाक बाद ओ लाचार भ’ जाथि।
हम देखि रहल छलहुँ
परमानंदजीक दुर्दशा। हुनकर कन्हा पर फिल्म निर्माणक सभटा
भार लादल रहनि। हुनका काज
मे मदति केनिहार कियो नहि रहनि। परमानंदजी
त’ मनुक्खे
छलाह। अपन अपमान केँ सहबा मे जखन हुनकर धैर्य जवाब द’ देनि
तखन ओ तनुकमिजाजी बनि
जाथि, एकर बाद चुपचाप एकांत मे बैसि रहथि।
आकाशमे मेघ आबए लगलै।
फिल्मांकन मे अवरोध होब’ लगलै। साउन्ड
टीमक शंकर कहलक‘‘आकाशे
मेघ डेके गेच्छे। हय त’ झड़ उठबे। सूटिंग काज
आर होबे ना। पैक कोरते
बोले दीन।’’
फिल्मक सूटिंग काल अनेक
तरहक बिर्रोक आक्रमण भेलै। अन्हड़ उठैत रहलै।
कतेको केँ कपार फुटलै, कतेको
केँ छाती मे दर्द पैसलै। दू महीना तेरह दिनक बाद
सूटिंग केँ समाप्त घोषित
कएल गेल।
आल्मुनियमक लगभग बीस पेटी
मे सूटिंग भेल फिल्मक निगेटिभ ल’ क’ हम
आ मदन भाइ बम्बइ लेल
प्रस्थान केलहुँ। भानु बाबू, फिल्मक तेसर निर्माता, हुकूम
देलनिअहाँ दुनू आगाँ बिदा
होउ। हम किछु निबटा क’ दू तीन दिनक बाद
आबि रहलहुँए।
98 केदार नाथ चौधरी
12
बम्बइ लैबक एकटा कमरा। हम, मदनभाइ
एवं भानु बाबू प्रतीक्षा मे बैसल रही।
ओही कोठलीक एक कात मे हमर
सभहक फिल्म एडिटर सेहो बैसल छलाह।
एडिटरक सोझाँ मे टेबुल आ
टेबुल पर राखल ‘मूभेला’ नामक मशीन। अही मशीन
सँ फिल्म मे काट-छाँट
अर्थात् एडिटिंग होइए। एडिटर महाराष्ट्रियन रहथि। एखन
ओ कोनो आन फिल्मक एडिटिंग
मे बाझल छलाह।
प्रतीक्षा समाप्त भेल।
राम सिंह नामक व्यक्ति कोठली मे प्रवेश केलनि। राम
सिंह लैबक डार्करूम मे
काज करैत छलाह। हमर सभहक लैब संबंधी काज हुनके
जिम्मा छलनि। करीब पाँच
मिनट तक राम सिंह एडिटरक कान मे फुसफुसाइत
रहला, फेर जेना
आयल रहथि तहिना वापस चल गेला। राम सिंहक गेलाक बाद
एडिटर हमरा सभ दिस घुमैत
कहलनि‘‘स्क्रिप्ट के हिसाब से आपका फिल्म आधा
से थोड़ा अधिक बन पाया है।
अभी बहुत काम बाँकी है। पूरा फिल्म का सूटिंग हो
जाने के बाद ही मैं
एडिटिंग का काम कर पाऊँगा। एक बात और। आउटडोर सूटिंग
के समय ही क्लोजअप का काम
कर लेना है।’’
समाचार विस्फोटक छल। हम
आतंकित भ’ गेलहुँ। दू महिना तेरह दिनक
सूटिंग भेल रहए आ फिल्म
बनल आधा सँ कनिकबे अधिक। मदन भाइक
प्रतिक्रियाक जानकारी
हमरा नहि भेल। मुदा भानु बाबूक धधकल स्वर सुनक अवसर
भेटल छल। ओ कहने रहथिअयोग्य
डाइरेक्टर फिल्मक सत्यानाश क’ देलक।
ऊँट रेगिस्तान मे अहि
घमंड मे रहैए जे ओकारा सँ पैघ, ओकरा सँ ऊँच कियो
भइये ने सकैए। मुदा पहाड़क
नीचाँ अबिते ओकर घमंड थुर्री-थुर्री भ’ जाइत छैक।
मुदा अपन मैथिल बन्धु
रेगिस्तान मे होथु अथवा नखलिस्थान मे, हुनकर घमंड
सदिकाल कायमे रहैत छनि।
भानु बाबू निश्चिते मैथिल बंधु रहथि।
हम किछु बजितहुँ तकर
अधिकार हमरा छल। मुदा हम त’ बौक बनि गेल रही।
केवल मोन मे विचार गतिमान
रहए। डायरेक्टरक चयन भानु बाबूए कयने रहथि।
अबारा नहितन 99
फिल्म अदहे बनल छल तकर
दोषारोपण ओ परमानंदक ऊपर क’ रहल छलाह जे
हमरा स्वीकार नहि छल।
सूटिंग काल हम परमानंदजीक कार्यकलाप देखि चुकल
रही। सूटिंगक समय कोन-कोन
तरहक अड़चन आयल रहै तकर हम प्रत्यक्षदर्शी
छलहुँ। परमानंदजी केँ दोख
देब अनर्गले नहि, पाप छल।
‘ममता गाबए गीत’ भेल मैथिली भाषाक प्रथम फिल्म। हम एक तरहें एकर
इतिहास लिखि रहलहुँ अछि।
इतिहास भावविहीन होइए। इतिहास निर्मम होइए।
इतिहास मे ओतबे बात लिखल
जाइए जतबा बात भेल रहैए। कोनो व्यक्तिक, कोनो
समुदायक गलत सोच, गलत
निर्णयक साक्षी होइए। इतिहास गलत निर्णय केँ क्षमा
नहि करैए। परमानंदजीक संग
भानु बाबूक अनबन किएक भेल रहनि आ तकर
परिणामस्वरूप सूटिंगक
कतेक नोकशान भेल रहैक तकर ज्ञान हमरो छल आ मदन
भाइ, तिनको
छलनि। हम आ मदन भाइ सूटिंगकाल काज मे व्यस्त रही। मुदा भानु
बाबू कलाकारक झुंड मे
मिलिक’ निफिकिर भ’ कलाकार बनल रहलाह। एखन ओ
परमानंदजीक भर्त्सना क’ रहल छला
से हमरा आ मदनभाइक लेल पीड़ादायक रहए।
फिल्म आधे बनलैए। आब आगाँ
की हेतै? फिल्मक मुहूर्त तक भानु बाबू फिल्मक
खर्चाबहीक नियमित मुआयना
करैत रहला। हमर आ मदन भाइक देल रकमक सूक्ष्म
अध्ययन क’ प्रत्येक
पृष्ठ पर अपन हस्ताक्षर करैत रहलाह। मुदा राजनगर मे सूटिंग
कालक खर्च देखिओक’ खर्चाबही
दिश ताकब छोड़ि देने रहथि। पार्टनरशिप मे ओ छह
आनाक मालिक रहथि। अपन
हिस्साक पन्द्रह हजार टाका भानु बाबू द’ चुकल रहथि।
फिल्मक आरम्भ मे बनल बजटक
दोबर सँ बेसी खर्च भ’ चुकल रहैक। आब जँ
फिल्मक बाँकी काज हेतैक त’ धन कत’
सँ औतैक? अहि प्रश्नक उत्तर अनिश्चिित
छल। मुदा एक बात निश्चित
रहै। भानु बाबू आरो धनक उगाही नहि क’ सकैत
छलाह। हुनकर आर्थिक
स्थितिक आकलन हमसभ क’ चुकल रही।
हमर मैथिली प्रेमक निशा
फुर्रं भ’ चुकल रहए। आब ‘ममता गाबए गीत’
ममताक नोरे टा बहा रहल
छल। अकाश कांकोर बनल मोन सोचि रहल छलबौए,
फँसि गेलएँ ने! आब
कोंकिआइत रह’। बम्बइ लैबक चारूकात सँ वेदना टपकि
रहल छलै। हारल, चूरल आ
निस्तेज बनल तीनू निर्माणकर्त्ता सड़क पर आयल। भानु
बाबू बान्द्राक बस
पकड़लनि। हम आ मदन भाइ मानसरोवर नामक होटल मे ठहरल
रही। टैक्सी सँ होटल
पहुँचलहुँ।
फिल्म निर्माण एक व्यक्ति
नहि, सामूहिक रूपेँ अनेक व्यक्तिक कार्य क्षमताक
उपज थिक। एकर प्रत्येक
विभाग जेना संगीत, छायांकन, एडिटिंग, मेकअप इत्यादि
आला दर्जाक कला सँ
सम्बन्धित अछि। मुदा कलाकारक विशिष्टता रहितहु फिल्म
100 केदार नाथ चौधरी
जगत प्रपंच सँ भरल छल।
कोनो टा कलाकार अथवा फनकार सत्य बजिते ने
छलाह। बिना अग्रिम लेने
कियो डेग उठबिते ने रहथि। तकर वाद नशाक वर्चस्व
त’ रहबे
करै। बजट सम्बन्धित प्रश्न पुछला पर उत्तर भेटल रहए‘‘प्रोड्यूसर
को
हमेशा कपच कर बजट बताया
जाता है।’’
हे ईश्वर! आब हेतै की? फिल्म
उद्योग कजरी लागल घाट। पाछाँ हटब त’ एखन
तकक कएल परिश्रम नष्ट भ’ जाएत।
आगाँ बढ़ब त’ कोन ठेकान? उधारक पूजी
सेहो नष्ट ने भ’ जाए!
निचोड़ल नेबोक-फाँक जकाँ मुँह बौने होटलक बिछौन पर
पड़ि रहलहुँ।
दोसर दिन टेªन पकड़ि हम आ मदन
भाइ अपन-अपन गाम आ धाम पहुँचि
गेलहुँ। हमर गामक वातावरण
पूर्ववते। ककरो अनकर चिंता जानक जिज्ञासा नहि।
मुदा से नहि, हमर
छोटका कका अर्थात् कौआली बाबू हमरा बजा क’ अपन दलान
पर ल’ गेलाह आ
खोदि-खोदि क’ सवाल पूछैत रहलाह। फिल्म निर्माण संबंधी एवं
अहि काज मे उपस्थित भेल
भीषण समस्या। सभटा जानकारी प्राप्त कएलाक बाद
विदुर नीतिक प्रकांड
पंडित छोटका कका अपन निचोड़ल मंतव्य प्रगट केलनि
भारतक समस्याक निदान लेल
विष्णु भगवान केँ कइएक टा अवतार लिअ पड़लनि।
मुदा पंडितक पांडित्य सँ
परिपूर्ण मिथिलाक समस्या जटिल अछि। मिथिला मे बहुतो
तरहक गुण छैक जाहि मे
प्रधान अछि आलस्यक साम्राज्य। एतुक्का समस्याक
निदान लेल विष्णु केँ नहि, महादेव
केँ अवतार लिअ पड़तनि, तांडव नृत्य कर’
पड़तनि। महादेव अधिक काल
भांग-धथूरक सेवन क’ समाधिए मे रहैत छथि। ओ
कहिया अवतार लेताह तकर
निर्णय हुनके पर छोड़ि दहनु। एखन तोँ अपन
समस्याक निदान लेल जोगार
लगाब’। परिवार मे बँटबारा भ’ रहल छह। तोरा कतेक
खेत-पथार छह तकर तोरा
कनिकबो ज्ञान नहि छह। तोँ अबिलम्ब अपन मौजे पुतइ
लेल प्रस्थान कर’। हमर
विचार नहि मानब’ त’ नोकशान मे पड़ि जेबह
आ जीवन
भरि पछताइते रहि जेब’।
फिल्म बनेबाक विचार, नोकरी
केँ त्याग करब, बम्बइ जायब, फिल्म
निर्माण
अवधि मे अत्यधिक परिश्रम
आ अन्त मे असफलता। गाम मे परिवारक काज मे
रुचि नहि छल। अन्यमनस्क
एमहर-ओमहर बौआइत समय बिता रहल छलहुँ।
लगभग पाँच मासक बाद मदन
भाइक पोस्टकार्ड भेटल। पोस्टकार्डक संदेश रहए
तुरंत राजनगर आबि क’ हमरा सँ
भेट करह। काज आवश्यक अछि। भेट भेले पर
सविस्तर गप्प कहब।
राजनगरक सटल मिर्जापुर
स्थान। महंथाना मे सभ किछु ओहने जेना पछिला
अबारा नहितन 101
बेर देखने छलहुँ। मुदा
मदन भाइक चेहरा पर चिंताक छाया। मात्रा किछु महिनाक
भीतरे मदन भाइ अपन वयसक
जेना दस बर्ख बिता चुकल होथि। ओ हँसैत हमर
स्वागत केलनि। मुदा हुनक
चेहरा पर पसरल भाव किछु आने बातक संकेत क’ रहल
छल। हम सोझ प्रश्न
केलियनिमदन भाइ, अहाँ परेशान बुझाइत छी! की भेलए?
हमरा कहू ने!
सैह कहक लेल अहाँ केँ
बजेलहुँए। हम सही मे परेशान छी आ हमर परेशानी
बड़ी टा अछि। महंथक जीवन
परेशानीए मे व्यतीत होइत छै। कमे सौभाग्यशाली
महंथ होइत छथि जनिकर
मृत्यु स्वाभाविक होइए। मुदा एखन अहि गप्प केँ विराम
दिऔ। अहाँ हाथ-मुँह धोउ।
किछु जलपान करू। स्थिर भेला पर आराम सँ हम सभ
गप्प-सप्प करब।
दालि मे घीक बदला पिसल
मिरचाइक बुकनी पड़ि गेल, वार्तालाप मे जीवन-मृत्युक
जटिलता प्रवेश क’ गेल।
संध्याकाल एकांत मे हम चुपचाप बैसल रही तखने मदन
भाइ अयलाह आ कहब शुरू
केलनिमात्रा सतरह बर्ख पहिने भारत स्वतंत्रा भेल;
परिवर्तन हेतै से त’ जग विदित
छल। मुदा परिवर्तन एतेक तीव्र गति सँ हेतै तकर
आकलन कर’ मे हम
पछुआ गेलहुँ। धर्म मे आस्थाक दू गोट मार्ग आत्मबल आ
अंधविश्वास। महंथानाक
स्थापना अंधविश्वास पर भेल छलै। ताहि समय मे तकर
प्रयोजन रहैक। मुसलमान
एवं अँग्रेज शासकक शासन मे हिंदू धर्म एवं हिन्दू संस्कृतिक
अस्तित्वे खतरा मे आबि गेल
रहै। तेँ आर्य धर्मक रक्षा लेल अंधविश्वास मे कायम मठ
एवं महंथानाक बड़ पैघ
भूमिका रहलै। मुदा स्वतंत्रा भारत मे अंधविश्वास पर कायम
धार्मिक व्यवस्था एवं
कार्यकलापक न्योँ कमजोर भ’ गेलैए। धार्मिक विश्वास एवं
परम्पराक हँसी मजाक उड़ाओल
जा रहलैए। जनसंख्याक विशाल भाग जे पुस्त दरपुस्त
सँ दबल, थकुचल
रहलै तकरा भोटक अधिकार भेटि गेलैए। नव संविधानक अनुसारे
कर्त्तव्य शून्य आ अधिकार
पर्याप्त। एहन अधिकार आब राक्षस बनि महंथाना केँ उजाड़ै
लेल तत्पर भ’ गेलैए।
मिर्जापुर स्थानक जतेक मौजे छैक तकर सभठाम लड़ाइ-झगड़ा,
भूमि हड़प, लूट-पाट
आ सभ तरहक अतिक्रमण आरम्भ भ’ चुकलैए। एकरा मुकाबला
करै लेल मजबूत शासन एवं
कानून चाही। शासनक आदि सँ अन्त तक मे भ्रष्टाचार
पसरि गेलैए। कानून वैह
छैक जे अँग्रेेज बनौने छल। मुदा कानूनक धार भोथ भ’ गेलैए।
आब लोक केँ सिपाहीक लाल
टोपीक भय नहि होइत छैक। आब त’ लोके महंथक
जमीन पर ललका झंडा गाड़ि
रहलैए। केदार भाइ, कल्पना भविष्यक होइत छैक।
कल्पना भेल अनिश्चय आ
निश्चयक बीच झुलैत एकटा धाग। एतय कल्पना करैक
जरूरति नहि छै। भविष्य
निश्चित छै। महंथानाक नाश हेबेटा करतै। हम महंथ, तेँ
102 केदार नाथ चौधरी
हमरा इच्छा सँ अथवा
जबर्दस्ती महंथानाक समस्या मे संलग्न होबए पड़तै। इएह हमर
पेरशानीक कारण अछि।
मदन भाइ परेशानो रहथि आ
दुख मे सेहो छलाह। विशेषक’ ओ हमरा लेल
दुःखी रहथि। पहिल बेर हम
जखन हुनका लग पहुँचल रही तखन हमरा लग मे
एकटा योजना छल। बैद्यनाथ
बाबू सँ प्राप्त पाठशाला खोलैक विचार छल।
मिथिलाक्षर केँ पुनः
स्थापना करक हेतु मिथिलाक्षर मे धार्मिक पुस्तक तैयार क’
पाठशाला खोलैक ढ़ संकल्प
छल। महंथजीक प्रत्येक मौजे मे मंदिर। मंदिरक परिसर
मे पूजा-पाठक अलाबे
संस्कृतक पाठशाला कार्यरत रहए। मधुबनी, दरंभगा, मुज्जफरपुर
आ पटना मे महंथजीक जमीन।
पाठशाला खोलक लेल जमीन संग सभ तरहक
सुविधा छलै। आन-आन खर्च
जेना मिथिलाक्षर मे पोथी तैयार करब कमे खर्च मे
संभव भ’ जइतै।
कहबाक अर्थ जे जँ पाठशाला खोलक विचार पक्का भेल रहितै त’
विभिन्न स्थान पर स्वतः
पाठशाला खुजि गेल रहितै। मुदा मदन भाइ पाठशाला
खोलक विचार केँ त्यागि
मैथिली भाषा मे फिल्म बनेबाक सुझाव देलनि। तकर
कचोट एखन हुनका भ’ रहल
छलनि। फिल्मेक कारणे हमरा नोकरी सँ त्यागपत्रा देब’
पड़ल छल। फिल्म केँ भेलै
की? फिल्म आधा पर लटकि गेलै।
मदन भाइ अपन मोनक व्यथा
केँ काबू मे अनलनि। अपन कथन केँ समाप्त
करैत कहलनिहमरा अफसोच
अछि। हमर निर्णय सही नहि छल। मुदा अफसोचे
क’ की हम
अपन कर्त्तव्य सँ विमुख भ’ जाइ? नहि-नहि,
जहाँ तक संभव होअय
गलती केँ सुधारक प्रयत्न
करी। फिल्मक काज रूकल अछि। केदार भाइ, हमर विचार
मे फिल्मक बाँकी सूटिंग
केँ पूरा कएल जाए।
हम किछु जवाब नहि द’क’
टकटक मदन भाइ दिस ताकए लगलहुँ। मदन भाइ
आगाँ कहलनिफिल्म पूरा करक
सभटा खर्चक हम अनुमान क’ चुकल छी आ तकर
इन्तिजामो क’ चुकलहुँ
अछि। फिल्मक अगिला सूटिंग लेल परमानंदजीक अर्थात्
डायरेक्टरक सहमति चाही
ने! परमानंदजी जहिना सरल, संवेदनशील एवं फिल्म कला
लेल समर्पित व्यक्ति छलाह
तहिना ओ सभ गुण सँ बिलग भ’ गेलाह अछि। ओ
अत्यधिक टेंशनक कारणे
टूटि गेलाए। हुनकर व्यवहार बदलि गेलए। ओ बम्बइ
शहरक फिल्म जगत सँ नाता
तोड़ि दरभंगे मे पड़ल रहैत छथि। नशा हुनका पचैत नहि
छनि। मुदा नशा मे बेमत्त
भेल अड़बड़ बजैत समय बिता रहलाए। एक तरहें अपन
सभहक फिल्म एक नीक मैथिल
डायरेक्टरक बलिदान ल’ चुकल अछि। खैर, हम
हुनका सँ सम्पर्क केलहुँ
अछि। हुनका पोलहबै लेल जे क’ सकैत छलहुँ, केलहुँए।
बहुत
बुझेलाक बाद आ पार्टनरशिप
मे शेयर देलाक बाद ओ फिल्म मे डाइरेक्शन देबा लेल
अबारा नहितन 103
तैयार भ’ गेलाह।
हम मिर्जापुर स्थानक विकट समस्या मे आकंठ डुबि गेलासँ पहिने
फिल्मक बँचल काज केँ
पूर्ण कर’ चाहैत छी। अहाँ लग त’ केदार भाइ, हम अपराधी
छीहे। मुदा मैथिली भाषा
मे फिल्म बना क’ हम मिथिलाक माटिक ऋणसँ उऋण होब’
चाहैत छी। हम अही
विश्वासक संग अहाँ केँ समाद पठौने रही। पछिला भूल-चूक केँ
बिसरैत फिल्मक अगिला काज
मे अहाँ तत्पर भ’ जाइ से हमर आग्रह अछि।
समय बलवान होइए। थोड़ेक
धैर्य चाही। मदन भाइक विचार सँ हमर मूइल
आकांक्षा मे आशाक किरण
प्रस्फुटित भेल ‘ममता गाबए गीत’ फिल्म बनि क’
रहत
तकर विश्वास पनपि गेल
रहए।
राजनगर गेस्ट हाउसमे
फेरसँ सभटा कलाकार एवं फनकार जमा भेलाह।
फिल्मक सूटिंग आरम्भ भेल।
परमानंदजी जे अहि बीच अपन नाम बदलि सीपरमानंद
भ’ गेल रहथि,
पूर्ण लगन एवं निष्ठासँ डाइरेक्टरक काज केलनि। पछिला
राग-द्वेष केँ बिसरि भानु
बाबू सेहो राजनगर मे पदार्पण केलनि। एक मास तक
सूटिंगक काज होइत रहल।
तखन छायांकन समाप्त घोषित कएल गेल।
हम आ मदन भाइ बम्बइ जेबा
लेल तैयार भइए रहल छलहुँ आ कि देश मे
भूचाल आबि गेल रहै।
पाकिस्तान भारत पर आक्रमण क’ देलकै। 1962 ई. मे भारत
चीन सँ नीक जकाँ पराजित
भेल छल। चीन भारतक विशाल भू-भाग पर कब्जा क’
लेने रहए जकरा छोड़ै लेल ओ
तैयार नहि छल। राष्ट्रिय एवं अन्तरराष्ट्रिय स्तर पर
भारतक मनोबल निम्न स्तर
पर पहुँचि गेल रहै। पाकिस्तान केँ उपयुक्त अवसर
बुझेलइ। पाकिस्तान केँ
अमेरिका सँ प्रचुर मात्रा मे सैनिक साजो-समान भेटिए रहल
छलै। पाकिस्तान भारतक
दुश्मन चीन सँ नजदीकी कायम करैत ओकर दास बनि
गेल छल। सभ तरहक तैयारी
केलाक बाद पाकिस्तान युद्धक डंका बजौने रहए।
जवाहरलाल नेहरूक मृत्यु भ’ गेल
रहनि। जाबे तक नेहरू जीवित रहला
भारतक प्रजातंत्रा
राजतंत्राक मुखौटा पहिरने छल। एक व्यक्तिक सोच, एक व्यक्तिक
राज आ एक व्यक्तिक सरकार।
नेहरूक विशाल व्यक्तित्वक सोझाँ मे बाँकी काँग्रेसी
नेता पंगु बनि क’ रहि गेल
छला। नेहरूक बाद देशक प्रधानमंत्राी के बनत से प्रश्न
समूचा देशक चिंता बनि गेल
रहै। मुदा भारत माताक कोखि मे अकाल नहि पड़ल
छलैक। देशक भाग्य जागि
गेल रहैक। प्रधानमंत्राीक पद पर लाल बहादुर शास्त्राी
शपथ लेने रहथि। ई बात
स्वीकार करै मे संकोचक गुंजाइश नहि छलै जे ताहि समय
मे भारतक आर्थिक स्थिति
दयनीय अवस्था मे रहै। देश मे अन्नक भारी कमी छलै।
पी.एल.फोर एट्टीक समझौता
अनुसार अमेरिकाक तीन गोट गहूम लादल जहाज
नित्य दिन भारतक बन्दरगाह
पर पहुँचि रहल छलै। मुदा सभ तरहक तकलीफ
104 केदार नाथ चौधरी
रहितहु सज्जन, सरल,
गाँधीवादी लाल बहादुरक नेतृत्व मे समूचा देशक जनता मे
पूर्ण आस्था जाग्रत भ’ गेल रहै।
‘जय जवान, जय किसान’ क नारा सँ देश प्लावित
भ’ गेल छल।
पाकिस्तान केँ मुँहतोड़
जवाब देल गेलै। सभटा मोर्चा पर पाकिस्तानक पराजय
भेलै। युद्धक सामिग्री
छोड़ि पाकिस्तानी सैनिक पड़ा क’ दूर चल गेल। अमेरिका सँ
प्राप्त अजेय पैटन टैंक
केँ भारतीय सैनिक थकुचि देलक। भारतक फौज जीत हासिल
करैत लाहौर तक पहुँचि
गेल।
‘‘ताहि समय मे सम्पूर्ण
विश्व दू खेमा मे विभाजित रहए। एक खेमाक नेतृत्व
अमेरिका आ दोसर खेमाक
कर्णधार सोवियत रूस। भारत कोनो खेमा मे नहि छल।
मुदा पाकिस्तान अमेरिकाक
पिट्ठू बनल अस्त्रा-सस्त्रा संगे आर्थिक मदति प्राप्त क’
रहल छल। रसियन नेता केँ
पाकिस्तान पर नजरि रहनि। ओ पाकिस्तान केँ अपन
पक्ष मे आन’ चाहैत
छलाह। ई छल रसियन नेताक सोच मे खोट। कारण पाकिस्तान
विश्वास योग्य देश छले
नहि। पाकिस्तान भारतक संग दुश्मनीक सोंगर पर ठाढ़ एक
चरित्राहीन, अविश्वासी
देश छल। सोवियत रूसक कमान बुलगानीन एवं ख्रुश्चेव
नामक नेताक साथ मे रहए।
दुनू नेता बलंठ, मूर्ख आ बुद्धिहीन रहथि। पाकिस्तान
केँ अपन खेमा मे आनक
उत्कंठा सँ ओ दुनू नेता बिन बजाओल भारत आ
पाकिस्तानक युद्धक
मध्यस्थता कर’
लेल ताशकंद पहुँचि गेलाह। युद्ध विराम भेल।
लाल बहादुर शास्त्राी
ताशकंद पहुँचलाह। रूसी नेताक झांसा मे आबि सरल प्रकृतिक
शास्त्राीजी जीतल भूमि
पाकिस्तान केँ वापस करक शर्तनामा पर दस्तखत क’
देलखिन। कश्मीरक समस्या
ओहिना मुँह बौने रहि गेल। भारत मे एकर भयंकर
प्रतिक्रिया भेलै। अपन
देशक प्रतिकूल प्रतिक्रियाक समाचार पाबि शास्त्राीजी व्यथित
भ’ गेला। ओ
दुख केँ सहि नहि सकलाह। शास्त्राीजीक हृदयगति अवरुद्ध भ’
गेलनि। ताशकंदे मे हुनकर
मृत्यु भ’ गेलनि।
लाल बहादुर शास्त्राीक
आकस्मिक निधन सँ समूचा भारत कराहि उठल।
शास्त्राीक मृत्यु सँ देश
ओहिना कंगाल भ’
गेल जहिना लौह पुरुष बल्लभभाइ पटेलक
मृत्यु सँ भेल छल।
शास्त्राीजीक क्षति सँ
जेना देश भरिक लोक मर्माहत छल तहिना हम आ मदन भाइ
सेहो वेदना मे रही। हमरा
दुनूक हृदय मे हाहाकार मचल रहए। थोड़े समय बितलै।
समयक मरहम दुख सहैक
क्षमता प्रदान केलक। आस्ते-आस्ते हम सभ अहि दुख सँ
निवृत्त भेलहुँ। तकर बाद ‘कर्म
प्रधान विश्व रचि राखा’ बला उक्ति सामने आबि गेल!
कर्म त’ सभ केँ
करए पड़िते छैक ने! हम आ मदन भाइ बम्बइ पहुँचलहुँ।
अबारा नहितन 105
बम्बइ लैबक पछबारी कात
बरामदा पर राखल ब्रेंच पर तीनू निर्माणकर्त्ताक
प्रतीक्षा मे बैसल रही।
थोड़ेक समय बितलै। राम सिंह एवं हमर सभहक फिल्मक
मराठी एडिटर डार्करूम सँ
निकलि हमरा सभहक लग मे पहुँचलाह। एडिटर मुस्की
दैत कहलनि‘‘स्क्रिप्ट
के मोताबिक फिल्म पूरा बन चुका है। अब बचा है इनडोर
मे सूटिंग होने वाला दो
डान्स, बैकग्राउन्ड म्युजिक, फिल्म का तीन-चार कापी बनाने
का खर्च और सेंसर फीस।
थोड़ा-बहुत बम्बइ लैब का फाइनल पेमेन्ट भी करना
होगा। मेरे अन्दाजा मे
पैंतीस से चालिस हजार और खर्च करना होगा, तभी फिल्म
थियेटर तक पहुँच पायेगा।’’
आरम्भ मे फिल्मक बजट
चालीस हजारक बनल रहए। फिल्म निर्माणक
अन्तकाल बजट चालीस हजार
पर ठाढ़े छल।
मदन भाइ इशारा केलनि। हम
बैग सँ निकालि दू हजार टाका एडिटर केँ आ
एक हजार टाका राम सिंह
केँ हाथ मे देलयनि। दुनू केँ इहो आदेश देल गेलनि जे
दुनू अपन-अपन काज कर’ मे लागि
जाथि।
दोसर दिन प्रातः काल हम आ
मदन भाइ भानु बाबूक चिंचपोकली आवास मे
दाखिल भेलहुँ।
चाय-नास्ताक काज सम्पन्न भेल। भानु बाबू बजलाह’ ह’। आब
मोन केँ शान्ति भेटलए।
फिल्म निर्माणक काज भेल कठिन रस्ताक लम्बा सफर।
मुदा हम सभ सकुशल आखरी
पड़ाव पर पहुँचि गेलहुँ अछि।
मदन भाइ भानु बाबूक
उक्तिक खण्डन करैत कहलनिबाँकी जे खर्च हेतै से
त’ समक्ष
अछिए। ओकरा एखन बिसरि जाउ। मानि लिअ फिल्म तैयार भ’ गेल
तखन समस्या ठाढ़ होयत एकर
वितरणक। की हमसभ तैयार फिल्म केँ ल’क’ एक
सिनेमा हॉल सँ दोसर
सिनेमा हॉल तक बौआइत रहब? फिल्म वितरणक काजक
ने लूरि अछि आ ने लूरि
प्राप्त करक क्षमता। बिना वितरक अर्थात् डिस्ट्रीब्यूटरक
फिल्म सिनेमा हॉल तक कोना
पहुँचत? समस्या त’ अछिए। हमसभ आखरी पड़ाव
तक कहाँ पहुँचलहुँए?
मदन भाइक कथन सुनि भानु
बाबू तिलमिला गेला। हुनक दर्प हुनका मुखमंडल
पर स्पष्ट रूपें अंकित भ’ गेलनि। ओ
ठोर पर ठोर बैसोने कनेकाल तक स्थिर गंभीर
रहलाह, तखन बजलामहंथजीक
कथन जायज छनि। सही मे हमरा लोकनि अन्तिम
पड़ाव सँ दूरे छी। मुदा
अहाँ दुनू फिकिर नहि करू। महंथजी बहुत खर्च क’ चुकलाए,
आब ओ एको टका आओर खर्च
नहि करथु। जे खर्च हेतै तकर बन्दोबस्त हम
असगरे क’ लेब।
बम्बइ शहर मे प्रवासी मैथिलक बड़ी टा समाज छैक। सभटा मैथिल
हमरे-अहाँ जकाँ मिथिलाक
प्रतिए संवेदनशील छथि। एतय विद्यापति पर्वक अलावा
106 केदार नाथ चौधरी
बहुत तरहक सांस्कृतिक
कार्यक्रम आयोजित होइए। हम सभ तरहक कार्यक्रम मे
भाग लैत छी। हम सभटा
प्रवासी मैथिल सँ व्यक्तिगत रूपेँ परिचित छी। कइएक
गोट मैथिल सरकारी विभाग
मे उच्च पद पर सेहो आसीन छथि। काज भेल हमरा
सभहक फिल्म लेल
डिस्ट्रीब्यूटर ताकब। हम सभ सँ सम्पर्क करब आ हुनका सभ
केँ मैथिली भाषा मे बनल
फिल्मक जानकारी देबनि। अहि तरहेँ हम वितरक केँ
अबस्से ताकि लेब। अगिला
खर्च वितरके करत तकरो इन्तिजाम क’ लेब। अगिला
काज हमरे जिम्मा छोड़ि
अहाँ दुनू निश्चिन्त भ’ जाउ।
मैथिली भाषा मे फिल्म बना
क’ लाभ होयत, यश भेटत आ की मैथिल
समुदायक बीच प्रशंसाक
पात्रा बनब ताहि दिश हमर सभहक ध्यान गेले ने रहए।
मात्रा मैथिली भाषाक
रक्षार्थ फिल्म बनेबाक आयोजन कयने रही। मिथिलांचल मे
गरीबी, अशिक्षा
एवं आलस्य छैक। मुदा प्रवासी मैथिल अहि तरहक रोग सँ मुक्त
छलाह। जखन भानु बाबू
प्रवासी मैथिल सँ स्वयं मदति लेबाक विचार प्रगट केलनि
त’ हम आ मदन
भाइ अति प्रसन्न भेल छलहुँ।
भानु बाबू बम्बइ मे कत’-कत’
गेलाह, किनका-किनका सँ भेट केलनि से त’
वएह जनताह। तीन दिनक अथक
परिश्रमक बाद हुनकर पत्राकारिता मे रेतल बुद्धि
दू गोट विशिष्ट प्रवासी
मैथिलक चयन केलक। एक व्यक्ति छला महाराष्ट्र सरकार
मे नियुक्त चीफ ड्रग
कन्ट्रोलर। दोसर महारथी भारत सरकारक इनकम टैक्स
महकमाक कमीश्नर रहथि।
बम्बइ फिल्म नगरीक अलावा
दवाइ निर्माताक मक्का। देशक तमाम छोट-पैघ
दवाइ कम्पनीक हेडऑफिस
बम्बइए मे छल। चीफ ड्रग कन्ट्रोलक हाथ मे सभहक
टीक। भानु बाबू मीटिंगक
इन्तिजाम केलनि। ड्रग कन्ट्रोलक ऑफिस अँग्रेज
जमानाक बनल पुरान मुदा
विशाल भवन मे अवस्थित रहए। बड़ी टा हॉल, अनगिनत
टेबुल, टेबुल पर
छिड़िआयल फाइलक ढेरी। सभकिछु केँ देखैत, सभटा कर्मचारीक
नजरिक नोक सँ बँचैत हॉलक
अन्त मे बनल चीफ ड्रग कन्ट्रोलरक ऑफिस मे
पहुँचलहुँ। कन्ट्रोलर
साहेब छह फीटक मनुक्ख आ तहिना हुनक भारी-भरकम काया।
ओ थ्री पीस सूट पहिरने आ
लाल रंगक टाइ बन्हने कुर्सी पर बैसल रहथि। हुनकर
आज्ञाचक्र पर पैघ सेनुरक
ठोप रहनि। शुद्ध मैथिली भाषा मे ड्रग कन्ट्रोलर साहेब भानु
बाबू सँ हमर एवं मदन भाइक
परिचय पूछलनि। हुनकर बाजब, ताकब आ भाव
भंगिमा मे अपनत्व भरल छल।
नीक लागल रहए।
भानु बाबू हमरा दुनूक
संक्षिप्त परिचय देलनि। तखन अत्यन्त मर्म-स्पर्शी स्वर
मे ‘ममता गाबए
गीत’ फिल्मक इतिहास एवं वितरकक वर्तमान समस्याक उल्लेख
अबारा नहितन 107
केलनि। भानु बाबूक व्यथा
केँ धैर्यपूर्वक सुनलाक बाद ड्रग-कन्ट्रोलर साहेब कहलनि
अहाँ सभहक उद्देश्य उत्तम
अछि। मिथिला-मैथिली लेल अहाँ तीनू जे परिश्रम केलहुँ
अछि तकर हम प्रशंसा करैत
छी। मुदा अहाँ सभ गलत स्थान पर पहुँचि गेल छी।
अहाँ सभ फलाँ बाबू सँ भेट
करिऔन। ओ शत-प्रतिशत मैथिल छथि। सम्प्रति ओ
इन्कम टैक्सक कमीश्नरे
नहि बहुत पैघ कुर्सी पर आसीन छथि। समस्त फिल्म
इन्डस्ट्रीज हुनकर जेबी
मे छनि। फलाँ बाबू बिहार क्षेत्राक कोनो डिस्ट्रीब्यूटर केँ फोन
करथिन, डिस्ट्रीब्यूटर
दौड़ल आओत आ लगभग पूरा बनल अहाँ सभहक फिल्म केँ
ओ कीनि लेत। मिथिला मे
मैथिली भाषा मे बनल सिनेमाक पैघ बाजार हेबेटा
करैतक। मिथिलाक सैकड़ो
सिनेमा हॉलक मात्रा एक सप्ताहक कलेक्शन सँ
डिस्ट्रीब्यूटर अपन लागत
ऊपर क’ लेत। डिस्ट्रीब्यूटर केँ एतेक ने नफा हेतै जे जखन
अहाँ सभ केँ मात्रा चालिस
हजार टाका चाही ने, ओतबा टाका फिल्म डिस्ट्रीब्यूटरक
लेल एक पचटकहीक बरोबरि
भेलै। समय दूरि नहि करू। तुरंत फलाँ बाबू लग
पहुँचि अपन व्यथाक अन्त
करू, सैह विचार हम देब।
अन्हरा केँ की चाही? जवाब भेल
आँखि। नúरा केँ की चाही? जवाब भेल टाँग।
हम तीनू इन्कम टैक्स ऑफिस
पहुँचलहुँ। नवनिर्मित भेल इन्कम टैक्स ऑफिसक
भव्य आ विशाल भवन मे
प्रविष्ट भेलहुँ। भवनक सीढ़ी पर्यन्त कारपेट सँ झाँपल
रहए। फलाँ बाबूक ऑफिस
हुनकर ओहदाक मोताबिक सुन्दर, सजल छल। हमरा
तीनूक आगाँ बर्फ सँ सर्द
भेल कोकोकोलाक बोतल आबि गेल। पसेना सुखा गेल।
बोतलक शीतल पेय उदर मे
पहुँचि मोन केँ पुलकित क’ देलक। सत्कार मे कोनो
तरहक कमी नहि रहल। भानु
बाबू एकमात्रा वक्ता छला। ओ पुनः ‘ममता गाबए
गीत’ फिल्मक
कष्टक बखान कर’ लगलाह।
थोड़बे बात सुनलाक बाद
फलाँ बाबू भानु बाबू केँ चुप रहबाक इशारा केलथिन।
ओ बटन दबा क’ चपरासी
केँ बजौलनि आ अपन सेक्रेटरी केँ बजा क’ लाबक
आदेश देलनि। सेक्रेटरी
आयल, फलाँ बाबू हुनका कहलथिन‘‘भटनागर, देश के
नौर्थ-इस्टर्न जोन का सभी
फिल्म डिस्ट्रिव्यूटर का लिस्ट लेकर आइए।’’ हॉल मे
शान्तिए व्याप्त रहल।
भटनागर एकटा फाइल फलाँ बाबूक आगाँ राखिक’ वापस
चल गेल। फलाँ बाबू फाइलक
पन्ना उनटाब’
लगलाह। एक नाम पर आंगुर राखि
क’ ओ
टेलीफोनक चोंगा उठौलनि। ठीक ओही समय मे अनर्थ भ’ गेलै। फलाँ
बाबू
भानु बाबू केँ चुप रहैक
इशारा क’ चुकल रहथि। मुदा काज भ’ गेल तेहन अन्दाज
क’क’
भानु बाबू आवेश मे आबि बाजि देलनिहमसभ अनजाने मे पहिने चीफ ड्रग
कन्ट्रोलर सँ भेट करए चल
गेल रही। वएह अहाँ सँ भेट करक परामर्श देलनि।
108 केदार नाथ चौधरी
अहाँक अधीन अनेको फिल्म
डिस्ट्रिव्यूटर छथि तकर जानकारी वएह देलनि।
अबिलम्ब अप्रत्याशित घटना
घटल। घटना एहन घटल जे ‘ममता गाबए गीत’
फिल्म नसीब केँ चकनाचूर क’ देलक।
भानु बाबूक मुँहसँ निकलल चीफ ड्रग
कन्ट्रोलरक नाम सुनि फलाँ
बाबू भड़कि उठलाह। ओ टेलिफोनक चोंगा केँ टेबुल
पर पटकि देलनि। फलाँ
बाबूक प्रतिक्रिया अजीबे तरहक भेलनि। हुनक मुखाकृति
अस्ट्रेलियाक नक्शा सँ
एशियाक नक्शामे बदलि गेलनि। ओ उठि क’ ठाढ़ भेलाह
आ फुफकारैत ऑफिससँ बाहर
चल गेलाह।
हम तीनू आशंका सँ भयभीत
भेल पाथर बनि गेलहुँ। एक क्षणक बाद फलाँ
बाबूक चपरासी आयल आ तीनू
दिश तकैत कठोर स्वरमे निर्देश देलक‘‘साहेब का
हुक्म है, आप तीनो
तुरंत आफिस से बाहर निकल जाइए।’’
भेल काज नाश भ’ गेल। एना
भेलै किएक? एकर कारण बाद मे पता लागल
छल। भानु बाबू द्वारा
चुनल दू गोट महान मैथिल आत्मा एक दोसराक प्रतिद्वन्द्वी
रहथि। विगत बर्ख दुनू
महारथी बम्बइ मे स्थापित अखिल भारतीय मैथिल महासंघक
अध्यक्ष पदक प्रत्याशी
भेल रहथि। दुनूक हित-अपेक्षितक कमी नहि। प्रवासी मैथिल
दू भाग मे बँटि गेल। एक
समूह एमहर आ दोसर समूह ओमहर। अनेक दाव-पेंच
चललै। चुनावक बैसार मे
मारि-पीटि भ’
गेलै। बम्बइक सभटा मैथिल समाज दू
फाँक मे विभाजित भ’ गेल। एकक
जलशा जूहूक बीच मे त’ दोसरक चौपाटीक बालु
मे। एक फाँकक कर्ताधर्ता
चीफ ड्रग कन्ट्रोलर छलाह। दोसर फाँकक शहंशाह इनकम
टैक्स कमीश्नर रहथि। दुनू
महान मैथिलक माथ पर सोनाक पाग। सोनाक पाग मे
कलियुगक बास। कलियुगक
सिपहसलार भेल अहंकार। अहंकारक पुत्रावधू भेलीह
इर्खा। तोरा सँ हम कोन
बात मे छोट। तोँ बड़ पैघ त’ सड़ अपन घर मे। दू फाँक
भेल मैथिल समुदायक एकहिटा
कार्यक्रम छलै। अपन भाषा अर्थात् मैथिली भाषा मे
एक दोसरा केँ गारि पढ़ब।
जे होउक, हमर सभहक
‘ममता गाबए गीत’ प्रवासी मैथिल महासंघक
दू फाँक
भेल चक्की मे पिसा गेल।
ककरहु दोख देब अनुचित, सभटा नसीबक दोख। भानु
बाबू हतोत्साहित भ’ गेलाह। ओ
हरदा बाजि देलनिहमरा बुते जे संभव रहए से
हम केलहुँ। हमर पन्द्रह
हजार टाका फिल्म मे डुबि गेल से बुझितहुँ हम लाचार छी,
विवश छी। वयस मे अहाँ
दुनू छोट छी,
तथापि कल जोड़ि हम क्षमा मँगतै छी। हमरा
बुते आब कोनो टा काज नहि
हैत।
अबारा नहितन 109
13
हम आ मदन भाइ बम्बइ क’ खार नामक
स्टेशनक समीप ‘एभर ग्रीन’ होटल मे
टिकल रही। होटल पहुँचि
बिना खेने-पीने ओछौन पर पड़ि रहलहुँ। आब सही मे
मोनक संताप सँ उपजल क्लेश
सँ बंचैक कोनो टा मार्ग नहि छल। कोनो व्यक्तिक
ओझराहटि आ चिंता ओही
मनुक्खक गलत निर्णयक परिणाम होइए। मैथिली
भाषाक पहिल फिल्म
धर्म-आधारित हेबाक चाहैत छलै। पूजी आ श्रम कम लगितैक
आ डिस्ट्रीब्यूटरक जरूरति
हेबे नहि करितैक। सामाजिक फिल्म बना क’ हमसभ
अजीब विषम परिस्थिति मे
फँसि गेल रही।
फिल्मक बाँकी खर्च मदन
भाइ क’ सकैत छलाह। मुदा समूचा फिल्म बनलाक
बादो समस्या तँ रहिए
जइतैक। बिना डिस्ट्रीब्यूटरक मदतिए फिल्म सिनेमा हॉल तक
पहुँचिए ने सकैत छलै। आब
डिस्ट्रीब्यूटर तक पहुँचैक इल्म आ कि बुद्धि ने हमरा
छल आ ने मदन भाइ केँ
छलनि।
अगिला दू दिन तक माथक
यंत्रा मे लटकल ताला मे विभिन्न तरहक कुंजी
पैसा-पैसा क’ ओकरा
अँइंठैत रहलहुँ तखन जा क’ एक बातक ध्यान सामने आयल।
बम्बइओ सँ अधिक प्रवासी
मैथिल कलकत्ता मे रहैत छथि। ओहि मे सँ कइएक टा
रथी एवं महारथी हेबेटा
करताह। हमरा सभ केँ डिस्ट्रीब्यूटर अर्थात् वितरक ताकि
देथि आ नइ त’ कोनो
मैथिल संस्था हमर सभहक फिल्म केँ एडौप्ट क’ कलकत्तेक
कोनो सिनेमा हॉल मे
प्रदर्शित करथि तकर इन्तिजाम क’ देथि। एकटा बात आरो
सोचक परिधि मे आयल। थोड़बो
तैयार फिल्म संग मे नेने जाइ जकरा कोनो सिनेमा
हॉल मे प्रदर्शित करबा क’ मैथिल
बंधु केँ विश्वास करबा दिअनि जे हमसभ फूसि
नहि, सही मे
फिल्म बनेलहुँए, एहि मे नफा हेतै आ कि नोकशान तकरा बिसरने
छलहुँ। मैथिली भाषाक
फिल्म केँ मैथिल दर्शक कहुना भेटि जाइक मात्रा ततबेटा लेल
उद्योग करैत रही।
हिन्दी मे कहबी छै ‘मरता क्या
नहीं करता’। सैह स्थिति मदन भाइक छलनि।
110 केदार नाथ चौधरी
बम्बइक प्रवासी मैथिलक
आचरण ओ देखि लेने रहथि। कलकत्ताक प्रवासी मैथिल
स्वभावक आकलन कर’ मे हुनका
कोनो भांगठ नहि छलनि। तथापि ओ हमर
कलकत्ता जेबाक सुझाव केँ
अनुमोदन केलनि। हम दुनू बम्बइ लैबमे एडिटर लग
पहुँचलहुँ। ताबत तक लगभग
पाँच हजार फीटक एडिटिंग भ’ चुकल रहै। अहि पाँच
रील मे सिनेमाक आनन्द
मैथिल दर्शक उठा सकैत छलाह। एक तरहक बानगी तैयार
भ’ गेल रहए।
तैयार पाँच रीलक एक्सट्रा
कॉपी बनबा हम आ मदन भाइ भाया नागपुर
कलकत्ता लेल बिदा भेलहुँ।
कलकत्ता पहुँचि सियालदह स्टेशन लग गीतांजली नामक
होटल मे लंगर खसेलहुँ।
भरि दिन सुस्ता क’ सूर्यास्तक समय 42, चौरंगी रोड
पहुँलहुँ। चारि मंजिला
विशाल भवन दरभंगा महाराजक सम्पत्ति रहनि। ओही भवनक
उपरका मंजिल पर यदुवीर
नारायण चौधरी उर्फ जे.एन. चौधरीक आवास छल।
भवनक पहिल मंजिल पर
दरभंगा एभियेशनक मैनेजर जगदीश बाबूक ऑफिस एवं
आरामगृह रहनि।
यदुवीर बाबू एवं हमर
परपितामहक सहोदर भ्राता-शाखाक। तेँ यदुवीर बाबू हमर
जेठ पितिऔत भ्राता। हमर
कलकत्ता प्रवासमे ओ हमर गार्जियन छला। हमर
महिनाक खर्च एवं
चिट्ठी-पत्राी हुनके केयर आफ मे अबैत रहए। सम्प्रति हमर भ्राता
बिहार प्रांत मे प्रकाशित
‘इन्डियन नेशन’ एवं ‘आर्यावर्त’
नामक समाचार पत्राक
कलकत्ता मे प्रतिनिधि
छला। भानु बाबूक समकक्षे, मुदा हुनका सँ भिन्न हमर भ्राता
ने कवि छलाह आ ने कलाकार।
ओ मूर्त्तिहीन मुदा कर्त्तव्यनिष्ठ बनल समाचार पत्रा
लेल विज्ञापन संग्रहीत
करैत रहथि। समाचार पत्राक रक्त संचालन मात्रा विज्ञापने सँ
होइए। हमर भ्राता अपन काज
मे सफल रहथि आ हुनकर समाचार पत्राक जगतमे
बहुत आदर होइत छलनि।
हमरा देखिते हमर पितिऔत
पित्ते आन्हर भ’ गेलाह। चिकरैत कहलनिकेदार
भैया, तोरा सनक
मूर्ख अपन खानदान मे ने भेल रहए आ ने हैत। अर्थशास्त्रा मे एम.
ए. केलह, नीक
रिजल्टक कारणे तोरा नीक नोकरी भेटि गेल’। मुदा नोकरी केँ
त्यागि
तोँ फिल्म बनब’ बम्बइ चल
गेलह। वाह रे वाह! हउ फिल्मी संसार कोन तरहक
अछि से जनैत छह, सफल
कलाकार, सफल संगीतकार आ कि सफल फिल्म
गनल-चुनल होइए। बाँकी
फिल्मी जगत भेल अबारा, गुंडा आ पिआकक जमघट।
यदुवीर बाबूक फझति मे
हुनक हमरा प्रति स्नेह भरल छलनि। हम तेँ सुनैत
रहलहुँ आ ओ फझति करैत
रहलाहमनुक्खक कोखि मे जन्म लेलए त’ बुद्धिक
खर्च क’र’। अपन उन्नति कर’ आ अपन परिवारक उन्नति कर’। तकर बादो जँ
अबारा नहितन 111
ऊर्जा बँचि जाह त’ अपन गामक
उन्नति कर’। तोँ त’ समूचा मिथिलेक
उन्नति
कर’ लेल बीड़ा
उठा लेलहए।
एखन तक हमरा फझति करैत
आक्रोश मे हमर भ्राता मदन भाइ केँ देखने नहि
रहथिन। एकाएक हुनक ध्यान
मदन भाइ दिस गेलनि। ओ चुप भ’ किछु क्षण तक
मदन भाइ केँ निहारैत रहला
तखन पुछलनि
ई के थिकाह?
महंथ मदन मोहन दास।
महंथ?
हँ यौ! राजनगर लग
मिर्जापुर स्थानक ई मंहथ छथि।
हमर पितिऔत एना मुँह बौने
मदन भाइ दिस ताकय लगलाह जेना ओ
चिड़ियाखाना मे शुतुरमुर्ग
केँ देखि रहल होथि। हुनकर ष्टि मे महंथ माने एहन
मनुक्ख जकर तोंद निकलल
होइक, साबेक जउड़ मे बाँटल जनउ पहिरने होइ, डाँड़
मे लंगोट आ तकरा ऊपर
बिस्टी होइ आ शरीरक वजन कम सँ कम अढ़ाइ-तीन
मनक होइ। मदन भाइ
पेन्ट-शर्ट पहिरने एकटा स्मार्ट युवक रहथि। हमरा लेल
पितिऔतक उलझन समाप्त करब
जरूरी भ’ गेल। हम कहलियनिमिर्जापुर
महंथाना केँ एखनहुँ हजार
बीघा जमीन छैक। लगभग तीन मन चाउर, तकर
दालि-तीमन नित्य रान्हल
जाइत छैक जे संन्यासी, अभ्यागत, गरीब-दरिद्र आ भूखल
जीव खाइए। मिर्जापुर
महंथक छोट भ्राता भेलाह सीतामढ़ी आ चोरौतक महंथ।
पितिऔतक भाव-भंगिमा एकदमे
सँ बदलि गेलनि। ओ आदर सँ हमरा आ
मदन भाइ केँ सोफा पर
बैसोलनि। अपन कनिआँ अर्थात् पोखरौनी बाली भौजी
केँ चिकरैत आदेश देलथिनअति
विशिष्ट पाहुन अयला अछि। चाह-जलखैक
प्रबंध करू।
आब हमर पितिऔत हमरा मे
नहि, मदन भाइ मे अधिक दिलचस्पी ल’ रहल
छला। चाह-जलखै आदि भेलै।
ताहि बीच मदन भाइ अत्यन्त संयत वाणी मे विस्तार
सँ ‘ममता गाबए
गीत’ नामक फिल्म बनेबाक उद्देश्य एवं आवश्यकता पर प्रकाश
देलथिन। कलकत्ता अयबाक
कारण सेहो बतेलखिन। हमर भ्राता मदन भाइक कथन
सँ कतेक प्रभावित भेलाह
तकर बोध तखने भ’ गेल रहए। ओ कहलथिनअहि
तरहक ज्वर-बोखार सँ हम
बाँचल छी। मुदा हम एक व्यक्ति केँ चिन्हैत छियनि जे
मिथिला-मैथिली नामक रोग
सँ ग्रसित छथि। ओ कहियो काल चारि पन्नाक मैथिली
भाषाक पत्रिका छपबा क’ बेचैत
छथि आ मैथिल केँ जमा क’ सभा सेहो करैत छथि।
अहाँ दुनू अपन होटल जाउ आ
राति भरि विश्राम करू। काल्हि सकाले ओ व्यक्ति
112 केदार नाथ चौधरी
होटल मे अहाँ दुनूक सेवा
मे हाजिर भ’
जेताह आ आदेशानुसार सभ तरहक
इन्तिजाम क’ देताह।
दोसर दिन भिनसरे जे
व्यक्ति हमरा सभहक सहायता कर’ लेल होटल मे
अयलाह हुनकर नाम छलनि तृप्ति
नारायण उपाध्याय उर्फ तिरपित बाबू। धोती-कुर्ता,
सेनुरक ठोप आ गरदनि मे
करिया बैद्यनत्था बद्धी। अछिंजल सँ धोअल हुनकर
मुखमंडल सँ सज्जनताक आभा
प्रस्फुटित भ’
रहल छल। लोहना स्टेशन लग कोनो
गामक निवासी तिरपित बाबू
जीविका उपार्जन लेल उषा फैन फैक्टरी मे कार्यरत
रहथि। हुनकर जीवनक
एकमात्रा उद्देश्य रहनि मिथिला-मैथिलीक कोनो तरहक
सेवाक काज होइ, अपन
सर्वस्व न्यौछावर क’ ओहि पुनीत काजमे योगदान करी।
मदन भाइ तिरपित बाबू केँ ‘ममता गाबए
गीत’ फिल्मक वर्तमान समस्या जे
वितरणक छल ताहि द’ किछु कह
चाहलनि, मुदा तिरपित बाबू तकर अवसर नहि
देलथिन आ कहलथिनश्रीमान्, यदुवीर
बाबू हमरा सभ बात कहि चुकला अछि।
मैथिली भाषा मे फिल्म
बनायब साधारण बात नहि भेलै। ई कालजयी कृति भेलै।
हम एकर भूरि-भूरि प्रशंसा
करैत छी। अपने दुनू व्यक्ति प्रणम्य थिकौं। सभ तरहक
सहयोग क’ फिल्मक
सभटा समस्या केँ जड़ि सँ समाप्त क’ देब तकर हम वचन
दैत छी।
तिरपित बाबू कलकत्ताक
गिरीश पार्क मे प्रवासी मैथिलक विशाल सभाक
आयोजन केलनि। यद्यपि
ओतुक्का मैथिल समाज कइएक खंड मे खंडित रहथि।
मुदा मैथिली भाषा मे बनल
सिनेमाक आकर्षण एतेक ने जबर्दस्त रहै जे सभटा
मैथिल अपन-अपन राग-द्वेष
त्यागि सभा मे उपस्थित भ’ गेलाह। सभामे कइएक
हजार मैथिल जमा भ’ सभा-स्थल
केँ ठसमठस भरि देलनि।
पार्कक एक भाग मे
तीन-चारि गोट लम्बा-लम्बी चौकी केँ जोड़ि आ तकरा
उज्जर जाजिम सँ झाँपि मंच
बनाओल गेल रहए। मंचक कतबहि मे वक्ताक
बाजक लेल माइकक इन्तिजाम
छलै। सभाक सभापतिक चयन पहिने सँ निश्चित
रहए। मधुबनी जिलाक आदरणीय
श्री जगदीश बाबू जे सम्प्रति दरभंगा एभियेशनक
मैनेजर रहथि, मंच पर
आबि अध्यक्षक स्थान ग्रहण केलनि। अनचिन्हारे एक
दर्जन प्रबुद्ध मैथिल
सेहो मंच पर विराजमान भेला। अध्यक्षक अगल-बगल मे
हमरा आ मदन भाइ केँ
बैसाओल गेल। अध्यक्ष महोदय दपदप उज्जर धोती-कुर्ता
पहिरने रहथि आ हुनक ठोर
पर मुस्की पसरल रहनि। अध्यक्ष महोदयक वस्त्रासँ
विसर्जित होम’ बला
इभनिंग इन पेरिस नामक इत्राक सुगन्धि मंच परहक प्रत्येक
बुद्धिजीवीक मोन केँ मोहि
लेने छल।
अबारा नहितन 113
सभाक कार्यक्रम आरम्भ
भेल। पहिल वक्ता तिरपिते बाबू बनलाह। तिरपित
बाबू भाषण देबामे पटु
रहथि। ओ हमर आ मदन भाइक परिचय एतेक विस्तार सँ
देलनि जे परिचयक बहुतो
अंश हमरो दुनू केँ नहि बुझल रहए। आब तिरपति बाबू
मैथिली भाषा मे फिल्म
बनेबाक अनिवार्यता एवं उद्देश्य पर प्रकाश देब’ लगलाह।
मैथिली भाषा केँ अष्टम
अनुसूची मे स्थान नहि भेटल रहै से अन्याय भेल छलै ने!
ओही अन्यायक परिवादस्वरूप
मैथिली भाषा मे फिल्म बनलए। आब देख रौ
सरकरबा! आँखि खोलि क’ देख जे
मैथिली कतेक समृद्ध भाषा अछि। लाज कर आ
मैथिली भाषा केँ अष्टम
अनुसूची मे स्थान द’ अपन पाप केँ धो ले।
केन्द्र सरकार केँ
कुवाच्य कहैत-कहैत तिरपित बाबू अपन भाषणक विषय
बदलि लेलनि। फिल्म
निर्माण कर’
मे हमरा दुनू निर्माता कतेक प्रताड़ना सहने रही
आ खेत-खरिहान संगे
आंगन-दलान तक बिका गेल छल तकर वर्णन करैत-करैत
तिरपति बाबूक गला अवरुद्ध
भ’ गेलनि, आँखि मे नोर भरि गेलनि आ अन्त मे
जखन ओ दुख केँ सहि नहि
सकलाह त’ सभाक समक्षे हिचुकि-हिचुकि क’ कानय
लगलाह। सभा मे उपस्थित
हजारो मैथिल श्रोता व्यथित भ’ गेलाह आ आँखिक नोर
पोछैत एकाग्रचित भ’ तिरपित
बाबू केँ देख’ लगलाह। तिरपित बाबू अपन वेदना
केँ निग्रह केलनि आ भाषणक
विषय केँ दक्षता संग बदलि अपन सम्बोधन चालुए
रखलनिएक अत्यन्त हर्षक
बात आ जे लोकहित मे सेहो अछि तकरा सुनल
जाओ। भगवतीक असीम
अनुकम्पा सँ आगामी रवि दिन प्रातः आठ बजे विवेकानंद
सड़क पर अवस्थित गणेश
टाकिज मे मैथिली भाषाक पहिल सिनेमा ‘ममता गाबए
गीत’ देखाओल
जायत। हम एखन निर्माताक दिस सँ फिल्म देखै लेल उपस्थित
समस्त मैथिल बंधु केँ
निमंत्राण दैत छी।
तिरपित बाबूक विलक्षण
भाषण समाप्त भेल। मंच परहक एक-एक बुद्धिजीवीक
भाषण शुरू भेल छल। श्रोता
लोकनि भाषण सुनब छोड़ि अपना मे गप्प-सप्प कर’
लगलाह। भनभनाहटिक ध्वनि
चारूकात पसरि गेल, अहि बीच लोकक आगमन
होइत रहल। मंचक पाछाँ
थोड़ेक हटि क’
पार्कक सीमा लग करोटनक गाछ
पतियानी मे रहैक। मंच आ
करोटन गाछक बीचक स्थान सेहो लोक सँ ठसमठस
भरि गेल रहैक।
तिरपित बाबू अपन करामात
देखौलनि। माइक लग पहुँचि बुद्धिजीवी केँ कान
मे जोर सँ कहलनिबहुत
बजलहुँ, आब बाजब बन्द करू।
फेर तिरपित बाबू मदन भाइ
सँ दू शब्द बाजक लेल आग्रह केलनि। मदन भाइ
मंचक पाछाँ अपन जूता
पहिरलनि आ टपैत-टपैत माइक लग पहुँचलाह। श्रोता बृन्द
114 केदार नाथ चौधरी
शान्त भ’ गेलाह आ
सभहक नजरि मदन भाइ दिस घुमि गेलनि। मदन भाइ बाजब
शुरू केलनितिरपित बाबू जे
किछु कहलनि से सत्य अछि। तइयो ओहि मे थोड़े
सुधार करब आवश्यक भ’ गेलए। ‘ममता गाबए गीत’ यद्यपि पूरा बनि चुकलए मुदा
एखनहुँ ओहि मे थोड़ेक काज
बाँकी छैक। बनल फिल्मक पाँच रील ल’ क’ हम एतय
एलहुँ अछि जकरा गणेश
टॉकिज मे देखाओल जायत। निःशुल्क फिल्म देखै लेल
अहाँ सभ केँ निमंत्रित
करैत हमरा अपार हर्ष भ’ रहलए।
थपड़ी बाजब शुरू भेल आ बड़ी
काल धरि थपड़ी बजिते रहल। बड़ कठिन सँ
तिरपित बाबू हर्षित सभा
केँ शान्त केलनि। तखन मदन भाइ फेर सँ बाजब शुरू
केलनिफिल्म बनेनाइ
कष्टप्रद छैहे कारण अइ मे श्रम आ खर्च बहुत लगैत छैक।
जतेक श्रम आ खर्च लगलै से
लगा क’ हम सभ फिल्म बहुत पूरा केलहुँ। आब
समस्या अछि एकर वितरणक।
वितरक ताक’ लेल...।
बीचहि मे मंचक पाछाँ दिस
सँ कियो गर्द केलकपकड़लहुँ सार केँ। ई सार
आब जायत कत?
एक क्षण लेल भीड़
किंकर्तव्यविमूढ़ बनि गेल। मदन भाइ सेहो चुप भ’ गेलाह।
संचमंच भेल भीड़ मे सँ एक
व्यक्ति चिचिआयलकी भेलैए? ककरा तोँ पकड़लएँ?
चारूकात सँ साकांक्ष भेल
भीड़ मे एकाएक कोलाहल होब’ लागल। ताही बीच
मंचक पाछाँ सँ एक व्यक्ति
दोसर व्यक्तिक नरेटी पकड़ने मंच पर चढ़ल। ओहि
व्यक्तिक दोसर हाथ मे
पालिस सँ चमचमाइत एक जोड़ कारी रंगक हाफ-शू रहैक।
ओ व्यक्ति गरजैत बाजलसभ
कियो देख लियौ। ई छी जूता चोर। ई अध्यक्ष
महोदयक जूता चोरबैक फिराक
मे रहए। मुदा हम आँखि पथने रही। ई जखने जूता
दिस हाथ बढ़ौलक, हम अहि
सार केँ गसिया क’ पकड़ि लेलहुँ।
तकर बाद सभा मे हड़कम्प
मचि गेल। ‘मार सार केँ, बचि केँ ने जाउ’ ध्वनि
प्रसारित होब’ लागल।
थोड़ेक छौंड़ा लपकि क’ मंच पर चढ़ि गेल। तखन शुरू भेल
मुष्टिका प्रहार।
धक्कम-धुक्का,
पिच्चम-पिच्चा, ठेलमठेल्ला। कियो एमहर खसल
कियो ओमहर ओंघरायल।
मंच पर जूता लेने ठाढ़
मनुक्खक हाथ सँ अध्यक्षजी जूता छिनलनि। जूता केँ
पयर मे पहिरैत ओ हमरा
कहलनिबाज एलहुँ एहन सभा सँ। हम जा रहल छी।
हम शपथ खाइत छी जे फेर
कहिओ कोनो सभाक अध्यक्ष नहि बनब।
मंच पर आ मंचक आगाँ
ठेलमठेला होइते रहल। भीड़ जूता चोर केँ तिरने-तिरने
एक कात ल’ गेल। भीड़
मे सँ लोक उचकि-उचकि क’ जूता चोर पर प्रहार क’ रहल
छल। अवसरक लाभ उठबै मे
बुद्धिजीबिओ पाछाँ नहि रहलाह। तखने एकटा प्रबुद्ध
अबारा नहितन 115
मैथिल सभ केँ चेतबैत हाक
देलनिएतेक नहि मारहक जे जूता चोर मरि जाइ। जँ
मरि जतै त’ दोसरे
आफद मे फँसि जेबह।
अगिला पाँच मिनट तक नाटक
होइत रहल। जूता चोरक संग सभटा पब्लिक
पार्क मे जहिं-तहिं
छिड़िया गेल। सभास्थल जन शून्य भ’ गेल। मात्रा हम आ मदन
भाइ बैसल रहि गेलहुँ।
हमरा दुनूक संग ‘ममता गाबए गीत’ फिल्मक आर्थिक
एवं
वितरण समस्या सेहो मुँह
बौने ठाढ़े रहि गेल छल।
एक-दू मिनटक भीतरे हम
तिरपति बाबू केँ अबैत देखलियनि। हुनका संग मे
जुल्फीबला एकटा छौंड़ा छल।
दुनू मे वाक्युद्ध भ’ रहल छलै। मंचक लग पहुँचि
तिरपित बाबू अपन संग मे
आयल छौंड़ा सँ कहलनि‘‘सभा अधहे पर सँ उसर
गया। तब तोँही कहो
तुम्हारा माइक का पूरा पेमेन्ट क्यों मिलेगा?’’
छौंड़ा तमतमायल छल, बाजल‘‘तुम्हारा सभा का क्या हुआ हमरा जानने का
जरूरत नहीं है। हम कम्पनी
का चाकर है। पूरा पेमेन्ट लेकर जाएगा नहीं देगा तो
तुम्हारा छातीका हड्डी
तोड़ देगा।’’
तिरपित बाबू मदन भाइ मे
सटैत चिचिएलाहदेखिऔ अहि सारक खचरपाना।
एकरा सँ की हम कमजोर छी।
लड़ि क’ देखि लिअ। ई हमर हाड़-पाँजर तोडै़ए आ
कि हम एकर गरदनि मचोड़ै
छियै, कहलकै किनइँ, हमरे संग बलढ़ूसि?
मदन भाइ कुस्ती लड़ै लेल
आमादा तिरपित बाबू केँ शान्त केलनि। फेर माईक
मैन सँ पुछि ओकर पूरा
पेमेन्ट बीस टका द’ ओकरा बिदा केलनि। तिरपति बाबूक
पूरा टेम्पर शान्त नहि
भेल छलनि। ओ फाटल कुर्ता केँ उठा अपन मुँह पोछलनि आ
कलपैत कहलनिजे खर्च
केलहुँ से केलहुँ। आगाँ जँ अहाँ एकोटा पाइ खर्च करब
त’ हमर मूइल
मुँह देखब।
हम तिरपित बाबू केँ मंच
दिस देखबैत पुछलियनिमंचक लेल चौकी आ
जाजिम कत’ सँ आयल
अछि?
हमर संस्था भिखमंगाक
संस्था नहि अछि। जाजिम हमरे संस्थाक सम्पत्ति
अछि। सभाक आयोजन सदिकाल
होइते रहैत छै ने! तेँ संस्था थोड़ेक सामग्री कीनि
क’ रखने
अछि। आब बँचल चौकी? लगे मे अपन संस्थाक किछु कर्मठ सदस्यक
बाड़ी छनि। चौकी हुनके
सभहक थिकनि। चौकी सभा-स्थल मे आनै लेल आ आपस
करै लेल ठेलाक भाड़ा दिअ
पड़ैत छैक। ठेलाक भाड़ा दस टाका से हम द’ देबै।
एतबा बजैत-बजैत तिरपति
बाबू अपन कुर्ताक जेबी मे हाथ घुसिओलनि।
हुनकर हाथ फाटल जेबी सँ
निकलि हुनक ठेहुन पर पहुँचि गेलनि। तिरपित बाबू
मुँह बाबि देलनिदेखियौ ने, कोनो सार
हमरो पर हाथ साफ क’ लेलकए।
116 केदार नाथ चौधरी
मदन भाइ एकटा दसटकही
निकालि तिरपित बाबू केँ देलखिन आ ओतय सँ
बिदा होबा लेल हमरा इशारा
केलनि। मुदा तिरपित बाबूक आतिथ्य समाप्त नहि
भेल रहनि, बजलाहअहाँ
दुनू कलकत्ताक मैथिल समाजक अतिथि थिकौं। अतिथि
देवो भव। बिन चाह पिऔने
कोना जाए देब?
एतय सँ मात्रा पाव भरि जमीन आगाँ
कॅटन स्ट्रीट अछि। ओतय
भांग आ चाह एकेठाम बिकाइए। चिंता नहि कएल जाउ,
चाहबला हमर पुरान परिचित
अछि। ओकरा लग हमर उधारी चलैए।
भोजनोपरान्त हम आ मदन भाइ
होटलक रूम मे अपन-अपन बेड पर पड़ल
विश्राम क’ रहल
छलहुँ। तखन दिनक दू बाजल रहै। भिनसरेसँ मदन भाइ गंभीर
बनल छला, एकोटा
आखर बाजल नहि रहथि। एकाएक ओ हमरा सँ पुछलनि
संसारक प्रत्येक जीव आ
निर्जीवक अलग-अलग स्वभाव होइत छैक। जेना आगिक
स्वभाव भेल जरायब, सर्पक
विष उगलब, बिच्छूक डंक मारब। तिरपित बाबूक
स्वभावक की नामकरण हेतनि?
हम सुच्चा मैथिलक परिवेश
सँ अवतरित भेल रही। हमरा तिरपित बाबूक
स्वभाव मे कोनो तरहक
अनियमितता देख’
मे नहि आबि रहल छल। मुदा मदन भाइ
मुज्जफरपुरक भूमिहार आ तइ
पर सँ महंथ। एक तरहें ओ ठेलुआ मैथिल रहथि।
मदन भाइ केँ की जवाब
दियनि ताहि ओझराहटि मे रहबे करी, ठीक तखने तिरपित
बाबूक पदार्पण भेल रहए।
तिरपित बाबू हाथ जोड़ि प्रणाम केलनि आ कहलनि
आब’ मे
बिलम्ब भेल ताहि लेल क्षमाप्रार्थी छी।
आश्चर्य भेल रहए। तिरपित
बाबूक एबाक कोनो टा सूचना नहि छल। तखन
ओ क्षमा किएक मांगि
रहलाए। क्षमा कर’ मे जखन एको टाकाक खर्च नहि रहै
तखन क्षमा करै मे हर्जे
की?
तिरपित बाबू पोन रोपैत
बाजब शुरू केलनिश्रीमान्, दू गोट परम आवश्यक
बात कह’ लेल एखन
हम एलहुँए। पहिल ई जे काल्हि सभा मे जे जूता चोर मारि
खेलनि से सत्य मे जूता
चोर नहि रहथि। सुसारी गामक सूरज बाबूक जेठ सारक
जेठ बालक जीतू चाकरीक खोज
मे कलकत्ता एला अछि। आब कलकत्ता मे नव
एनिहार केँ कलकतिया ज्वर
पछारिए दैत छनि। ज्वर भेला पर डाक्टर कोनो टा दवाइ
नहि देत, केवल
डाभक पानि पिअ कहत। जीतू डाभ पिबैत रहलाह आ काली माताक
कृपा सँ नीके भेलाह। एमहर
मैथिली फिल्मक हल्ला सभठाम पसरि गेल रहै। जीतू
केँ कमजोरी छलनि तैयो
फिल्मक लोभ मे सभा मे पहुँचि गेलाह। ओ मंचक पाछाँ
जतय अध्यक्षक जूता रहनि
ओतहि बैसल रहथि आ कखनहु काल औंघा क’ आगू
झुकि जाइत छला। अही धोखा
मे ओ जूता चोर बनि गेल रहथि। ओना अपन
अबारा नहितन 117
सभहक सभा मे जूता चोरि
एकटा विकट समस्या त’ अछिए, मुदा जीतू नाहक मारि
खेलनि तकरा लेल हमरा
अफसोच अछि। मुदा भवतबक आगाँ त’ सभटा प्राणी
नतमस्तक अछि।
तिरपित बाबू कनेक रुकला, अफसोचक
कारणे जोर-जोर सँ स्वास घिचलनि
आ छोड़लनि, तखन बाजब
शुरू केलनिआब दोसर आवश्यक बात सुनल जाए।
गणेश टॉकिजक मालिक अछि
मारवाड़ी। मारवाड़ी भेल टाकाक यार। ओकरा हम
कतबो ने मैथिली भाषाक
फिल्मक महत्त्वक जानकारी देल मुदा ओ टस सँ मस नहि
भेल। खैर, बहुत
घमर्थन केलाक बाद साठि रुपैया पर राजी भेलए। काल्हि माने रवि
दिन सकाले आठ बजे मैथिली
फिल्मक प्रदर्शन गणेश टॉकिज मे हैत तकरा श्रीमान्,
आब फाइनले बुझल जाउ।
प्रोजेक्टर चलबै बला हमर पुरान यार मे सँ अछि। ओकरा
हम दू बंडिल बीड़ी पर
पोलहा लेबे टा करबैक।
तिरपति बाबू साठि रुपैया
आ दू बंडिल बीड़ीक मूल्य पाबि प्रसन्नचित भ’
प्रस्थान केलनि। तिरपित
बाबूक गेलाक बाद मदन भाइ भभा क’ हँसि देलनि। बहुत
दिनक बाद मदन भाइक मुँह
सँ हँसीक फुलझड़ी बहरायल रहए। नीक लागल। मोन
केँ सुकुन भेटलै। हँसिते
मदन भाइ कहलनिमैथिली भाषा मे जँ तिरपित बाबू केँ
चरित्रा-नायक बना क’ सिनेमा
बनाओल जाय त’ केहन फिल्म बनतै? ओ फिल्म
अबस्से बाक्स ऑफिस मे हिट
फिल्म हैतैक।
टैक्सी सँ गणेश टॉकिज
पहुँचलहुँ। टैक्सीक डिक्की खोलि आलम्युनियमक पेटी
जाहि मे फिल्मक पाँच रील
रहै, निकालक उपक्रम करैत रही तखने तिरपित बाबू
झटकल अयलाह। हुनका संग मे
सिनेमा हॉलक एकटा स्टाफ छलनि। दुनू व्यक्ति
पेटी केँ दुनू कात सँ
पकड़लनि आ भीतर दिस ल’ गेलाह। गणेश टॉकिजक हॉलक
बाहरी बरमदा मे दाखिल
भेलहुँ। लोकक भीड़ देखि असमंजस मे पड़ि गेलहुँ। सिनेमा
हॉल मे दर्शकक बैसक जगह
मात्रा तीन सय लोकक रहै। मुदा ओतय त’ हजार सँ
उपरे दर्शक पहुँचि चुकल
रहथि। दर्शक मे पुरुष सँ अधिक महिला अपन-अपन
कन्टिरबा, कन्टरबीक
डेन पकड़ने एमहर-ओमहर घुमि-फिरि रहल छलीह। कोनो-कोनो
महिलाक कोरा मे केथड़ी मे
लेपटाओल जन्मौटी चिलका सेहो छलनि। कनाफूसी,
गप्प-सप्प, एक दोसरा
केँ सोर पाड़ब, अपन लोक केँ ताकै मे अहुछिया काटब, सभ
मिला क’ गणेश
टॉकिज मे कनफोड़ा हल्ला भ’ रहल छलै।
धड़फड़ाइत तिरपित बाबू सीढ़ी
सँ नीचाँ उतरला आ हमर सभहक लगीच आबि
कहलनिश्रीमान् अपने दुनू
अति विशिष्ट पाहुन थिकौं। ऑफिस मे आराम सँ
बैसियौ। हम चाह जलपानक
इन्तिजाम कयने छी।
118 केदार नाथ चौधरी
ऑफिसक मुहथरि लग सिनेमा
हॉलक मैनेजर ठाढ़ छल, बेकल भेल कहलक
‘‘उरी बाबा, इस जगह इतना माफिक भीड़ कभी पहले नहीं देखा। इसको कन्ट्रोल
करने वास्ते पुलिस को
बुलाना पड़ेगा।’’
मैनेजरक ष्टि तिरपित बाबू
दिस गेलै। ओ खोंखिआइत बाजल‘‘अरे साला,
तुम किधर चला गया था? पब्लिक
को कतार मे खड़ा करो, नहीं तो हॉल मे ताला
मार देगा।’’
तिरपित बाबू हमरा सभ के ँ
बिसरि पब्लिक के ँ परतारै’ मे बाझि गेलाह
हँ, इहो अपने
लोक छथि। हमरा पर परतीत नइ होइए। अगिला रवि दिन फेर
फिल्म देखाओल जायत। एखन
पतिआनी बना क’
ठाढ़ होइ जाउ। हॉलक गेट
खुजै बला अछि।
सभटा दर्शक सिनेमा हॉल मे
प्रविष्ट क’
गेल। सीट पर, सीटक नीचाँ, सीटक
ऊपर जहँपटार सभठाम लोक
पसरि गेल। प्रोजेक्टर चलबैबला बंगाली मानुस।
ओकरा मैथिली भाषाक ज्ञान
नहि। ओ पहिल रीलक बाद पाँचम, तखन तेसर,
चारिम आ अन्त मे दोसर
रीलक सिनेमा देखा क’ प्रोजेक्टर बन्द क’ देलक। के
की देखलनि, के की
बुझलनि तकर विवेचना करब सही नहि होयत। फिल्मक
एकटा गीत ‘भरि नगरी
मे सोर, बौआ मामी तोहर गोर’ सभ केँ
भाव-विभोर क’
देलक। भाषाक लेल ममत्व, अनुराग आ
आकर्षण अहि बात केँ इंगित करैत छल
जे जँ सही ढंग सँ
मिथिलांचलक सिनेमा हॉल मे फिल्म केँ देखाओल जेतै त’
दर्शकक कमी नहि रहैत।
भनभनी आवाज मे गीतक पाँती गबैत आनन्दे मग्न
सभटा लोक गमन केलनि।
हम आ मदन भाइ सिनेमा हॉलक
बाहर बरामदाक एक कात बनल टी-स्टाल
लग कुर्सी पर बैसल-बैसल
सभटा श्य देखि रहल छलहुँ। तखने तिरपित बाबू केँ
सेहो देखलियनि। केथरी मे
लेपटाओल चिलका केँ कोरा मे उठौने तिरपित बाबू
आगाँ-आगाँ आ हुनकर कनिआँ
बंगालीन जकाँ उनटा आँचर ओढ़ने पाछाँ-पाछाँ बाहर
चल गेलीह। तिरपित बाबू ‘घुमिओ क’
हमरा सभहक दिस नहि तकलनि। भेल
मुश्किल। कलकत्ता मे हमर
सभहक गाइड तिरपित बाबू अन्तर्धान भ’ गेलाह। आब
अगिला कार्यक्रमक
सूत्राधार के बनताह?
कनिकबे कालक बाद बंगाली
मैनेजरक पदार्पण भेल। ओ एकटा पुर्जी मदन
भाइक हाथ मे पकड़ा देलक।
फिल्म प्रोजेक्शन साठ रुपैया, हॉलक सफाइ दस
रुपैया। कुल जोड़ सत्तर
रुपैया।
अरे, ई टाका त’
तिरपित बाबू ल’ गेल रहथि। हम बाजक लेल
लुसफुसेलहुँ।
अबारा नहितन 119
मुदा मदन भाइ हमरा रोकि
देलनि। ओ जेबी सँ सत्तरि रुपैया निकालि मैनेजरक हाथ
मे राखि देलनि। तखने
फिल्मक रील भरल पेटी लेने प्रोजेक्टरक चालक आयल। पेटी
राखि दाँत खिसोरि क’ बाजल‘‘आप मालिक, हम चाकर। बीड़ी वास्ते जो देगा हम
खुशी-खुशी ले लेगा।’’
मदन भाइ ओकरो एक पंचटकही
द’ ओकर खुशी मे भागीदार बनलाह। तकरा
बाद हमरा आ मदन भाइ केँ
किछु फुरेबे ने करए जे हम सभ आगाँ की करी। थोड़े
काल प्रतीक्षा कयल फेर
आपस होटल चल अयलहुँ।
120 केदार नाथ चौधरी
14
आब तिरपित घुमि क’ अहाँ
सभहक लग मे नहि आओत।
हम आ मदन भाइ आँखि मुनने
चुपचाप अपन-अपन बेड पर पड़ल रही। होटल
मे हमर सभहक रूमक दरवज्जा
लग पचवन-साठि बर्खक एकटा मैथिल सज्जन ठाढ़
रहथि। धोती-कुर्ता पहिरने
ओहि व्यक्तिक हाथ मे छाता रहनि मुदा पयर मे जूता
नहि छलनि। ओ रूमक भीतर
अयलाह आ कुर्सी पर बैसैत कहलनिसंयोगवश
चौरंगी रोड स्थित यदुवीर
बाबूक ऑफिस मे कोनो काजे गेल रही। ओतहि अहाँ
दुनूक आ ममता गाबए गीत
फिल्मक चर्चा सुनल। अहाँ लोकनि किएक कलकत्ता
एलहुँए तकर यदुवीर बाबू
नीक जकाँ जानकारी देलनि। युदवीरे बाबू कहलनि जे
अहाँ सभहक मदति लेल ओ
तिरपित केँ पठौलखिन अछि। तिरपितक नाम सुनिते
माथा ठनकल। साकांक्ष
भेलहुँ। अता-पता लगबैत गणेश टॉकिज मे जखन पहुँचल
रही ताबत तक ओतुक्का
तमाशा उसरि गेल रहै। गणेश टॉकिज सँ बहराइते तिरपित
केँ देखल। ओ झटकल पयरे
प्रायः अहीं सभ सँ भेट करए लेल आबि रहल छल।
हमरा देखिते ओ कन्नी काटि
लेलक आ लगक गली मे अन्तर्धान भ’ गेल।
हम आ मदन भाइ बेड पर बैसि
गेल रही। आगुन्तक सँ हम प्रश्न कएल
तिरपित बाबूक प्रतिएँ
अहाँक बचन अत्यधिक कटु किएक अछि? ओ कहलनि
तकर कारण जे हम तिरपित
केँ नीक जकाँ चिन्हैत छियै। तिरपित हमरे शिष्य छल।
हमर संस्थाक ओ कर्मठ
सदस्य रहए। हमहीं ओकरा उषा फैन फैक्टरी मे रखबा देने
रहियैक। मुदा दुष्ट
प्रवृत्ति एवं निम्न आचरण रखनिहार तिरपित हमरा सँ अलग भ’
अपन मैथिलीक अलग संस्था
बना लेलकए। उषा फैन फैक्टरीक मालिक थोड़बे
दिनक बाद ओकरा नोकरी सँ
निकालि देलकै। आब सदिकाल ओ जेबी मे चंदाबही
रखैत अछि। ठक कहूँ उपास
पड़लए! कलकत्ता मे मैथिल समुदायक बड़ पैघ
जनसंख्या छैक। कखनहुँ सभा
आयोजित क’ केँ, कखनहुँ अपन चारि पन्नाक
पत्रिका मे कोनो मैथिलक
फोटो आ जीवन-चरित छापि क’ तिरपित अपन जीविका
अबारा नहितन 121
चलबैक जोगार कइए लैत अछि।
अहाँ सभहक मैथिली भाषा मे बनल सिनेमाक
प्रलोभन द’ ओ बहुतो
सँ बहुत किछु ठकि अबस्से नेने हैत। तकर अलावे हमरा
चिंता भेल छल जे अहाँसभ
एतुक्का लेल नव छी, पता नहि एखन तक तिरपित
कतेक नोन-तेल अहाँसभ पर
छिटि चुकल हैत। आब हमरा ओ देखि लेलकए। आब
ओ अहाँ सभहक लग मे नहि
आओत। हमर विचार जे तिरपित पर अधिक चर्चा
क’ हमसभ समय
दूरि नहि करी। एखन अहाँ सभहक जे मुख्य काज अछि ताहि
पर ध्यान केन्द्रित करी।
हम आ मदन भाइ चुपचाप
नवागन्तुकक बात सुनैत रहलहुँ। ओ आगाँ
कहलनिजहाँ तक हमरा
जानकारी भेटलए अहाँ सभहक मैथिली फिल्म पूरा बनि
गेलए। जे थोड़ेक काज बाँकी
छैक तकरा पूरा करैक सामर्थ अहाँ सभ केँ अछिए।
मुख्य समस्या छैक एकर
वितरणक। मैथिली भाषा मे बनल फिल्म केँ की त’
डिस्ट्रीब्यूटर भेटौ अथवा
लब्ध-प्रतिष्ठित कोनो मैथिली संस्था एकरा अंगीभूत क’
एतुक्का कोनो सिनेमा हॉल
मे एकर प्रदर्शन करैक व्यवस्था करौ। हमर जानकारी
मे कलकत्ता मे फिल्म
डिस्ट्रीब्यूशन व्यवसाय मे कोनो मैथिल नहि छथि। सुनलहुँए
जे दरभंगा मे मझिला
राजकुमार फिल्म डिस्ट्रीब्यूशनक धंधा शुरू केलनिहेँ। तंत्रानाथ
नामक कोनो व्यक्ति ओकर
मैनेजर बन’लए। मुदा दरभंगा महाराजक परिवार सँ
कोनो सार्थक कार्य करायब
तकर संभावना दूर-दूर तक नहि छैक। आब कलकत्ताक
कोनो मैथिल संस्था अहि
फिल्म केँ अंगीभूत करए तकर विचार हमसभ एखन करी।
कलकत्ता मे मैथिलक बहुतो
संस्था छैक जाहि मे हमर संस्था सभ सँ पुरान आ सभसँ
बेशी कार्यरत संस्था अछि।
मैथिल मे धन-कुवेर, शिक्षाविद्, लेखक, कवि आ
अन्य-अन्य क्षेत्राक
विभूति हमर संस्थाक सदस्य छथि। पत्रिका निकालब, नाटक
मंचन करब, विद्यापति
पर्व मनायब तकरा संग विभिन्न तरहक गोष्ठीक आयोजन
करब, सभटा काज
हमर संस्था करैए। फिल्म वितरण एवं सम्पूर्ण मिथिलांचल मे
एकर प्रदर्शन एकदमे सँ
नवीन तरहक काज भेलै। मैथिली भाषा मे बनल फिल्मक
महत्त्व की हेतै से हम
बुझि रहलियैए। मैथिली भाषाक मान्यता एवं मिथिला नामक
अलग प्रांतक गठन, ई दुनू
हमर सभहक अन्तिम लक्ष्य अछि। मैथिली सिनेमा अहि
लक्ष्य केँ जगजिआर कर’ मे वृहत्
योगदान अबस्से करतैक। तेँ हम अहाँ दुनू केँ किछु
खास प्रबुद्ध मैथिल सँ
भेट करब’ चाहैत छी जे हमर संस्थाक कर्मठ सदस्य आ
पृष्ठ-पोषक छथि। ओ सभटा
व्यक्ति आर्थिक रूपे सम्पन्न एवं मिथिला एवं मैथिली
लेल संवेदनशील सेहो छथि।
जँ सभहक स्वीकृति भेटि जाय त हम संस्थाक
आपातकाल बैसार करबा अहाँक
फिल्मक अंगीभूत करबाक प्रयास करब। एकटा
122 केदार नाथ चौधरी
खास बातक अहाँ दुनू ध्यान
राखब। ईर्खा आ हमहीं सभसँ काबिल, अहि तरहक
स्वभाव मैथिल केँ भगवाने
देने छथिन। तेँ थोड़े काल लेल मान-अपमान केँ अधिक
तरजीह देब ठीक नहि रहत।
एखन हमसभ डिस्ट्रीब्यूशनक समस्याक निदान करक
जोगार प्राप्त क’ ली सैह
होयत विशिष्ट मैथिली सेवा।
बजनिहार मैथिल महानुभावक
कहब मे वजन छलनि। मैथिली फिल्मक
समस्या केँ ओ सही-सही
बुझि गेल रहथि। हम आ मदन भाइ हुनकर आगाँ
नतमस्तक भेलहुँ। हुनकर
परिचय भेटल। एतेक दिनक बादो हुनकर नाम हमरा
स्मरण अछि। हुनकर नाम
रहनि बाबू साहेब चौधरी। दरभंगा जिलाक दुलारपुर
गामक निवासी बाबू साहेब
चौधरी निर्लोभ,
निस्स्वार्थ, निर्भीक एवं सही सोच
रखनिहार मिथिला-मैथिली
लेल तन-मन-धन सँ समर्पित व्यक्ति रहथि। एहने
व्यक्तिक कारणे, सभ तरहक
विपरीत परिस्थिति रहितहुँ मिथिलाक भाषा, मिथिलाक
संस्कृति, मिथिलाक
परम्परा एवं मिथिलाक माटि सँ बहरायल सनातन धर्म बाँचल
छल, सुरक्षित
छल आ एखनो अछि।
हम आ मदन भाइ उत्साहित
भेल बाबू साहेब चौधरीक नेतृत्व मे कलकत्ताक
गण्यमान्य मैथिल सँ भेट
करए लेल बिदा भेलहुँ। पहिल व्यक्ति जनिक डेरा पर पयर
राखल ओ महानुभाव छलाह
मैथिल रत्न। मैथिल रत्नक असलीका नाम बिसरि एखन
हम हुनका रतन बाबू कहबनि।
बड़ा बाजारक दोगाठी मे रतन बाबूक डेरा। डेरा मे
साढ़े तीन गोट कोठली। मुँह
झाँपल डेढ़ कोठली मे एक पत्नी, एक पुत्राीक परिवारक
संग रतन बाबूक निवास।
बाँकी दू कोठली केँ ओ छात्रावास बनौने रहथि।
मिथिलांचल सँ आयल हेरायल, भुतिआयल
गरीब छात्रा केँ ओ अपन छात्रावास मे
निःशुल्क आश्रय दैत
छलथिन। छात्रावास बना क’ लोकहित मे काज करब हुनकर
आमोद-प्रमोद रहए। जे कियो
रतन बाबू सँ भेट कर’ जाय तकरा गर्व सँ ओ अपन
महान सेवाश्रमक अवलोकन
अवश्ये करबैत छलथिन। रतन बाबू ततेक पढ़ल-लिखल
रहथि जे कोनो धाकड़
मारबाड़ीक मुनीम बनि ओ चिक्कन मुद्रा उपार्जन करैत छलाह
से कहल गेल छल। रतन बाबू
मे जे सभसँ पैघ गुण रहनि से छलनि हुनकर धारा
प्रवाह भाषण देबाक
क्षमता। ओ घंटो बजिते रहि सकैत छला। बाजै मे हुनका मुँह
नहि दुखाइत छलनि।
बाबू साहेब चौधरीक संग दू
गोट नवव्यक्ति केँ देखितहि रतन बाबू प्रसन्नचित
भ’ गेलाह।
नव व्यक्ति किएक ऐलाह अछि से जानकारी नहि रहनि। मैथिल
समाजक ओ कतेकटा उपकार
करैत छथि, चौधरीजी केँ संस्था मे ओ कतेक चन्दा
दैत छथिन आ राजनीति मे
हुनकर कतेक दूर तक पैठ छनि तकर बखान करैत-करैत
अबारा नहितन 123
ओ हमरा सभ केँ छात्रावास
मे ल’ गेलाह। ओतए पहिने सँ कंठस्थ कएल
हितोपदेशक लगभग सय
संस्कृत श्लोक केँ रतन बाबू पाठ केलनि। तकर बाद
हिटलरक स्पीचक अँग्रेजी
अनुवाद सुनबय लगलाह। हमसभ जमीन पर ओछौल
छात्राक बिछौने पर बैसि
गेल रही। मुदा रतन बाबू ठाढ़े भेल सावधान मुद्रा मे अपन
पांडित्यक प्रदर्शन क’ रहल
छलाह। आब ओ कालिदास रचित मेघदूतक मैथिली मे
अपन कएल अनुवादक पाठ
करैत-करैत भावभूमि मे विचरण कर’ लगलाह।
भाव-भूमि सँ आपस आबि बिना
विरामक जखन रतनबाबू शेक्सपीयरक सोनेटक
पाठ आरम्भ केलनि तखन
चौधरीजीक धैर्यक बान्ह टूटि गेलनि। ओ कहलथिन
अहाँ धरतीक सर्वश्रेष्ठ
बज्जकर थिकौं। एखन तक देश मे तीन गोट आम चुनाव
भेल अछि। अहाँ तीनू चुनाव
मे लोकसभाक प्रत्याशी बनलहुँए। मुदा अही बज्जकरक
अवगुण दुआरे प्रत्येक
चुनाव मे अहाँक जमानत जप्त भ’ गेलए। तकर बादो अहाँ
के ज्ञान-चहु नहिए
जन्मलए। पछिला दू घंटा सँ अनवरत अहाँ अन्ट-सन्ट बाजिए
रहलहुँए। राम-राम! एतेक
कहूँ मनुक्ख बाजलए!
दू गोट नव व्यक्तिक लग
चौधरीजी द्वारा कएल गेल अपमान केँ रतन बाबू घोंटि
नहि सकलाह। क्रोध एवं
क्षोभक मिश्रित आक्रमण सँ मूर्छित भ’ ओ नीचाँ फर्श पर
बैसि गेलाह। मुदा ओहू
अवस्था मे ओ बड़बड़ाइत रहलाह। चौधरीजी हाथक इशारा
केलनि। हम तीनू मिथिला
रत्न अर्थात् रतन बाबू केँ ओही दयनीय अवस्था मे छोड़ि
हुनक डेरा सँ बाहर निकलि
गेलहुँ।
दोसर व्यक्ति जनिक कोठी
पर हमसभ पहुँचल रही तनिक नाम जे किछु रहल
होनि, मुदा हम
हुनका मैथिल बंधु कहि आदर करबनि। बंधुजी चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट
रहथि। हुनकर आडिटिंग
कम्पनी पैघ आ प्रसिद्ध छल। अनेको मैथिल छात्रा हुनके
कम्पनी मे काज क’ सी.ए.
परीक्षाक तैयारी करैत रहथि। चौधरीजी केँ देखिते
बंधुजीक भव्य मुखमंडल पर
निराशाक भाव भरि गेलनि। ओ हकमैत बजलातोरा
केतना दफा हमे बोलने
छियौं जे आबे केँ होन त’ टेलीफोन पर समय ल’क’ आबे
केँ होन। तोहेँ बेमतलब चल
आबैत छैं। एखनी हम प्लेन पकड़ि हैदराबाद जेबौं।
हैदराबाद के सभसँ बड़ौ
आडिटर कम्पनी साथे पार्टनरशिप डीड साइन करबौं। तबे
हमरा टाइम कहाँ छौं?’’
चौधरीजी हड़बड़ाइ पुछलखिनकहिआ
तक आपस एबौं?
किछु बोलै ने पाड़ैत
छियौं। दू-तीन महिना त’ अबस्से लागि जेतौं।
बंधुजी कार मे बैसलाह आ
एयरपोर्ट लेल बिदा भ’ गेलाह। विभिन्न नस्लक
जंजीर मे गछाड़ल कुकूर
सम्मलित स्वरे हमरा तीनू मैथिली प्रेमी पर भूक’ लागल
124 केदार नाथ चौधरी
छल। बंधुजी यद्यपि हमरा
सभ केँ ने किछु अनर्गल कहने रहथि आ ने अनर्गल केयने
रहथि तथापि हमर सभहक
उत्साह पर एक घैल जल अबस्से ढारि देने रहथि।
चौधरीजीक संस्थाक तेसर आ
सभ सँ अधिक आदरणीय एवं कर्मठ सदस्यक
डेरा पर पहुँचै सँ पहिने
हुनक परिचय भेटि चुकल रहए। हुनकर असली नामक
उच्चारण मे मैथिल विभूति
मानि लेब सर्वथा उचित एवं समुचित हैत। विभूतिजी
कलकत्ता विश्वविद्यालय मे
हिन्दी भाषाक प्रख्यात प्रध्यापक रहथि। अपन विषयक
दायित्व समाप्त केलाक बाद
बाँकी बचल सभटा समय ओ मैथिली साहित्य एवं दर्शन
केँ दैत छलथिन। हुनकर
पत्नी सेहो प्राध्यापिका रहथिन। विद्वान पति एवं विदुषी
पत्नी दुनू मैथिली भाषा
मे कइएक गोट पोथी लिखि केँ प्रकाशित करबा चुकल
छलथिन्ह। दुनूक रचित
मैथिली भाषाक पोथी मैथिली जगत मे चर्चित एवं सर्वमान्य
रचना छल। तकर अलावे
विभूतिजी मैथिली भाषा मे पत्रिका सेहो सम्पादित एवं
प्रकाशित करैत रहथि।
पत्रिकाक प्रकाशनक सभटा खर्च विभूतिजी असगरे बहन
करैत छलाह।
विभूतिजीक ड्राइंगरूम छल
कुर्सी-सोफा सँ सजल। चारूकात देबाल परहक
सेल्फ किताब सँ भरल।
ड्राइंग रूमक टेबुल पर, कुर्सी पर, नीचाँ फर्श पर
जहिं-तहिं
किताब, पत्रिका
एवं दैनिक समाचार पत्रा पसरल रहए। हमसभ जखन ओतय
पहुँचल रही विभूतिजी एकटा
कुर्सी पर बैसल सामने टेबुल पर लेखन काज मे
व्यस्त छला। विभूतिजी एवं
हुनक पत्नी हमरा सभ केँ स्वागत केलनि आ आदर
सँ बैसौलनि। विभूतिजीक
ओतुक्का वातावरण साहित्यक सुगंधि एवं गरिमा सँ
सुशोभित छल।
बाबू साहेब चौधरी हमर आ
मदन भाइक परिचय दुनू पति-पत्नी केँ देलथिन।
दुनू बिना किछु बजने ठोर
पर मुस्की आनि आ मूड़ी झुका हमर आ मदन भाइक
परिचयक स्वागत केलनि। तकर
बाद मैथिली भाषा मे बनल ‘ममता गाबए गीत’
फिल्मक चर्चा आरम्भ भेल।
फिल्मक पूर्ण जानकारी चौधरीजी एवं मदन भाइ
सम्मलित रूपे प्रस्तुत
केलनि। विभूतिजी एवं हुनक पत्नी आदर्श पुरुष एवं आदर्श
महिला स्वरूप बिना कोनो
टोक-टाकक धैर्यपूर्वक सभटा कथन केँ श्रवन केलनि।
ताहि बीच विभूतिजीक एकटा
भृत्य चाह-बिस्कुट राखि देने रहए। सभ तरहक
औपचारिकता समाप्त भेलाक
बाद विभूतिजी कहलनिमैथिली भाषा मे फिल्म
बनलए से सुनि हमरा
प्रसन्नता भ’
रहलए। भाषा विकास मे फिल्मक योगदान
अतुलनीय होइत छैक। हम अहि
दुनू अल्प वयसक निर्माता केँ हृदय सँ धन्यवाद
दैत छियनि। हिनकर सभहक
साहसिक कृति केँ अद्भुते कहल जेतनि। आब
अबारा नहितन 125
हमसभ मूल विषय पर ध्यान
केन्द्रित करी। अहाँ सभ जाहि कारणे एतय एलहुँए
से अछि फिल्मक वितरण एवं
विपणनक समस्या। फिल्म वितरण एवं विपणन
निश्चिते एक अलग तरहक
व्यावसायिक कला थिक। अहि कला सँ हम पूर्णतः
अनभिज्ञ छी। फिल्म
निर्माण एवं फिल्म व्यवसायक हमरा कनिकबो तजुरबा नहि
अछि। एकर तजुरबा केँ
हासिल करब ततेक हमरा लग समयक अभाव अछि। हम
जाहि तरहक काज मे छी ओ
हमर सभटा समय खपत क’ लैए। फिल्म व्यवसायक
ज्ञानक अभाव मे, हमरा
बजैत दुख भ’ रहलए, हम अहाँ सभहक अभियान
मे कोनो
तरहक सहायता नहि क’ सकैत छी।
ओना बाबू साहेब संस्थाक बैसार करताह त’
अध्यक्षता हमहीं करब ने!
आन-आन सदस्य की बजैत छथि तकरा हम सुनब। जँ
संस्थाक कोनो सदस्य फिल्म
वितरण संबंधी काज मे रुचि देखबैत छथि त’ हम प्रशंसे
करबनि। मुदा हम आ हमर
पत्नी फिल्मक काज मे सम्मलित नहि भ’ सकब। हम
अपन स्पष्टवादिता लेल
स्वयं विवश छी। फिल्म वितरण मे धन एवं समय लगायब
हमरा दुनू लेल संभव नहि
अछि।
विभूतिजीक विनम्रता एवं
सज्जनता पराकष्ठा पर रहए। मुदा हुनक विवशता
हमरा उम्मीदक पहाड़ सँ
नीचाँ खसा देलक। कहबाक अर्थ जे विभूतिजीक ओहि ठाम
सँ निराश भेल हमसभ आपस
भेलहुँ।
दोसर दिन भिनसरे चौधरीजी
अयलाह आ कहलनिकिछु आरो व्यक्ति सँ अहाँ
दुनू केँ हम भेट करबय
चाहैत छी। उम्मीद राखब आ प्रयास करब हमर अहाँक
एखुनका कर्त्तव्य भेल ने!
सरल हृदय बाबू साहेब
चौधरी हमरा दुनूक मदति लेल अधीर छला। ताहि क्रम
मे ओ मैथिली भाषाक अनेक
नव-पुरान, छोट-पैघ, मोट-पातर कवि, कथाकार,
नाटककार आ लेखक, समालोचक
सँ भेट करौलनि। मुदा सभटा साहित्यकार
अपन-अपन व्यथा मे व्यथित
छलाह। हुनकर सभहक निजक वेदना ततेक ने गहींर
छलनि जे ‘ममता गाबए
गीत’ फिल्मक समस्या केँ एक कात टारि हम सभ हुनके
दुख मे सहानुभूतिक बरखा
करैत-करैत सभ सँ पिण्ड छोड़ौलहुँ।
तखन पहुँचलहुँ मैथिली सखा
लग। सखाजी जूट मिल मे कार्यरत कर्मचारी
यूनियनक महामंत्राी छलाह।
सखाजीक डेराक मुख्य दरबज्जा लग पहुँचि थकमका क’
हमसभ ठाढ़ भ’ गेलहुँ।
भितरका कोठली सँ चिकरैक आवाज आबि रहल छलै।
चौधरीजी थकमका गेला तखन
कहलनिजेना गीदर केँ भूकैकाल अपन नांगड़िक
होश नहि रहैत छै तहिना
यूनयिनक मीटिंग काल यूनियनक मेम्बर केँ सुधि-बुधि
हेरायल रहैत छैक। हमरा सभ
केँ सतर्क रहि प्रतीक्षा कर’ पड़त।
126 केदार नाथ चौधरी
ठाढ़े-ठाढ़ प्रतीक्षा करैत
रहलहुँ। सामनेक कोठली सँ एकहि संग तीन-चारि
मनुक्खक वाक्-युद्धक
कर्कश आवाज प्रसारित भ’ रहल छल। चिकरै-भोकरैक बीच
एकहि टा बात केँ बारम्बार
सुनैत रहलहुँपहिने हमर बात सुनि लिअ तखन अहाँ
अपन बात कहब। मुदा
सुननिहार कियो नहि, सभटा मनुक्ख केवल बजनिहार।
लगभग एक घंटा तक सभहक
तर्क-वितर्कक घामासान होइत रहल। तखन कोठलीक
दरबज्जा धड़ाम सँ खुजल।
तमतमायल सखाजी अपन तीन सहयोगीक संग बाहर
अयलाह। हम सभ ओतहि ठाढ़
रही से सखाजीक आँखि देखि नहि सकल। सखाजी
अपन सहयोगीक संग मोटरकार
मे बैसलाह आ उड़न-छू भ’ गेलाह।
बाबू साहेब चौधरीजीक मुँह
मे ताला लागि गेलनि, पेट मे मरोड़ पड़ि गेलनि।
बड़ा कठिने ओ अपना केँ
संयत केलनि। तखन कुपित भेल कहलनिचलू बिड़लाक
ओहिठाम। बिड़ले अपन सभहक
अन्तिम आशा छथि।
बिड़ला? घनश्याम
दास बिड़ला? नहि यौ, बिड़ला नामक शब्द
अपन कोनो
मैथिल-श्रेष्ठक लेल
व्यवहार कयल गेलए। असमंजसक स्थिति, मुदा स्पष्टीकरण
चौधरीजी देलनि।
एक्सपोर्ट-इमपोर्टक धंधा लाइसेन्सधारी किलयरिंग एजेन्ट करैए।
कलकत्ताक बन्दरगाह पर
देशी-विदेशी माल लादल समुद्री जहाज पतियानी मे अबैए।
डेक पर जहाज सँ माल उतारल
जाइए आ दोसर देश जाय बला माल लादल जाइए।
मालक खलासी एवं लदानक काज
किलयरिंग एजेन्ट करैए जाहि मे एजेन्ट केँ
कमीशन भेटैत छैक। कमीशनक
अलावा आरो अनेक जायज-नाजायज छिद्र सँ
एजेन्ट प्रचुर धन उपार्जन
करैए। ओहने किलयरिंग एजेन्टक झुंड मे अपन एक गोट
मैथिल भाइ छला। अपन मैथिल
भाइ अहि धंधा सँ एतेक ने धन जमा क’ लेने रहथि
जे गाम सँ कलकत्ता तक
हुनक कोठी सोना-चानी सँ भरि गेल रहनि। एहन
सौभाग्यशाली बिरले होइए
ने? तेँ अपन मैथिल भाइक नाम बिड़ला पड़ि गेल छलनि।
बिड़लाजीक भवन आमदनीक
अनुसारे ओतेक भव्य नहि, साधरणे रहनि।
चौधरीजी कॉलबेलक बटन
दबौलनि। एकटा स्टॉफ बाहर आयल। स्टॉफ चौधरीजी
केँ चिन्हैत छलनि। ओ हमरा
तीनू केँ सजल बैठकखाना मे बैसौलनि। चौधरीजी
बिड़लाजीक असली नामक
आदरपूर्वक उच्चारण करैत स्टॉफ सँ कहलनिहमसभ
हुनके सँ भेट करए लेल
अएलहुँ अछि।
बड़का मालिक! बड़का मालिक
अपन गाम मे हाइ स्कूल स्थापित क’ रहल
छथिन ने! एखन स्कूलेक
काजे गाम गेल छथिन। मुदा तेँ की, छोटका मालिक त’
छथिए। ठहरू, हम छोटका
मालिक केँ अहाँक समाद कहने अबैत छी।
चौधरीजी अकचकाइत स्टॉफ के
ँ रोकै लेल हाथ उठौलनि। मुदा स्टॉफ
अबारा नहितन 127
फुर्तिगर रहए, ओ भीतरक
कक्ष मे जा चुकल छल। चौधरीजी दुनू हाथे ँ कपार
पकड़ि लेलनि आ आक्रोश करैत
बजलाजुलूम भ’
गेल सैह बुझि लिअ।
जहिना जेठका बिड़ला ज्ञानी, दानी,
मृदुभाषी आ मिथिला-मैथिलीक सेवा मे
बढ़ि-चढ़ि क’ भाग लेब’बला मानव छथि तहिना हुनकर छोट भाइ मूर्ख, उद्दंड,
अहंकारी आ दुष्ट प्रवृत्तिक
दानव अछि।
चौधरीजी छोटका बिड़लाक
परिचय मे आरो विशेषणक प्रयोग नहि क’
सकलाह। कारण छोटका बिड़ला
आबि चुकल रहए। चौधरीजी केँ देखितहि ओहि
शैतानक दुनू भहूँ वक्र भ’क’
सटि गेलै आ दुष्टताक भाव ओकर चेहरा सँ ठोपे-ठोप
चुब’ लगलै। ओ
अपन मुँह सँ जहर मे लेपटायल शब्द बाहर केलकआबि गेलहिन
रौ भिखमंगा! चंदाक नाम पर
तोँ हमर भाइ साहेब सँ भीखे ने मंगैत छहुन रे
भीखमंगा। तोरा सन भिखमंगा
केँ भीख मांगै मे कहूँ लाज भेलैए!
बाबू साहेब चौधरीक प्रतिए
अभद्र व्यवहार होइत देखि मदन भाइ रंजे तिलमिला
उठलाह। ओ उठि क’ ठाढ़
भेलाह आ छोटका बिड़लाक सामने छाती तानि ठाढ़ होइत
ओकरा कहलनिएखन हमसभ चंदा
मांग’ नहि एलहुँ जे तोँ वृषोत्सर्ग सराधक
दागल सांढ़ जकाँ ढेकरि
रहलएँ हम आ हमर मित्रा बम्बइ सँ एलहुँए। हम दुनू मिलि
क’ मैथिली
भाषा मे फिल्म बनेलहुँए। ओही फिल्मक वितरण संबंधी बात कर’ लेल
तोरा जेठका भाइ लग आयल
रही। ओ नहि छथि त’ आपस जा रहल छी।
छोटका बिड़ला जन्मजात
दुष्ट छल। ओकर दिमागक खिड़की बन्द रहै। ककरहु
अनकर बात ओकरा माथ मे
पैसिते नहि छलै। ओ अपन मुँहक फान केँ चिआरलक
तखन बाजलफिल्म, मैथिली
फिल्म? हमरा ठक’ चललाहए। दरभंगा,
मधुबनीक
बहुतो छाैंड़ा घरक रुपैया, गहना
चोरा क’ हीरो बन’ लेल बम्बइ पड़ा क’
जाइए। तोंहू
दुनू सैह छिएँ रौ। हीरो त’ नहि
बनलएँ। आब बहुरुपिया बनि लोक केँ ठक’
चललाहएँ। हमरा लग तोहर
ठकपनी नहि चलतौ। अबारा नहितन!
मदन भाइ देहक मजबूत लोक
रहथि। एखन ओ जाहि तरहक आवेश मे रहथि
से देखि हमरा संशय होम’ लागल जे
कहूँ मदन भाइ छोटका बिड़लाक ठोंठी ने दाबि
देथि। हम हुनकर हाथ
पकड़लहुँ आ अपना दिस घीचतै चिचिएलहुँअहि बेहूदा सँ
गप्प-सप्प नहि करू मदन
भाइ! चलू, एहिठाम सँ चलू।
हम मदन भाइ केँ
घीचैत-घीचैत बाहर अनलहुँ। पाछाँ-पाछाँ चौधरीजी सेहो
अयलाह। भीतर मे छोटका
बिड़ला मिर्गीक रोगी जकाँ बड़बड़ाइते रहलअबारा
नहितन! अबारा नहितन!!
मदन भाइ हमर घनिष्ठ
मित्रा आ ताहि संगे हमर आदरणीय। एखन जाहि रंज
128 केदार नाथ चौधरी
आ ग्लानिक आगि मे ओ धधकि
रहल छलाह एहन विकट दशा मे हम हुनका कहियो
ने देखने छलियनि। हम स्वयं
विचित्रा मनोदशा मे पहुँचि गेल रही।
बाबू साहेब चौधरीजी दिशि
घुमि मदन भाइ कहलखिनमिथिलाक बहुतो रत्न,
बंधु, सखा,
विभूति आ बिड़ला सँ अहाँ हमरा दुनू केँ साक्षात्कार करबौलहुँ। अहाँ
केँ
धन्यवाद! प्रवासी मैथिल
समाजक हम दुनू ऋणी छी आ ऋणी रहब। हमरा सभ केँ
कर्मक अनुसार बड़की टा
उपाधि भेटि गेलए। उपाधि अछि‘अबारा नहितन’। अहि
सँ पैघ उपाधि भैए ने
सकैए। अपने केँ पुनः धन्यवाद! हम निवेदन करैत छी जे अपने
अपन सेवाक काज मे गेल
जाउ। हमरा सभ सँ भेट करैक जे प्रयोजन छल से पूर्ण
भ’ चुकलए।
हमहूँ दुनू जतेक शीघ्र भ’ सकत कलकता सँ प्रस्थान क’ जायब।
मैथिल समाजक सर्वश्रेष्ठ
उपाधि ‘अबारा नहितन’ ग्रहण क’ आ अपन
मान-सम्मान एवं अभिमान
केँ थुर्री-थुर्री करैत दिनक लगभग दू बजे आपस होटल
पहुँचल रही। हम आ मदन भाइ
भोजन कएल आ चुपचाप अपन बेड पर पड़ि
रहलहुँ। होटलक कोठलीक छत
मे बनल कमलक फूल केँ देखैत मदन भाइ
कहलनिजाहि कर्म केँ कयला
सँ मोन केँ दुख, अशांति एवं शोक भेटैत छै से पाप
भेल। जाहि कर्म केँ कयला
सँ मोन केँ सुख, शांति एवं तृप्ति भेटैत छैक से पुण्य
भेल। अएँ यौ केदार भाइ, हमरा
दुनूक फिल्म निर्माणक काज पाप भेलै आ कि पुण्य?
मदन भाइक प्रश्न सटीक छल।
मुदा हमरा लग एकर जवाब पहिने सँ ताकल
रहए। युवा अवस्था जीवनक
वसंतकाल थिक। वसंतकाल मे असावधान होयब,
गलती करब आ फेर सँ गलती
करब एक तरहेँ प्राकृतिक नियम अछि। असावधानी
मे कयल काजक प्रतिफल केँ
भोग’ पड़िते छैक। फिल्म निर्माणक काज केँ पाप एवं
पुण्य सँ जोड़ब अनुचित
हैत। हमसभ त’
मैथिली भाषाक प्रथम फिल्म धार्मिक कथा
पर आधारित बनब’ लेल
बम्बइ गेल रही। भसिया गेलहुँ। तकर प्रतिफल भोगि रहल
छी। पछताबा छोड़ि सम्प्रति
कोनो काज हमरा सभ लेल नहि रहि गेल रहए। नहि
यौ, काज छल
ने! कलकत्ता सँ आपस दरभंगा जयबा लेल टिकटक व्यवस्था।
तखने होटलक मैनेजर कोठली
मे आयल आ कहलककेदार बाबू, ‘‘अपनार
टेलीफोन आछे। तरातरी
आसुन।’’
टेलीफोन पर हमर पितिऔत
यदुवीर छला,
कहलनिकेदार भैया, तोँ अमेरिकन
विश्वविद्यालय मे एडमिशन
लेल अप्लाइ केने छलहक? कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय
गोल्डेन गेट कॉलेज, सनफ्रान्सिसको
सँ तोहर एडमिशनक एप्रूभल आबि गेलए। सभ
काज छोड़ि तुरंत एतय आबि
जाह आ अमेरिका सँ आयल पत्रा केँ हस्तगत कर’।
खबरि पाबि हम त’ प्रसन्न
भेबे केलहुँ मुदा हमरो सँ अधिक मदन भाइक चेहरा
अबारा नहितन 129
खुशी मे दमकि उठलनि।
होटलक कोठली मे उमंग नर्तकी बनि नाच’ लागल। बड़ी
काल तक मदन भाइ आनन्दक
तरंग मे तरंगित होइत रहलाह। कहुना क’ ओ अपन
मोन केँ बश मे केलनि, तखन
कहलनिईश्वर केँ लाख-लाख प्रणाम। हम अहाँ लेल
अपराध-बोध सँ ग्रस्त
छलहुँ। हमहीं अहाँ केँ नोकरी छोड़बा फिल्म निर्माणक काज
मे घसिटने रही। तकर
पश्चात्ताप मे सदिकाल बेकल रही। अहाँ केँ जीवनक सही
मार्ग अपने-आप भेटि गेलए।
अहि अवसर केँ उपयोग करै लेल अडिग भ’ जाउ।
फिल्मक की हेतै तकरा
भविष्यक जिम्मा छोड़ि दिऔ। अहाँ अमेरिका जयबाक
ओरियान मे लागि जाउ।
एडमिशन लेटरक आधार पर
अमेरिकन कन्सूलेट सँ एफ-1 भीसा सहजहि भेटि
गेल। मेडिकलक सभटा टेस्ट
सेहो सही निकलल। रिजर्भ बैंकक ‘पी’ फार्म
किलयरेन्श मे समस्या भेल
छल। मुदा सेहो सलटि गेल। भैयारी बँटबारा मे
औझरायल हमर सहोदर भ्राता
केँ हमर अमेरिका यात्रा जे ओहि समय मे अत्यन्त
कठिन एवं खर्चीला रहैक, मे कोनो
रुचि नहि छलनि। मात्रा हमर हितचिंतक, हमर
मित्रा मदन भाइ हमरा संग
कलकत्ताक एयरपोर्ट पर पहुँचल रहथि। 16 मइ, 1966
ई. केँ आठ डालर जेबी मे
राखि हम बैंकाक, हाँगकाँग, टोकियो, होनोलूलू होइत
सनफ्रान्सिसको लेल हवाइ
जहाज मे बैसि गेल रही।
130 केदार नाथ चौधरी
15
सम्प्रति हम मैथिली भाषा
मे बनल पहिल फिल्म ‘ममता गाबए गीत’क चर्चा क’
रहलहँुए। मैथिली जगत मे
हम पूर्णतः अपरिचित छलहुँ आ अपरिचिते रह’ मे
विश्वास रखैत रही। मुदा
तेहन किछु बात भेलै जे हमरा अपन युवावस्था मे कएल
कर्म केँ सिलसिलेबार लिख’ पड़ि
रहलए। फिल्मक भेलै की? की फिल्म सिनेमा हॉल
तक पहुँचलै? तकर बिनु
चर्चा कयने ‘ममता गाबए गीत’क इतिहास
पूर्ण नहि हेतै।
1977 ई. सितम्बर महिना मे हम
अमेरिका सँ आपस आबि अपन देशक धरती
पर पयर रखलहुँ। अमेरिकाक
बहुचर्चित ‘ग्रीन कार्ड’ भेटि गेल रहए मुदा हमर
पासपोर्ट एखनहुँ हमरा
भारतक नागरिक कायमे रखने छल। देश मे वसातक सिहरन,
माटिक स्वाद आ पानिक
मिठास पूर्ववते रहैक। मुदा राजनीतिक एवं सामाजिक
व्यवस्था मे परिवर्तन आबि
गेल छलै। काँग्रेसक पटकनियाँ, विरोधी दल द्वारा निर्मित
केन्द्रीय सरकार मे
पमरियाक नाच आ ननुआ धोबीक पुतोहुक ग्राममुखिया बनब,
सभटा बात अजगुते रहै।
अमेरिकन भौतिकवादी रीति-रिवाज मे घुलि-मिलि जयबाक
कारणें हमर अपन सोच मे
सेहो बदलाब आबि गेल रहए। पुरना बात सपना बनि
कखनहुँ काल मोन मे अबैत
छल, मुदा ओहि बात सभहक अस्तित्व नहिएक बरोबरि
छलै। नोकरी से भेटल रहए
जाहि मे बम्बइ,
तेहरान आ लक्जमवर्गक बीच दौड़धूप
कर’ पड़ि रहल
छल। बीच-बीच मे दरभंगा अबैक सेहो अवसर भेटैत रहए। नोकरी
मे तनखाह नीक भेटैत छल।
मुदा खर्चा करैक आदति ताहू सँ बेशी नीक रहए।
सभटा बात केँ एकट्ठा क’ जँ
निष्कर्ष निकालल जाए त’ जीवन सुखमय छल, कोनो
वस्तुक अभाव नहि रहए।
वयस जखन साठि मे पहुँचैत
छैक तखन मनुक्खक सभ सँ मूल्यवान सम्पत्ति
ओकर शरीर मे बुढ़ारी नामक
काल प्रवेश क’
जाइत छैक। जखन वयस सत्तरिक
लगीच पहुँचैत अछि तखन
अलगनी सँ कुर्ता उतार’ काल ठेहुनक किल्ली मे दर्द पैसि
जाइत छैक। पत्नी जिद्द
केलनि आ प्रायः अपनहुँ जन्मस्थानक ममता जागल, अपन
अबारा नहितन 131
बाँकी बचलाहा अरुदा केँ
हम अपन गाम मे बिताबी तेहन निआर केलहुँ। मुदा गाम
मे खूट्टा गाड़ब असंभव भ’ गेल रहए।
भैयारी बँटबाराक प्रकोप एहन जबर्दस्त भेल
रहए जे भैयारी मे
बाजाभूकी बन्द,
पुतइ मौजेक अधिक जमीन पर देश मे कायम
प्रजातंत्रा मे जनमल
प्रजाक कब्जा भ’ गेल रहैक आ गामक बासहीड क्षत-विक्षत भेल
कोनो काजक रहिए ने गेल
छलै। 2001 ई. मे लहरियासरायक बंगाली टोला मे
कनिएटा जमीन कीनि क’ कनिएटा
घर बनेलहुँ आ घरक नाम राखि देलियै‘हिडेन
कॉटेज’, किएक त’
घर कतहुँ सँ देख’ मे नहि अबैत छलै।
मदन भाइक महंथानाक
सत्यानाश भ’
चुकल रहनि। अग्रिम जातिक अभिशाप,
सरकारी अमलाक कोनो टा
मदति नहि भेटलनि। ओहुना कालचक्रक पहिया पुरना
व्यवस्था केँ मटियामेट कर’ लेल
गतिमान भैए चुकल छल। महंथाना पर अनगिनत
मोकदमा। आब समयक फेर
देखियौ। मदन भाइ मामिला केँ देखै लेल एकटा
ओकील केँ अपन
लहेरियासरायक आवास मे बनल खपड़ाक मकान मे रखलनि।
ओकील साहेब स्वर्गवासी भ’ गेलाह।
ओकील साहेबक संतान मदन भाइक डेराक
जमीन आ घर हथिया लेलथिन।
तैयो मदन भाइ अपन नियुक्त कएल ओकीलक
पुत्रा संग मोकदमा लड़ि
रहल छलाह, तारीख पर हाजरीक पेशी जमा क’ रहल छलाह।
किछु हौउक, मदन भाइक
डेरा हमर ‘हिडेन कॉटेज’ सँ लगीचे छल।
नित्य दिन
संध्याकाल दुनू बुढ़बा
मित्रा एकहि ठाम बैसिक’ गप्प-सप्प करैत समय केँ खिहारि
रहल छलहुँ। मदन भाइक
गप्प-सप्प मे बहुतो विषयक चर्चा शामिल होइत रहल।
मुदा ‘ममता गाबए
गीत’ फिल्मक कहियो ओ चर्चा नहि केलनि। हमरो अहि
फिल्मक बात बिसरा जकाँ
गेल छल तेँ कोनो तरहक जिज्ञासा नहि रहए। मैथिली
प्रेम-रोग केँ पछाड़ै लेल
कोनो औषधिक निर्माण नहि भेलैए। मुदा समय बलवान
होइए आ ओ अपन काज करैए।
मनुक्ख केँ जीबै लेल एकहिटा जिनगी भेटै छैक।
जिनगी मे दुःखक प्रवेश
नहि होउक तकरा लेल बुद्धि सदिकाल सचेष्ट रहैत छैक।
2003 ई. जून अथवा जुलाइक
महिना। बज्र दुपहरियाक समय। एकटा मैथिल
युवक हमरा सँ भेट करए लेल
अयलाह। अबिते ओ कहलनिहमर नाम विजय
कुमार मिश्र अछि। हम
पत्राकार छी। हमरा मैथिली सिनेमाक कब्र खोधै मे रुचि
अछि। हम कइएक टा मैथिली
भाषा मे बनल,
बिन बनल सिनेमाक कब्र खोधि
चुकलहुँ अछि। कनिए काल
पहिने उमा बाबू सँ भेट भेल रहए। ओ ‘ममता गाबए
गीत’ फिल्मक
कब्रक पता देलनि। हमर प्रश्नक अपने उत्तर दिअ। की अहाँ मैथिली
भाषा मे बनल ‘ममता गाबए
गीत’ फिल्मक कर्ताधर्ता छी? अगर हँ त’
अहाँ मैथिल
समाज मे अपरिचित किएक छी?
132 केदार नाथ चौधरी
उमा बाबू हमर चिन्हार लोक
मे सँ रहथि। चिन्हार कोना भेलाह, से सुनि लिअ।
बिहार सरकार मे सरकारी
नोकरी कर’बला अट्ठावन बर्खक आयु मे रिटायर क’
जाइत छथि। हुनकर आगामी
बीस-तीस बर्खक अरुदा रहिए जाइत छनि। हे ईश्वर!
आब ओ सभ बिनु किछु काजक
जीवित कोना रहता! अहीठाम बुड़बक आ काबिल
लोक मे भेद प्रगट होइए।
काबिल लोक रिटायर केलाक बादो जीबैक मार्ग ताकिए
लैत छथि। मेडिकल कॉलेजक
सर्जरी विभागाध्यक्ष हमर ज्येष्ठ भ्राता डा. शम्भु नाथ
चौधरी रिटायर केलनि।
तत्काल ओ ‘मिथिलांचल विकास परिषद’ नामक संस्था
कायम केलनि। हमर भाइ साहब
अपन समयक नामी सर्जन रहथि। हुनकर अर्जित
प्रतिष्ठा काज देलकनि।
रिटायर केलाक बादो इनकम टैक्स पे केनिहार तमाम
डाक्टर, इन्जीनियर
एवं अलग-अलग फैकल्टीक उच्च श्रेणीक लोक मिथिलांचल
विकास परिषदक सदस्य बनि
गेलाह। मिथिलांचलक विकास लेल सभटा रिटायर
महानुभाव अपसियांत होअ
लगलाह। ओ सभ मीटिंग करथि, एक दोसराक ओहिठाम
जा क’ बैसक
करथि आ अवसर भेटला पर लम्बा-चौड़ा भाषण सेहो करथि।
भाइसाहेबक उकसेलाक बाद हम
सेहो एक-दू बेर परिषदक मीटिंग मे गेल रही।
ओही मीटिंग मे उमा बाबू
सँ भेट भेल रहए। उमा बाबू रिटायर नहि भेल रहथि।
ओ कॉलेज मे मैथिली विभागक
शिक्षक छला। हुनकर कइएक गोट मैथिली भाषा मे
पुस्तक प्रकाशित भ’ चुकल
छलनि। डा. उमाकांत झा जी पी-एच.डी.क सम्मानित
डिग्री प्राप्त एकटा
सज्जन, सरल एवं अल्पभाषी लोक रहथि। परिषदक सभटा
लिखा-पढ़ीक काज ओ चुपचाप
रहि असगरे करैत छलाह। परिषदेक बैसार मे उमा
बाबू सँ निकटता भेल रहए।
हम विजय कुमार मिश्र केँ
मदन भाइक आवास पर ल’ गेलियनि। हुनका
आग्रह केलियनि जे अपने जे
प्रश्न हमरा पुछने रही तकरा मदन भाइक समक्ष
दोहराबी। मदन भाइ विजय
बाबूक प्रश्नक जवाब नहि देलथिन। ओ हमरा दिस
तकैत कहलनिकेदार भाइ, पछिला
तीन-चारि बर्ख सँ हम-अहाँ नित्य एक ठाम
बैसैत छी, गप्प-सप्प
करैत छी। तथापि हम अहाँक लग ‘ममता गाबए गीत’
फिल्मक चर्चा नहि केलहुँ।
अहाँक चोखायल घावक पपड़ी मे टकुआ भांेकैक इच्छा
हमरा नहि भेल। आब जखन अहि
फिल्मक चर्चा शुरू भैए गेलैए त’ एकर
सविस्तर समाचार अहाँ
सुनिए लिअ। मोन होयत जे अपना सभहक फिल्म मे
गीतकार रहथि रवीन्द्रनाथ
ठाकुर। रवीन्द्रेजी वीर बहादुर बनलाह। कत’ सँ ओ पूजी
जुटौलनि से वएह जनताह।
मुदा हमरा सँ लिखित अधिकार प्राप्त क’ ओ ‘ममता
गाबए गीत’ फिल्मक
निर्माण पूरा केलनि। मिथिलांचलक सभठाम आ प्रवासी
अबारा नहितन 133
मैथिलक निवासस्थान जेना
कलकत्ता, जमशेदपुर, पटना इत्यादि स्थानक सिनेमा
हॉल मे अहि फिल्मक
सफलतापूर्वक प्रदर्शन करौलनि। बुझल नहि अछि मुदा
सुनल अछि जे रवीन्द्रजी
अहि फिल्मक माध्यमे चिक्कन नफा कमेलनि। अहि
फिल्म मे हुनकर रचल
गीत-संगीत केँ मैथिल समुदाय पसिन्न केलक। रवीन्द्रजी
उत्साहित भ’ कइएक ठाम
रवीन्द्र-महेन्द्र नाइट मनौलनि।
आब मदन भाइ विजय कुमार
मिश्र दिस घुमैत हुनकर प्रश्नक जवाब मे
कहलथिनजतेक ठूसि-ठूसि
अँटतैक तकर दोबड़, तेबड़ विद्वान मिथिला मे छथि।
अहाँ पत्राकार छी, अहाँ केँ
त’ सभ किछु बुझले होयत? मुदा तइयो सुनि
लिअ।
मैथिल विद्वान केँ
पुरस्कार देब’
बला जतेक संस्था छैक तकरा सही-सही विद्वानक
चुनाव मे प्राणान्तक पीड़ा
होइत छैक। तेँ संस्थाक कर्णधार सभटा पुरस्कार अपने मे
बाँटि लैत छथि। हम आ
केदार भाइ जँ मैथिल समाज मे अपरिचित छी ताहि मे हर्जे
की? हमरा सभ
केँ पुरस्कारक लोभ नहिए, तखन परिचित किएक होइ। पुरस्कारक
लेल गोल मे के जैत? मैथिली
प्रेम-रोग मे जे भोगलहुँ से भोगिलेलहुँ, आब की?
विजय कुमार मिश्र कनेकाल
तक हतप्रभ भेल रहलाह। मुदा पत्राकार केँ दया,
ममता कमे होइत छैक। ओ
खोधि-खोधि क’
सभटा बात पुछैत रहलाह। फेर
सभटा सामग्री केँ लेख बना
दरभंगा सँ प्रकाशित ‘रचना’ नामक त्रौमासिक पत्रिका
2004 ई.क अक्टूबर-दिसम्बर
अंक मे हमर आ मदन भाइक फोटोक संग
प्रकाशित करबौलनि।
फिल्म पूरा बनि गेलै तकर
सूचना पाबि हमरा दुख नहि प्रसन्नता भेल छल।
मुदा एकटा जिज्ञासा मोन
मे रहिए गेल रहए। की हम आ मदन भाइ मैथिल समाज
मे अपरिचित सँ परिचित
भेलहुँ? जवाबक प्रतीक्षा मे मदन भाइ संसार त्यागि बिदा
भ’ गेला।
मुदा हम एखन तक प्रतीक्षा मे जिविते घुमि-फिरि रहलहुँ अछि।
1.
अर्र बकरी घास खो, छोड़
गठुल्ला बाहर जो
लरू खुरू बिन केने बहिना, पेट भरल
कि ककरो
उर चिड़ैया खोंता छोड़, चोंच
खोलिके दाना खो
आँखि-पाँखि जकरा छै जगमे, भूख मरल
कि कहियो
अर्र बकरी, गे बकरी
घास खो...
करनी-धरनी किछु नहिं
जिनकर, हुनकर जीवन भारी
घामे भीजल चाम जकर छै, आयल तकरे
बारी
चल कुकुरबा टहल लगो, अंगना-घरक
ममता छोड़
मनुख शिकार बनल अछि अपने, आब के
कहतौ हियो-हियो
अर्र बकरी, गे बकरी
घास खो...
पेट भरल पर दुनिया लागय, सूरदास
के हरियर
प्रेमक हाथी बने फतिंगा
भूखक जादू जड़गर
भूख-भूख कहि उठता क्यो, अपने पर
खौंझेता क्यो
रे मुर्गा तो चढ़ गुलौरा, आलस के
लतियौने जो
अर्र बकरी, गे बकरी
घास खो...
शीतक गोटा चकमक शोभय, हरियर
धरतीक साड़ी
प्रेमक फूल जगत भरि गमकै, गाबय
भँवरा कारी
रे परबा तोँ अंडा फोर, ज्ञानक
गेल्हक भरिदे कोर
कहै रे कौवा टाहि लगाकय, आन्हर
भुन्नो पड़ो-पड़ो
अर्र बकरी, गे बकरी
घास खो...
गीत: रवीन्द ्र नाथ ठाकरु
; गायिका: गीता दत्त
‘ममता गाबए गीत’ फिल्मक गीत
अबारा नहितन 135
2.
भरि नगरी में सोर, बौआ मामी
तोहर गोर
मामा चान सन...
नानी-नाना दूनू तोहर, खाली गाल
बजाबय
बाबी तोहर गंगा सन छौ, बाब बनल
हिमालय
मौसा तोहर चोर, मौसी
मँूहक बड़जोर
मैया पान सन...
थैया-थैया चलू कन्हैया, जहिना
भोर बसात
धरती मैया सब दुखहरनी, खसब ने
कोनो बाट
बौआ मोती सन ई नोर, बीछत
खाली आँचर मोर
अपने प्राण सन...
अपना कुल के लाल कमल तोँ, काकीक
सुगा-मैना
एहि दुनिया के हँसी-खुशी
आ बापक नेह-खिलौना
तो आशक चकमक भोर, हँसिदे
खोलिके दूनू ठोर
फूटल धान सन...
गीत: रवीन्द ्र नाथ ठाकरु
; गायिका: समु न कल्याणपरु
3.
चलल कहरिया से कोने
नगरिया
जाइछ ककर दुलार...
धीरे-धीरे लय चल डोलिया
कहरिया
ने डोलय पड़ल ओहार...
युग-युग जरत सिनेहक बाती
तैयो तहत अन्हार...
चलल कहरिया...
चल बरू जाह ने बिसरब
तोहरा
फुजले रहत केबार
घर-घर घुमि-घुमि तोहर कथा
ई
बहि-बहि कहत बयार...
चलल कहरिया...
गीत: रवीन्द ्र नाथ ठाकरु
; गायक: श्याम शर्मा
136 केदार नाथ चौधरी
4.
तोहें जनु आह विदेश, हे माधव,
तोहें जनु जाह विदेश
हमरो रंग-रभस लय जैबह, लैबह कोन
संदेश
तोहें जनु जाह विदेश...
बनहिं गमन करू, होएत
दोसर मति, बिसरि जाएब पहु मोरा
हीरा मणि माणिक एको नहिं
मांगब, फेरि मांगब पहु तोरा
तोहें जनु जाह विदेश...
जखन गमन करु, नयन नीर
भरु, देखहु ने भेल पहु तोरा
एकहिं नगर बसि, पहु भेल
परबस, कैसे पुरत मन मारा
तोहें जनु जाह विदेश...
पहु संग कामिनि, बहुत
सोहागिनि, चंद्र निकट जैसे तारा
भनइ विद्यापति, सूनू
वर-यौवति, अपन हृदय धरु धीरा
तोहें जनु जाह विदेश...
गीत: विद्यापति; गायिका:
समु न कल्याणपरु
5.
मिथिला केर ई माँटि उड़ल
अछि, छूबय गगनक छाती
भरि दुनिया केर मंगल हो, आ जन-जन
गाबय प्राती
हाँ रे कह भैया रामे-राम
हो भाइ, माता जे बिराजै मिथिले देश मे
नन्दन बन सन सुन्दर
मिथिला, इन्द्रक धनुष समान
कालिदास आ मंडन के घर, बुद्ध
बनल भगवान
चल भैया चलू ने, माता जे
बिराजै मिथिले देश मे...
हम अयाची हम नहिं माँगी, मंगनी
केर वरदान
जनकक आँगन लछमी नीपलि, हम तकरे
संतान
चलू भैया चलू ने, माता जे
बिराजै मिथिले देश मे...
अपना प्रेमे स्वर्गो जीतल, उगना बनल
महेश
एखनौ कोकिल पंचम गाबय, विद्यापति
के देश
चलू भैया चलू ने, माता जे
बिराजै मिथिले देश मे...
गीत: रवीन्द ्र नाथ ठाकरु
; गायक: महन्े द ्र कपरू
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